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प्रशंसा से पिघलना मत आलोचना से उबलना मत

Prashansa par hindi kahani

Hindi Kahani on Praise & Criticism

यह जीवन एक बहती हुई नदी के समान है जिस प्रकार नदी का पानी कभी रुकता नहीं, उसी प्रकार हमारे जीवन में भी दुखों का बहाव कभी थम नहीं पाता।

अगर हम इंतजार करें बहती हुई नदी के रुकने का तो शायद हमारी उम्र गुजर जाएगी, पर नदी फिर भी बहती रहेगी।

ऐसे ही यदि हम अपने जीवन में इंतजार करें दुखों के टलने का, तो हमारा जीवन गुजर जाएगा पर मृत्यु की आखिरी सांस तक हमारे जीवन में मुश्किलें, चुनौतियां, दुख पूरी तरह समाप्त नहीं होंगी।

प्रशंसा और निराशा हमारी जिंदगी के आधार हैं। जब तक इंसान जीवित रहता है उसे कभी प्रशंसा हासिल होती है तो कभी निराशा।

पर याद रखें जब भी कोई व्यक्ति आपकी प्रशंसा करता है, तो आपको उस प्रशंसा के बल पर अधिक खुशी नहीं जतानी चाहिए क्योंकि वह प्रशंसा केवल पल भर की होती है। अतः उसकी वजह से हमें अपने मार्ग से भटकना नहीं चाहिए।

कुछ लोग अपनी प्रशंसा होते ही पिघलना शुरू हो जाते हैं अर्थात अपने आप को किसी से कम नही समझते। बस किसी के दो मीठे बोल उन्हें उन्हें पथभ्रष्ट कर देते है।

ऐसे लोग जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते जो सिर्फ अपनी प्रशंसा सुनने पर ही खुश होते है।

पर हमें अपने प्रशंसा से अधिक खुश या खुद पर अभिमान नही करना चाहिए। अपनी तारीफ सुनने पर आप भले कुछ पल के लिए अपने चेहरे में मुस्कान ले आए परंतु ज्यादा खुशी नहीं जतानी चाहिए।

ठीक इसके विपरीत जब कोई हमारी आलोचना करता है तो हमें दूसरों की कही बातों का बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है। कई बार जब कोई हमारे बारे में गलत शब्द कह देता है तो हमारा आत्मविश्वास टूट जाता है।

पर हमें यह समझना चाहिए कि दूसरों की आलोचना से हमारा ज्ञान कम नहीं होता। न ही हम अपने लक्ष्य से भटकते हैं ।

पर यदि हम लोगों की कही नकारात्मक बातों और आलोचनाओं में ध्यान देते हैं, इससे हम जरूर अपने लक्ष्य से दूर हो सकते हैं।

हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए कभी भी किसी की आलोचना पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

छोटी-छोटी आलोचनाओं के कारण लोग अपने बड़े बड़े लक्ष्यों को हासिल करने में असमर्थ रह जाते हैं। इसलिए आलोचना को जीवन में सबसे बुरी चीज माना जाता है, यह बुरी सिर्फ उसी के लिए होती है जो लोगों द्वारा कही गई आलोचनाओं में ध्यान देता है।

कुछ लोग जो आलोचनाओं में ध्यान देते ही नहीं वह अपनी मंजिल से कभी भी नहीं भटकते और हमेशा ही अपना सफर तय करते रहते हैं l

हालांकि यदि किसी की आलोचना आपके कार्यक्षेत्र या आपको बेहतर बनाती है तो आपको जरूर अपनी कमियों को स्वीकार कर उन्हें सुधारने की ओर कार्य करना चाहिए।

यह कहना कदापि अनुचित नहीं होगा कि प्रशंसा और आलोचना दोनों ही हमारी जीवन के अभिन्न अंग है।

इसलिए जब कोई हमारी प्रशंसा करता है तो उसे प्रशंसा करने दीजिए क्योंकि हमने कुछ काम ही ऐसा किया है। जिससे हमें तो खुशी होती ही है। परंतु आज उसे भी खुशी हुई होगी जिसने हमारी प्रशंसा की है ।

