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हिपोक्रेटिस ~ आधुनिक चिकित्सा का जनक Biography

हिप्पोक्रेटिस अपने समय के मशहूर चिकित्स्क विद्वान रहे हैं। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान में काफी सारे योगदान दिए हैं जिसकी वजह से उन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का पिता भी कहा जाता है। उन्हें पुरातन चिकित्सको में सबसे महान चिकित्सक के रूप में देखा जाता है।

उन्होंने एक मेडिकल स्कूल की भी स्थापना की थी जिसमें वह चिकित्सा के बारे में शिक्षा देते थे।

चिकित्सा के क्षेत्र में हिप्पोक्रेटिस के योगदान को भुलाना असंभव प्रतीत होता है क्योंकि चिकित्सा के क्षेत्र में इनके कार्यों को सदा ही याद किया जाएगा।

क्या आप जानते हैं

आज भी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी होने के बाद चिकित्सक कार्य करने से पूर्व एक व्यक्ति को जो शपथ दी जाती है उसे हिपोक्रेटिस ओथ कहा जाता है

Hippocratic oath, ethical code attributed to the ancient Greek physician Hippocrates

आज हम इस महान चिकित्सक के जीवन से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण बातें हिप्पोक्रेट्स की बायोग्राफी में साझा करने जा रहे हैं।

हिप्पोक्रेटिस (Father of medicine) का जीवन परिचय

हिप्पोक्रेटिस यूनान के प्रमुख चिकित्स्कों में से एक थे। हिप्पोक्रेटिस को आधुनिक चिकित्सा का पिता माना जाता है। यह रोग निदान, परीक्षण एवं उपचार के लिए विशेष पद्धतियों का उपयोग करते थे।

जन्म 460 ईसा पूर्व
जन्म स्थान कांस द्वीप, यूनान
पेशा चिकित्सक
निधन 390 ईसा पूर्व
मृत्यु स्थान लारिस्सा

प्राचीन ग्रीक किताबों से यह प्रमाण मिलता है कि हिप्पोक्रेटिस का जन्म लगभग ईसा 460 वर्ष पहले हुआ था और उनके पिता मंदिर के पुरोहित थे। हिप्पोक्रेटिस ने काफी दूर दूर तक सफर किया और वह जहां भी गए उन्होंने लोगों को चिकित्सा की शिक्षा प्रदान की।

उनका कहना यह था कि लोगों को यह बताने में कभी संकोच ना करें कि यह बीमारी कितनी देर तक चलेगी क्योंकि अगर आपकी भविष्यवाणी सच हो गई तो रोगी का विश्वास आप पर पहले से अधिक बढ़ जाएगा।

हिप्पोक्रेटिस के बारे में हमें ज़्यादा कुछ उल्लेख नहीं मिलता। उनके बारे में हमें यहीं जानकारी मिलती है कि 460 ईसा पूर्व में यूनान में हिप्पोक्रेटिस ने जन्म लिया था।

हिप्पोक्रेटिस को इनके औपचारिक नाम हिप्पोक्रेटिस अस्सकिलपैडस से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है डॉक्टर भगवान। हिप्पोक्रेटिस का उस समय काफी नाम हुआ। यहां तक कि फारस के एक बादशाह ने उन्हें अनंत सम्पदा देनी चाही ताकि वह फारस की फ़ौज का विनाश कर देने वाली महामारी पर रोक लगा सके।

हालाँकि इस प्रस्ताव को हिप्पोक्रेटिस ने ठुकरा दिया था क्योंकि उनका मानना था कि उनके देश के शत्रुओं की मदद करना उनके सम्मान के अनुकूल नहीं है। बता दें कि उस समय फारस और ग्रीस का युद्ध चल रहा था। बाद में हिप्पोक्रेटिस के उपदेशों की मध्यकाल में फिर से खोज की गयी।

लेकिन बदकिस्मती से इन्हें अंतिम और सम्पूर्ण मान लिया गया जिसका परिणाम यह हुआ की सालों तक चिकित्सा के क्षेत्र में कोई तरक्की नहीं हुई। इतिहास में ऐसी काफी घटनाएं घटी हैं जिससे प्रगति रुकी है।

उदाहरण के तौर पर इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम ने अपने राजयकाल में यह हुक्म दिया था कि नाई दांत निकाल फेंकने और खराब खून के अलावा वे किसी भी प्रकार की चीरफाड़ का काम नहीं करेंगे। आज भी इंग्लैंड के नाईयों द्वारा प्रदर्शित बार्बर पोल चीरफाड़ के इतिहास को व्यक्त करता है।

कई इतिहासकार मानते हैं कि ग्रीस में प्रचलित कुछ मान्यताओं के विरोध के कारण उन्हें 20 साल के लिए कैद भी किया गया था। हालाँकि उनकी प्रगति में इससे कोई बाधा नहीं आई और उस दौरान उन्होंने “The Complicated Body” नामक किताब रचना की जिसे बाद में काफी सराहा गया।

हिप्पोक्रेटिस की मृत्यु कब और कैसे हुई?

