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नई बहू का मन ~ Hindi Kahani

बहू का पहला दिन | सास बहू कहानी

आज सुगंधा की शादी का पहला दिन था, ना जाने उसके दिल में कितने अरमानों ने दस्तक दी थी।

शादी के पहले भी जब सुगंधा इस बारे में सोचती थी तो उसे घबराहट होती थी कि ना जाने वह दूसरे घर में कैसे एडजस्ट करेगी?  आज के समय में यह देखा जाता है कि लड़कियां ज्यादा एडजेस्ट करना नहीं चाहती और अगर वे अपनी तरफ से कुछ बदलाव चाहती है, तो घर वाले सिरे से नकार देते हैं|

ऐसे में नई नवेली दुल्हन के मन में घबराहट होना नई बात नहीं है और वही कुछ सुगंधा के साथ हो रहा था। शुरु शुरु में तो सुगंधा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने काम की शुरुआत कहां से करें?

जब भी वह कुछ करने जाती तो सास उसे यह कहकर वहां से जाने को कहती थी कि जब भी उन्हें जरूरत होगी वह बुला लेगी लेकिन कोई भी सुगंधा को नहीं बुलाता। अब सुगंधा अपने कमरे में बैठे बैठे बोर होने लगी और वह सोचती है कि आज का खाना वह  खुद ही बनाएगी।

जब वह किचन में खाना बनाने जाती है तो उसकी ननद अजीब सा मुंह बनाकर कहती हैं–” हमने तो सुना था कि तुम्हें खाना बनाना नहीं आता फिर क्यों यहां आकर अपना समय बर्बाद कर रही हो?”

इस बात पर सुगंधा को बहुत अजीब लगता है और वह बड़े प्यार से कहती हैं” ऐसी कोई बात नहीं है। अगर मैं घर की बहू बन कर आई हूं तो यह मेरी भी जिम्मेदारी है कि यहां के सारे कामों को मैं अच्छे से संभाल लूं।”

इस बात पर ननंद मुंह बनाकर वहां से चली गई और सुगंधा ने खाना बनाना शुरू किया।

वैसे खाना तो उसने अच्छा ही बनाया था जैसा उसके मायके में बनता था लेकिन उसके सास-ससुर को खास पसंद नहीं आया और उन्होंने एक झटके में इसे बेस्वाद  बता दिया।

सास ससुर का ऐसा रवैया देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि शादी से पहले तक जो लोग उससे कहा करते थे कि वह उसे घर की बेटी बनाकर रखेंगे और उसे कोई भी कमी नहीं होने देंगे, वे लोग ही आज इस प्रकार से व्यवहार कर रहे हैं।

सुगंधा चुपचाप जाकर अपने कमरे में रोने लगती है और अपने पुराने दिनों को याद करती है जब अपनी मां के बनाए हुए खाने पर नखरे दिखाते हुए कहती थी कि “मां आप मेरी सहेली पुरवा की मम्मी की जैसा अच्छा आलू का पराठा नहीं बना पाती हर बार कोई न कोई कमी रह जाती है।”

आज उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि ऐसा कहकर ना जाने कितने बार उसने अपनी मां का दिल तोड़ दिया था।

इसके बाद सुगंधा ने कई बार कोशिशें की लेकिन हर बार अपनी कोशिश नाकाम ही लग रही थी। सोचा था शादी के बाद अपने घरवालों को खुश रखेगी और किसी को भी कोई शिकायत नहीं होने देगी लेकिन यहां तो शिकायतों का दौर खत्म नहीं हो रहा था।

एक बार पति के ऑफिस के कुछ दोस्त खाने के लिए आने वाले थे ऐसे में जब पति ने सुबह से कहा कि वह कुछ इटालियन और मैक्सिकन  खाना बनाएं क्योंकि उसके दोस्तों को यही पसंद है। लेकिन सच्चाई तो यही थी सुगंधा को ऐसा कुछ बनाना नहीं आता था बल्कि वह सादा भारतीय खाना ही पसंद करती है।

ऐसे में दोस्तों के आने पर उसे शर्मिंदा होना पड़ा और वह ना चाहते हुए भी अपने पति के गुस्से का शिकार हो गई। इस बार सुगंधा की आंखों में दोस्तों के सामने ही आंसू आ गए जिसे उसके पति ने बुरी तरह से इग्नोर कर दिया और उसे वहां से चले जाने के लिए कहा।

कमरे में आकर सुगंधा के मन में बस यही बात चल रही थी की जब किसी लड़की की शादी होती है तो क्या वह अपने तरीके से घर को नहीं चला सकती क्यों हर बार उसे बताया जाता है कि वह किसी काम की नहीं और उसे कुछ भी काम सही से करना नहीं आता?

