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हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

आज भी यदि मैदान में खेल की बात हो और ध्यान चंद जी का नाम ना आए? भला यह हो ही नहीं सकता। पूरी दुनिया में स्वयं का और सम्पूर्ण देश का नाम रोशन करने वाले हॉकी के जादूगर जिन्हें प्यार से दद्दा भी बुलाया गया, आज हम उन्हीं ध्यानचंद जी की जीवन पर आधारित लेख लेकर आए हैं।

मैदान में आने के बाद ध्यान चंद जी की स्टिक का हॉकी से तालमेल देखते बनता था, उनकी इसी प्रतिभा के चलते एक बार उनकी स्टिक को भी जांचा गया। उन्हीं की याद में आज हम 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाते है।

तो यदि आप एक सिपाही से दुनिया के सबसे बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी बनने वाले मेजर ध्यानचंद जी के बारे में जानने में रुचि रखते हैं। तो आज हम इस महान खिलाड़ी की जीवनी में उनसे जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां आपके साथ साझा कर रहे है।

हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद व्यक्तिगत परिचय

पूरा नाम ध्यानचंद
अन्य नाम द विज़ार्ड, हॉकी विज़ार्ड, चाँद, हॉकी का जादूगर
पेशा भारतीय हॉकी खिलाड़ी
प्रसिद्धी वर्ल्ड के बेस्ट हॉकी प्लेयर
जन्म 29 अगस्त 1905
जाति राजपूत
हाइट 5 फीट 7 इंच
वेट 70 किलोग्राम
मृत्यु 3 दिसम्बर 1979
मृत्यु स्थान दिल्ली, भारत
मृत्यु का कारण लिवर कैंसर
जन्म स्थान इलाहबाद, उत्तरप्रदेश
गृहनगर झांसी, उत्तरप्रदेश, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
प्लेयिंग पोजीशन फॉरवर्ड
इंडिया के लिए खेलने का टाइम 1926 से 1948 तक
अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू न्यूजीलैंड टूर सन 1926 में
घरेलू / राज्य टीम झाँसी हीरोज
मैदान में व्यवहार एनर्जेटिक
कोच / मेंटर सूबेदार – मेजर भोले तिवारी (पहले मेंटर) पंकज गुप्ता (पहला कोच)
सर्विस / ब्रांच ब्रिटिश इंडियन आर्मी एवं इंडियन आर्मी
सर्विस ईयर सन 1921 – सन 1956
यूनिट पंजाब रेजिमेंट
ज्वाइन्ड आर्मी सिपोय (सन 1922)
रिटायर्ड मेजर (सन 1956)

हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद प्रारंभिक जीवन

वर्ष 1905 में 29 अगस्त को उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद शहर में एक राजपूत परिवार में हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद का जन्म हुआ। ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार की पोस्ट पर काम करते थे। इनके पिता का नाम समेश्वर सिंह था। ध्यानचंद के पिता भी हॉकी खेलने में बहुत ही ज्यादा इंटरेस्टेड रहते थे।

हॉकी प्लेयर ध्यानचंद के भाई रूप सिंह भी हॉकी खेलने में काफी बिजी रहते थे, वह भी हॉकी के एक अच्छे प्लेयर कहे जाते थे।

हॉकी प्लेयर ध्यानचंद का परिवार

ध्यानचंद की माता जी का नाम शारदा सिंह था और उनके पिता का नाम समेश्वर दत्त सिंह था, जो कि ब्रिटिश इंडियन फौज में सूबेदार के पद पर थे। ध्यानचंद की पत्नी का नाम जानकी देवी था। इनके भाई का नाम मूल सिंह और रूप सिंह था। इनकी कोई भी बहन नहीं थी।इनके बेटे का नाम सोहन सिंह, बृजमोहन सिंह, उमेश कुमार, देवेंद्र सिंह, राजकुमार सिंह और अशोक कुमार था।

हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की शिक्षा

ब्रिटिश इंडियन आर्मी में काम करने के कारण अक्सर ध्यान चंद्र जी के पिता का तबादला (ट्रांसफर) एक जगह से दूसरी जगह पर होता रहता था, जिसके कारण सिर्फ छठी क्लास तक अपनी एजुकेशन हासिल करने के बाद ध्यान चंद्र ने आगे की पढ़ाई नहीं की इसके बाद ध्यान चंद्र के पिताजी वापस उत्तर प्रदेश आ गए और झांसी जिले में रहने लगे।

ध्यानचंद्र हॉकी की शुरुवात

14 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद अपने पिताजी के साथ मैच देखने के लिए गए थे। उस मैच में एक टीम सिर्फ 2 गोल से मैच हार रही थी, जिसके बाद ध्यानचंद ने अपने पिता से कहा कि वह हारने वाली टीम की तरफ से खेलना चाहते हैं

ऐसे में ध्यानचंद के पिता ने ध्यानचंद को मैच खेलने की परमिशन दे दी, जिसके बाद ध्यानचंद ने मैच खेला और उन्होंने टोटल चार गोल किए। यह देखकर वहां पर मौजूद लोग बहुत ही खुश हुए और ध्यान चंद्र को आर्मी में शामिल होने के लिए कहा।

इसके बाद ध्यानचंद्र एक सिपाही के तौर पर पंजाब रेजीमेंट में सिर्फ 16 साल की उम्र में साल 1922 में भर्ती हो गए। पंजाब रेजीमेंट में शामिल होने के बाद ब्राह्मण रेजीमेंट में भर्ती हुए भोले तिवारी, ध्यानचंद के मेंटर बने और उन्होंने खेल के बारे में मूलभूत जानकारी ध्यान चंद्र को प्रदान की।

