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ज्ञानी और अज्ञानी में क्या अंतर है? Wisdom level

Gyani & Agyani

एक सन्यासी थे, वो बहुत सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने बहुत साल एकांतवास किया है।
शुरु से ही वो एक अलग सोच के आदमी थे, हमेशा हर चीज को, हर घटना को, हर Situation को एक अलग नजरिए, एक अलग Perspective से देखते थे।

एक Sharp mind होने के कारण उनका Wisdom level भी बाकी लोगों से काफी हट के था, काफी छोटी उम्र में उनकी रुचि आध्यात्म की ओर हो गई थी।

आध्यात्म में उनका मार्गदर्शन देने के लिए एक गुरु थे, जगद गुरु कृपालु महाराज। इन्हीं के सानिध्य में उनको शिक्षा दीक्षा मिली है।

गुरु जी का जो आश्रम था, वहीं कई साल रहे, ध्यान किए, आत्म-ज्ञान प्राप्त किया और गुरु जी की आज्ञा लेकर ज्ञान का प्रचार प्रसार करने निकल पड़े।

ये जो बात है, ये बहुत पुरानी बात नहीं है। ये बात लगभग 1980 दशक के आस पास की हैं।
ये जो सन्यासी है इनका नाम है आनंद गुरु

इनको अपनी 35 वर्ष की अवस्था में आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई।
इनको किसी से भी कुछ लेना देना नहीं था। ये ध्यान में बैठते थे, तो कई कई दिन ध्यान में ही मग्न रहते थे।
इनसे मिलना हो तो लोगों को दक्षिण की पहाड़ों में कई दिन भटकने पर किसी चट्टान पर मग्न मिल जाते थे।

वो कहीं नहीं गए… लेकिन धीरे-धीरे इनका नाम आस पास के गांवों में, शहरों में होने लगा।
अब उनके पास दूर दूर से लोग आने लगे। लोगों की भीड़ जमा होने लगी।
तो आंनद गुरु ने एक काम किया, वो अपने गुरु जी के पास गए और गुरुजी से सलाह ली ।

गुरु जी ने उनको सलाह दी कि
“आनंद, देखो अब वक़्त आ गया है कि तुम लोगों के बीच जाओ, उनकी समस्याओं को सुनो, उनकी परेशानियों को दूर करो, लोगों को आत्मज्ञान का मंत्र दो।

लोगों की बुद्धि विवेक को तुम्हारे जैसे सिद्ध पुरुष की जरूरत है।
तुमने वर्षों तपस्या कर के जो इस संसार के बारे में, इस जीवन के बारे में, इस ब्रह्माण्ड के बारे में, अपने ज्ञान को लोगों को दो, उनका जीवन सुधारो।

जाओ, अपने कर्तव्य में महारत हासिल करो।”

गुरु जी की बातें सुनने के बाद आंनद गुरु ने कुछ अपने मित्रों की सहायता से एक संस्था का गठन किया।
Redefine living of people

इस फाउंडेशन के शुरू होते ही बहुत लोग जुड़ते गए, शुरुआती साल में इस फाउंडेशन की कई सारी शाखाएं देश विदेश में खुल गई।

अब Redefine living of people लोगों को मेडिटेशन सिखाता है, योग सिखाता है। स्कूल, कॉलेज में भी इसके कार्यक्रम होते है।

अब जहां भी गुरु जी का सेमिनार या कोई सेशन होता है, तो बहुत सारे लोग आते है, अपनी समस्या बताते है और गुरु जी उनको इसका समाधान बताते है।

आनंद गुरु अपने Foundation द्वारा Organized एक सेशन attend करने गए थे।
सेशन के last में उनसे एक व्यक्ति उठता है और एक प्रश्न करता है..

“गुरु जी, ज्ञानी और अज्ञानी में क्या अंतर है? एक अज्ञानी पुरुष और एक ज्ञानी की विशेषता क्या क्या होती है?”

