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स्त्री, भोजन और धन – इन तीनों में संतोष रखो

जब हम दुनिया में आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर अपने से बड़े, संपन्न और खुशहाल लोगों के जीवन पर निगाह डालते हैं, तो नहीं चाहते हुए भी हम अपने जीवन को उनके समान बनाने की ख्वाहिश करते हैं।

इस ख्वाहिश के बाद हम कोशिश करते हैं जिसमें नाकामी हाथ आने पर खुशी और संतुष्टि से महरूम भी हो जाते हैं। चूंकि हमारी नजर दूसरों के सुख, समृद्धि, प्रतिष्ठा, उनके जीवन की सरलता, उनके सम्मान और प्रतिष्ठा पर लगातार टिकी रहती है, इसलिए हम उनसे खुद का मुआज़ना (Comparison) कराकर विचलित और परेशान रहने लगते हैं।

हम सोचते हैं कि ऐ काश! कहीं हमारा जीवन भी उतना ही सरल और आसान हो जाता तो क्या ही बेहतर होता! लेकिन अगर किसी ने जल्द ही इस किस्म की विचाराधारा से अपना दामन नहीं बचाया तो ये सोच उसकी शख्सियत पर हावी होकर हमेशा उसे बेचैन और परेशान किए रखेगी।

बहुत से लोग स्त्री, धन और भोजन को ही अपने जीवन का परम आनंद और सुख समझकर उन्हें पाने की जुगत में दिन रात मेहनत करते हैं। अगर उनकी मेहनत रंग ले आ दे तो भी उन्हें वह परम सुख नहीं मिलता जिसका एहसास समाज के कुछ लोग अपने परोपकारी रवैये और अलग सोच के कारण कर पाते हैं।

वह सारे संसाधन अपनी बाहों में समेटने के बाद भी सिर्फ इसलिए दुखी रहते हैं क्योंकि वह समाज के अन्य लोगों से अपने आप की तुलना करना कभी नहीं छोड़ते। समाज में हर व्यक्ति अपना एक अलग स्थान, छवि और मर्तबे का मालिक होता है जिसे उसने अपने पिछले कड़े संघर्षों की बदौलत पाकर अपनी तकदीर (Fate) संवारी है।

कुछ लोग वहीं अपने आपको भी जबरदस्ती पहुंचाने की कोशिश करने लगते हैं जबकि हकीकत यह है कि उनका मर्तबा और मंजिल उनसे बिलकुल अलग होती है। अगर वह कोशिश करें तो किसी और क्षेत्र में उनसे कहीं आगे निकल सकते हैं।

वह इस सोच से इत्तफाक नहीं रखते और यही उनकी बेचैनी का सबसे बड़ा कारण है।

Satisfaction Hindi Kahani

आचार्य चाणक्य के अनुसार, अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों में व्यक्ति को संतोष करना चाहिए लेकिन पढ़ना, जप और दान इन तीनों में कभी संतोष नहीं करना चाहिए।

अगर आप भी इस गंभीर मानसिक (No satisfaction) बीमारी से बुरी तरह ग्रस्त और बेचैन हैं और इस बेचैनी से निजात पाने की आपकी इच्छा है तो नीचे दिए गए पहलुओं पर विचार कर आज से ही उस पर अमल करना शुरू कर दें

अपने से निचले पायदान के लोगों पर करें फोकस

जब आदमी अपने से बड़े पद या स्तर के लोगों को देखकर बहुत ज्यादा उस पर सोचने करने लगता है तो अपनी फितरत के चलते वह उन्हीं के समकक्ष खड़े होने की आरजू करता है।

याद रहे कि यह संसार ईश्वर का एक जबरदस्त निर्माण है जिसकी कुशल व्यवस्था में किसी चीज़ को बेवजह अस्तित्व में नहीं लाया गया है। इस असाधारण व्यवस्था में एक जबरदस्त नीति के तहत लोगों को एक दूसरे पर तरजीह (Importance) दी गई है जिसके पीछे हिकमत (Wisdom) ये है कि लोग एक दूसरे से जुड़े रहें और एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपने अपने मरतबे और महत्त्व को समझते रहें।

वैसे भी किसी विकसित या विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में रीढ़ की हड्डी भी समाज के मेहनतकश तबके को ही स्वीकार किया जाता है। इसलिए इस तबके को हीन भावना से देखना बेवकूफी है क्योंकि अगर यह लोग नहीं रहेंगे तो किसी भी मुल्क की अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से उतर सकती है।

