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चाणक्य नीति Chapter 12 In Hindi

Chanakya Niti in Hindi  Chapter 12, Chanakya Success Tips 

महान मौर्य वंश की संस्थापक चाणक्य का नाम राजनीति, राष्ट्रभक्ति एवं जन कार्यों के लिए इतिहास में सदैव अमर रहेगा, उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है तभी लगभग 2300 वर्ष बीत जाने पर भी उनकी गौरवगाथा धूमिल नहीं हुई है। चाणक्य भारत के इतिहास के एक अत्यन्त सबल और अदभुत व्यक्तित्व हैं

Chanakya Niti : Twelfth Chapter

जिसके घर में निरंतर उत्सव –यज्ञ, पाठ और कीर्तन आदि-होता रहता हैं, संतान सुशिक्षित होती हैं, स्त्री मधुरभाषी मीठा बोलने वाली होती हैं, आवश्कतापूर्ति के लिए पर्याप्त धन होता हैं, पति-पत्नी एक दुसरे में अनुरक्त हैं, सेवक स्वामिभक्त और आज्ञापालक होते हैं, अतिथि का भोजन आदि से सत्कार और शिव का पूजन होता रहता हैं, घर में भोज आदि से मित्रो का स्वागत होता रहता हैं तथा महात्मा पुरुषों का आना-जाना भी लगा रहता हैं, ऐसे पुरुष का गृहस्थाश्रम सचमुच ही प्रसंशनीय हैं ऐसा व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली होता हैं।

A home where there is, all comforts, wise sons, sweet voiced wife, money enough to full-fill wishes, love for wife, obedience servants, hospitality for other’s faith in Lord, sweets, cold water and good company for visiting noble souls, the life in such home is better than all other lives.The master of such home is very fortunate and pleased.

जो दयालु यजमान आवश्कता से ग्रस्त ब्राह्मणों पर द्रवित होकर उन्हें श्रद्धापूर्वक थोडा भी दान देता हैं, ब्राह्मणों को दिया गया वह दान उतना ही यजमान को वापस नहीं आता अपितु वह अन्नत गुना होकर वापस को मिलता हैं।

One who donates the needed willingly to a troubled Brahimn will be receiver of limitless returns.O king, whatever one donates a Brahmin comes back multiplied many a times over to the donor.

इस संसार में वे ही लोग सुख और सम्मान का जीवन व्यतीत करते हैं, जो सम्बन्धियों के प्रति उदारता, सेवको के प्रति दया और दुर्जनों के प्रति कठोरता बरतते हैं जो सज्जन पुरूषों में अनुराग रखते हैं, नीच पुरूषों के प्रति अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करते हैं और विद्वानों के प्रति विनयशीलता बरतते हैं, शत्रुओं को अपनी शूरता का परिचय देते हैं, गुरुओ के प्रति सहनशीलता दिखाते हैं तो स्त्रियों पर अधिक विश्वास न करके उनके साथ चातुर्यपूर्ण व्यवहार करते हैं।

A man who generous to his own class, kind to other classes, wicket to the evil class, loving to the Noble class, vigilant against the wicked, polite to the learned class, the brave face of enemies, tolerant to the seniors and crafty to the women, such skilled one is the redeemer of the world.

जिस मनुष्य ने अपने जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं किया, उसकी लाश को हिंसक पशु भी त्जाज्य समझते हैं। वन में पड़े किसी क्यक्ति के शव को खाने के इच्छुक एक गीदड़ को दूसरा वृद्ध गीदड़ समझाते हुए कहता हैं – इस शव को मत खाओ, इसे छोड़ दो क्योकि यह शरीर एकदम निक्रस्त और निन्दनीय हैं, इसने अपने हाथो से कभी कोई दान नहीं किया, कानो से कभी उत्तम शास्त्रों का अध्यन नहीं किया, नेत्रों से किसी साधु-महात्मा के दर्शन नहीं किये, पैरो से कभी तीर्थयात्रा नहीं की इस प्रकार इस व्यक्ति ने अपने जीवन काल में अपने शरीर के किसी भी अंग का सदुपयोग नहीं किया।

Your both hands unaccustomed to charity, both ears unaccustomed to hearing the religious chant, both legs unaccustomed to pilgrimage and, who live money earned by unjust means. On vane, an O wolf in sheep’s clothing end your despicable existence.

