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Best Hindi Moral Story एक अदभुत बकरा

Hindi Moral Stories – Kahani : बकरे की तृप्ति ( हिंदी कहानी ) 

एक सम्राट था उसके पास एक बकरा था अदभुत बकरा – जो कभी तृप्त नहीं होता था, कितना भी खिलाओ कितना भी पिलाओ, पर उसकी भूख शांत नहीं होती थी। एक बार सम्राट ने नगर में घोषणा करवायी कि जो व्यक्ति मेरे बकरे को जंगल में चराकर, खिला-पिलाकर तृप्त कर देगा, उसे मैं अपना आधा-राज्य दे दूंगा किन्तु बकरा तृप्त हुआ या नहीं इसकी परीक्षा मैं स्वयं करूँगा।

घोषणा सुनकर नगरवासी बड़े प्रसन्न हुए, प्रसन्न होना स्वभाविक ही था जरा सी बात पर आधा राज्य जो मिल रहा था। प्रतियोगिता में शरीक होने पूरा नगर जो उमड़ रहा था, उसमे मुल्ला नसरुद्दीन सबसे आगे था।

राज्य दरबार में आकर मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा – महाराज मैं आपके बकरे को तृप्त करा सकता हूं आप आज्ञा दे सम्राट ने कहा ठीक है, ये रहा बकरा ले जाओ, नसरुद्दीन बकरे को लेकर जंगल में चला गया पूरा दिन वह बकरे को हरी-हरी घास, मीठी म्रदु घास खिलाता रहा, ठंडा- ठंडा जल पिलाता रहा बकरा चरते चरते एक वृक्ष की छाया में बैठ गया तो मुल्ला नसरुद्दीन ने समझा की बकरा तृप्त हो गया हैं।

शाम को वह बकरे को लेकर सम्राट के समक्ष उपस्थित हुआ और बोला महाराज मैंने आपकी शर्त पूरी कर दी, आपका बकरा तृप्त हो गया है, आप मुझे आधा राज्य दे दे सम्राट ने कहा जल्दी न करो, अभी परीक्षा शेष हैं बकरा तृप्त हुआ या नहीं – इसकी परीक्षा होगी और सम्राट ने सिंहासन से उठ कर थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने डाल दी, सामने पड़ी घास देखते ही बकरे घास खाने लगा सम्राट ने कहा शर्त पूरी नहीं हुई, बकरा भूखा हैं तभी तो घास खा रहा हैं, तृप्त होता तो भला घास क्यों खाता? तुम्हे कोई राज्य नहीं मिलेगा।

अन्य सैकडो, हजारो लोगो ने भी अनेक प्रयत्न किये, बकरे को तृप्त करने के, पर वे भी असफल रहे बकरे को कितना ही खिलाओ पिलाओ, पर जब सम्राट परीक्षा के लिए घास डाले तो बकरा पुनः खाने लगे, सब परेशान सब चिन्तित, करे तो क्या करे? शुरू में घोषणा के समय लगा बड़ा सरल काम हैं—आसनी से राज्य मिल जायेगा लेकिन अब महसूस होने लगा की समस्या जटिल हैं, शर्त कठिन हैं शर्त का कठिन होना भी स्वभाविक हैं सम्राट यदि आधा राज्य देने की बात करता हैं तो बात में कुछ न कुछ दम तो होगा ही, वर्ना क्या सम्राट को किसी पागल कुत्ते ने काटा हैं जो जरा सी बात पर आधा राज्य दाव पर लगा दे।

उसी नगर ने एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम था खट्टर काका, खट्टर काका अध्यात्म प्रेमी, तत्वज्ञानी व्यक्ति था। उसने सोचा सम्राट के इस ऐलान में जरुर कोई रहस्य हैं मुझे अधात्मिक धरातल पर खड़े होकर इसका समाधान सोचना होगा किसी युक्ति से ही समस्या पूर्ति सम्भव हैं और उसने आत्मचिंतन से समाधान भी खोज लिया।