जब हम अपने से निचले पायदान के लोगों को देखते हैं तो हमारे अंदर यह खुशनुमा एहसास जागृत होता है कि चलो! ईश्वर की कृपा से हम हालात की सख्ती से उतने विचलित और परेशान नहीं है जितना सामने वाला कमजोर शख्स नज़र आ रहा है।

इस आदत से किसी व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वह गंभीर से गंभीर परिस्थितियों में भी खुद को कभी असहज और चिंतित महसूस नहीं करता बल्कि विपरीत परिस्थितियों के धारे का रुख मोड़ने के लिए वह कमरबस्ता और तैयार भी रहता है।

इस तरह उसके दिल में शुक्रगुजारी (कृतज्ञता) का जज्बा पैदा होता है और अपने हालात की तुलना अपने से कमज़ोर लोगों से करने के बाद बाहर अपने भीतर खुशी महसूस करता है।

अपनी तुलना समाज के संपन्न लोगों से कभी ना करें

जब भी कोई व्यक्ति पद, ओहदे या दौलत या किसी और क्षेत्र में शीर्ष पर रहने वाले किसी शख्स से अपनी तुलना करता है तो अकस्मात उसके भीतर एक नकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है जिससे वह स्वयं को सुस्त, मंथर, कमज़ोर और दूसरों के मुकाबले बेहद कमजोर समझने लगता है। इस किस्म की सोच से उसके अंदर हौसले और आत्मविश्वास में भारी कमी आती है।

मगर तुलना करने के दौरान कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इस तुलना का सकारात्मक पहलू तलाश कर कामयाबी की राह निकाल लेते हैं और उनके जैसे बन कर दिखा देते हैं जिनसे वह पूर्व में अपनी तुलना कियाकरते थे। लेकिन यह लोग बहुत थोड़ी तादाद में होते हैं।

इसलिए अक्सरियत की बात की जाए तो हमें अपने से बड़े लोगों की तुलना से भरपूर प्रयास कर बचना चाहिए ताकि हम संतुष्ट होकर सुखी और समृद्ध जीवन के मार्ग प्रशस्त कर सकें।

इस सिलसिले में एक कौवे की कहानी बहुत मशहूर है

जिसमें वह सुखी और समृद्ध जीवन गुजार रहा था लेकिन उसी दरमियान उसे एक हंस नजर आ गया जिसके आकर्षण और खूबसूरती से वह वशीभूत (Addict) होकर स्वयं अपनी तुलना उससे करने लगा।

वह उस हंस के जैसा सुन्दर बनने की चाह में रहने लगा। वह सोचने लगा कि वाकई यह हंस दुनिया का सबसे खुशहाल और भाग्यशाली पक्षी है। उसने हंस की खूबसूरती की चर्चा करते हुए उससे कहा कि तुम वाकई बहुत खुश रहते होगे क्योंकि तुम इस संसार के सबसे खूबसूरत परिंदे हो।

यह सुनकर हंस ने जवाब दिया कि अपने जेहन में मैं भी पहले कुछ ऐसी ही सोच रखा करता था। मुझेअपनी सुन्दरता पर बहुत नाज़ था लेकिन कुछ दिनों बाद जब मैंने एक अत्यंत खूबसूरत दो रंगे तोते को देखा तो उसी पल मैं गलतफहमी के कुंवें से बाहर निकल आया।

मैं उसे देखकर हीन भावना का शिकार हो गया। मैंने उससे बिल्कुल तुम्हारा सवाल दोहराया जिस पर उसने जवाब दिया कि नहीं यार! मोर की खूबसूरती से शायद तुम नावाकिफ (अपरिचित) हो। वह कितनी कलरफुल और हसीन मालूम होती है।

यह सुनकर कौवा एक चिड़ियाघर में पहुंचा जहां उसने देखा कि बहुत से लोग पिजड़े में कैद एक खुबसूरत मोर को नाचते हुए देख रहे हैं। लोगों के जाने के बाद कौवे ने मोर से पूछा कि तुम वाकई बहुत भाग्यशाली हो कि तुम्हारा शुमार इस दुनिया के सबसे खूबसूरत और आकर्षक परिंदो में किया जाता है।

तुम अपनी सुन्दरता और लोकप्रियता से काफी खुश रहते होगे? यह सुनकर मोर ने जवाब दिया कि पहले मैं भी कुछ ऐसा ही सोचा करता था लेकिन जब मुझे कैद कर दिया गया तो मुझे यह एहसास होने लगा कि कौवा ही एकमात्र वह पक्षी है जिसे चिड़ियाघर में नहीं रखा जाता।

