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कोरोना वायरस और भाग्यहीन अमीर का घर

नोवल कोरोना वायरस (एनसीओवी/कोविड-19) Corona virus disease (COVID-19) का कहर जिस तरह से दुनियाभर में फैला हैं उससे हर किसी के मन में भय व्याप्त हैं, भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश में 500 मामले आते ही पूरे भारत में Lock down की घोषणा कर दी, इससे काफी हद तक इस समस्या को काबू में लाया जा सका, परन्तु स्थिति पुन ख़राब न हो जाए इसलिए एक बार फिर 14 अप्रैल 2020 को मोदीजी ने देश को संबोधित करते हुए Lock down को आगे 3 मई तक बढ़ा दिया। खैर मोदीजी जितना भी देशबंदी/Lock-down कर लें जब तक जागरूकता पूरे समाज में नहीं आएगी, तब तक कोई फायदा होने वाला नहीं है और इससे केवल आर्थिक स्थिति ही ख़राब होगी, इसलिए आप सबसे मेरी प्रार्थना हैं कि Lock down को सफल बनाए ताकि 3 मई के बाद इसको और आगे नहीं बढ़ाना पड़े।

इन सभी के बीच जो सबसे बड़ी समस्या आ रही हैं वह हैं भुखमरी और बेरोजगारी। सभी को खाने को 2 वक्त का भोजन तो चाहिए ही, अब जब काम धंधे बंद हैं, बाजार बंद हैं, लोगो के पास पैसा भी खत्म हो गया हैं।

Coronavirus disease in India

सरकार और भामाशाह अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि हर किसी के पास दोनों समय का भोजन रहे, भूख से कोई भी परेशान न हो, ऐसी ही एक मध्यम वर्ग की मार्मिक कहानी/प्रसंग जो मुझे Social मीडिया से प्राप्त हुई थी, आप सभी के साथ Share/साझा कर रहा हूँ, आशा हैं आपको इसका सन्दर्भ समझ में आएगा।

पुलिस की एक गाड़ी मेन रोड पर एक दो मंजिले मकान के बाहर आकर रुकी।

कांस्टेबल सुरेश को फ़ोन पर भोजन के पैकेट पहुचाने के लिए यही पता लिखवाया गया था, पर यहां तो सभी बड़े और सुन्दर मकान थे, यह सब काफी अमीर दिखाई दे रहे थे, आखिर यहां पर खाना किसने मंगवाया होगा?

यही सोचते हुए सुरेश ने उसी नम्बर पर Call Back की।

“अभी दस मिनट पहले इस नम्बर से भोजन के लिए फोन किया गया था। आप मोहन जी बोल रहे हैं क्या? हम मकान नंबर 104, के ठीक सामने, प्रधान मार्ग में खड़े हैं, बताइए कहाँ आना है?”

दूसरी तरफ से जबाब आया ,”आप वहीं रुकिए, मैं आता हूं।”

एक मिनट बाद 104 नंबर मकान का गेट खुला और करीब पैंसठ वर्षीय सज्जन बाहर आए।

उन्हें देखते ही सुरेश गुस्से में बोले, “आप को कतई शर्म नही आई, देश में महामारी की इस हालत में इस तरह से फोन करके खाना मंगवाते हुए, गरीबों के हक का जब आप जैसे अमीर खाएंगे तो गरीब तक खाना कैसे पहुंचेगा, क्या समाज के प्रति आपका कोई फ़र्ज़ नहीं?

