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लोग कहते हैं तुम नहीं कर सकते

Motivational & Inspirational Hindi Kahani, Chef Hindi Kahani, Self Confidence Kahani

आपने जीवन में अनेक ऐसी कहानियाँ पढ़ी होंगी और अनुभव किया होगा कि व्यक्ति का आत्मविश्वास गिराकर उसे आगे बढ़ने से रोकना दुनिया का रिवाज बन चुका है। इसलिए चाहे सपने देखने वाले के पास कितना ही अनुभव और खुद पर भरोसा क्यों न हो। फिर भी “तुम नहीं कर सकते” यह कहकर लोग उसके सपने को चूर चूर करने की जी तोड़ कोशिश करते हैं।

पर यह भी सच्चाई है कि अपने लक्ष्य को हासिल करने वाले लोगों को खुद पर इतना विश्वास पर इतना धैर्य होता है कि, उन्हें कहने वालों कि किसी भी बात से फर्क तक नहीं पड़ता और वे लगातार अपनी मंजिल का सफर जारी रखते हैं।

आज हम इस कहानी में उस बच्चे के बारे में पढेंगे, जिसे सभी लोग यहाँ तक कि उसके अध्यापक भी अक्सर यह कहा करते थे, कि तुम कुछ भी नहीं कर सकते।

फिर भी वह बच्चा अपने अध्यापक की बातों को अनदेखा कर अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाता है।

उस छोटे से बच्चे का नाम गोपाल था। गोपाल के पिता एक कंपनी में मजदूर की नौकरी करते थे और अपने परिवार का खर्चा चलाया करते थे। गोपाल के दो छोटे भाई और एक छोटी बहन थी, जिस कारण गोपाल की मां के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारियां उसी के पास आती थी क्योंकि गोपाल के पिता दूर शहर में नौकरी करते थे।

और मां अक्सर कमजोर स्वास्थ्य के चलते बीमार रहा करती थी। गोपाल का मन पढ़ाई लिखाई करने का बिल्कुल भी नहीं था। फिर भी वह मजबूरी में अपने भाई बहन के बारे में सोच कर पढ़ता था।

पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से गोपाल ही घर में सुबह और शाम का भोजन बनाया करता था।
उसे धीरे-धीरे खाना बनाने में इंटरेस्ट आने लगा उसके छोटे भाई बहन हमेशा उसके बनाएं गये खाने में कमियां बताते थे और गोपाल अगली बार उन कमियों को दूर करता था। ऐसे ही रोज खाना बनाते बनाते गोपाल अब बहुत ही अच्छा खाना बनाने लग गया था।

धीरे-धीरे गोपाल की उम्र के साथ-साथ उसकी घर की जिम्मेदारियां भी बढ़ती गई जिससे उसे पढने का समय बिल्कुल भी नहीं मिल पाता इस कारण गोपाल अपनी क्लास में सबसे कमजोर छात्रों में गिना जाने लगा।

1 दिन गोपाल के टीचरों ने गोपाल की क्लास में सभी बच्चों से एक-एक करके उनका लक्ष्य पूछा, गोपाल के सहपाठियों में से, किसी ने पुलिस तो किसी ने डॉक्टर और किसी ने प्रोफेसर तो किसी ने वकील बनने का लक्ष्य बताया।

जब गोपाल की बारी आई तो गोपाल ने कहा मैं एक अच्छा शेफ बनना चाहता हूँ। यहाँ सुनकर गोपाल के टीचर ने कहा अच्छा।

जरा chef की फुल फॉर्म तो बताओ? पर जवाब पता न होने की वजह से गोपाल कुछ पल के लिए यूँ ही खड़ा रहा, उसे यूँ देखकर गोपाल के टीचर तथा उसके साथियों ने उसकी जी भर के मजाक उड़ाई।

टीचर द्वारा गोपाल को कहा गया कि तू जीवन में अच्छा शेफ क्या, तू कुछ भी नहीं कर सकता।

गोपाल के दोस्तों से भी अक्सर उसे यही सुनने को मिलता था पर अक्सर गोपाल उनकी छोटी मोटी बातों पर ध्यान नहीं दिया करता था।वह अपने प्रत्येक काम को जिम्मेदारी के साथ पूरा करता था, और खुद पर विश्वास जताता था।

