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तो तू फिर समझदार हो गया हैं?

Hindi Story, Moral Story, God only know our future, Luck is uncertain, Yamraj ki kahani

नियति को भला कौन जान सकता हैं? क्या पता जो हमें बुरा लग रहा हो, गलत होता प्रतीत हो रहा हो, उसमें ही सभी का भला छिपा हो, परमात्मा की लीला को कौन जान सकता हैं और उसकी करनी पर शक भला कौन कर सकता हैं, लेकिन हम अल्पज्ञान वाले या कह लीजियें अज्ञानी इसे दुर्भाग्य कह देते हैं, आइये एक बहुत ही अच्छी कहानी पढ़ते हैं

एक बार मृत्यु के देवता यमराज ने अपने एक दूत को पृथ्वी पर भेजा एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियाँ, जुड़वाँ, जिसमें एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से दूध पीने के प्रयास में लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आँसू उसकी आँखों के पास सूख गए हैं – तीन छोटी जुड़वाँ बच्चियाँ और स्त्री मर गयी है और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले ही मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?

उस देवदूत को यह खयाल आ गया और वह असमंजस में पड़ गया करें तो क्या करें और इसी कशमकश में वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जाकर अपने प्रधान यमराज जी को कहा –

मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन शायद आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वाँ बच्चियाँ हैं – छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत मां से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। यह सब देख मेरा हृदय ला नहीं सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं और कोई देखने वाला भी नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा – तो तू फिर समझदार हो गया, उससे भी ज्यादा, जिसकी इच्छा से मृत्यु होती है, जिसकी इच्छा से जीवन होता है। तो तूने पहला पाप कर दिया और इसकी तुझे सज़ा मिलेगी। सज़ा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा और जब तक तू तीन बार न हँस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।

इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हँस लेगा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हँसता है। जब हम अपनी मूर्खता पर हँसते हैं तब अहंकार टूटता है।

देवदूत को अपना किया गलत नहीं लगा। वह राज़ी हो गया, दंड भोगने को लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूँ और हँसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया। सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे। एक मोची बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उसको दया आ गयी और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहाँ रुक सके।

मोची ने यह सब देख कर कहा – अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ, लेकिन हाँ अगर मेरी पत्नी नाराज हो – जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए, वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को लेकर मोची घर लौटा। न तो मोची को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को लेकर मोची घर में पहुँचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हँसा। मोची ने उससे कहा – हँसते हो, बात क्या है?

उसने कहा – मैं जब तीन बार हँस लूँगा, तब बता दूँगा।

देवदूत हँसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि मोची देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हज़ारों खुशियाँ आ जाएंगी लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज़ा ही नहीं है – मुफ्त!! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हज़ारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हँसा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि उसे लगा यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है।

जल्द ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने मोची का सब काम सीख लिया और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि मोची कुछ ही महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुँच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं था और होता भी कैसे क्योंकि वह जूते स्वयं देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहाँ बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।

एक दिन सम्राट का आदमी आया और उसने कहा – यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं !!

क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहनाकर मरघट तक ले जाते हैं।

मोची ने भी देवदूत को कहा – स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है और चमड़ा इतना ही है और अगर कोई गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फँसेंगे।

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बना दिए जब मोची ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठाकर उसको मारने को तैयार हो गया – तू तो हमें फाँसी लगवा देगा, तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं फिर स्लीपर किसलिए बना दिएं?

देवदूत फिर खिलखिला कर हँसा तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा – जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।

भविष्य अज्ञात है सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह मोची उसके पैर पकड़कर माफी माँगने लगा – मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा।

पर उसने कहा – कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।

लेकिन वह हँसा आज दुबारा। मोची ने फिर पूछा – हँसी का कारण?

उसने कहा – जब मैं तीन बार हँस लूँगा, तब बता दूँगा।

दोबारा हँसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम माँगते हैं जो कभी नहीं घटेगा क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही हैऔर हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियाँ! मुझे क्या पता था कि भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।

और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियाँ आयीं, जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियाँ हैं, जिनको वह मृत माँ के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं।

उसने पूछा – क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है?

वह बूढ़ी औरत पास आई और कहा – ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियाँ हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे और तीन बच्चे जुड़वाँ, वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।

अगर माँ ज़िदा रहती तो ये तीनों बच्चियाँ गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। माँ मर गयी, इसलिए ये बच्चियाँ तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।

देवदूत तीसरी बार हँसा और मोची को उसने बुलाकर कहा – ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज़ नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हँस लिया हूँ। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूँ।


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