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Hindi Kahani : दूसरी जाति का दामाद और मन की भावना

Indian son in law relationship

जीवन में कुछ रास्ते ऐसे होते हैं जिन पर हम चलना तो नहीं चाहते लेकिन जिंदगी हमें उन रास्तों पर ले जाती है। जब हम उन रास्तों पर चल कर आगे बढ़ जाते हैं तब एहसास होता है कि यह रास्ते ही हमारी जिंदगी के लिए सबसे सही थे।

कुसुम ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे अपनी जिंदगी में इतना बड़ा फैसला लेना पड़ेगा ना चाहते हुए भी उसे अपने परिवार को बीच में ही छोड़कर आगे बढ़ना पड़ेगा। इन सब बातों को सोच रही थी कि अचानक पीछे से उसका 10 साल का बेटा आ गया और रोते हुए कहने लगा- मम्मी पापा ने मुझे डांटा।

कुसुम- बेटा तुमने ही कोई ऐसी बदमाशी की होगी कि तुम्हें डांटना पड़ा होगा।

बेटा- नहीं मम्मी मैंने कुछ भी नहीं किया था मैं तो बस पापा से कह रहा था कि इस साल मुझे न्यू स्कूल बैग और न्यू साइकिल चाहिए।

कुसुम- लेकिन बेटा पिछले साल ही तो तुम्हारे लिए न्यू साइकल और न्यू बैग आया है और सब बिल्कुल अच्छा चल रहा है तो फिर क्यों तुम नया खरीदने की जिद कर रहे हो?( समझाते हुए)

बेटा- लेकिन मम्मी मेरे सारे दोस्तों ने खरीद लिया है मेरा ही बैग और साइकल पुराना नजर आ रहा है।

कुसुम समझाते हुए- लेकिन बेटा जब तुमने लिया था तब तो उन लोगों ने नहीं लिया था ना तो इस हिसाब से तो उनके सामान पुराने हो गए।

इसके आगे कुसुम कुछ कह पाती तभी कुसुम के पति अविनाश वहां पहुंच गए और बार-बार कहने लगे- यह सब तुम्हारे दुलार का ही नतीजा है। मैं कब से इसे यही समझा रहा हूं लेकिन इसे तो समझ में नहीं आता।

कुसुम कहीं यादों में खो गई जब उसने भी अपने पिताजी से नए बैग और साइकिल की मांग की थी तो उन्होंने तुरंत लाकर दे दिया क्योंकि वह कुसुम को बहुत प्यार करते थे और कभी भी कुसुम की आंखों में आंसू नहीं देख सकते थे।

बेटा- मम्मी आप क्या सोचने लगी पापा को बोलिए ना मुझे लाकर दे दे।

कुसुम- अच्छा तुम अभी लंच कर लो मैं जरूर बात करूंगी।

आज कुसुम की शादी को लगभग 12 साल हो चुके थे लेकिन जिंदगी के एक फैसले की वजह से अपने परिवार से वह इतनी दूर चली जाएगी उसे पता भी नहीं था। अविनाश उस समय एक अच्छे कंपनी में कार्यरत थे और कुसुम को पसंद भी करते थे।

उस समय कुसुम की उम्र बढ़ती जा रही थी और इस वजह से उसको शादी करने में समस्याएं खड़ी हो रही थी। अविनाश ने स्वयं ही आगे बढ़ कर कुसुम से शादी की बात की थी और कुसुम ने भी हामी भर दी थी लेकिन यह बात उसके घर वालों को पसंद नहीं आई क्योंकि अविनाश दूसरे जाति का लड़का था और उन्होंने कुसुम को घर से ही बाहर निकाल दिया।

अविनाश- तुम बार-बार पुरानी बातों को मत सोचा करो उस बात को गुजरे अब जमाने बीत चुके हैं और तुम्हारे घर से तो कोई मिलने भी नहीं आता इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम अपने वर्तमान और भविष्य की बातों में ध्यान लगाओ।

लेकिन कुसुम का मन नहीं मानता और बार-बार अतीत में ही जाने लगती। एक दिन वह अपनी कार से मार्केट की ओर जा रही थी तभी अचानक उसे रास्ते में पिताजी नजर आ गए, जो पैदल ही छड़ी लेकर जा रहे थे।

कुसुम ने जैसे ही उन्हें देखा तो कार रोककर उनके पास जाना चाहा लेकिन इसके पहले ही उसे वह बात याद आ गई जो पिताजी ने की थी- अगर तू अपनी शादी के बाद हमसे मिलने आएगी तो तेरे लिए बहुत बुरा होगा क्योंकि मैं भूल जाऊंगा कि तू मेरी बेटी है। यह बात बार-बार कुसुम के दिमाग में गूंजने लगी।

कुसुम धीरे-धीरे अपने पिताजी का पीछा करने लगी तो उसने देखा कि उसके पिताजी किसी के आगे हाथ जोड़ रहे थे और घर ना आने की बात कर रहे थे। जब पिताजी चले गए कुसुम ने उस आदमी से जाकर पूछा तो पता चला कि पिताजी ने छोटी बहन की शादी के लिए पैसे उधार लिए थे जिसे वह चुका नहीं पा रहे हैं और इस वजह से पैसे चुकाने के लिए और समय मांग रहे थे।