लेकिन यदि आप कुछ ऐसा कार्य करते हो जिससे तुम्हें तो प्रशंसा होती ही है परंतु किसी अन्य को उससे लाभ न हुआ हो, तो शायद वह तुम्हारी आलोचना जरूर करेगा ।

क्योंकि इस मतलबी दुनिया में इंसान स्वयं का हित पहले देखता है, अतः दूसरों की आलोचना से आपको अपना आत्मविश्वास कम नहीं करना चाहिए।

यदि आप एक समाज में रहते हैं और आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो आपको यह बात स्वीकार करनी होगी कि लोग कुछ भी आपके बारे में कह सकते हैं अतः देखा जाए तो आलोचनाओं से बचना आपके नियंत्रण में नहीं है।

पर आपको इन आलोचनाओं पर ध्यान केंद्रित किए बगैर निरंतर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए।।

क्योंकि अधिकांशतः लोग हमारी प्रशंसा सिर्फ तभी करते हैं। जब हम उनकी मन की इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं । वे यह नहीं देखते कि हम इस कार्य में कितनी मेहनत करते हैं हमें इससे कितना नुकसान होता है वह लोग सिर्फ उससे अपना फायदा ही देखते हैं।

हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हम अपने जीवन में किस प्रकार के कार्यों से खुश रह सकते हैं। हमें हमारे जीवन जीने में आसानी कैसे हो सकती है।

यदि आप ऐसा कार्य कर रहे हैं जिसमें दूसरे को किसी तरह का नुकसान नहीं हो रहा है, और आपको उस कार्य को करके आनंद आ रहा है तो आप उस कार्य को करना जारी रख सकते हैं।

इस दौर में लोग चाहते हैं कि जो व्यक्ति प्रगति कर रहा है, उन्नति के शिखर पर चढ रहा है। उसे किस प्रकार आलोचना करके उस शिखर से नीचे लाया जाये। चाहे लोग चाहे स्वयं कुछ कार्य भी ना करें लेकिन वे दूसरों की आलोचना जरूर करेंगे।

समाज में कई लोगों का एकमात्र उद्देश्य लोगों को गिराना ही होता है। चाहे उनके खुद के कार्य कितने ही घटिया क्यों ना हो, दूसरों को गिरा हुआ साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

हमें अपने जीवन का महत्व समझते हुए अपने मन के कार्यों को ही करना चाहिए। यह जीवन हमारा है हमें अपना जीवन अपने तरीके से, अपने अनुसार, अपने नियमों से, अपनी खुशी से, बिना दूसरों के प्रभाव से जीना चाहिए।

पर अगर हम अपने जीवन में दूसरे लोगों को महत्व देते हैं, तो हमारे आत्मविश्वास के साथ साथ हमारे लक्ष्य के सफर भी बदल जाते हैं।

हमारा जीवन हमारा नहीं रह जाता हम दूसरे लोगों के गुलाम बन जाते हैं,हम अपने लक्ष्य तक पहुंचने में असफल हो जाते हैं ।

हमें अपना जीवन स्वतंत्रता पूर्वक जीना चाहिए अन्य लोगों की बातों पर ध्यान देकर हमें उनका गुलाम नहीं बनना चाहिए l

हमें स्वयं की प्रशंसा करने से भी परहेज करना चाहिए क्योंकि यदि हम स्वयं की प्रशंसा करते हैं तो लोग हमें आलोचना का पात्र समझकर हमारी बुराई करते है, और अभिमानी समझते है।

हम आपको इस लेख में एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाएंगे की प्रशंसा से हमें पिघलना नहीं चाहिए और आलोचना से कभी उबलना नहीं चाहिए। क्योंकि ये दोनों ही हमारे लिए नुकसानदायक हो सकते है।

