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मूर्तिकार की प्रशंसा | Best Hindi Moral Story

मूर्तिकार की प्रशंसा : Hindi Moral Kahani

एक मूर्तिकार था, बढ़िया-बढ़िया मूर्तियां बनाता था। किसी ज्योतिष ने बताया कि तुम्हारी जिन्दगी थोड़ी सी हैं केवल महीने भर की आयु बाकी हैं, मूर्तिकार चिंतित हुआ वह चिंता में डूब गया उसने यहाँ एक संत ने उसके दस्तक दी, संत के चरणों में खूब रोया – और मृत्यु से बचा लेने की प्राथना की।

संत ने पूछा तुम क्या करते हो? उसने जबाब दिया मूर्तिकार हूँ, मूर्तियां बनाता हूँ।

संत ने उसे उपाय सुझाया तुम अपनी जैसी शक्ल की आठ मूर्तियां बनाओ। मूर्तियां हू –ब- हू तुम्हारे जैसी ही होनी चाहिए, सो जिस दिन मृत्यु का बात आये, उस दिन सब को एक से वस्त्र पहना कर लाइन में खड़ा कर देना और इनके बीचो बीच में तुम स्वयं खड़े हो जाना तथा जैसे ही यमदूत तुमको लेने आये तो तुम एक मिनट के लिए अपनी साँस रोक लेना।

यमदूत तुमको पहचान नहीं पायेंगे, और इस तरह वे तुम्हे छोड़ कर चले जायेगे तथा तुम्हारी मृत्यु की घडी टल जायेगी। मूर्तिकार ने ऐसा ही किया मृत्यु के दिन यमदूत उसे लेने आए यमदूतो ने देखा कि एक जैसे नौ आदमी खड़े हैं। मुश्किल में पड़ गए इसमें असली कौन हैं और नकली कौन हैं – मालूम ही नहीं पड़ रहा और बेचारे यमदूत खाली हाथ ही लौट गए, जाकर यमराज से शिकायत की वहां नौ लोग खड़े हैं समझ में नहीं आता किसको लाना हैं। यमराज ने भी सुना तो उसे भी आश्चर्य हुआ क्यों कि पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ यमराज ने सोचा, मृत्युलोक में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जो एक जैसे अनेक व्यक्ति बनाने लगा हैं।

यमराज जी ने ब्रह्मा जी को बुलवाया और पूछा ये क्या मामला हैं? एक जैसी शक्ल के नौ- नौ आदमी?

यमदूत पेशोपेश में हैं कि कौन असली हैं और कौन नकली, लेकर किसको जाना हैं यह कैसा तमाशा हैं? ब्रह्मा जी ने देखा तो उनका भी सर चकराया, ब्रह्मा जी बोले मैंने तो पूरी पृथ्वी पर एक जैसे दो आदमी नहीं बनाये, लगता हैं सचमुच में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जिसने एक जैसे दो नहीं बल्कि नौ- नौ आदमीं बना दिए हैं।

ब्रह्मा जी बोले मामला जटिल हैं इसका निपटारा विष्णु जी कर सकते हैं। विष्णु जी को बुलवाया गया विष्णु जी ने सभी मूर्तियों की परिक्रमा की, उन्हें ध्यान से देखा तो असली बात समझ में आ गई।

विष्णु जी ब्रह्मा जी से कहा – प्रभु क्या कमाल की कला हैं क्या सुन्दर और सजीव मूर्तियां बनायीं हैं जिसने यह मूर्तियां बनायीं हैं अगर मुझे मिल जाए तो में स्वयं उसका अभिनन्दन करूँगा, मैं स्वयं उसकी कला को पुरस्कृत करूँगा विष्णु द्वारा इतनी प्रशंसा सुननी थी कि बीच की मूर्ति (जिसमे स्वयं मूर्तिकार था) बोल पड़ी –प्रभु मैंने ही बनायीं हैं, मैं ही मूर्तिकार हूँ विष्णु जी ने उसका कान पकड़ा और कहा –चल निकल बाहर हम तुझे ही खोज रहे थे और यमदूत पकड़कर उसे अपने साथ ले गए।

आदमी प्रशंसा में बहक जाता हैं। प्रशंसा में फूल जाना और अपनी औकात को भूल जाना मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी हैं, कोई तुम्हारी तारीफ करे तो तुम जरा सावधान रहना, हो सकता है वह तुम्हारे लिए कोई जाल तैयार कर रहा हो।

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Note: The above story is not my original creation; I have read it from one of the book & found it is very good to share with you.

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