जिम्मेदारियां अधिक होने के कारण गोपाल महीनों में बहुत कम ही स्कूल जाया करता और लोग गोपाल को देखकर आपस में ही बातें करते थे कि इस बच्चे का कुछ भी नहीं हो सकता और यह कुछ नहीं कर सकता। जब गोपाल इन बातों को सुनता तो उसे बहुत ही बुरा लगता था।

गोपाल की उम्र 16 साल हो चुकी थी, ओपन स्कूल से पढ़ाई करने वाले गोपाल की हाई स्कूल की परीक्षाओं के फॉर्म भरे जाने लगे तो गोपाल के टीचर उसे इस फॉर्म भरने से रोक रहे थे। उनका मानना था कि गोपाल इस परीक्षा को पास नहीं कर पाएगा और गोपाल के साथ वाले भी उससे दसवीं के फार्म भरने के लिए मना कर रहे थे।

गोपाल के साथ वालों और टीचरों का मानना था कि गोपाल दसवीं की परीक्षा पास कर ही नहीं सकता।

जैसे ही यह बात गोपाल के छोटे भाई बहनों को पता चली तो उन्होंने घर के सभी मुख्य कार्यों का जिम्मा खुद के सिर पर ले लिया और अपने बड़े भाई गोपाल को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। गोपाल अपने छोटे भाई बहनों के अपने प्रति प्रेम और स्नेह देखकर गोपाल दिन-रात पढ़ाई करने लगा।

गोपाल की मां ने भी गोपाल को पढ़ने के लिए विवश कर दिया। गोपाल ने दसवीं के फॉर्म भरे और परीक्षाओं की तैयारी करने लगा।

जब गोपाल का दसवीं का रिजल्ट आया तो गोपाल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण था। गोपाल अपना रिजल्ट देख कर इतना खुश हुआ कि उसका खुद का विश्वास दुगना हो गया और उसे एहसास हो गया कि गोपाल भी कुछ कर सकता है।

गोपाल को यह ज्ञान भली-भांति हो गया कि अक्सर लोग उसे टोकते रहते हैं परंतु खुद का विश्वास गोपाल को एक दिन उसकी मंजिल तक पहुंचा सकता है।

गोपाल के टीचरों को अभी भी यकीन नहीं होता कि वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो सकता है। गोपाल के टीचर उसे अभी भी यही बोलते थे कि, तु कुछ भी नहीं कर सकता और लगातार उसके आत्मविश्वास को तोड़ने का प्रयास करते थे।

धीरे-धीरे गोपाल को खुद की मेहनत पर यकीन होने लगा था और उसके परिवार वाले भी उसका पूरा सहयोग करते थे ऐसे ही गोपाल ने मेहनत करते हुए और जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की।

और अपने पिताजी का सहयोग करने तथा अपनी मंजिल को पाने के लिए अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा उसने शहर के एक छोटे से होटल में जॉब करना प्रारंभ कर दिया।

1 दिन गोपाल को उसके पुराने कुछ साथी मिले जिनमें से कुछ जॉब करते थे और कुछ लोग यूं ही आवारा घूमते थे। वे लोग गोपाल को भी छोटी सी कंपनी में अपने साथ नौकरी करने को कहते हैं। गोपाल के मना करने पर फिर वे लोग वही पुरानी बातें कहते हैं, कि तु कुछ नहीं कर सकता।

लेकिन उसे खुद पर यकीन होता है और वह जानता था एक दिन वह बहुत बड़ा आदमी बनेगा क्योंकि गोपाल को पता है उसने अपनी लाइफ में एक सही फील्ड का चयन किया है और वह अपनी मंजिल के रास्ते में कदम रख चुका है।

जब गोपाल होटल में जॉब करने के लिए जाता है तो यहां से गोपाल की जिंदगी का नया पड़ाव शुरू होता है।

गोपाल को खाना बनाना पहले से ही पसंद था। इसी कारण गोपाल ने होटल में खाना बनाने का काम करने का फैसला लिया और उसके द्वारा बनाये गये स्वादिष्ट भोजन में उसकी रूचि दिखाई भी देती थी। अब गोपाल होटल में विभिन्न प्रकार की रेसिपी बनाना सीख गया गोपाल के मालिक का कहना था कि जब से गोपाल होटल में आया उसके मालिक की बहुत ज्यादा कमाई होने लगी।