“मेरा यहां तक आना ही बर्बाद गया।”

साहब! ये शर्म ही थी जो हमें यहां तक ले आई, मोहन ने जबाब देते हुए कहा।

सर्विस लगते ही शर्म के मारे Loan लेकर घर बनवा लिया। आधे से ज्यादा Salary क़िस्त/EMI में कटती रही और आधी बच्चों की परवरिश में जाती रही।

अब रिटायरमेंट के बाद कोई पेंशन नही थी तो मकान का एक हिस्सा किराये पर दे दिया। अब Corona virus के कारण देश भर में लॉकडाउन लगा हुआ हैं इसके कारण किराया भी नही मिला। बेटे की सर्विस न लगने के कारण जो फंड रिटायरमेंट के समय मिला था, उससे बेटे को व्यवसाय करवा दिया और वो जो भी कमाता गया, व्यवसाय बड़ा करने के चक्कर में उसी में लगाता गया और कभी बचत करने के लिए उसने सोचा तक नही।

अब 25 दिन से वो भी ठप्प है। पहले साल भर का गेंहू-चावल भर लेते थे पर बहू को वो सब old fashion लगता था तो शर्म के मारे दोनो टँकी कबाड़ी को दे दीं। अब बाजार से दस किलो packed आटा और पांच किलो चावल ले आते हैं। राशन कार्ड बनवाया था तो बच्चे वहां से शर्म के मारे राशन उठाने नही जाते थे कि कौन लाइन लगाने जाए इसलिए वो भी निरस्त हो गया। जन धन अकाउंट हमने ही बहू का खुलवा दिया था, पर उसमें एक भी बार न तो जमा हुआ न ही निकासी हुई और खाता बन्द हो गया। इसलिये सरकार से आये हुए पैसे भी नही निकाल सके। दुमंजिला मकान होने के कारण शर्म के मारे किसी सामाजिक संस्था से भी मदद नही मांग सकते थे। कल से जब कोई रास्ता नहीं दिखा और सुबह जब पोते को भूख से रोते हुए देखा तो सारी शर्म एक किनारे रख कर 112 डायल कर दिया।

इन दीवारों ने हमको अमीर तो बना दिया साहब, पर अंदर से खोखला कर दिया हैं। मजदूरी कर नहीं सकते थे और आमदनी इतनी कभी हुई नही कि बैंक में इतना जोड़ लेते कि कुछ दिन बैठकर जीवन व्यतीत कर लेते।

अब आप ही बताओ! मैं क्या करता, कहते हुए मोहन जी फफक पड़े

सुरेश को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले। वो चुपचाप गाड़ी तक गया और लंच पैकेट निकालने लगा। तभी उसे याद आया कि उसकी पत्नी ने कल राशन व घर का जो भी सामान मंगवाया था वो कल से घर न जा पाने के कारण डिग्गी में ही पड़ा हुआ है।

उसने डिग्गी खोली, सामान निकाला और लंच पैकेट के साथ साथ सारा सामान मोहन के गेट पर रखा और बिना कुछ बोले गाड़ी में आकर बैठ गया

गाड़ी फिर किसी ऐसे ही भाग्यहीन अमीर का घर ढूंढने जा रही थी। ये आज के मध्यम वर्ग की वास्तविक स्थिति है।

यह तो एक मध्यम वर्ग की कहानी हैं जिनके लिए सामाजिक प्रतिष्ठा बचाना मुश्किल हो रहा हैं, मध्यमवर्ग के पास अपना घर है, गाड़ी है, लेकिन खाने-पीने का सामान कम होता जा रहा है और अब आगे खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं। जो मध्यमवर्ग के लोग किराए के मकानों में रहते हैं, जिनके पास किराए की दुकानें हैं, उनके लिए यह और भी मुश्किल वाला समय हैं।

कामबंदी और लॉकडाउन के बाद रोज़ कमाने, रोज़ खानेवाला वर्ग, बहुतो के पास तो खाने को नहीं हैं और सात-आठ फ़ुट लंबी और शायद उससे भी कम चौड़ी झुग्गियों में रहनेवालों के लिए Social Distancing महज़ एक शब्द है परन्तु सरकार कोशिश कर रही हैं Quarantine centers बनवा रही हैं, अगर हम सब जागरूक रहे तो हम कोरोना को बहुत जल्द हरा देंगे

अच्छी खबर यह हैं कि भारत में यह प्रकोप कम हैं और धीरे धीरे कम हो रहा हैं, आओ हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें कि मानव जाति को शीघ्र से शीघ्र इस महामारी Corona virus के संकट से मुक्ति मिले।

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