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शालिनी, रवि और मम्मी का प्यार

Beparwah Shalini aur Ravi par maa ka pyar

शालिनी और रवि हमेशा अपनी मम्मी से परेशान रहते थे क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि उनकी मम्मी हमेशा उन पर रोक टोक करती हैं और कभी भी उन्हें नहीं समझती है हालांकि यह सही नहीं था। एक माँ यही चाहती है कि उसके बच्चे हमेशा खुश रहे और कभी भी किसी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े लेकिन यह बात बच्चे कभी नहीं समझते।

उन्हें ऐसा लगता है कि अब वे  बड़े हो चुके हैं और उनकी देखभाल वे खुद ही कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ शालिनी और रवि के साथ भी हो रहा था।

1 दिन रवि अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने जा रहा था तभी पीछे से मम्मी की आवाज सुनाई दी— “बेटा 8:00 बजे के पहले घर आ जाना वरना तुम्हारे पापा गुस्सा करेंगे।”

इस बात पर गुस्सा होते हुए  रवि ने कहा “अरे मम्मी दोस्तों के साथ जा रहा हूं तो 10 तो बजेंगे ही आपको हर बात में रोकना टोकना क्यों रहता है? ”

इस बात पर मम्मी अपने काम में लग जाती लेकिन उन्हें अंदर ही अंदर दुख जरूर लगता कि उनके बच्चे उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं। एक दिन जब उन्होंने शालिनी को अपने साथ सब्जी बनाने के लिए बुलाया तो शालिनी ने मुँह बनाते हुए कहा— “मम्मी मैंने कुछ देर पहले ही मेडिक्योर और पेडीक्योर करवाया है।

ऐसे में आप चाहती हैं कि मैं किचन में जाकर काम करूं। जब आप हो तब हमें घबराने की क्या जरूरत है? आपके होते हुए हमें किचन में या दूसरा काम करना जरूरी नहीं लगता।”

मम्मी कहती हैं “बेटा अभी मैं तुम्हारे साथ हूं तो तुम आसानी से काम कर लेती हो लेकिन जब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी उस समय तुम्हें कोई परेशानी ना हो इसलिए मैं तुम्हें काम करने को कहती हूं लेकिन तुम लोग मेरी बात समझते ही नहीं हो।”

मम्मी की ऐसी बातों से भी शालिनी को कोई फर्क नहीं पड़ता और वह दूसरे कमरे में चली जाती है।

बेचारी मम्मी अकेले सारे काम निपटाती है और फिर रात में भी खाना बनाकर सभी को खाना खिलाकर आखरी में खुद खाती है। कभी किसी ने मम्मी के साथ खाना खाने की कोशिश नहीं की और ना ही किसी ने मम्मी को गर्म खाना देने की भी जरूरत समझी।

खाना खाने के बाद बेटा, बेटी और पति तीनों ही अपने मोबाइल में लग जाते और ना जाने कितने बजे रात तक मोबाइल में ही डूबे रहते। मम्मी तरस जाती कि कोई उनके पास बैठ कर बात करें और उनसे हाल-चाल पूछ ले।

मम्मी को बस इसी बात की परेशानी होती है कि जब यह लोग अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे तब उनका क्या होगा क्योंकि बिना बच्चों के रहना उनके लिए आसान नहीं था।

ना चाहते हुए भी मम्मी इन बातों को अपने दिमाग से निकालने लगी और अपना पूरा ध्यान योगा और मेडिटेशन की ओर देने लगी थी।

परिवार वालों के ना चाहने पर भी उन्होंने योगा क्लास ज्वाइन किया जहां उन्हें मन की शांति मिलने लगी और उन्होंने अपने हर काम को बकायदा पूरा भी किया। लेकिन फिर भी मम्मी अपने बच्चों के प्यार के लिए तरसती रही।

जब भी उन्हें कभी मार्केट, फिल्म या किसी रिश्तेदार के घर जाना होता तो बच्चे उन्हें मना ही कर देते यह कह कर कि उन्हें दूसरा काम है।

अब मम्मी को योगा क्लास ज्वाइन करते हुए 2 महीने हो गए थे जहां उनकी एक सहेली शिखा उनके बहुत करीब हो गई थी। शिखा भी खुद को परिवार से अलग करके अपना मुकाम हासिल करने में लगी थी हालांकि वह मम्मी से उम्र में छोटी थी लेकिन कहते हैं ना दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती।

दोस्ती तो वह खूबसूरत तोहफा है जो किसी भी उम्र में आपको मिल सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए दोनों की दोस्ती बहुत गहरी हो चली थी जब दोनों एक दूसरे के साथ अपनी बातें साझा कर सकते थे।