इसका कारण गोपाल द्वारा मन लगाकर बनाया गया खाना जो की स्वादिष्ट होता था और प्रत्येक ग्राहक के मुंह में पानी लाता था। इसी कारण ग्राहक गोपाल के होटल की ओर आकर्षित होने लगे।

Chef ki Hindi Kahani Motivational

गोपाल का मालिक गोपाल को अपने होटल के लिए लक्की समझता था और गोपाल भी प्रत्येक काम को मन लगाकर करता था गोपाल का मालिक भी गोपाल के कार्यों को देखकर खुश रहता था और हमेशा गोपाल का सम्मान करता था।

अब गोपाल के पिताजी अपनी नौकरी भी आराम से करते थे और गोपाल के छोटे भाई बहन भी खुशी-खुशी स्कूल जाते थे। गोपाल और उसके पिता ने पैसा इकट्ठा करके गोपाल की मां का ऑपरेशन भी कर लिया उसकी मां का भी स्वास्थ्य अब बेहतर होने लगा था।

1 दिन गोपाल के मालिक ने गोपाल को अपने बड़े होटल में प्रमोशन करने की ठानी गोपाल के मालिक ने जब यह बात गोपाल से कहीं तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। क्योंकि गोपाल को पता था, कि उस बड़े होटल में उसे खाने में भिन्न प्रकार की चीजें नाने का मौका मिल जाएगा और वह ये भी जानता था ,कि उस होटल में उसे इस होटल की तुलना में पैसे भी अधिक मिलेंगे, और गोपाल बड़े होटल में जाने को तैयार हो गया।

गोपाल इस बड़े होटल में लगभग सब कुछ बनाना सीख चुका था, एक दिन अचानक गोपाल के मालिक का दोस्त उस होटल में गोपाल के मालिक से मिलने को पहुंचा। उसकी नजर गोपाल पर पहुंची और गोपाल एकदम मन लगाकर अपना कार्य मैं बिजी था।

उस मालिक ने गोपाल के हाथों से बनाया खाना खाया और वह गोपाल द्वारा बनाए गए उस खाने से इतना आकर्षित हुआ कि वह गोपाल को अपने फाइव स्टार होटल में ले जाने को विवश हो गया।

गोपाल के मालिक ने जब यह बात गोपाल से बोली तो गोपाल तुरंत हां बोल पड़ा। अब गोपाल बहुत खुश था क्योंकि उसे फाइव स्टार होटल में chef बनने का पूरा मौका मिल चुका था।

गोपाल को भी अपनी मंजिल का रास्ता साफ दिखाई देने लग गया था और वह फाइव स्टार होटल में काम करने लगा। गोपाल इस होटल में भी मन लगाकर प्रत्येक कार्य करता था और अपने मालिक को हमेशा सम्मान देता था। गोपाल ही अपने मालिक की खुसी के प्रति जिम्मेदार था।

अब गोपाल एक फाइव स्टार होटल में chef था उसको अच्छा खासा वेतन भी मिल रहा था। गोपाल अब अपने भाई बहनों को भी अच्छे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहा था और उसके माता-पिता एक कुशल जिंदगी जी रहे थे और गोपाल भी अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे ढंग से व आराम से निभा रहा था।

1 दिन गोपाल के टीचर अपने बच्चों के साथ खाना खाने फाइव स्टार होटल में जाते हैं। उनके बच्चों और उन्हें वहां का खाना बहुत ही पसंद आता है वह वेटर से उस आदमी को बुलाने को कहते हैं जिसने वो खाना बनाया था।

जब वेटर उस आदमी को बुलाता है तो वह आदमी गोपाल होता है और गोपाल को देखते ही उस अध्यापक को बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है क्योंकि उनका कहना था कि गोपाल कुछ कर ही नहीं सकता, और अध्यापक उन पुराने शब्दों के लिए क्षमा मांगते हैं। लेकिन मेहनती, धैर्यवान, और दयाशील गोपाल अध्यापक को अपनी गलती का पछतावा होने पर उन्हें मांफ कर देता है।

सीख- हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए खुद पर विश्वास होना चाहिए ,न कि दूसरों की बातों को सुनकर खुद का लक्ष्य ही बदल लेना चाहिए ।

जब इंसान को खुद पर अटूट विशवास होता है तो लोगों के लाख कहने पर भी उसे गोपाल की तरह एक न एक दिन अपनी मंजिल मिल ही जाती है|

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