हिप्पोक्रेटिस की मृत्यु के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। माना जाता है की हिप्पोक्रेटिस की मृत्यु 370 इसा पूर्व में Larissa नाम के शहर में हुई। काफी विद्वानों का मानना है कि हिप्पोक्रेटिस की मृत्यु लगभग उनके 80 या 90 के दशक में हुई होगी। हिप्पोक्रेटिस ने चिकित्सा के क्षेत्र में काफी योगदान दिया है इसलिए लोग उनका दिल से सम्मान करते हैं। आज भी लोग इनके द्वारा बनाए परीक्षणों को अपनाते हैं।

हिप्पोक्रेटिस के अनुसार डॉक्टर और सर्जन में क्या अंतर है?

हिप्पोक्रेटिस के अनुसार डॉक्टर और सर्जन का पद अलग अलग होता है। हिप्पोक्रेटिस की शपथ में भी कुछ पंक्तियों में यह ज़ाहिर हो चूका है जैसे :- मैं चाक़ू नहीं चलाऊंगा या इस काम को विशेषज्ञ को सौंपूँगा आदि।

उनके अनुसार सर्जन का पद डॉक्टर से ऊँचा होता है क्योंकि उसका काम अधिक कठिन होता है।

उनका यही मानना था कि एक अच्छा चिकित्सक रोगी किसी परीक्षण को ध्यानपूर्वक करे और उसके रोग के लक्षणों को लिख डाले। इस तरीके से वह ऐसा लेख तैयार कर सकता है जिस से यह मालूम किया जा सकता है कि रोगी का इलाज किस ढंग से करना है।

उन्होंने रोगियों के परीक्षण के लिए कुछ सामान्य नियम भी बनाए थे जैसे कि रोगी की त्वचा का ताप कितना है, सही से भूख लगती है या नहीं और उसे पैखाना या पेशाब नियमित रूप से आता है या नहीं आदि। कभी ना कभी डॉक्टर के पास आप ज़रूर गए होंगे तो आप को पता ही होगा की इन नियमों का इस्तेमाल आज भी किया जाता है।

हिपोक्रेटिस के इलाज करने के तरीके आधुनिक थे। जैसे कि साधारण तौर पर किसी दुबले पतले व्यक्ति की खुराक को तो कम कर सकते हैं लेकिन उसमें चर्बी का अंश नहीं कम होना चाहिए इसी प्रकार किसी मोटे आदमी की खुराक को तो बढ़ाया जा सकता है परंतु उसमें भी चर्बी का अंश कम नहीं होना चाहिए।

उनका यह भी मानना था कि थकावट, चिंता और सर्दी के कारण होने वाली बीमारियों को पानी और शराब को समान मात्रा में लेने से ठीक किया जा सकता है।

हिप्पोक्रेटिस के अनुसार चिकत्सा विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान में अंतर?

हिपोक्रेटिस रोगी से संबधित विवरण तैयार करते थे और उसका अध्ययन करते थे। उन्हें इस बात की भी अच्छी समझ थी की ऋतु परिवर्तन और जलवायु का विभिन्न प्रकार के रोगों पर क्या असर होता है।

जैसे कि हमें सर्दियों में खांसी-ज़ुकाम अधिक होता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर उन्हें यह बात सूझी कि चिकत्सा विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान के बीच कुछ ना कुछ सम्बन्ध ज़रूर होना चाहिए।

आख़िरकार इस सूझ का यह परिणाम हुआ कि आयुर्वेद के बिना वैज्ञानिक किसी उपयुक्त कारण के सालों तक ज्योतिष ज्ञान का अध्ययन करते रहे।

21वीं सदी में भी लोग ज्योतिष विज्ञान और चिकत्सा विज्ञान में संबंध होने का दावा कर रहे हैं हालांकि इसके कोई ठोस प्रमाण ना होने के कारण कम ही लोग इस बात पर विश्वास करते हैं।

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हिप्पोक्रेटिस अनमोल के विचार (Hippocrates quotes in Hindi)

निष्कर्ष

तो साथियों इस लेख को पढ़ने के पश्चात हिप्पोक्रेट्स की जीवन पर आधारित यह बायोग्राफी लेख आपको कैसा लगा? हमें कमेंट के माध्यम से जरूर सूचित करें साथ ही जानकारी को साझा करना ना भूलें।

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