धीरे-धीरे सुगंधा उदास रहने लगी और वह अपनी बात को मायके में भी नहीं बताना चाहती थी क्योंकि उसके माता-पिता को अच्छा नहीं लगेगा। वह पूरी कोशिश कर रही थी कि अच्छी बहू बने और परिवार का ध्यान रख सके।

उसे एक दिन पता चलता है कि उसकी सहेली जिसकी शादी दूसरे शहर में हुई थी उसके शहर में आई है और सुगंधा से मिलना भी चाहती है। यह बात सुनकर सुगंधा के चेहरे पर खुशी दिखाई दे रही थी क्योंकि यह सहेली उसकी बचपन की सहेली थी जो हमेशा उसके साथ रहती थी लेकिन अब वह दोनों के बीच में थोड़ी दूरी आ गई थी लेकिन फिर भी सुगंधा उससे मिलने के लिए बेताब थी।

सुगंधा जल्दी-जल्दी अपने सहेली के आने की खुशी में पकवान बनाना शुरू करती है लेकिन तभी उसके ननंद और सास  आकर उसे ताना देती हैं कि जिसे वे लोग जानते तक नहीं उसके लिए इतना तामझाम करने की क्या जरूरत है?

ज्यादा ही है तो नाश्ता और कॉफी पिला कर भेज दे। लेकिन सुगंधा की खुशी के आगे उनका यह ताना काम नहीं किया और वह बिना कुछ सोचे समझे तैयारियों में लग गई। शाम होते ही वह अपनी सहेली का इंतजार करने लगी और जब सुगंधा की सहेली उसके घर आती है तब उसे देखकर सुगंधा एकदम आश्चर्यचकित हो जाती है क्योंकि उसकी सहेली पहले जैसी नहीं थी अब वह बिल्कुल बदल गई थी।

बचपन में उसकी सहेली ने कभी जीन्स नहीं पहना था और अब देखो टाइट जींस और खूबसूरत सी टॉप में वह बहुत प्यारी लग रही थी साथ ही खुले हुए बाल और उसके चेहरे को सूट करता हुआ गॉगल यह देखकर सुगंधा बहुत खुश हुई और गले लगते हुए बोली “तू तो बिल्कुल बदल गई है”।

लेकिन उसकी सहेली को घर के हालात कुछ ठीक नहीं लगे और उसने धीरे से इस बारे में पूछा तो अचानक ही सुगंधा की आंखों में आंसू आ गए क्योंकि अपनी सहेली से वह कोई भी बात नहीं छुपा पाती।

सुगंधा के दिल की हालत समझकर उसकी सहेली ने उसे सांत्वना दी और कहा कि “तुम जितना भी अच्छा करो लेकिन घर के सभी सदस्यों को खुश रखना नामुमकिन है इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम सबसे पहले खुद को खुश रखो क्योंकि जब तक तुम खुश नहीं रहोगी तब तक घर को खुश कैसे रह पाओगी?”