मृदंग से आवाज निकलती हैं धिक्तन -इसका संस्कृत में अर्थ हैं -उन्हें धिक्कार हैं इसके आगे कवि कल्पना करता हैं कि जिन लोगो का भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों में अनुराग हैं, जिनकी जिव्हा को श्री राधा जी और गोपियों के गुणगान में आनन्द नहीं आता, जिनके कान श्रीकृष्ण की सुन्दर कथा को सुनने के लिए सदा उत्सुक नहीं रहते, मृदंग भी उन्हें धिक्कार हैं धिक्कार हैं कहता हैं।

Those whose faith is not in Lord Krishna, whose tongues don’t lend their ears to hearing the delightful romantic story ho His life, they are condemnable.The beat of Maridangam says, ” fie upon them, ” fie upon them.

चाणक्य कहते हैं की विधाता ने जिसके भाग्य में जो लिख दिया हैं, उसे कोई भी मिटा नहीं सकता उदाहरण के रूप में यदि वसन्त ऋतु में भी करील के वृक्ष पर पत्ते नहीं उगते, उल्लू के भाग्य में दिन में देखना नहीं लिखा इसी प्रकार यदि वर्षा की बुँदे चटक के मुख में नहीं जाती तो इसके लिए मेघ को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

In spring kareel tree does not blossom. Can spring be blamed? The sun gives light to all.Is the sun to blame if owls don’t see in daylight. If the raindrops don’t fall in the beak of the cuckoo, are clouds to be blamed.

वैसे तो कहा जाता हैं की संगति का प्रभाव पड़ता हैं परन्तु यह भी सच हैं की सज्जन अथवा श्रेष्ठ पुरुषो पर दुष्टों की संगति का कोई प्रभाव नहीं होता जैसे कि धरती पर खिले पुष्पों की सुगंध तो मिट्टी में आ जाती हैं, परन्तु पुष्पों में मिट्टी की सुगंध नहीं आने पाती, उसी प्रकार सज्जनों संग से दुष्ट तो कभी सुधर भी जाते हैं, परन्तु उन दुर्जनों की संगति से सज्जनों को कोई हानि नहीं होती अथार्थ वे दुष्टता का अंशमात्र भी नहीं अपनाते।

A good company can imbibe goodness in a bad person. But a good people in the company of bad do not soak badness. Earth soaks fragrance of a flower but a flower does not imbibe smell of earth.

साधु-महात्मा साक्षात तीर्थ-स्वरुप हैं अथार्थ तीर्थो के सेवन जैसा पुण्य ही साधुओ के दर्शनों से भी प्राप्त होता हैं। तीर्थयात्रा का फल तो समय आने पर मिलता हैं परन्तु साधु-सज्जनों के संग और दर्शन से तत्काल लाभ हो जाता हैं क्योकि वे कोई अच्छी बात ही कहेंगे या कोई अच्छी सीख ही देंगे।

Beholding saintly people is as rewarding as a pilgrimage.Pilgrimage rewards in due time but a hearing to saintly people gives its rewards instantly.

