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क्या आत्महत्या पर अंकुश लगाना संभव है?

जब इंसान पर जब चारों ओर से मुसीबत और संकट के बादल गहराने लगते हैं और वह इन विपत्तियों के घने और खौफनाक बादलों को छांटने में नाकाम हो जाता है तो इसका मतलब यह हुआ कि वह विपरीत परिस्थितियों का रूख बदलने की क्षमता खो चुका है और हालात के सामने घुटने टेकने पर पूरी तरह मजबूर हो चुका है।

जब आदमी के अंदर से आत्मविश्वास और आत्मबल खत्म हो जाता है तो उसके दिमाग में विपरीत विचारों का अंबार लग जाता है जिससे वह परिस्थितियों से निपट नहीं पाता और धीरे धीरे उसके जीवन की खुशियां खत्म होकर गमों के अंधेरों में कहीं गुम जाती हैं।

इस तरह, उसके दिमाग में जीवन की तंगहाली और बदहाली को लेकर अजीबोगरीब और डरावने विचार परिक्रमा करने लगते हैं। यह नकारात्मक विचार कभी कभार उसे यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आखिर वह इस दुनिया में क्या कर रहा है?

वह इन मुसीबतों और संकट के बादलों को छांटने का सामर्थ्य और ताकत नहीं रखता। वह कभी इन विपत्तियों के दलदल से नहीं निकल सकता। तो क्यों ना हो कि वह खुद अपनी मौत को गले लगा कर इन गंभीर संकट और मुसीबत से निजात के रास्ते तलाश कर ले?

अब उसके दिमाग में आत्महत्या का अक्सर ख्याल आने लगता है। वह कई बार खुद अपने ही हाथों अपने जीवन को लील जाने का प्रयास करता है। उसका यही प्रयास एक दिन रंग ले आता है। एक दिन वह साहस और दृढ़ निश्चय के साथ अपनी जिंदगी की रौशनी को अंधकार में बदलने के लिए आखिरकार कदम उठा ही लेता है और इस तरह उसकी जिंदगी की सुबह कभी नमूदार नहीं होती।

उसकी जिंदगी का सूरज अब कभी नहीं उगेगा। वह जिस साहस और आत्म निश्चय का प्रदर्शन अपनी मौत को गले लगाने के दौरान करता है, अगर उसका 10% भी जिंदगी के सख्त हालात से निपटने के लिए करता तो शायद उसके जीवन से संकट के काले काले बादल छठ सकते थे।

लेकिन इसके विपरीत उसने गलत राह चुनकर आत्महत्या कर ली और अपने लिए हमेशा का नुकसान उठाने वाला सौदा कर लिया। आत्महत्या करने वाला शख्स वैसे तो जीवन में सुकून छिन जाने के चलते ही यह कदम उठाता है लेकिन एक ओर से देखा जाए तो वह सुकून पाने की खातिर ही खुदकुशी जैसा घोर पाप और अनर्थ करने की फिराक में रहता है।

उसके जीवन से सुख, शांति और सुकून छिन जाते हैं लेकिन उसे शायद पता नहीं है कि सुकून तो उसे अपनी मौत को गले लगाने के बाद भी कभी मयस्सर नहीं हो सकेगा।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो जो शख्स भी खुद अपनी कब्र खोदता है, वह उसी हालत में सदा मरता रहेगा जिस हालत में उसने खुद को आखिरी बार पाया था। इस तरह सुकून पाने की चाहत में वह शांति से कोसों दूर निकल जाता है।

बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस

कहा जाता है कि ज़िंदगी बेहद कीमती है और कोई हार ऐसी नहीं है जिसके लिए इंसान अपनी ही जिंदगी का सौदा कर ले और उसे गले लगाकर मौत के गहरे कुएं में उतर जाए।

इन दिनों लोगों में आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और अन्य विपरीत परिस्थितियों के चलते आत्महत्या का रुझान तेजी से परवान चढ़ रहा है जो किसी बड़ी दुखदायी और हादसाती घटना से कम नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार हर साल तकरीबन 70 लाख लोग अपने हालात से जंग हारकर खुद को मौत के घाट उतार लेते हैं। हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो खुदकुशी की कोशिश कर उसमें नाकाम भी हो जाते हैं। ज़िंदगी कुदरत का एक नायाब तोहफा है जिसे दुनियाभर में लाखों लोग खोकर अपने बोझ को परिवार का बोझ बनाते और अपने घर वालों को हमेशा के लिए अलविदा कह जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक उम्र के जिस पड़ाव पर लोग सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं, उसमें 15 से 19 साल तक के बच्चे या नौजवान ज्यादातर शामिल हैं। मतलब ये कि आत्महत्या का प्रयास वही लोग ज्यादा करते हैं जिन्होंने सही ढंग से अपनी जिंदगी का पहला चरण भी पास नहीं किया है।

इसका आशय यह भी लिया जा सकता है कि आत्महत्या की वारदात दिमाग पर काबू ना होने की वजह से ही सामने आ रही हैं जिसमें लोगों की समझ बूझ और चेतन शक्ति कुछ इस तरह जवाब दे जाती है कि वह इतने सख़्त और भयानक कदम उठाने पर बाध्य हो जाता है।

अगर मनुष्य की चेतना उसी समय जाग जाए जब वह आत्महत्या का कदम उठाने का प्रयास करता है तो वह अपने कदम पीछे खींच सकता है जिसकी अतीत में बहुत सी मिसालें भी मौजूद हैं।