एक दिन जब मम्मी की सहेली शिखा उनके घर आती है तब मम्मी चाहती है कि उनके दोनों बच्चे उनकी सहेली से मिले लेकिन बच्चों को कोई दिलचस्पी नहीं थी और वह फॉर्मेलिटी करके वहां से चले जाते हैं।

जब मम्मी शालिनी को आवाज देकर कहती हैं कि “बेटा थोड़ा आंटी के लिए चाय बना कर ले आओ” तो वह एकटुक जवाब देते हुए कहती है “नहीं मम्मी मुझे अभी फुर्सत नहीं है। आप खुद ही बना लो ना मसाले वाली चाय आप तो बहुत अच्छा बनाते हो।”

बस फिर क्या था शिखा ने सारी बात समझ ली और मम्मी का बुझा हुआ चेहरा उसे बहुत बुरा लगने लगा। मम्मी चुपचाप जाकर किचन में चाय बनाने लगी और चुपके चुपके आंसू बहाने लगी बस उसी समय शिखा अंदर आ गई और उसने मम्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा–  “यह समय आंसू बहाने का नहीं है बल्कि अपने बच्चों का भविष्य सही करने का है।

बच्चे हमारे प्यार की वजह से जिद्दी हो जाते हैं। ऐसे में हमें खुद की गलती का एहसास नहीं होता जो भी स्थिति आज हमारी है वह कहीं ना कहीं हमारी गलती की वजह से ही है। तुम मत घबराओ मैं जैसा बताती हूं तुम वैसा ही करते जाओ।”

शुरु शुरु में तो मम्मी को कुछ समझ नहीं आया लेकिन अब वह अपनी सहेली की बात पर भरोसा करते हुए उसका साथ देने लगी। 2 दिन बाद मम्मी ने नाश्ते की टेबल पर सब से यह कह दिया कि मेरी सहेली शिखा के घर में बहुत बड़ी पूजा होने वाली है जिसमें उसने मुझे बुलाया है और अगर मैं नहीं जाऊंगी तो वह बुरा मान जाएगी।

ऐसे में मुझे उसके घर 2 दिन रहना होगा और अब तुम लोगों को अपना काम खुद ही करना होगा क्योंकि उसके वहां से यहां आने में मुझे बहुत समय लगेगा और वैसे भी तुम लोगों को मेरी जरूरत तो है नहीं।”

शुरू शुरू में दोनों बच्चे बहुत खुश होते हैं क्योंकि अब वे अपने मन के अनुसार घूम फिर सकेंगे और अब मम्मी की झिक झक भी नहीं सुनना होगा जिसकी वजह से दोनों बच्चे और पति का दिमाग खराब हो जाता था।

उसके 2 दिन बाद मम्मी अपनी सहेली शिखा के घर चली जाती हैं और नाश्ते में जब दोनों बच्चे आकर बैठते हैं तब उन्हें कुछ भी नाश्ता दिखाई नहीं देता और काफी ढूंढने के बाद भी उन लोगों को अफसोस होता है। काफी भूख लगने की वजह से दोनों  मैगी बनाकर खाते हैं और खाने में क्या बनाएं यह सवाल उनके दिमाग पर छाने लगता है।”

अब रवि अचानक बोल उठता है कि “मैं तो अपने दोस्त के साथ जाकर खा लूंगा” तभी शालिनी कह उठती है कि “ठीक है मैं भी कुछ बाहर से ही ऑनलाइन मंगवा लूंगी।” पापा भी हामी भर देते हैं क्योंकि उनको तो ऑफिस में खाना मिल जाएगा। इस बीच मम्मी उन्हें बिल्कुल भी फोन या मैसेज नहीं करती और अपनी सहेली के घर में ही रहती हैं।

जब रवि अपने दोस्त के घर जाता है तो उसे पता चलता है कि उसका दोस्त तो कहीं और गया हुआ है। ऐसे में वह मुंह लटका कर वापस अपने घर आ जाता है और शालिनी में जब ऑनलाइन खाना मंगवाने वाली होती है उसी समय उसके फोन का रिचार्ज खत्म हो जाता है और वह ऑनलाइन आर्डर नहीं कर पाती है।

अब दोनों भाई बहन भूख की वजह से चुपचाप बैठे रहते हैं उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता कि वह क्या खाएं?

