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देश की गोल्डन गर्ल हिमा दास की कहानी

भारत की ‘गोल्डन गर्ल’, भारत की नई उड़न परी हिमा दास ने (kutno athletics meet) में गोल्ड मेडल की झड़ी लगाकर जो कमाल कर दिखाया था वो काबिले तारीफ है।

19 दिन में पांच गोल्ड पदक

हिमा दास स्वर्ण पदक लेने के लिए जब पोडियम पर चढ़ीं और भारत का राष्ट्रगान बजने लगा तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े, एक छोटे से गावं से निकल कर जब स्वर्ण पदक तक पहुची और देश का नाम रोशन किया, पूरा देश आपकी उपलब्धि पर तालियां बजाएं तो भावनाओ का बाहर आना लाज़मी हैं।

हिमा की इस उपलब्धि पर क्रिकेट के बड़े खिलाड़ियों (सचिन तेन्दुलकर व अन्य) के अलावा देश कई बड़ी हस्तियों ने उन्हें Twitter पर ट्वीट कर सराहा और आगामी करियर के लिए शुभकामनाएं दी थी।

कुछ युवा संसाधनों की कमी के कारण अपना रास्ता और करियर बदल लेते हैं लेकिन कुछ लोग जिद्दी होते हैं उसके लिए संसाधनों की कमी कोई मायने नहीं रखती, ऐसे ही हिमा दास हैं जिसके ज़ज्बे के आगे सारी कमियां और करियर में आने वाली सारी रूकावटे तुच्छ हैं।

पुरस्कार, सम्मान और उपलब्धि

आइये जानते हैं कौन हैं हिमा दास

हिमा रणजीत दास, Hima Das (जन्म 9 जनवरी 2000) एक एथलीट है जिनका जन्म आसाम के नगाँव के एक छोटे से गाँव धिंग में हुआ इसीलिए हिमा दास को ‘ढिंग एक्सप्रेस‘ के नाम से भी जाना जाता है। हिमा का जीवन बहुत गरीबी में बीता था, पिता रणजीत दास के पास मात्र दो बीघा जमीन है। इसी जमीन पर धान की खेती करके वह परिवार के सदस्यों का जीवन व्यापन करते हैं।

उनका परिवार एक संयुक्त परिवार हैं और हिमा चार भाई-बहनों से छोटी हैं। हिमा ने अपने विद्यालय के दिनों में ही लड़कों के साथ फुटबॉल खेलकर खेल में अपनी रुचि दिखाई थी। हिमा लड़कों के साथ अपने पिता के खेत में फुटबॉल खेला करती थीं।

इन सब के बीच बारिश में अक्सर उनके गाँव और आसपास के इलाकों में बाढ़ आ जाती थी जिसके कारण उनकी फसले अक्सर ख़राब हो जाती थी और परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता था। इन सब कठिनाईयों के बावजूद भी इनके पिता ने कभी बच्चों को पढ़ने-लिखने से और हिमा को खेलने से नहीं रोका

अच्छे प्रदर्शन के कारण हिमा बाद में जिला स्तर पर खेलने लगीं। वहां उन्हें इनाम के तौर पर सौ या दो सौ रुपये मिलते थे यह इनामी राशि हिमा के लिए बहुत बड़ी थी जिसके कारण वह फुटबॉलर बनने का सपना देखने लगीं। टीवी पर बड़े फुटबॉलरों को देखकर उनकी तरह खेलने की कोशिश करती थी।

फिर जवाहर नवोदय विद्यालय के पीटी टीचर शमशुल हक ने देखा कि यह लड़की बहुत तेज दौड़ती है खेल टीचर की सलाह पर उन्होंने दौड़ना शुरू किया। फिर हिमा दास जिला स्तरीय प्रतियोगिता में चयनित हुईं और दो स्वर्ण पदक भी जीतीं।

हिमा दास कहती हैं –

फुटबॉल में काफी दौड़ना पड़ता है, इसलिए मेरा स्टेमिना बढ़ता गया। पर मुझे नहीं पता था कि मैं धावक बन सकती हूं। यह एहसास टीचर ने ही कराया।

हिमा गुवाहाटी के एक कैंप में ट्रेनिंग के लिए पहुंचीं। प्रैक्टिस के दौरान रोजाना सुबह ट्रैक पर भागना पड़ता था। एक दिन कोच निपुण दास ने उन्हें ट्रैक पर दौड़ते देखा। उन्हें लगा कि यह लड़की तो कमाल की धावक है। अगर इसे सही ट्रेनिंग और मौका मिला, तो यह पूरी दुनिया जीत सकती हैं

निपुण बताते हैं ~

मैंने हिमा को ट्रैक पर दौड़ते देखा। उसकी स्पीड बहुत ज्यादा थी। तब मैंने सोचा कि मैं इस लड़की को ट्रेनिंग दूंगा।