एक अजनबी ने एक ब्राह्मण से पूछा.”बताइए, इस शहर में महान क्या है?”.ब्राह्मण ने जवाब दिया कि खजूर के पेड़ का समूह महान है। अजनबी ने सवाल किया कि यहाँ दानी कौन है? जवाब मिला के वह धोबी जो सुबह कपडे ले जाता है और शाम को लौटाता है। प्रश्न हुआ यहाँ सबसे काबिल कौन है.जवाब मिला यहाँ हर कोई दुसरे का द्रव्य और दारा हरण करने में काबिल है, प्रश्न हुआ कि आप ऐसी जगह रह कैसे लेते हो? जवाब मिला की जैसे एक कीड़ा एक दुर्गन्ध युक्त जगह पर रहता है।

A Brahman asked someone” Brother who is the tallest in the city? Another Brahmin replied, ” A grove of toddy trees” The questioner asked again ” Who is the biggest giver here?” The other said, “Washerman” Every morning he takes clothes and gives them back in the evening.” the next question, ” who is clever enough to steal anthers wife.” The surprised Brahmin, “So friend, how do you survive here? The resident sighed, “Same way as worms survive in poison”

जिन घरों में ब्राह्मणों के पैर नहीं धोए जाते अथार्थ जहाँ उनका मान-सम्मान नहीं होता, उन्हें भोजनादि से संतुष्ट नहीं किया जाता, वेद-शास्त्रों के पाठ की ध्वनि नहीं गूंजती तथा यज्ञ-यागादी से देव-पूजन नहीं होता, वे घर, घर न होकर शमशान के सदर्श हैं।

Where Brahamin’s feet are not washed, he is not respected. Where shlokas of Vedas do not rant the air.yagna and worship is not performed, that home is like a cremation ground.

विरक्त मनुष्य घर-संसार के माया-मोह को छोड़ कर यह भावना अपनाता हैं, कि अब सत्य मेरी माता हैं, ज्ञान मेरा पिता हैं, धर्म मेरा भाई हैं, दया मेरी बहन हैं, शान्ति मेरी पत्नी हैं और क्षमा मेरा पुत्र हैं इस प्रकार सत्य-ज्ञानदी ही अब मेरे सच्चे साथी, हितसाधक और सम्बन्धी हैं।

The truth is my mother, knowledge is father, faith is my brother, peace is my wife and forgiveness is my son. These six are my close ones.

यह संसार नश्वर हैं, अनित्य हैं, नष्ट होने वाला हैं, तो भी लोभी मनुष्य अधर्माचरण में लिप्त रहता हैं चाणक्य ने कहा हैं कि शरीर अनित्य हैं ऐसी स्थिति में मनुष्य को यथाशीघ्र धर्म-संग्रह में प्रवर्त हो जाना चाहिए, जीवन के उपरान्त धर्म ही मनुष्य का सच्चा मित्र हैं।

The flesh is perishable, the wealth is ephemeral and the death is always near.So, earn the credit of good deeds.Only the deeds are of permanent value.

जिस प्रकार यजमान से निमंत्रण पाना ही ब्राह्मणों के लिए प्रसन्नता का अवसर होता हैं, जैसे हरी घास मिल जाना गायो के लिए प्रसन्नता की बात होती हैं इसी प्रकार पति की प्रसन्नता स्त्रियों के लिए उत्सव होती हैं परन्तु मेरे लिए तो भीषण रण में अनुराग ही जीवन की सार्थकता अथार्त उत्सव हैं।

An invitation gladdens a Brahmin like a green pasture brings a cow in a festive mood. Similarly, happiness in a husband is a celebration for a wife. But for a warrior war is the same thing. The battle is his essence of life.

आचार्य ने कहा हैं कि दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाला ही सच्चे अर्थो में ऋषि और विवेकशील पण्डित कहलाता हैं।

One who regards anthers wife as mother, others wealth as dust and treat every living being alike. He is a true pundits.

हे राघव निम्न दिव्य गुण केवल आप में ही मिलते हैं यही कारण हैं की आप पुरूषोतम कहे जाते हैं वे गुण हैं – धर्म के निर्वाह में तत्पर रहना, सदा उधत रहना, मधुर वाणी का प्रयोग, दान करने में रूचि रहना और उत्साह, मित्र से निश्छल व्यवहार, गुरु के प्रति विनम्रता, चित में अत्यन्त गम्भीरता- ओछेपन का अभाव, आचार-व्यवहार में पवित्रता, गुण ग्रहण करने के प्रति आग्रह अथार्थ गुण-ग्रहण की प्रवर्ती, शास्त्रों में निपुणता, रूप में सुन्दरता और शिव में विशिष्ट भक्ति ही दिखाई देती हैं।

Sage Vashistha spoke to Ram ” O Ram, ever ready to defend the religion, polite words, charitable disposition, the frankness with friends, respect to teachers, the seriousness of character, no shallowness, pious living, propensity to imbibe good qualities, knowledge of scriptures and faith in God, all these qualities exist in you. That is why call you “man supreme”.