कुसुम- मैंने अपने पिताजी से दूरी बना ली तो उन्होंने मुझे कुछ बताया भी नहीं और तो और मां और छोटी बहन सरला ने भी बताना जरूरी नहीं समझा।

जब वह घर आई, तो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह क्या करें? उसने अपनी बात अविनाश को बताई तो अविनाश ने भी मदद करने की सलाह दी। जैसे ही उसने अविनाश की बात सुनी तो उसे गर्व हुआ कि अविनाश उसके पति हैं

दूसरे दिन वह उसी आदमी के पास गई और तुरंत उसे सारे पैसे देकर अपना नाम बताने के लिए मना कर दिया।

आज कुसुम को एक आत्म संतुष्टि प्राप्त हो रही थी, जो उसने काफी दिनों से महसूस नहीं की थी। 1 दिन की बात है जब अविनाश अपने ऑफिस जा रहा था उसी समय उसे रास्ते में कुसुम की मां नजर आई जो रास्ते में बेहोश होकर गिर गई थी।

अविनाश उन्हें घर उठा कर लाया और जब यह बात पिताजी को पता चली तो वे गुस्से से बोले- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे घर कदम रखने की? जानते नहीं 12 साल पहले ही तुमसे हमारा रिश्ता टूट चुका है?

तभी छोटी बहन सरला- पिताजी इन्होंने हमारे ऊपर बहुत बड़ा अहसान किया है, जो मां को सही सलामत यहां लेकर आ गए।

पिता जी- यह तुम क्या बोले जा रही हो ऐसे आदमी का मुझे कोई एहसान नहीं लेना।

उसी समय वहां पर कुसुम भी आ गई क्योंकि अविनाश ने फोन पर बता दिया था कि उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं है।

सरला- जीजाजी ने मां को रास्ते में बेहोश देखा और घर लेकर आए तो आप ही बताइए उन्होंने क्या बुरा किया?

पिताजी को कुछ समझ नहीं आया और वह दौड़ कर अपनी पत्नी के पास चले गए हाल-चाल लेने के बाद वह जैसे ही उठकर खड़े हुए तो वहां पर उन्हें कुसुम दिखाई दी जिसे वे गुस्से से देखने लगे तभी वह आदमी वहां आया जिसे कुसुम ने पैसे दिए थे।

पिता जी- (घबराते हुए) अरे आप यहां कैसे मैंने कहा था ना आपका काम मैं कर दूंगा।

आदमी- आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है वैसे तो मुझे आपकी बड़ी बेटी ने बताने से मना किया था लेकिन मैं बता रहा हूं कि जो पैसे आपको देने थे, वह सारे इन्होंने दे दिए हैं।

पिताजी आंखों में आंसू लिए हुए कुसुम को देखने लगे और कुसुम ने भी हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया।

आदमी- इन्होंने तो मुझे बताने से भी मना किया था लेकिन बात यह है कि मैं आपको बताने के लिए बार-बार फोन कर रहा था कि अब आपको पैसे देने की जरूरत नहीं लेकिन आपका फोन तो लग ही नहीं रहा था इसीलिए मुझे यहां तक आना पड़ा ताकि आप परेशान ना रहे।

उस आदमी के इतना कहते ही पिता जी अपने दोनों हाथों को जोड़कर बेटी और दामाद के सामने खड़े हो गए।

अपने ही पिता जी को हाथ जोड़कर खड़ा होता देख कुसुम की आंखों से आंसू बहने लगे लेकिन अविनाश ने बात को संभालते हुए कहा- यह आप क्या कर रहे हैं?

आखिर हम भी तो आपके ही बच्चे हैं और अगर हमने आपकी मदद कर दी तो इसमें एहसान की कोई बात नहीं हमें सिर्फ आपका आशीर्वाद चाहिए।

मां- पिछले 12 सालों से इन्होंने ना हीं खुद तुम लोगों को अपनाया और ना ही हमें मिलने दिया। एक मां का दिल ही जानता है, मैं अपनी बच्ची के लिए कितना रोई

पिताजी- अब किसी को भी रोने की जरूरत नहीं है, मैं अपनी गलती मानता हूं। दामाद के दूसरे जात के होने पर मैंने इन्हें मंजूरी नहीं दी लेकिन इन्होंने बेटे का फर्ज निभाया।

कुसुम- भले ही आपने मुझे नहीं अपनाया हो, लेकिन आप सभी मेरे दिल में हमेशा से ही रहते हैं और आज मैं खुद को धन्य समझती हूं कि अपने पति की वजह से मैं आप लोगों से मिल पाई। हमेशा इंसान की पहचान होनी चाहिए ना कि उसके जाति की। आज मैं अपने पति के साथ बहुत खुश हूं और यही मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।

ऐसा कहते ही वह अपनी मां और पिताजी से गले लग जाती है जिससे घर का माहौल बहुत ही भावुक हो जाता है लेकिन मन ही मन सब बहुत खुश थे कि आखिर इतने सालों बाद सब एक हो सके।

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