मैंने सोचा कि काश! मैं भी अगर कौआ होता तो आजादी के साथ खुली फिज़ा और माहौल में सांस ले पाता। यह सुनकर कौए ने परमात्मा का शुक्रिया अदा किया और उसी दिन से वह खुद को लेकर पूरी तरह आश्वस्त और संतुष्ट हो गया।

कहने का मतलब ये कि हर आदमी में कोई ना कोई खूबी ऐसी होती है जिसे लेकर अगर वह चाहे तो जिंदगी भर संतुष्ट और शुक्रगुजार रह सकता है। बस हमें उन्हें अपने भीतर तलाश करने की ज़रूरत होती है।

अपने जीवन को सामान्य बनाने का हुनर सीखे

जब कभी आप किसी से अपनी तुलना करते हैं तो मुमकिन है कि आप उस दौरान हसद (Envy) और ईर्ष्या की आग में तपने लगें।

ऐसा हो सकता है कि कम उम्र में ही किसी ने कामयाबी के उस पायदान पर कदम रख दिया हो जिस पर पहुंचने में आपको वर्षों बीत गए थे।

अगर आप उस कम उम्र के व्यक्ति से अपनी तुलना करने लगेंगे कि अरे यार! ये लड़का तो इतने कम समय में ही इतने ऊंचे पायदान पर पहुंच गया तो या तो आपमें उस शख्स को लेकर ईर्ष्या या जलन पैदा होगी या फिर आप उस शख्स के मुकाबले में खुद को हीन भावना से देखने लगेंगे।

अगर किसी से तुलना करने के दौरान आपमें सकारात्मक ऊर्जा एहसास हो रहा है और आप उसके जैसा बनने का सपना देख रहे हैं तो यहां तक तो ठीक है।

लेकिन अगर इसके अलावा कोई और नाकारात्मक बात आपके जेहन में आ रही है तो फौरन ही इस किस्म के ख्याल को अपने दिल के किसी कोने में ही दफन कर दें और अपने जीवन और परिस्थितियों को सामान्य बनाने की पुरजोर कोशिश करते रहें। क्योंकि बहुत ज्यादा लोगों का विचार आपको आध्यात्मिक संसार से अलग कर भौतिक संसार से ही जोड़े रखेगा और इस तरह भौतिकता के चलते आपका मन हरदम बेचैन रहकर कभी शांत अवस्था में नहीं पहुंच सकेगा।

इसलिए हमारी राय यह है कि तुलना के बगैर अपने जीवन या सामाजिक स्तर को आसान बनाने का पुरजोर प्रयास करते रहें।

अपने वर्तमान से संतुष्ट रहना सीखें

बहुत से लोग अपने भविष्य की चिंता लेने और अपने अतीत की जख्म देने वाली यादों को कुरेदने के बाद अपने वर्तमान को स्वादहीन बना लेते हैं जबकि वर्तमान ही असल वास्तविकता है और अतीत एवं भविष्य तो केवल उसके दिमाग की उपज हैं।

पता नहीं वह यादें या फिर भविष्य के आने वाले हालात जो उसके दिमाग में हैं, कभी वास्तविकता का रूप धारण कर पाएंगे भी या नहीं? इसलिए अपने वर्तमान में जीना सीखें और छोटी से छोटी खुशियों को भी मौके की गनीमत समझकर भुनाना सीखें।

यह भी याद रहे कि इस जीवन में खुशियों का कोई असल ठिकाना नहीं होता और खुशियां आपकी जिंदगी के कठोर से कठोरतम हालात में कहीं भी पनाह ले सकती हैं। इसलिए अपनी खुशियों को तलाश कर उन्हें महसूस करना सीखें।

फालतू के कामों में समय व्यर्थ ना करें

इन सबके अलावा आप जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करें और अगर आपने अभी तक लक्ष्य का निर्धारण नहीं किया है तो उसे जल्द निर्धारित कर उसके पीछे पूरे जोशो खरोश और हिम्मत के साथ लग जाएं।

फालतू की बातों में अपने समय को व्यर्थ और बर्बाद ना करें क्योंकि समय एक बार जब किसी के हाथ से निकल जाता है तो फिर उसके हाथ पछतावे के सिवा कुछ और नहीं लगता।

बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो टाइम पास नहीं करता बल्कि अपने खाली समय में अपनी शिक्षा और अध्ययन के कार्यों पर ध्यान देता है ताकि उसे कुछ नया करने, जानने या सीखने का मौका नसीब हो सके।

यही लोग हैं जो अपने ज्ञान और हुनर की बदौलत किसी ऐसे मुकाम पर पहुंच जाते हैं जिसे देखकर दुनिया हैरत और आश्चर्य के समंदर में डूब जाती है।

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