हे राम-राघवेन्द्र आप कल्पवृक्ष के बढ़कर दानी, सुमेरु पर्वत से अधिक उन्नत, चिन्तामणि से अधिक उज्जवल, सूर्य से अधिक तेजस्वी, चन्द्र से अधिक आकर्षक, समुन्द्र से अधिक गम्भीर, कामदेव से अधिक सुन्दर, बलि से अधिक यशस्वी और कामधेनु से अधिक मनोवांछित फल प्रदान करने वाले हैं।

O Lord Ram, Kalpa tree is wood, Sumeru is a mountain, Chintamani is a gemstone. The sun is too hot, the moon decreases, the God of sex is body less. Raja Bali is a son of a demon and Kamdhenu is an animal. They are all best in a relative sense. Who do I compare you with to describe your greatness exactly? I am lost for similes.

व्यक्ति को राजपुत्रो से विनयशीलता और नम्रता की, पण्डितो से बोलने के उत्तम ढंग की, जुआरियो से असत्य-भाषण के रूप-भेदों की तथा स्त्रियों से छल-कपट की शिक्षा लेनी चाहिए।

Learn courtesy from princes, sweet talk from pandits lies from gamblers and cunningness from women.

अपनी सीमा अथार्थ आय के साधनों की उपेक्षा करके अन्धाधुन्ध खर्च करने वाला, सहायको के न होने पर भी दूसरों से झगडा बढ़ने वाला और सभी स्त्रियों (बाला, युवती, वृदा, स्वस्थ-अस्वस्थ, सुंदरी-असुन्दरी, उच्चवर्ण तथा निम्नवर्ण ) से सम्भोग करने वाला व्यक्ति शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं।

One who spends without considerations picks up quarrels without allies and one who is beset with worries, perishes soon.

बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह खाने-पीने की चिंता न करके एकमात्र धर्म के अनुष्ठान में ही प्रवर्त रहे, क्योंकि आहार तो मनुष्य के जन्म के साथ उत्पन्न होता हैं अथार्थ जो उसके भाग्य में हैं वह तो उसे मिलना ही हैं अत: आजीविका की चिंता न करके धर्म-साधन की ही चिंता करनी चाहिए।

A wise man should not worry about food. He should only meditate or study religion. The food is arranged for in birth like milk in the breasts of a mother when he was born.

जिस प्रकार पानी की एक-एक बूंद से धीरे-धीरे सारा मटका भर जाता हैं उसी प्रकार एक-एक अक्षर प्रतिदिन पढने से मनुष्य भी विद्वान बन जाता हैं प्रतिदिन एक-एक पैसा जोड़ने से व्यक्ति धनवान बन जाता तथा थोडा-थोडा धर्मानुष्ठान करने से धार्मिक बन जाता हैं।

Happy is one, who does not hesitate, in spending money, in eating food, in learning, and in the debate.

जिस प्रकार इन्द्रायण का फल पक जाने पर भी अपनी कटुता को छोड़ कर मधुर नहीं हो जाता, उसी प्रकार आयु के ढल जाने पर भी दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता, दुष्टता उसका सवभाव बन जाने से कभी नहीं छूटती।

A real wicked remains wicked till the end of his life. Like bitter pumpkin retains even in ripeness.It does not become sweet.

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Friends, चाणक्य नीति के उसी क्रम में “Chanakya quotes in hindi and English: twelfth chapter” share कर रहा हूं। आशा है आपको बहुत सी बातें सीखने को मिलेगी।

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