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अष्टावक्र गीता : मोक्ष कैसे संभव हैं?

इस संसार में सबका अस्तित्व जन्म और मरण रूपी दो किनारों के बीच फंसा हुआ है। इसमें सारा अस्तित्व सिमट कर रह गया है। जीवन का अर्थ और अनर्थ जो भी सब सीमित है।

कुछ चीजों की मर्यादाएं पहले से तय कर दी गई है जिंदगी इसमें ही उलझी उलझी रहती है

इस 2021 में ज्ञान, मुक्ति और वैराग्य जैसे शब्द लोगों के लिए ज्यादा मायने नहीं रखता है।
लोग जानते भी है ऐसा कुछ होता भी है। लेकिन सच तो यह है कि यह सभी हमारे अस्तित्व से जुड़े हुए शब्द है। यह शब्द ब्रह्माण्ड की उत्पति और परम सत्ता के प्रति लगाव से जुड़े हुए शब्द है।

आज से हजारों साल पहले इन सब विषयों पर खूब चर्चा होती थी।  खूब लोग ऐसे बातें सुनते थे और जीवन को सरल बना कर रखते थे।

अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय में ही राजा जनक बालक अष्टावक्र से पूछते है।

जनक उवाच –
कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं – हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति (salvation) कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं ॥१॥

Old king Janak asks the young Ashtavakra – How knowledge is attained, how liberation is attained and how non-attachment is attained, please tell me all this.

सही प्रश्न पूछना बहुत जरूरी है।

श्रीमद्भागवद्गीता और अष्टावक्र गीता दोनों में एक सामान्य बात है कि ये दोनों ग्रंथ प्रश्नों से शुरू होते है।

किसी भी ज्ञान को जानने के लिए सही प्रश्न करना, सही व्यक्ति से करना बहुत जरूरी होता है। सही प्रश्न होने के बावजूद भी अगर प्रश्न सही व्यक्ति से नहीं पूछा जाता है तो उत्तर भी सटीक और सही नहीं प्राप्त हो सकता है।

राजा जनक अष्टावक्र जी महाराज से पूछते है कि ये महात्मा, मुझे बताइए कि ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है? जीवन में मोक्ष कैसे प्राप्त होता है?

राजा जनक के प्रश्नों का जवाब अष्टावक्र जी बड़े ही विस्तार से देते है।

अष्टावक्र उवाच –
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात्,
विषयान विषवत्त्यज।
क्षमार्जवदयातोष, सत्यं
पीयूषवद्भज

श्री अष्टावक्र उत्तर देते हैं – यदि आप मुक्ति चाहते हैं तो अपने मन से विषयों (वस्तुओं के उपभोग की इच्छा) को विष की तरह त्याग दीजिये। क्षमा, सरलता, दया, संतोष तथा सत्य का अमृत की तरह सेवन कीजिये।

Sri Ashtavakra answers – If you wish to attain liberation, give up the passions (desires for sense objects) as poison. Practice forgiveness, simplicity, compassion, contentment and truth as nectar

व्याख्या

अब हम इस श्लोक का अर्थ समझने का प्रयास करते है। इस श्लोक में बहुत गहरी बात कही गई है। राजा जनक ने अपने पहले ही प्रश्न में पूछा था कि मोक्ष की प्राप्ति कैसे होती है?

उसके उत्तर में अष्टावक्र जी महाराज कहते है कि हे राजन! अगर आप मोक्ष की प्राप्ति करना चाहते है,तो आपको किसी वस्तु की उपभोग की जो अंदरुनी इच्छा है, उसे छोड़ना पड़ेगा।
और मन में क्षमा, दया ,सरलता ,संतोष और सत्य का बीज बिना पड़ेगा।

यहां पर हम समझने का प्रयास करते है कि वस्तु का उपभोग करने का मतलब का क्या होता है?