प्रैक्टिस के बाद कोच ने हिमा से बात की और गुवाहाटी में ट्रेनिंग लेने की सलाह दी। अपने घर की हालत को देखकर हिमा ने कहा, पापा हाँ नहीं करेंगे और यह सब उनके सामर्थ्य से भी बाहर हैं। इसके बाद कोच निपुण उनके घर गए और माता-पिता से बात की। ट्रेनिंग सेंटर गांव से करीब 140 किमी दूर था। पापा बेटी को ट्रेनिंग दिलाने को तो राजी थे किन्तु उसका परिवार सीमित आय के कारण खर्च उठाने में असमर्थ था।

कोच को हिमा दास में असीम संभावनाएं दिख रही थीं। वह चाहते थे कि देश को एक बेहतरीन खिलाड़ी मिले, इसलिए वह उनका सारा खर्च उठाने को राजी हो गए।

निपुण बताते हैं
मैंने घरवालों से कहा कि आपकी बेटी बहुत काबिल है और उसे आगे बढ़ने से मत रोकिए। उसकी ट्रेनिंग और रहने-खाने का खर्च मैं उठाऊंगा। आप बस गुवाहाटी जाने की उसे इजाजत दे दीजिए।

यह सुनते ही घरवाले खुश हो गए और दास के पिता ने उन्हें गुवाहाटी जाने की इजाजत दे दी।

शुरू में निपुण ने इन्हें 200 मीटर रेस के लिए तैयार किया था और जैसे जैसे हिमा दास का स्टैमिना बढ़ता गया, इन्होंने 200 मीटर की जगह 400 मीटर के ट्रेक पर दौड़ना शुरू कर दिया था।

हिमा दास की खासियत हैं कि अंतिम 100 मीटर में लगा देती है अपनी जान

हिमा के यूं अंतिम वक़्त में रफ़्तार पकड़ने पर निपुण दास कहते हैं, “रेस में जब आखिरी 100 मीटर तक हिमा चौथे स्थान पर थी तो मुझे यक़ीन हो गया था कि वह इस बार गोल्ड ले आएगी, मैं उसकी तकनीक को जानता हूं वह शुरुआत में थोड़ी धीमी रहती है और अपनी पूरी ऊर्जा अंतिम 100 मीटर में लगा देती है. यही उसकी खासियत है.”

निपुण कहते हैं
“हिमा को ट्रैक के कर्व (मोड़) पर थोड़ी समस्या होती है यह बहुत हल्की सी दिक्कत है। यही वजह है कि शुरुआत में वह हमेशा पीछे ही रहती है लेकिन जब ट्रैक सीधा हो जाता है तो वह तेज़ी से रिकवर करते हुए सबसे आगे निकल जाती है”

हिमा के करीबी और बचपन के दोस्त पलाश बताते हैं,

‘उसे अपना लक्ष्य पता है। उसका एक ही लक्ष्य है हर प्रतियोगिता में भागने की टाइमिंग को और बेहतर करते जाना। बस इसी क्रम में उसे मेडल भी मिल जाता है।’

पलाश के अनुसार, हिमा मेडल जीतकर शांत रहती है, क्योंकि उसका लक्ष्य मेडल पर कम, अपने प्रदर्शन पर अधिक है।

अब जब हिमा दास स्वयं मदद करने में सक्षम हैं तो उन्होंने असम बाढ़ पीडि़तों को अपनी पुरस्कार राशि का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया है। किसी नए खिलाड़ी के लिए इस तरह का भावनात्मक कदम प्रशंसनीय और प्रेरक पहल है। इसके अलावा उन्होंने ट्वीट कर बड़ी कंपनियों और व्यक्तियों से भी आगे आकर असम की मदद करने की अपील की।

हिमा के लगातार गोल्ड मेडल (गोल्ड मेडल सीरीज) जीतने के बाद प्रधानमंत्री सहित कई राजनेताओ, खिलाडियों और बॉलीवुड की बड़ी हस्तियों ने ट्वीट करके हिमा को बधाई दी। आशा करते है कि आने वाले समय में हिमा कई रिकॉर्ड बनाये और भारत का नाम ऊँचा करे।

हिमा आज भारत की करोडों बेटियों की प्रेरणा हैं जहाँ आज लड़का और लड़की का अनुपात भारत के कई राज्यों में चिंता का विषय बन चुका था वहां अब ऐसी बेटिया देश का नाम रोशन करे यह देश के लिए एक बहुत अच्छा सन्देश हैं, अब लोग बेटियों को भी बेटो के बराबर पढने का खेलने का अधिकार देने लगे हैं, यह भारत के स्वर्णिम दिनों का आगाज हैं।

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