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अष्टावक्र गीता | Life lessons from Ashtavakra Gita

ashtavakra gita in Hindi

Best Life lessons from Ashtavakra Gita in Hindi

हम सिर्फ अगर अपने मूल्यों को समझे और उनका सही से अर्थ अपने आने वाली पीढ़ियों को बताए, तो हमारे पास अपने पीढ़ियों को सिखाने के इतना कुछ है कि इस आधुनिकता के समय में भी उनको काबिल और हुनरमंद बनाया जा सकता है

अंग्रेजों ने भारत पर अपना कानून थोपने के साथ साथ उन्होंने यहां के लोगों की Social engineering भी करनी शुरू कर दिया था। धीरे धीरे उन्होंने यहां के विपुल ज्ञान की सम्पदा को बेकार और बकवास की उपाधि दे दी।

और नई शिक्षा प्रणाली के तहत वह यहां के शिक्षा की उत्तम प्रावधान को हटा कर अपनी शिक्षा प्रणाली थोपनी शुरु की। जिसके चलते अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण करने के बाद यहां के छात्रों को अंग्रेज विकसित और सभ्य लगने लगते है। यहां की परंपरा अंधविश्वास से भरी और काल्पनिक लगने लगी।

लेकिन धीरे धीरे फिर से हमें अपने पुरातन मूल्यों को और उनमें छुपे बहुमूल्यों ज्ञान से आज के generation को अवगत कराना चाहिए।

तो यहां पर हम एक सीरीज शुरु कर रहे है। अष्टावक्र गीता की learning और lessons की।
यह उनका पहला पार्ट्स है।

अष्टावक्र की कहानी

महाभारत एक तरह के पूरी जीवन के आयाम और पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रंथ है। सिर्फ इसमें हमें हर वर्ग के लिए कुछ ना कुछ मिल ही जाता है।

लेकिन अभी पूरी तरह से बहुत सारे लोग महाभारत को सिर्फ कौरवों और पांडवों की कहानी ही समझते है। लेकिन इसमें बहुत सारे लोगों की अभिव्यक्ति जुड़ी हुई है।

वहीं इसमें बहुत महान और प्रकांड लोगों के ज्ञान का भंडार है, जोकि नीतिशास्त्र, राजशास्त्र, धर्म, कर्त्तव्य का अद्भुदज्ञान देते हैं।

उन्हीं महान कहानियों में से एक कहानी है, अष्ट्रावक्र की।

उद्दालक नामक एक ऋषि हुआ करते थे और वे आश्रम में अपने शिष्यों को वेदों के अर्थ को विस्तार पूर्वक समझाते थे। उनके आश्रम में उनका प्रिय और तेजस्वी शिष्य थे कहोड़।

कहोद से महर्षि उद्दालक बहुत प्रभावित थे, जब काहोड़ की शिक्षा पूरी ही गई, तब महर्षि ने अपनी बेटी की शादी कहोड से कर दी, जिसका नाम सुजाता था।

ऐसा सुनने को मिलता है कि सुजाता बचपन से वेदों और बड़े बड़े विद्वानों को देख कर बड़ी हुई थी, तो उसकी ऐसी कामना होती थी कि उसका जो पुत्र हो, वह धरती का सबसे ज्ञानी और प्रकांड विद्वान हो।

जब सुजाता ने गर्भ धारण किया, उसके बाद वह कहो़ड द्वारा ली जाने वाली हर class में बैठ जाती और उनके पति अपने स्टूडेंट्स को जो वेदों की learning और knowledge बताते, तो उनको बडे़ गौर से सुनती है। ताकि उनका बच्चा बचपन से ही knowledge से भरा हो। और उसकी बुद्धि इस दुनिया में आने से पहले की sharp हो चुकी हो।

ऐसा वो रोज करती थी, सुबह उठती, नदी में स्नान करने जाती है। ईश्वर की प्रार्थना करती है। भोजन जो बनाना वो सब बनाती और उसके बाद जा कर class में बैठ जाती।

एक दिन ऐसा हुआ कि महर्षि कहोड़ वेद के किसी मंत्र का उच्चारण के रहे थे तभी सुजाता के गर्भ से आवाज आती है, “आप गलत मंत्र को पढ़ा रहे हो