आंनद गुरु पहले बड़े ध्यान से उसके व्यक्ति के प्रश्नों को सुना और उसके बाद बोलना शुरू किया।
“देखिए, सबसे पहले एक बात का ध्यान दीजिए, हम सब जब इस दुनिया में आए, उसे समय पर ना कोई अज्ञानी था और ना कोई मूर्ख था। हम सब शुद्ध हृदय, शांत मन लेकर पैदा होते है। उस समय पर हमको सिर्फ कुछ ऊर्जा की जरूरत होती है, जो ऊर्जा हमें अपनी मां से प्राप्त हो जाती है। उस समय अच्छा क्या होता है, बुरा क्या होता है? ये बिना मतलब की बात है।

एकदम Pure Mind होता है। हां, माना उस टाइम कुछ Genes, कुछ Neurology का अपना योगदान होता है, फिर भी हम किसी जन्मते बच्चे को ये नहीं बोल सकते न, कि ये ज्ञानी बच्चा है, ये अज्ञानी बच्चा है, ऐसा कुछ भी किसी के दिमाग में नहीं होता है।

उस समय हम स्वभाव के आधार पर बात करते है, किसी बच्चे का स्वभाव देख कर हम बोलते है, ये चंचल बच्चा है, ये शांत बच्चा है, कोई बचपन में अपने कन्हैया की तरह नटखट होता है, तो कोई बच्चा अपने राम की तरह ही शांत होता है।

और हम सब भी बचपन में ऐसे ही होते है। हमारे अंदर कोई भी बात की समझ और ना समझ जैसी कोई भी चीज नहीं होती है।

अब बात आती है कि हम ज्ञानी पुरुष किसे कहते है?
और एक ज्ञानी पुरुष की क्या पहचान है?

देखिए, यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उतना सरल तो नहीं है।
इस ज्ञान को समझने के लिए हमको अध्यात्म को भी समझना जरूरी होता है। अध्यात्म आखिर क्या है?

कुछ आत्मा के बारे में भी पता होना चाहिए
भगवद गीता में श्री कृष्ण ने बहुत सरल शब्दों में आत्मा के बारे में बताया है। श्री कृष्ण कहते है – हे अर्जुन, तू जानना चाहता है न, आत्मा क्या है?
तो इतना जान लो, आत्माएं कभी मरती नहीं है, हमारे स्थूल शरीर के ऊपर होती है, हमारी इन्द्रियां और हमारी इन्द्रियां का स्वामी होता है मन और मन को जो कंट्रोल करता है वो होती है हमारी बुद्धि और जो इस बुद्धि से भी परे होता है, वो होती है आत्मा।

कठोपनिषद में भी जब नचिकेता अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए यमराज के पास जाते है और यमराज के सामने आने पर प्रश्न रखते है और उनसे पूछते है कि आत्मा क्या है?

तो यमराज बड़े सरल और अच्छे तरीके से समझाते है।
कहते है, ‘ हे नचिकेता, तुम शरीर को एक रथ की भांति समझो और अपनी पांचों इंद्रियों को रथ के पांच घोड़े की तरह देखो और मन को रथ का सारथी समझो और जो इस रथ पर जो विराजमान होता है, वहीं आत्मा होती है।

संसार का बंधन किस कारण से है? अज्ञानता से।

अज्ञानता कैसी? निज स्वरूप की।

अज्ञानता जाएं तो किस तरह से जाएं? ज्ञान से, निज स्वरूप के ज्ञान से। ‘मैं कौन हूँ’, इसकी पहचान से।

जो निरंतर आत्मा में ही रहते हैं, जिनकी निरंतर स्वपरिणति होती है, जिन्हें इस संसार की कोई भी विनाशी चीज नहीं चाहिये, कंचन-कामिनी, कीर्ति, मान, शिष्य की भीख जिन्हें नहीं हैं, वे है ‘ज्ञानी पुरुष’। ऐसे ‘ज्ञानी पुरुष’ मिल जाएं तो उनके चरणों में सर्वभाव समर्पित करके आत्मा प्राप्त कर लेनी चाहिये।

स्वयं अपने आप आत्मज्ञान पाना अति अति कठिन है, लेकिन ‘ज्ञानी पुरुष’ मिल जाये तो अति अति सरल है। लेकिन ‘ज्ञानी पुरुष’ की उपस्थिति में भी ज्ञानी पुरुष की पहचान सामान्य जन को होना बहुत कठिन है। जौहरी होगा वह तो हीरे को परख लेगा ही किन्तु ‘ज्ञानी पुरुष’ को पहचानने वाले जौहरी कितने?