हम सभी के अंदर ऐसी wishes होती है, जैसे घर खरीदना है, New car लेनी है, नया मोबाइल लेना है और नई जगहों पर घूमने जाना है।
यह पर उपभोग की वस्तुएं है, जिन्होंने हम सबको जकड़ कर रखा है। यहां तक में उठने वाले भोग की भावना भी मोक्ष की प्राप्ति में बाधा है।

एक बात पर यहां प्रकाश डालने की जरूरत है कि आखिर मोक्ष क्या होता है?
इसका उत्तर हमको और आपको ढूंढना होगा। संदीप माहेश्वरी ने अपने सेशन में में मोक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि मोक्ष का मतलब हैं extreme freedom

जब कुछ भी पाने की इच्छा समाप्त हो जाती है,सुख दुख दोनों एक जैसे लगने लगते है। अच्छा बुरा, दिन रात सबका भेद खतम हो जाता है। अमीर गरीब जैसे कुछ रह ना जाता है, तब जाकर मोक्ष की प्राप्ति होती है, कह सकते हैं “मोह का क्षय” या “मोह का नाश” ही मोक्ष हैं।

assurance of salvation in Hindi

१. क्षमा

क्षमा करने का गुण अपने भीतर समाहित करने की बात अष्टावक्र जी महाराज कहते है। मनोवैज्ञानिक भी इस बात तो मानते है कि क्षमा कर देने से कई तरह के मनोवैज्ञानिक बीमारियां ठीक हो जाती है।

कोई भी व्यक्ति जब हमारे साथ कुछ भी गलत करता है, तब हम उसको माफ नहीं कर पाते है और अपने अंदर मन ही मन उससे व्यक्ति से बदला लेने की सोचने लगते है और मौके के फिराक में रहते है कि कब मौका मिले कि उससे बदला ले, ऐसा करने से झूठ मूठ का pressure, stress और टेंशन create हो जाता है, इसलिए हमें लोगों को माफ करना सीखना चाहिए।

माफ करने वाला गलती करने वाले बड़ा होता है। बिना माफ किए आप मोक्ष कदापि प्राप्त नहीं कर सकते है।

२. दया

इस आधुनिक समाज ने हैं सबको निष्ठुर बना दिया है। एक तरह से हम सभी self centric बनते जा रहे है। इसलिए यहां पर को दया दिखाने की बात कही जा रही है, जो बात आजकल के मनुष्यों में देखने को नहीं मिलता है।

आज दया की बहुत कमी हो गई है। लोग के चेतन मन पर आधुनिकता का इतना प्रभाव पड़ा है कि लोग अगर किसी भूखे नंगे और जरूरतमंद भिखारी को 5-10 रूपये दे भी दे तो उसका वीडियो बनाते है और सोशल मीडिया पर शेयर करते है। क्या हम इसको दया दिखाना कहेंगे। यही तो मार्केटिंग है।

किसी जरूरत मंद की मदद करना बिना उसके बदले में कुछ चाहे, बिना किसी expectation से। मन में कुछ उसको लेकर कोई expectation नहीं होनी चाहिए।

बस कर दिया। पशु पक्षी भी दया के पात्र होते है। गर्मी में चिड़ियों के लिए पानी रखना दया का एक काम है। भूखे पशुओं को भोजन करना भी दया है।

Scientific बात बोले, तो दया दिखाने वाला व्यक्ति कभी मानसिक रोगों से ग्रस्त नहीं होता है

३. सरलता

सरलता का English meaning होता है simplicity
और कहा भी जाता है कि सिंपल चीजें खूबसूरत होती है। Simplicity खूबसूरत का एक पैमाना है। Simple यानि कि सरल होना भी कई प्रकार का होता है। एक सरल होना मतलब अपने व्यवहार, विचार और अपने वाणी से सरल होना।

दूसरा सरल होना मतलब अपने अपने रहन सहन, कपड़ों और जरूरतों के मामलों में सरल होना है। पहले ही बोले है कि सरल होना खूबसूरती का पैमाना होता है। जो भी चीजें सरल वह सभी बहुत खूबसूरत है। सरल चीजें का महत्व भी होता है।

जैसे महात्मा गांधी सरलता के उदाहरण हो सकते है और अनोखी बात महात्मा गांधी दोनों तरह के खूबसूरत थे। रविन्द्र नाथ टैगोर भी इस criteria में आते है। Well being coach और दीपक चोपड़ा भी सरल इंसान है। यह सभी सिंपल लोग बहुत गहरी और समय से परे की बातें करते है। इनका दर्शन भी जीवन के अनछुए पहलुओं को touch करता है।

इसलिए अष्टावक्र जी महाराज राजा जनक से कहते है कि राजन! तुमको मोक्ष चाहिए तो सरलता को अपने अंदर लाओ। जटिल बनने के फिराक में मत रहो।

