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किसी व्यक्ति की दरिद्रता ही उसकी अज्ञानता की पहचान है

गरीबी (Poverty) और बेरोजगारी (unemployment) को समाज का एक ऐसा अभिशाप समझा जाता है जिसके कारण जिंदगी गुजारने के बीच जहां ढेरों मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं, वहीं यह बहुत से लोगों का बचपन तक छीन लेती है।

इन दिनों धन दौलत कमाना इंसान की सबसे जरूर बड़ी जरूरत बन चुका है क्योंकि आजकल जो कुछ भी लोगों के पास सम्मान और रुतबा है, उसे सीधे-सीधे दौलत से जोड़ दिया गया है। अगर आपके पास धन दौलत है तो आपकी समाज में इज्जत है वरना आपका कोई सामाजिक मोल या भाव नहीं है। पहले दुनिया का माहौल कुछ और था अब कुछ और है।

परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। पहले भी लोग गरीब होते थे लेकिन तब उनके जीवन में सुख, शांति और सुकून था। मानवीय मूल्यों के आधार पर लोग एक दूसरे का सम्मान किया करते थे और दूसरे के दुख दर्द को स्वयं अपना दुख दर्द समझते थे। अब तो हालात इतने बदल चुके हैं कि भाईचारा और रिश्ते नाते भी इसी धन दौलत के चक्रव्यूह में फंस कर रह गए हैं।

ऊपर से हर व्यक्ति को अपने घर परिवार और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के दौरान इतना ज़बरदस्त दबाव रहता है कि अगर वे पैसे कमाने को अपने जीवन का सबसे बड़ा मिशन ना बनाएं तो जिंदगी का गुजारा मुश्किल हो जाएगा।

तो सवाल ये है कि दरिद्रता के अंधकार को दूर करने के लिए क्या जरूरी है? क्या किसी व्यक्ति की दरिद्रता उसकी अज्ञानता की पहचान है?

इस सवाल का जवाब देने के बीच कुछ लोग आपको यह तर्क दे सकते हैं कि दुनिया के बहुत से महापुरुषों जैसे महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, डॉ० राजेंद्र प्रसाद, इत्यादि जैसे सैकड़ों बुद्धिजीवियों के विचारों से तो दुनिया के बहुत से लोग प्रभावित हैं लेकिन वे कभी पैसे के पीछे नहीं भागे और गरीबी के आलम में ही इस संसार से रुखसत हो गए?

Poverty Causes, Effects and Facts

तो हमने पहले ही बता दिया है कि पूर्व (Past) में परिस्थितियां कुछ और थीं और अब कुछ और हैं। अब लोग धनवान विचारकों को ही सुनना ज्यादा पसंद करते हैं। यही वजह है कि अब लोग ज़्योफ बेज़ोस, अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी, रतन टाटा, एलोन मस्क, जैक मा, जैसे धनवान व्यक्तियों के मोटिवेशन को बड़े गौर से पढ़ते सुनते हैं।

तो आइए बिना समय गंवाए यह जानने की कोशिश करते हैं कि गरीबी या पैसे की कमी को किन उपायों से दूर किया जा सकता है:

1. शिक्षा से मिटेगा गरीबी का अंधकार

वैसे तो हर दौर में ही शिक्षा का बोलबाला रहा है और लोग इसके महत्व को हमेशा से महसूस करते रहे हैं लेकिन पहले शिक्षा को रोज़गार के साधन के रूप में या पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि व्यक्तित्व के निर्माण (Personality Development) और बोलचाल (Conversation) में सुधार के लिए हासिल किया जाता था।

लोग गरीब तो थे लेकिन शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उन्हें गरीबी और पैसे की तंगी का ज़्यादातर सामना रहता था। पहले ज़माने में लोगों को हर हाल में अपने रोज़गार का साधन दूसरे कामों को बनाना पड़ता था।

