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Radhakrishnan Biography in Hindi डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

Profile of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi
Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Short Essay / Biography in Hindi

भारत के पहले उप-राष्ट्रपति और दुसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म 5 सितम्बर 1888 को चेन्नई से 84 किलोमीटर दूर एक छोटे कस्बे तिरुतनी में हुआ था। इनका परिवार सांस्कृतिक जीवन जीने वाला साधारण ब्राह्मण परिवार था।

उनका बाल्यकाल तिरुतनी एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ। इन्होने प्रथम आठ वर्ष तिरुतनी में ही गुजारे। राधाकृष्णन के पुरखे पहले कभी ‘सर्वपल्ली’ नामक ग्राम में रहते थे और वे चाहते थे कि उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के ग्राम का बोध भी सदैव रहना चाहिये। इसी कारण उनके परिजन अपने नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ धारण करने लगे थे।

वे अपने पिता की दूसरी संतान थे, 6 भाई-बहन सहित 8 सदस्यों के परिवार की आय सीमित थी इसलिए डा0 राधाकृष्णन का बचपन कठिनाइयों और गरीबी में बीता। उन्होंने गरीबी का जीवन जीते हुए भी यह सिद्ध कर दिया की प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती।

डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेघावी छात्र थे। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को दर्शन-शास्त्र से परिचित कराया। वे समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे।

डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में कट्टर विश्वास रखते थे, और जाने-माने विद्वान, राजनयिक और आदर्श शिक्षक थे। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वह एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उनको अध्यापन के पेशे से गहरा प्यार था।

वे एक शिक्षक से लेकर राष्ट्रपति के उच्च पद तक पहुचे उन्होंने वेल्लूर और मद्रास कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की,उसके बाद दर्शन शास्त्र में स्नाकोतर करके मद्रास रेजीडेन्सी कॉलेज में ही दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक हो गए।

डा0 राधाकृष्णन ने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और भारतीय दर्शन से विश्व को परिचित कराया वे  वीर सावरकर और विवेकानन्द के आदर्शो से प्रभावित थे। बहुआयामी प्रतिभा के धनी डा0 राधाकृष्णन को देश की संस्कृति से प्यार था शिक्षक के रूप में उनकी प्रतिभा, योग्यता और विद्यता से प्रेरित होकर ही उन्हें सविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया वे प्रसिद्ध विश्वविधालयो के उपकुलपति भी रहे।

भारत की आज़ादी के बाद डा0 राधाकृष्णन सोवियत संघ में राजदूत बने 1952 तक वे रूस में राजनयिक रहे। उसके बाद उनको भारत के उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया, 1962 में डा0 राजेन्द्र प्रसाद के बाद वे भारत के दुसरे राष्ट्रपति बने इनका कार्यकाल चुनौतियों भरा रहा। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध तथा दो प्रधानमंत्रियो का निधन इनके इनके कार्यकाल में ही हुए।

डा0 राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल नेताओ के आग्रह के बाद भी अस्वीकार कर दिया।

शिक्षा, दर्शन और राजनीति में योगदान के लिए डा0 राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” प्रदान किया गया तथा अमेरिकी सरकार ने धर्म और दर्शन के क्षेत्र में उत्थान के लिए उन्हें मरणोपरांत “टेम्पलटन पुरस्कार” से सम्मानित किया वे पहले गैर ईसाई थे उन्होंने यह पुरस्कार प्राप्त किया था।

उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्षो शिक्षक के रूप में व्यतीत किया उन्हें आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता हैं उनका जन्मदिन 5 सितम्बर भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता हैं 17 अप्रैल 1975 को लम्बी बीमारी के बाद इस महापुरुष का निधन हो गया।

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