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रसिकलाल जी के चालाक बनने का सुख

Chalak Bano aur khush raho

रसिकलाल जी अपने जीवन की कमाई अपने बच्चों के साथ बांटना चाहते हैं। उन्होंने कभी भी अपने बच्चों में कोई भी भेदभाव नहीं किया और हमेशा उनकी इच्छाओं को पूरा करते रहे।

रसिक लाल की पत्नी सुधा हमेशा उनसे आराम करने को कहती लेकिन वह हमेशा बात को टाल जाते और कहते कि जो मेहनत वे कर रहे हैं अपने बच्चों के लिए ही तो कर रहे हैं और धीरे-धीरे करके उन्होंने एक नहीं बल्कि दो-दो मकान बनवा लिए ताकि उन्हें कभी किसी की कमी महसूस ना हो और उनके बच्चे आराम से उनके बनाए हुए घरों में रह सके।

रसिकलाल जी की पूरे शहर में बहुत इज्जत थी और लोग हमेशा उनका नाम सम्मान से लेते थे। लेकिन कहते हैं ना दूर के ढोल सुहाने लगते हैं। जैसे जैसे उनके दोनों बेटे बड़े होने लगे वैसे वैसे उन्होंने कई सारे परिवर्तन बेटों में महसूस किए लेकिन उन्होंने कभी इसका जिक्र नहीं किया और चुपचाप सारे गम को सहते रहे।

1 दिन रसिक लाल जी का बड़ा बेटा विनय उनके पास आकर कहता है “पिताजी मुझे अपनी पढ़ाई आगे जारी रखने के लिए बाहर जाना है। क्या आप मुझे पैसे देंगे?

यह बात सुनते ही रसिकलाल जी ने तुरंत हां कर दी और देखते ही देखते उनका बेटा कुछ दिनों में बाहर पढ़ाई करने चला गया। इसी प्रकार से छोटे बेटे सुनील को भी उन्होंने पैसे दिए और जिसके बाद सुनील भी बडे़ शहर  में जाकर सेटल हो गया। इस तरह से वे  दोनों बेटे से दूर हो गए और अपनी पत्नी के साथ ही रहने लगे।

दोनों बेटों के वियोग की वजह से उनकी पत्नी सुधा का बहुत ही जल्द निधन हो गया और अब रसिकलाल जी बिल्कुल अकेले रह गए थे।

कुछ ही दिनो मे उन्हें अपने बेटों के घर जाना पड़ा क्योंकि अब रसिकलाल बूढ़े हो चले थे तभी किसी पड़ोसी ने रसिकलाल जी से कहा

“आपके बेटे आपकी तरफ मुड़ कर भी नहीं देखते और आपने उनके लिए क्या कुछ नहीं किया। इससे अच्छा तो हमारा बेटा हरिया है, जो हमारे साथ ही रहता है भले ही उसने पढ़ाई ज्यादा नहीं की लेकिन अब हमें अपनी सेवा के लिए किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।”

पड़ोसी की इन बातों से रसिकलाल जी का सीना छलनी हो गया और उनकी आंखों में आंसू आ गए।

जिन लोगों का रसिकलाल जी  के सामने मुंह नहीं खुलता था अब समय की वजह से वे लोग ही ताने देने से पीछे नहीं हट रहे हैं। मन को समझाते हुए वे अपने बड़े बेटे के यहां चले जाते हैं जहां उनके पोते पोतियो के द्वारा बहुत प्यार मिलता है लेकिन बड़ी बहू का स्वभाव थोड़ा सख्त रहता है।

वह कभी खाने में कम मसाला डालती तो कभी जानबूझकर खाना कम बनाती हैं। ऐसे में रसिकलाल जी को बिल्कुल भी खाने का मन नहीं करता और वह बाजार से लाकर ही कुछ ना कुछ खा लेते जिस वजह से उनकी तबीयत बिगड़ जाती और फिर बड़ी बहू उन्हें बहुत बुरा भला कहती।

अचानक एक दिन उनका मन छोटे बेटे के घर जाने का होता है लेकिन छोटा बेटा तो उनको यह बोलकर मना कर देता है कि उनकी देखभाल करने के लिए पति पत्नी के पास बिल्कुल समय नहीं है क्योंकि दोनों नौकरी पेशा है और ऐसे में उनकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकते।

यह बात सुनकर रसिक जी को बहुत बुरा लगता है कि जिन बेटों की वजह से उन्होंने न जाने कितने परेशानियों का सामना किया, आज उन्होंने ही उन्हें अकेला छोड़ दिया। अगर उनकी पत्नी जिंदा होती तो उसे देख कर बहुत बुरा लगता कि जिस पिता ने इतनी मेहनत के बाद इज्जत, सम्मान कमाया था आज इन दोनों की वजह से इज्जत कहीं खो चुकी है।

वैसे तो वह अपने बड़े बेटे के यहां ही रह रहे थे लेकिन समय व्यतीत करने के लिए कभी कभार पास के बने गार्डन में चले जाते जहां पर वह लाफिंग क्लब का हिस्सा बन गए और इसके जरिए उनके कई सारे दोस्त भी बन जाते हैं।

तभी हम उम्र होने की वजह से एक दूसरे से दुख सुख बांट लेते लेकिन कभी भी रसिकलाल जी ने अपने बारे में लोगों को ज्यादा नहीं बताया। ऐसे में उनके मित्र विनायक जी ने रसिकलाल जी से पूछ लिया क्या बात है आप काफी उदास रहते हैं और किसी से अपनी बात नहीं बताते हैं? यह ऐसी जगह है जहां अगर आप अपना दुख, गम बांटते हैं तो कोई ना कोई रास्ता जरूर निकल जाता है।