लेकिन इस आधुनिक और वैज्ञानिक दौर में अब परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं और आपको अगर अपने जीवन के स्तर को ऊपर उठाना है या फिर कोई ऐसा रोज़गार चुनना है जिसके सहारे आप अपनी ज़िन्दगी को बेहतर तरीके से गुज़ार सकें, तो आपको हर हाल में शिक्षा का ही दामन थामना पड़ेगा।

क्योंकि अगर आपने अपने जीवन में शिक्षा प्राप्त नहीं की तो इस बात की प्रबल संभावना है कि आप पैदा भी अगर गरीब हुए थे, तो गरीबी के आलम में ही इस दुनिया से गुज़र जाएंगे लेकिन अगर आपके शिक्षा का हथियार है तो इस हथियार को काम में लाकर आप सभ्य और व्यवहार कुशल भी बन सकते हैं। क्योंकि शिक्षा ही इन दिनों रोज़गार या धन कमाने का सबसे शक्तिशाली माध्यम है।

यही वजह है कि विकसित देशों के नागरिक आधुनिक शिक्षा से लैस रह कर कभी रोज़गार से महरूम नहीं रहते। अगर कोई शिक्षित और कुशल व्यक्ति किसी कंपनी में काम करता है तो अपने बॉस या कम्पनी के रास न आने पर वह दूसरा कोई भी वैकल्पिक रोज़गार तलाश कर सकता है। वह दूसरी कोई भी कंपनी अपनी योग्यता के आधार पर तलाश कर सकता है।

इस बीच उसे ज़्यादा दिनों तक काम या रोज़गार से खाली नहीं रहना पड़ता। जबकि अज्ञानी व्यक्ति यदि कहीं काम करता है और किसी कारण के चलते जब वह रोज़गार को अलविदा कह देता है तो उसे नया काम करने में भारी दिक्कत होती है और बहुत मुमकिन है कि वह जब वह नया काम पकड़े तो वह उसके पिछले काम के निचले स्तर का हो।

2. हुनर और काबीलियत से भी बनती है पहचान

इंसान के भीतर अगर कोई हुनर या गुण (talent and skills) मौजूद है तो वह इन्हें काम में लाकर कर भी आसानी से पैसे कमा सकता है। उसके भीतर मौजूद प्राकृतिक गुण उसके लिए रोजगार (employment) का बेहतरीन साधन बन सकते हैं।

मिसाल के तौर पर एक इंजीनियर जो लंबी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद शिक्षा हासिल करता है और परीक्षा देकर जब इंजीनियर बनता है तो थोड़ी भागदौड़ और मेहनत के बाद उसे एक बेहतर भविष्य की सौगात (Gift) नौकरी के रूप में मिल जाती है। लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो इंजीनियर की पढ़ाई तो नहीं पढ़ते लेकिन उनके भीतर इंजीनियरों जैसे गुण बचपन से ही मौजूद रहते हैं।

वह अपने दिलचस्पी के मैदान में रहकर अपनी योग्यताओं को आगे ले जाते हैं और धीरे धीरे वे इतने दक्ष और कुशल हो जाते हैं कि वे इसी गुण को काम में लाकर अपने और अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी का सामान मुहैया कराते हैं।

जैसे- आपने भी देखा होगा कि कुछ लोग पढ़ाई किए बिना ही किस तरह आधुनिक युग के इलेक्ट्रॉनिक साजो सामान (Equipment) को कैसी महारत के साथ बना देते हैं। यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि अगर आपके पास शिक्षा नहीं है लेकिन आपके भीतर कोई गुण मौजूद है तो आप रोजगार के माध्यम से भी जीविकोपार्जन (Earning) कर सकते हैं।

कहने का मतलब ये कि अगर आपके पास कोई ऐसा हुनर है जिससे आप लोगों को प्रभावित कर सकते हैं तो इस युग में जहां कोई किसी को पूछता नहीं, वही लोग आपके पास चलकर आएंगे और हर हाल में आपकी मेहनत की कीमत आपको अदा करके लौटेंगे।