उन्हें याद आता है कि मम्मी कैसे उनके लिए उनकी पसंद का खाना बनाती थी और उसके बावजूद भी वे लोग मुंह बनाने से नहीं कतराते थे और तरह-तरह के उलाहना देने लगते थे।

जब भी मम्मी कुछ नया बनाने की कोशिश करती थी तो दोनों बच्चे दोस्तों की मम्मी से कंपेयर करते हुए कहते थे कि “आपको उनके जैसा बनाना नहीं आता।” अब मम्मी के ना रहने पर उन्हें मम्मी की बहुत याद सता रही थी।

जैसे तैसे उन्होंने समय काटा और जब शाम को पापा घर आते हैं तब तीनों की हालत खराब हो जाती है क्योंकि घर में एक भी सब्जी नहीं होती और ना ही कोई मसाला।

घर भी पूरी तरह से अस्त-व्यस्त होता है जिसे मम्मी कभी साफ सुथरा रखती थी और किसी भी प्रकार की गंदगी करने पर डांट ही पड़ती थी। रवि और शालिनी जिन दोस्तों के भरोसे रहते थे आज उन दोस्तों ने ही उनका साथ छोड़ दिया और उन लोगों ने भी कोई मदद नहीं की थी।

रात के 10:00 बज चुके थे लेकिन उन लोगों को नींद नहीं आ रही थी क्योंकि उन लोगों में से किसी ने खाना नहीं खाया था और रह रहकर उन्हें रोना आ रहा था कि क्यों उन्होंने मम्मी की बात को नहीं माना?

अचानक कॉल बेल बजती है और तीनों ही दौड़कर दरवाजा खोलने के लिए जाते हैं तो सामने मम्मी को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं क्योंकि मम्मी तो 2 दिन बाद आने वाली थी। मम्मी चुपके-चुपके अंदर आती हैं और अपने थैले से बड़ा सा बॉक्स निकालकर उन्हें दे देती हैं जिसमें उनकी पसंद की गरमा गरम बिरयानी होती है।

तीनों जल्दी-जल्दी उस बिरयानी को खाने लगते हैं जिसे मम्मी अपने हाथों से बनाकर लाती हैं।

उन तीनों को इस तरह से खाते देखकर मम्मी को सुकून मिलता है और अब दोनों बच्चे रोते हुए मम्मी के पास आकर कहते हैं “सॉरी मम्मी हमें आपको बहुत परेशान किया जब आप हमसे कुछ करने के लिए कहती थी तो हमने आपका साथ नहीं दिया और हमेशा आपका अपमान किया।

हमें ऐसा लगता था कि आप तो हमें हमेशा हमारे साथ रहेंगे तो हमें कोई काम करने की जरूरत ही नहीं है लेकिन हम बहुत गलत थे। ”

पापा ने भी सबके सामने मम्मी से माफी मांगी क्योंकि उन्होंने भी जाने अनजाने कई बार मम्मी को भला बुरा कह दिया था। इस बात पर मुस्कुराते हुए मम्मी कहती हैं–” इसीलिए तो मैं तुम दोनों से कहा करती थी कि थोड़ा काम सीख लो अगर मैं नहीं रहूंगी तो तुम लोगों के लिए अच्छा होगा लेकिन तुम लोगों ने कभी ध्यान नहीं दिया अब देखा तुम लोगों का क्या हाल हो गया ?

अगर शालिनी आज मेरे साथ सब्जी रोटी बनाना सीख लेती तो तुम लोगों को भूखे नहीं रहना पड़ता। अगर रवि ने आकर घर की साफ सफाई करना सीख लिया होता तो घर का यह हाल नहीं होता। मैं तुम लोगों का भला चाहती हूं और हमेशा तुम लोगों का अच्छा ही सोचूंगी।

अब बच्चों और पापा के साथ ही तीनों को गलती का एहसास होता है और वह बड़े ही आत्मीयता के साथ अपनी मम्मी को बैठा कर उनसे माफी मांगते हैं और मम्मी मन ही मन अपनी सहेली शिखा का धन्यवाद करती हैं क्योंकि यह सारा प्लान शिखा का ही तो था।

दोस्तों कई बार हमारे साथ ही ऐसी स्थिति आती है कि जो चीज या जो इंसान हमारे साथ है हमें उसकी कदर नहीं होती लेकिन जैसे ही वह इंसान हमारी जिंदगी से या हमारे घर से कहीं दूर चला जाता है उसके बाद हमें उसकी याद आती है और उसकी सच्ची अहमियत पता चलती है।

समय चले जाने पर पछछताने से अच्छा यही है कि समय रहते ही उस इंसान की कदर कर ली जाए और उन्हें खुशी दे दी जाए। आज के समय में देखा जाता है कि बच्चे अपने ही माता-पिता का अपमान करते हैं और माता-पिता कुछ कर नहीं पाते लेकिन अगर समय रहते उन्हें सही शिक्षा दी जाए तो बच्चे कभी भी अपने माता-पिता का अपमान नहीं कर पाएंगे और भविष्य को भी कारगर कर पाएंगे।

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