दोस्तों के काफी बोलने के बाद उन्होंने अपने दिल की बात बताई जिससे उनके दोस्तों के मन में भी बहुत दुख हुआ लेकिन सभी ने मिलकर उनकी मदद करने की ठानी और ऐसे में उन्होंने एक बेहतरीन रास्ता अपनाया।

दोस्तों का उपाय रसिकलाल जी को बहुत अच्छा लगा और उन्होंने बेटों को सबक सिखाने के लिए अपना कार्य आगे जारी किया। जब वे घर गए वहां उन्होंने छोटे बेटे को भी बुला लिया। उन्होने यह कहा कि उन्हे अपने जायदाद का बंटवारा करना है। लालच से भरे हुए दोनों बेटे और बहू वहां आ जाते हैं।

तब रसिकलाल जी उनसे कहते हैं कि “वे अपना पुश्तैनी घर बेचना चाहते हैं जिसमें लगभग 4 करोड रुपए मिलने वाले हैं उन्होंने तो सोचा था कि दोनों बेटों को दो दो करोड़ रुपए बाटेंगे लेकिन बेटे और बहू के व्यवहार की वजय से अब 4 करोड़ रुपए अनाथ आश्रम में दान कर देंगे।”

यह सुनकर तो बड़े बेटे और छोटे बेटों के पैर तले जमीन खिसक जाती है और वे अपने पिताजी का पैर दबाते हुए कहते हैं।

“अरे नहीं पिताजी इसकी क्या जरूरत है हम बेटों के होते हुए आप किसी और को अपनी जायदाद कैसे देगे? आखिर आप की देखभाल और सेवा करने का दारोमदार हमने उठाया है।”

इसके बाद दोनों बहुएं भी पैरों पर बैठकर पैर दबाना शुरु कर देती हैं और कहती हैं “बताइए पिताजी आपको क्या खाना पसंद है? मैं आपके लिए जरूर बनाऊंगी वही बड़ी बहू और छोटी बहू दोनों अपनी अपनी पसंद का खाना बनाकर पिताजी के सामने ले आती।

यह सब देख कर रसिकलाल जी को बड़ा मजा आता है क्योंकि कल तक जब वे परेशान हो रहे थे तब इन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन जैसे ही पैसों की बात आई तो इन लोगों ने हाथ पैर जोड़ने शुरू कर दिए।

अब दोनों बेटे बहू बड़ी सेवा जतन के साथ रसिकलाल जी की देखभाल करने लगे और उन्हें किसी प्रकार की कमी नहीं होने दे रहे थे। 1 दिन रसिकलाल जी ने कहा

कि “मैं सोचता हूं कि मैं अपनी पुश्तैनी घर को थोड़े दिन बाद बेचूँ तब एक अनुमान के अनुसार ₹10 करोड़ मिल जाएंगे।

यह सुनकर तो बेटे बहू ने तुरंत हामी भरी और बड़े बेटे ने कहा –” हां पिताजी आपकी जब इच्छा हो तब आप बेचिएगा और वैसे भी उन पैसों को तो आप हमें ही देने वाले हैं।”

उस दिन के बाद से रसिकलाल जी के प्रति बेटे और बहू का व्यवहार बिल्कुल बदल गया जिसे देखकर रसिकलाल जी के दोस्त भी खुश हो रहे थे और उन्होंने सीधे साधे रसिक लाल जी को टेढी़ उंगली करके घी  निकालना सिखा दिया था।

पैसों की लालच में बेटे बहू ने उनकी बहुत ज्यादा सेवा जतन की जिसकी वजह से अब बेटे बहू की आदत भी पिता का ख्याल रखने की हो चुकी थी और वह भी पिता को पर्याप्त मान सम्मान देने लगे थे, जिसकी इच्छा उन्हें बहुत दिनों से थी।

अब रसिकलाल जी अपनी पत्नी सुधा की फोटो के सामने खड़े होकर उसे याद करते और कहते अगर आज सुधा उनके साथ होती तो जीवन का नजरिया कुछ और होता और उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं।

दोस्तों, कभी-कभी हमारे जीवन में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलता और ऐसी स्थिति में उंगली को थोड़ा टेढा़ करना पड़ता है। जब आप उंगली को टेढा़ करते हैं, तो आपका काम बन जाता है और आप पहले से कहीं अधिक खुश रह पाते हैं।

हर काम करने का का अपना तरीका और सलीका दोनो होता है,जीवन में परिस्थितियों के अनुसार ढलना और उसके अनुसार अपने काम निकालना जरूरी होता है, रसिकलाल जी ने भी उंगली को टेढी़ करने की हिम्मत दिखाई जिसके चलते अब बेटे बहुओं में उनकी इज्जत बरकरार है और वे अब खुश हैं।

कहानी में हैप्पी एंडिंग जरूर होती है, अगर कहानी में अभी हैप्पी एंडिंग नहीं हुई तो समझिए कहानी अभी बाकी है, इसमें और भी इससे जुड़ी घटनाएं अभी बाकी है।

और कहानी और किरदार इस बदलते दौर के दर्पण है, जो हमको रास्ता दिखाते है, कि समाज में क्या हो रहा है? और क्या घटित हो रहा है?

तो जीवन को आनंदित कीजिए, खुश रहिए। जीवन के रस्ते आपके लिए सरल हो।

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