४. संतोष

लाइफ में तरक्की बहुत जरूरी है, हम सबको बहुत आगे बढ़ना है। पैसा भी कमाना है। ख्वाहिशें भी पूरी करनी है। सबकुछ करना हैं। इस दुनिया में अपना नाम भी कमाना है। सब करना है। लेकिन एक स्थान पर पहुंच कर रुक जाने की जरूरत होती है।

ठहर जाने की जरूरत होती है। लगातार पैसा के पीछे भागते भागते लोग जिंदगी जीना भी भूल जाते हैऔर इतने सुन्दर जीवन का अनुभव नहीं कर पाते है। यहां तक कई बार लोग अपने परिवार वालों से भी दूर हो जाते है। उनके साथ भी quality time spend नहीं कर पाते है। बस वह और, और के पीछे भागते जाते ,भागते जाते है बस भागते जाते है।

ऐसा करने से कभी शान्ति और सुख की प्राप्ति नहीं होती है। दिमाग में अलग level का pressure create हो जाता है।
इसलिए जीवन में एक स्तर के बाद जाकर संतोष हासिल कर लेनी चाहिए, संतुष्ट हो जाना चाहिए।

संदीप माहेश्वरी भी तो यही कहते है कि और कितना चाहिए? जितना चाहिए उससे तो कहीं ज्यादा मिल गया है।
लोग उनसे पूछते है कि आप अरबपति बन सकते है। आप अरबपति क्यों नहीं बन जाते है?

संदीप माहेश्वरी बड़े मुस्कुराते हुए मजे मजे में जवाब देते है।
क्या करूंगा मैं? अरबपति बनकर।

और लोगों को समझाते है कि यह एक trap है, इससे जितना जल्दी निकल गए,उतना ही बेहतर है नहीं तो इसमें आप लगातार फंसते जायेंगे, फंसते जाएंगे।

इसलिए जीवन में संतोष की बहुत जरूरत है, वह भी आज कल समय में।
हमारे शास्त्रों में कहा भी गया है कि संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं है।

५. सत्य

सत्य के बारे में क्या कहें?
सत्य की ही जय होती है, ऐसा उपनिषदों में भी लिखा है। झूठ तो समुंदर में उठने वाले लहर के समान है और सत्य तो समुंदर जैसा है।

लहर के बनने में ना देर लगती है और ना मिटने में। जितना तेजी में लहर बन जाती है, उतना ही तेजी से मिट भी जाती है, लेकिन समुंदर सत्य की तरह होता है, वह हमेशा विद्यमान रहता है। कभी भी मिटता नहीं है। इसलिए कहा गया है कि सत्य के रास्ते पर चलने आनंद की प्राप्ति होती है। सत्य का मार्ग ही मुक्ति के द्वार तक लेकर जाता है।

अष्टावक्र जी महाराज की बुद्धि को decode करना किसी नॉर्मल इंसान की बस की बात नहीं होती है। वह सारे शास्त्रों और पुराणों में महारत हासिल किए हुए है।

और वह यहां पर राजा जनक के प्रश्नों का बहुत व्यवहारिक और प्रैक्टिकल उत्तर दे रहे है। मेरा मानना है कि उत्तर की गुणवत्ता, प्रश्न की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

सामने वाला जिस लेवल का प्रश्न पूछता है, उसको वैसा ही उत्तर मिलता है।
यहां पर राजा जनक भी बहुत अच्छे और गूढ़ प्रश्न पूछ रहे है। अष्टावक्र जी महाराज उत्तर दे रहे है।

यह तो अभी पहले अध्याय का पहला श्लोक था। इसके आगे बहुत सारा सवाल और उनके जवाब बाकी है। मैं कोई अध्यात्मिक गुरु नहीं हूँ, कोई विद्वान भी नहीं हूँ, यहां तक की मेरी कोई पहचान भी नहीं है, अस्तित्व की बात ही क्या करें।

लेकिन मेरी बचपन से रुचि रही है। अध्यात्म और उससे जुड़े सवालों। क्योंकि मेरा मानना है कि साइंस human को चांद पर भेज सकता है। लेकिन human के दिल और जिंदगी को खूबसूरत बनाने का काम हमेशा spirituality का ही रहेगा। क्योकि spirituality हमें दुख और सुख को एक जैसा समझने की अनुभूति देती है।

धीरे धीरे हम इसके अध्याय को आगे बढ़ाते रहेंगे।
ॐ वासुदेवाय नमः
जय मां सरस्वती

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