यह बात सुगंधा की समझ में आ गई और उसने भी अब ठान लिया कि घर का ख्याल तो वह रखेगी लेकिन अपनी शर्तों पर।

एक दिन अचानक सुगंधा ने अपनी सास के सामने जाकर कहा कि “मैं 1 महीने के लिए अपने मायके जा रही हूं और अपना बर्थडे वही से सेलिब्रेट कर के आऊंगी।” इस बात पर उसके पति ने एतराज जताया तब सुगंधा ने कहा “मुझे मालूम है मेरे बर्थडे की खुशी यहां किसी को नहीं होगी क्योंकि यह तो एक बहू का बर्थडे है।

वही वहां मेरी मम्मी पूरी तैयारी करके रखेंगी क्योंकि उन्हें पता है मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं। मैं यह नहीं कहती कि मै  ससुराल से भेदभाव कर रही हूं लेकिन मुझे पता है यहां मैं जो भी कर लूं आप लोग को पसंद नहीं आएगा। ”

और वह अपनी पुरानी जींस टॉप पहनकर वहां से चली जाती है यह देख कर उसके पति को सुगंधा आज पहली बार खूबसूरत नजर आती है क्योंकि उसका यह अवतार उसने कभी देखा ही नहीं था।

उसको अपनी गलती समझ में आती है कि जहां पर उसे सुगंधा का साथ देना चाहिए था वहां पर उसने सुगंधा को बिल्कुल अकेला कर दिया था साथ ही साथ उसने अपनी मां और बहन को भी समझाने के बारे में सोचा था ताकि आने वाले समय में परिवार हंसी-खुशी आगे बढ़ सके।

जल्द ही यह बात पूरे परिवार को समझ में आ गई कि बहू नई है और उसे हमें थोड़ा समय देना होगा। यह बात सही है कि वह अभी अपने मायके की तौर तरीकों से हमें खुश रखना चाहती है लेकिन जब तक हम ससुराल वाले उसे तौर-तरीके नहीं सीखाएंगे तब तक वह कैसे सीख पाएगी और हमारा ख्याल रख पाएगी।

अब तो दूसरे ही दिन सास, ननंद, पति मिलकर सुगंधा को लेने पहुंच जाते हैं जिन्हें देखकर सुगंधा को बहुत आश्चर्य होता है।

पति बड़े प्यार से सुगंधा का हाथ पकड़ते हुए कहते हैं की “गलती हमारी भी है हमें ऐसा लगता है कि घर में आई हुई बहू एकदम परफेक्ट होनी चाहिए जिसमें कोई भी कमी ना हो हालांकि यह बिल्कुल भी सही नहीं है क्योंकि कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं हो सकता।”

सुगंधा मीठी मुस्कान के साथ अपने पति को देखती है और कहती है “जनाब आपको यह बात बहुत जल्दी समझ में आ गई।” तभी सास आगे बढ़ कर उसे गले लगाती हैं और उसे एक खूबसूरत सा ड्रेस देकर कहती हैं “यह लो बहू तुम इसे अपने बर्थडे पार्टी में पहनना जो हम तुम्हारे लिए ऑर्गेनाइज करने वाले हैं।”

सुगंधा को यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा और उसकी आंखों में आंसू आ गए लेकिन उसके मन में उठे सवालों को वहां बोलने से नहीं चूंकि और उसने कहा “जिस प्रकार बहु से उम्मीद की जाती है कि वह अपने नए घर को पूरे तौर-तरीकों के साथ संभाले उसी तरह ससुराल वालों की भी यह जिम्मेदारी होती है कि वह थोड़ा समय देकर उसका साथ दें और उसे प्यार दे।

नई नवेली बहू को सिर्फ प्यार के अलावा और कुछ नहीं चाहिए होता लेकिन कई बार यह बात समझने में भूल हो जाती है और हम अनजाने में ही अपने ही घर की बहू का अपमान कर बैठते हैं।”

ऐसे में नंनद आकर बोलती है “अब मुझसे गलती नहीं होगी भाभी मैं हमेशा आपका ख्याल रखूंगी और आप मुझे अच्छा अच्छा खाना बनाकर खिलाएगा।”

इसके बाद पूरे हॉल में हंसी गूंजने लगती है और अब सुगंधा अपने संतुष्ट मन से ससुराल की ओर रवाना हो जाती है जिसे देखकर उसके माता-पिता को खुशी मिलती है।

ऐसे में एक बात हमेशा यह समझनी होगी कि किसी भी प्रकार की समस्या या मनमुटाव को खत्म करने के लिए पहल दोनों तरफ से होनी चाहिए ताकि मन में किसी प्रकार की कड़वाहट ना हो और आसानी से ही समस्या का समाधान किया जा सके।

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