मौत के कुएं की राह दिखाता है डिप्रेशन

कोई भी सामाजिक, पारिवारिक, भौतिक, आध्यात्मिक या अंतरराष्ट्रीय संकट के समय में किसी व्यक्ति के मन पर नकारात्मक विचारों की परिक्रमा तेज हो जाती है जिसकी वजह से वह भविष्य की चिंता, वर्तमान के भय और अतीत के ज़ख्मों को कुरेद कर खौफ और दहशत के माहौल में जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाता है।

उसकी यही मजबूरी उसे चिंता और तनाव में रखती है। सख्त हालात उसे डिप्रेशन की खाई में धकेल कर मौत को गले लगाने पर अमादा करते हैं। ज्यादातर आत्महत्या के मामले इसी डिप्रेशन की वजह से सामने आते हैं।

यह डिप्रेशन उसे तभी घेरता है जब हालात उसकी मुट्ठी से पूरी तरह फिसलते नज़र आने लगते हैं। जब किसी शख्स के सिर पर किसी गंभीर बीमारी का साया मंडराने लगता है और ढेरों दवा इलाज के बावजूद वह इससे उबर नहीं पाता तो डिप्रेशन में जाकर ही वह आत्महत्या का प्रयास अमल में लाता है।

कुछ लोग तो कारोबार में भारी नुक्सान या कर्ज को बरदाश्त नहीं कर पाते और अपने जीवन को अपने हाथों ही समाप्ति की कगार पर पहुंचा देते हैं। कभी पारिवारिक कलह और कॉलेज में रैगिंग के चलते भी लोग आत्महत्या कर लिया करते हैं।

कैसे खत्म हो अपनी मौत को गले लगाने का यह विनाशकारी दांव

जब भी किसी शख्स के मन में अपनी जिंदगी की बदहाली और तंग राहों के कारण आत्महत्या का विचार कौंधने लगे तो उसे फौरन अपने जेहन से निकालने के लिए जगह बदल दें और किसी अन्य जरूरी या गैर ज़रूरी काम में व्यस्त हो जाएं।

यह समझें कि यह ज़िन्दगी दुनिया की सबसे खूबसूरत पूंजी और मीरास है। यह आजकल बेरंग और दुर्लभ भले महसूस हो रही हो, लेकिन आगे आने वाले दिनों में उसकी ये जिन्दगी एक दिन जरूर खुशनुमा हो जाएगी। लेकिन इसके लिए थोड़े सब्र और संयम की दरकार है। याद रहे कि जीवन में किसी के भी हालात, चाहे वह जीवन के किसी भी मुकाम पर हो, कभी भी पटरी से उतर सकते हैं।

यह कभी ना समझें कि आप बस अकेले ही विपत्तियों और मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। हकीकत ये बिल्कुल भी नहीं है। हर इंसान के जीवन में कोई न कोई क्षण ऐसा आता है जिसमें वह चारों ओर से दुख दर्द और तकलीफों से घिर जाता है। उसे समझ नहीं आता कि आखिर वह दर्द के इस तूफान से निकले भी तो कैसे?

वह ईश्वर के भरोसे अपनी कश्ती को तूफान में पड़ा छोड़ देता है और हालात के धारे का रुख मोड़ने के लिए बड़े बड़े प्रयास अमल में लाता है लेकिन इस बीच वह यह समझता है कि अपने ही हाथों अपना गला घोंट देना किसी हाल में जायज़ और दुरुस्त नहीं है।

ऐसा करने से वह अपने जीवन को खत्म कर सकता है लेकिन परिवार में मां, बाप, भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र और करीबी रिश्तेदारों के कन्धों पर जिन्दगी भर के लिए गमों की बोझल यादें छोड़ जाता है। उसके एक कदम से केवल उसके ही नहीं बल्कि उसके हर परिचित व्यक्ति पर कड़कती हुई बिजली गिर पड़ती है।

आत्महत्या की रोकथाम के लिए मनोचिकित्सक अपने कुछ खास टिप्स को बयान करते हुए कहते हैं

इसके अलावा, आत्महत्या के खयाल या किसी भी मानसिक विकार को दूर करने के लिए मनोचिकित्सक बहुत सी थेरेपीज का सुझाव देते हैं जिनमें सबसे अधिक कारगर Electro Convulsive Therapy स्वीकार की जाती है।

कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ज्यादातर मामलों में जब लोगों के आर्थिक हालात बेहद तंग हो जाते हैं या फिर उनके परिवार में रंजिश और कलह चल रही हो या फिर सामाजिक या व्यक्तिगत रूप से उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं तो ज्यादातर उन्हें (मनोचिकित्सकों को) फोन घुमाते और आत्महत्या के ख्यालों से निजात का रास्ता पूछते हैं।

मनोविज्ञान पर ढेरों शोध इस तथ्य को उजागर करते हैं कि अधिकतर मर्दों का ध्यान ज्यादा खुदकुशी की ओर ज़्यादा होता है क्योंकि उनके कांधों पर पारिवारिक या सामाजिक जिम्मेदारियों का बोझ महिलाओं के मुकाबले कुछ ज़्यादा ही हुआ करता है।

लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि दुनिया में किसी मर्ज का इलाज नहीं है। हर बीमारी का इलाज है; बस जरुरत उससे निपटने के तरीकों पर गौर करने की है।

अंत में एक बात गांठ बांध कर रख लें कि ईश्वर किसी भी इंसान के कंधे पर उसकी ताकत और हैसियत से ज्यादा बोझ नहीं डालता। अगर हम किसी दुश्वारी में फंसकर कोई रास्ता नहीं निकाल पा रहे तो यहां गलती हम इंसानों की है, किसी तीसरे या चौथे शख्स की नहीं।

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