इतना सुनकर महर्षि कहोड़ को गुस्सा आ जाता है।
और वह अपने अजन्मे पुत्र को ही श्राप दे देते है कि जाओ तुम आठ जगह से टेड़ा पैदा होगे

अपनी पति की बातों पर सुजाता उतना ध्यान नहीं देती है। वह उसको सामान्य घटना समझ कर भूल जाती है। जैसे जैसे delivery का दिन नजदीक आता है।

सुजाता को अपने बच्चे को लेकर चिंता सताने लगती है। आखिर वह अपने बच्चों की financial condition को कैसे मजबूत करेगी?
आर्थिक आधार भी तो मजबूत होना चाहिए।

वह इस बारे में अपने पति से बात करती है। महर्षि कहोड़ भी अपनी पत्नी की बातों की गंभीरता को समझते है। वह कहते है कि ठीक मैं कुछ करता हूं।

और वह राजा जनक के दरबार में जाने की योजना बनाई। राजा जनक उस समय एक भव्य यज्ञ की तैयारी कर रहे थे। जिसके लिए बहुत बहुत दूर दूर से ऋषि मुनियों को बुलाया जा रहा था, महर्षि कहोड़ भी राजा जनक के दरबार में पहुंचते है।

राजा जनक उस यज्ञ की तैयारी बहुत लंबे समय से कर रहे थे। उनका यज्ञ सम्पूर्ण होने में एक ही बाधा था, वह महर्षि बंदी की शर्त।

महर्षि बंदी ने राजा जनक को यह शर्त दिया था कि जबतक महर्षि बंदी को कोई ऋषि शास्त्रार्थ में पराजित नहीं करता है, तब तक यज्ञ संपूर्ण नहीं हो सकता है। कई सारे ऋषि मुनि गए बंदी से आमना सामना किया और आसानी से हार गए।

हारने के बाद हारे हुए ऋषियों को जल समाधि दे दी जाती थी।
महर्षि कहोड़ भी बंदी से स्पर्धा करने गए। बाकी ऋषियों की तरह यह हार गए और इनको जल समाधि दे दी गई।

जब यह बात सुजाता को पता चला तो उनको बहुत दुख हुआ। अब सुजाता regrets कर रही थी।
कुछ समय बाद सुजाता ने एक लड़के का जन्म दिया। जो आठ जगहों से टेड़ा था, इसलिए उनका नाम अष्टावक्र रख दिया गया।

पति की अनुपस्थिति के कारण सुजाता ने अष्टावक्र की परवरिश में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था । लेकिन वह अपने अपने बच्चे के परवरिश में कोई भी कमी नहीं रखना चाहती थी।

इसलिए उसने बच्चे को अपने पिता के पास शिक्षा – दीक्षा के लिए भेज देती।

अष्ट्रवक्र भी महर्षि उद्दालक से वेदों और पुराणों का अध्धयन करने लगे। Ashtavakra बचपन से ही बहुत मेधावी थे। और उनका understanding और intellect बहुत ही next लेवल का था। काफी कम उम्र में ही उन्होंने अपनी सारी शिक्षा complete कर ली। महर्षि उद्दालक भी इनसे बहुत ज्यादा ही प्रभावित थे।

बाद में इन्होंने अपने पिता के बारे में जानना चाहा।

इनकी माता श्री इनको कहोड़ और जनक के बारे में सारी बातें विस्तार से बता दिया। यह सब कुछ जानने के बाद राजा जनक के दरबार में जाने का फैसला लेते है।

और एक दिन राजा जनक के दरबार की तरफ चल पड़ते है। आठ जगह से टेड़ा होने के कारण महल के बाहर ही उनको द्वारपाल रोक लेते है। लेकिन यह अपने ज्ञान और तर्क शक्ति की मदद से सबकी बोलती बंद कर देते है।

जब महर्षि अष्ट्रवक्र दरबार में पहुंचते है, तो सारे दरबारीगण इन पर हंसने लगते है। यह राजा से इसठहाके दार हंसी का करना पूछते हैं।
राजा कहते है कि यह आप आप के इस शरीर पर हंस रहे है।

कुछ देर चुप रहने के बाद महर्षि अष्टावक्र कहते है कि राजा आप इन मूर्खो के बीच बैठ के अपने आप को बहुत महात्मा ज्ञानी समझते है। यह मेरी बुद्धि और मेरी ज्ञान की परीक्षा लिए बिना ही मेरे बारे में अवधारणा बना रहे है। यह तो किसी महात्मा की निशानी नहीं होती है।