वह बकरे को लेकर जंगल में गया वहां उसे दिन-भर भूखा-प्यासा रखा, न कुछ खाने को दिया न कुछ पीने को शाम को भूखे-प्यासे बकरे को लेकर खट्टर काका राज्य दरबार में सम्राट के समक्ष उपस्थित हुआ और आत्मविश्वास से कहा सम्राट आपका बकरा अब तृप्त हैं, तृप्त था नहीं उसका घुसा-घुसा पेट ही दिखा रहा था कि वह भूखा है और पूर्ण अतृप्त हैं लेकिन खट्टर काका ने कहा मैंने इसको पेट-भर खिला दिया हैं –इसका पेट भर दिया हैं इसे तृप्त कर दिया हैं अब यह पूर्ण तृप्त हैं कुछ भी नहीं खायेगा – आप चाहे तो परीक्षा भी कर सकते हैं खट्टर काका के चहरे पर आत्मविश्वास और ओज झलक रहा था।

सम्राट उठा, आगे बढ़कर बकरे के समक्ष कुछ हरी घास डाली, कुछ पत्तिया डाली लेकिन उस समय सभी लोगो के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि बकरा घास खाना तो दूर उसे सूंघ भी नहीं रहा हैं, उस तरफ देख भी नहीं रहा हैं सम्राट भी आश्चर्यचकित रह गया, तुम विजयी हुए वचानुसार मैं तुम्हे आधा राज्य देता हूं, लेकिन तुम इतना अवश्य बता दो कि तुमने इस कभी न तृप्त होने वाले बकरे को तृप्त कैसे किया।

खट्टर काका ने कहा –तृप्त, मैंने इसको कुछ खिलाकर तृप्त नहीं किया हैं अपितु न खिलाकर तृप्त किया हैं। भुक्ति(भोजन) से यह तृप्त नहीं हुआ है, युक्ति से यह तृप्त हुआ हैं।

सम्राट ने पूछा वह युक्ति कौनसी हैं?

खट्टर काका ने कहा वह युक्ति, बस कुछ नहीं हैं, छोटी सी बात मैं इसे जंगल में ले गया वहां इसने घास देखी तो खाने को उद्धत हुआ, लेकिन ज्यो ही इसने घास खाने को मुह खोला तो मैंने इसके मुहं पर एक लकड़ी मारी जब-जब इसने खाने को मुह खोला, घास खाना चाहा तब-तब मैंने इसके मुह पर लकड़ी मारी दिन में कई मर्तबा ऐसा हुआ दिन भर में इसकी धारणा बन गई कि अगर मैं घास खाने को बढ़ा तो मेरी पिटाई होगी, मुझे मार पड़ेगी इसकी मज़बूत धारणा बन गई कि घास खाने से मार पड़ती हैं। यही कारण हैं कि अब वह घास नहीं खा रहा हैं, बिना खाए ही तृप्ति का अनुभव कर रहा हैं।

कहानी बड़ी सार्थक हैं वह सम्राट परमात्मा हैं तत्ज्ञानी खट्टर काका जीवात्मा हैं वह बकरा मनुष्य का मन हैं वह लकड़ी इच्छा-निरोध रूपी अंकुश हैं वह घास इन्द्रिय विषय रूपी घास हैं और वह मुल्ला नसरुद्दीन हम-सब है इन्द्रिया और मन का गुलाम संसारी प्राणी हैं।

परमात्मा घोषणा कर रहा हैं कि जो अपने मन रूपी बकरे को तृप्त कर देगा वही परमात्म-साम्राज्य का अधिकारी हो जायेगा परमात्मा के साम्राज्य को पाना हैं तो मन का तृप्त होना आवश्क हैं जिसका मन तृप्ति का अनुभव करने लगता हैं, वह मुक्ति का साम्राज्य प्राप्त कर लेता हैं जो मन को साध लेता हैं, वह मोक्ष को उपलब्ध हो जाता हैं।

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Note: The above story is not my original creation; I have read it from one of the book & found it is very good to share with you.

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