उन्होंने ही ध्यान चंद को कहा था कि तुम 1 दिन पूरी दुनिया में चांद की तरह चमकोगे। भोले तिवारी ने ही ध्यान चंद को चंद नाम दिया था, जिसके बाद वह चंद नाम से प्रसिद्ध हुए और इस प्रकार ध्यान सिंह, ध्यानचंद बन गए।

ध्यानचंद का शुरुवाती करियर

ध्यान चंद्र ने अपने वर्ष 1925 में अपने करियर का पहला नेशनल हॉकी टूर्नामेंट खेला था। इस मैच के अंदर राजपूताना, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, विज और मध्य भारत ने पार्टिसिपेट किया था।

इस टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने बहुत ही अच्छी परफॉर्मेंस दी थी, जिसके कारण इंडिया की इंटरनेशनल हॉकी टीम में ध्यान चंद्र को शामिल किया गया था।

ध्यान चंद्र का इंटरनेशनल स्पोर्ट्स कैरियर

मेजर ध्यानचंद ने साल 1926 में न्यूजीलैंड में आयोजित हुए एक टूर्नामेंट में टोटल 10 गोल किए थे जबकि इसी मैच में इंडियन टीम ने टोटल 20 गोल किए थे।

इस टूर्नामेंट में इंडिया ने टोटल 21 मैच खेले थे जिसमें से 18 मैच में इंडिया विनर बना था और 1 मैच में इंडिया को हार का मुंह देखना पड़ा था जबकि 2 मैच ड्रॉ हुए।

फॉल्केस्टोन फेस्टिवल, जो कि लंदन में साल 1927 में आयोजित हुआ था, उसमें इंडिया की टीम ने टोटल 10 मैच में 72 गोल किए थे, कमाल की बात यह थी कि इसमें से सिर्फ 36 गोल ध्यानचंद् ने ही किए थे।

एम्सटर्डम ओलंपिक, जो कि साल 1928 में आयोजित हुआ था। इस मैच में ध्यानचंद ने टोटल 2 गोल नीदरलैंड की टीम के खिलाफ किए थे और इंडिया को पहला गोल्ड मेडल जीतने में कामयाबी दिलाई थी।

Dhyan Chan considered a wizard or magician of the game

लॉस एंजेलिस गेम, जो कि साल 1932 में अमेरिका में आयोजित हुआ था, उस मैच में ध्यान चंद्र ने टोटल 8 गोल किए थे और गोल्ड मेडल जीताकर पूरी दुनिया में स्वयं का और हमारे देश का नाम रोशन किया।

बता दें बर्लिन ओलंपिक में लगातार तीनों टीम अमेरिका, जापान और हंगरी को साल 1932 में शून्य गोल से ध्यान चंद्र ने हराया था।

इस इवेंट के सेमीफाइनल में इंडिया ने 10 गोल से फ्रांस को मात दी थी। इसके बाद इंडिया का मुकाबला फाइनल में जर्मनी देश के साथ हुआ था। इस मुकाबले में इंटरवल तक इंडिया के पास सिर्फ एक गोल ही आया था। इंटरवल के बाद ध्यान चंद्र ने अपने पैर के जूते उतार दिए और उसके बाद शानदार प्रदर्शन करते हुए इंडिया को 8-1 से जीत दिलाई और गोल्ड मेडल हासिल किया।

साल 1948 तक इंटरनेशनल हॉकी में ध्यान चंद खेलते रहे। इसके बाद 42 साल की उम्र में ध्यान चंद्र ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। हालांकि बाद में आर्मी में आयोजित होने वाले हॉकी मैच मे ध्यानचंद खेलते रहे। बता दें ध्यान चंद्र ने हॉकी स्टिक को साल 1956 तक अपने हाथों में थामे रखा था।

हॉकी प्लेयर ध्यानचंद की मृत्यु और मृत्यु का कारण

अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में ध्यान चंद को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा। जिंदगी के आखिरी टाइम में उन्हें लिवर कैंसर की बीमारी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था, जिसके बाद बेहतर इलाज के लिए उन्हें दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती कराया गया था।

जहां पर साल 1979 में 3 दिसंबर को उन्होंने आखिरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया।

ध्यान चंद्र को प्राप्त अवार्ड और अचीवमेंट

ध्यानचंद ओलंपिक मैडल

अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंस के कारण ध्यानचंद ने अपने कैरियर के दरमियान बड़े स्तर पर खेले गए Matches में पार्टिसिपेट किया। ध्यान चंद ने तीन ओलंपिक मेडल अपने नाम किए थे।

बता दें अपने करिश्माई प्रदर्शन के दम पर उन्होंने साल 1928 से लेकर सन 1936 तक टोटल तीन गोल्ड मेडल लगातार हासिल किए थे। यही नहीं आपके लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि ध्यान चंद्र के भाई के अलावा उनका बेटा भी ओलंपिक में मेडल जीत चुका है।

ध्यानचंद स्टेडियम

हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी है और हॉकी का जादूगर ध्यान चंद्र को कहा जाता है इसीलिए राजधानी दिल्ली में ध्यान चंद स्टेडियम का निर्माण किया गया है, जिसका पूरा नाम मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम है।

मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड

साल 2021 में हमारे देश के प्राइम मिनिस्टर ने राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड का नाम बदलकर, उसका नया नाम मेजर ध्यानचंद रख दिया है।

इस प्रकार अब राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड के नाम से जाना जाएगा। इसकी ऑफिशल घोषणा भी अब हो चुकी है।

मोदी जी ने अपने भाषण में कहा था कि ध्यानचंद जी को सम्मान देने के लिए उनके नाम पर अवार्ड रखा गया है।

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