कोई भी व्यक्ति अगर गरीब है तो उसे ये समझना चाहिए कि इस दौर में लोगों के पास इतना समय नहीं है कि वे दोस्तों, रिश्तेदारों या अपने आसपास के लोगों की गुरबत (Poverty) की ओर नजर उठाकर देखें। इस बात को देखते हुए उसे हर हाल में स्वरोजगार को अपनाकर आत्मनिर्भर (Self Employed) बनने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कोई उसकी मदद के लिए कोई आगे आने वाला नहीं है।

उसे समझना होगा कि अगर वह अपना पेट नहीं भर सकता तो दूसरा कोई भी शख्स का पेट भरने नहीं आएगा चाहे वह उसका सगा भाई ही क्यों न हो। इस मानसिकता का असर ये होता है कि व्यक्ति अपने रोज़गार को लेकर गम्भीर हो जाता है और आत्मनिर्भर बनने की जुगत में डूब जाता है।

फिर थोड़े दिनों की गाढ़ी मेहनत और समय देने के पश्चात वह इस लायक तो हो ही जाता है कि अपने परिवार का खर्च चला सके। इसके विपरीत, अगर व्यक्ति की सोच नकारात्मक है तो वह आजीवन हैरान-परेशान रह कर इधर उधर भटकता रहता है और जिंदगी के सुख समृद्धि और प्रतिष्ठा से हमेशा के लिए महरूम हो जाता है।

जैसे मैं अपने एक दोस्त की मिसाल देता हूं मेरा दोस्त बचपन में टॉफी बिस्किट की छोटी सी दुकान करता था। उस समय मैं पढ़ रहा था लेकिन उसका मन तो पढ़ाई में जरा भी नहीं लगता था। फिर वह दुकान पर ही समय देने लगा। मैं उसे समझाता रहा कि पढ़ लो, यही उम्र है! इसके बाद फिर कभी तुम्हें कोई मौका नहीं मिलेगा। लेकिन मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि शिक्षा के महत्व से जुड़ी मेरी बात उस पर जरा भी असर करती है। उसने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई भी छोड़ दी और उसी दुकान पर ही बैठा रहता।

उसी में वह धीरे धीरे एलईडी लाइट्स वगैरह बनाने लगा। फिर धीरे-धीरे उसके पास छोटे छोटे मोबाइल फोन्स आने लगे। वह उन्हें बनाने लगा। लोग उसके काम से बहुत जल्द प्रभावित हुए और चंद वर्षों में ही उसका चर्चा शहर भर में हो गया। फिर क्या था। काम और काबीलियत की शोहरत (Popularity) ने पूरी तरह से उसकी जिंदगी बदल दी जिसके बाद मैं भी अब गर्व के साथ कह सकता हूं कि वह मेरा दोस्त है।

3. सोच में लाना होगा बदलाव

बहुत से लोग यह समझते हैं की देश में गरीबी के उन्मूलन और उससे निजात दिलाने की जिम्मेदारी केवल सरकार या देश के पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी वर्ग की है।

लेकिन यह बात गलत है क्योंकि गरीबी के अभिशाप से तब तक छुटकारा नहीं पाया जा सकता जब तक देश का हर नागरिक यह न सोचने लगे कि गरीबी उन्मूलन (Eradication of Poverty) से जुड़ी कुछ उसकी भी जिम्मेदारियां हैं।

अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए वह कोई भी काम करेगा तो उसका फायदा सीधे-सीधे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इसलिए कहा जाता है कि जिस देश में ज्यादा लोग आत्मनिर्भर होते हैं, उस देश की अर्थव्यवस्था भी उतनी ही मजबूत रहती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी तो समाज का गरीब और मजदूर वर्ग ही समझा जाता है। अगर यह सोच ज़ेहन में आ जाए कि मैं अपनी व्यक्तिगत निर्धनता को दूर करके देश हित में भी एक खास सहयोग कर रहा हूं तो फिर क्या बात है।

लेकिन इस सोच के साथ उस पर अमल करना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह सोच राष्ट्रप्रेम की भावना से जुड़ी हुई है। और आजकल तो राष्ट्रवाद केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित होकर रह गया है लेकिन हकीकत से इसका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है।

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