अज्ञानी कौन होता है?

आपको किसी भी विषय में कुछ मालूम नहीं है, इसका मतलब यह नहीं होता है कि आप अज्ञानी है।
अज्ञानी होने का मतलब होता है, किसी विषय के बारे में सही जानकारी का न होना।

अज्ञानी वो पुरुष है जो सही जानकारी ना रख कर किसी भी विषय के बारे में गलत जानकारी रखता है।
जिसमें अपने आप पर अभिमान हो, जो अपने आप को सबसे बढ़ कर मानता हो।
जिसको अपनी बुध्दि पर घमंड हो। जो व्यक्ति दूसरे लोगों को नीचा दिखाता है, अन्य लोगों के प्रति Humble है ।

वो व्यक्ति दिशाविहीन जीवन जीता है, जिसके पास उसके जीने का कोई मकसद नहीं होता है। जो बिना लक्ष्य लिए, बिना उद्देश्य के ही जिए जाता है।

जो अहंकारी हो, जो घमंडी हो, जिसको अपने जुबान पर कंट्रोल ना हो, जो हमेशा काम वासना में डूबा रहता है, जिसकी बुध्दि विपरीत दिशा में चलती है, जो मानवता के विकास के विषय में नहीं, हमेशा मानवता के विनाश के विषय में सोचता है।

ऐसे लोगों को ही अज्ञानी पुरुष की कोटि में रखा जाता है।
श्रीमद भगवद गीता में ऐसे लोगो को तमस गुणों वाला बताया गया है।

क्या अज्ञानी होना गलत है?

अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है।

जब हम किसी सिद्ध पुरुष के सानिध्य में आए और इस सिद्ध पुरुष ने हमारे अवगुणों को बता कर यह सिद्ध कर दिया है, हमारे अंदर अवगुण है, उसके बावजूद भी अगर हम अपने गुणों का त्याग किए हुए है और अवगुणों को धारण किये हुए हैं।
तब ये गलत है।

जब कोई आकर हमें यह बताता है कि जो तुमने धारण किया हैं, वो ज्ञान का नहीं, अज्ञान का चोला है, तुम्हारे इस अज्ञान के चोले से बदबू आ रही है। अब तुमको इस अज्ञान के चोले को उतार कर ज्ञान का मखमली चोला धारण करना चाहिए।
तो हमें फौरन उस की बातों को मानते हुए,अज्ञान का चोला उतार कर ज्ञान का चोला धारण कर लेना चाहिए।

ज्ञान के मार्ग पर बढ़ चलना चाहिए। इतिहास गवाह है कि एक समय पर हर ज्ञानी पुरुष एक अज्ञानी था।
वो ज्ञानी इसलिए बन पाया क्योकि उसने अपनी अज्ञान के चोले को उतार दिया है और ज्ञान के चोले को धारण कर लिया।

जीवन में कैसी भी परिस्थितियां है, आगे बढ़ते रहना चाहिए, रुकना नहीं चाहिए।
और ज्ञानी पुरुष नदी के समान हमेशा आगे बढ़ते है, क्योकि उनको पता है कि आगे बढ़ने से हमेशा नयापन बरकरार रहता है।

और अज्ञानी पुरुष तालाब की तरह एक जगह पर स्थिर रहते है, परिवर्तन नहीं करते है और तालाब का पानी बहुत जल्द अपना नयापन खो देता है।

अतः सज्जनों, नदी की तरह अपने जीवन हमेशा नयापन को बनाए रखिए।

उठिए अज्ञान का चोला उतारिए, और ज्ञान का चोला धारण कीजिए। याद रखे, अज्ञानी अपने अज्ञान के कारण बन्धन में पड़ता है और ज्ञानी अपने यथार्थ ज्ञान के कारण हमेशा मुक्त रहता है।

बुराई अज्ञानी होने में नहीं,बुराई अज्ञानी बने रहने में होती है।

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