एक समय की बात है। एक जंगल में एक छोटा सा लेकिन सौंदर्यवान हिरण रहा करता था। वह जंगल में दूर तक दौड़- दौड़ कर घास चरने जाता था। उस छोटे से हिरण को बड़े से जंगल में अन्य जानवरों का भय नहीं था।

एक दिन रास्ते में हिरन और मेंढक की मुलाकात होती हैं। हिरण मेंढक से कहता है, तुम तो रात के समय हर किसी को डरा देते हो, सचमुच तुम तो बेहद बहादुर हो।

मेंढ़क समझ जाता है कि हिरण मेरी प्रशंसा कर रहा है और मेंढक बोलने लगता है – वाह रे हिरण तुम्हारे यह सिंग कितने सुंदर हैं।

अगर ये सिंग नहीं होते तो तुम कैसे दिखाई देते, कितने बुरे दिखाई देते। इतना कहने पर हिरण अपनी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हो जाता है। फिर मेंढक बोलता है तुम्हारे पैर कितने गंदे हैं।

हिरण को अपने पैरों में इतना विश्वास था कि वह कभी भी किसी शेर या अन्य जानवरों के हाथ नहीं लगेगा।

परन्तु पैरों को अनदेखा कर हमेशा हिरण यही कहा करता कि उसके सिंग बहुत ही सुंदर हैं,साथ ही बहुत लंबे भी हैं जो खूबसूरत दिखते हैं ।

जब भी वह अपने सिगों को देखता तो खुश रहता। परंतु जब अपने पैरों को देखता तो हमेशा उन्हें देखकर निराशा के भाव मन में ले आता था और सोचता था यह कितने गंदे हैं, कितने भद्दे दिखते हैं।

एक दिन वह हिरण बड़े से जंगल में अकेले चलता है तो घास चरने के दौरान उसका सामना एक शेर के साथ होता है। शेर बेहद चालाक होता है।

इसलिए वह उस हिरण को अपनी बातों में फंसाना चाहता है। लेकिन हिरन थोड़ा समझदार था इसलिए वह उस शेर की सभी बातों को सुनता तो है परंतु वहां से भागने की सोचता है ।

कुछ देर पश्चात जब बातों ही बातों में जब हिरण शेर के ठीक सामने खड़ा होता है। तो शेर उस हिरण को झपटने का प्रयास करता है, हिरन बड़ी ही फुर्ती के साथ भागते हुए शेर के चंगुल से बचने में कामयाब हो जाता है।

हिरण के पैर बहुत ही कोमल होते हैं इसके कारण वह शेर से दूर निकलकर झाड़ियों में छिप जाता है।

पर शेर उस नन्हे हिरण का शिकार करने की ठान लेता है और उसे इधर-उधर ढूंढने लगता है।

वहीं मौत से बेखौफ यह हिरण झाड़ियों जैसे ही पहुंचता है उसकी आंख लग जाती है, कुछ देर बाद जब उसकी आंखें खुलती है तो अचानक वह अपने समीप खड़े शेर को देखता है।

शेर जैसे ही उसे देखता है हिरण एक बार फिर से शेर को चकमा देने का प्रयास करता है, परंतु इस बार उसकी कोशिश नाकामयाब हो जाती है।

क्योंकि हिरण अपने जिन सिगों की हमेशा प्रशंसा करता था। आज उसके वही सिंग उसे धोखा देते हैं,और बड़ी सी झाड़ियों के बीच फस जाते हैं और इस प्रकार शेर उसे दबोच लेता है।

अंत में हिरण को यह एहसास होता है कि हमें उन चीजों को महत्व देना चाहिए जो हमारे काम आ सके उन चीजों में ध्यान नहीं देना चाहिए जो खूबसूरत दिखते हो।

सीख

हमें हमेशा खुद पर विश्वास करना चाहिए न कि दूसरों द्वारा की गई प्रशंसा पर।

यदि इंसान अपनी प्रशंसा में अधिक खुश ना हो और आलोचना से दुखी ना हो तो जीवन सुखमय और आनंदमय हो जाता है।

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