और सारे दरबारी गण से एक प्रश्न पूछते है कि आप घड़े पर हंस रहे है या कुम्हार पर।
महर्षि अष्टावक्र का इशारा सभी लोग समझ जाते है। और दरबार में पूरी तरह से मौन व्याप्त हो जाता है।

अष्टावक्र की विद्वता के आगे सभी झुक जाते है। उसके बाद महर्षि बंदी से महर्षि अष्टावक्र की प्रतिस्पर्धा कराया जाता है।

महर्षि अष्टावक्र बहुत जल्द ही महर्षि बंदी को हरा देते है। अब जब महर्षि बंदी को भी जल समाधि देने की बारी आती है, तो बंदी बोलते है कि महाराज मुझे क्षमा करें।

“मैं वरुण पुत्र हूं ” मेरे पिता एक बहुत बड़े यज्ञ के रहे है और मुझे धरती पर सब से अच्छे ऋषियों को चुन कर भेजने के लिए बोला था। अब मेरे पिता का यज्ञ समाप्त हो गया। सारे ऋषि नदी के रास्ते फिर से आ जाएंगे।

ऐसा ही होता है। जितने ऋषियों से जल समाधि लिया था, सभी ऋषि पुनः वापस आ जाते है।
और महर्षि कहोड़ भी आते है। महर्षि कहोड़ अपने पुत्र की ज्ञान से बहुत प्रभावित होते है। और उनके श्राप से मुक्त करने के लिए नदी में स्नान करने लिए बोलते है। नदी में स्नान करने के बाद अष्टावक्र पूरी तरह से ठीक हो जाते है। और उनको अपना पिता भी मिल जाते है।

Life lesson form Ashtavakra Geeta

1. इस कहानी सबसे पहले parenting सिखाती है। आखिर जब घर में बच्चा होने वाला हो, आज कल के बच्चे बहुत ज्यादा rude और ढीठ हो रहे है, वह किसी का ना ती बात मानते है, और ना ही बात समझते है। इसका क्या कारण है?

बस एक ही कमी के कारण, बचपन से ही उसके दिमाग में सही जानकारियां और सूचनाएं नहीं डाली जाती है। उसके अंदर के अच्छाई को बाहर नहीं निकाला जाता है।

जब माता सुजाता को संतान होने वाला होता है, वह शुरू से ही अपने बच्चे को अच्छे संगत में रखती है, उसका सही से ख्याल रखती है। तब ना अष्टावक्र महान बन पाते है।

2. अपने ज्ञान पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए, जितना कुछ हमारे पास है, जितना कुछ हम जानते है। कोई ना कोई ऐसा जरूर होगा, जो हमसे ज्यादा जानता हो।

महर्षि बंदी को अपने शास्त्रों के ज्ञान का घमंड होता है, उनका घमंड आखिर में अष्टावक्र तोड़ ही देते है।

3. आज के विज्ञापन भरी दुनिया में दिखावा बहुत बढ़ गया है, हार कोई दिखावे के पीछे भाग रहा है। मार्केट में रंग गोरा करने के कई सारे प्रोडक्ट्स उपलब्ध है। Six pack, अच्छी हाइट ये सब के पीछे लोग आंख मूड कर भाग रहे है।

लेकिन अष्टावक्र कहते है। कभी भी किसी को उसके physical appearance के आधार पर judge नहीं करना चाहिए। Knowledge और talent मायने रखता है।

4. पिता का दर्जा जीवन में सबसे ऊंचा होता है, उनके सम्मान के खातिर दुनिया के किसी भी ताकत से टकराने से नहीं डरना चाहिए।

Final word

आधुनिकता के साथ अपने पुरातन मूल्यों को भी समझना और उनसे सीखना चाहिए। एक बेहतर जिंदगी के लिए, एक बेहतर समाज के लिए जितना कुछ बन बैठता है, वह सब कुछ वेदों, उपनिषदों और पुराणों में समाहित है।

आज पूरी दुनिया श्रीमद भगवद गीता का पढ़ रही है, और उसका रसपान से सभी लोग लाभ उठा रहे है।

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