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निष्ठा रखकर समझो रमज़ान, समझ जाओगे

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दोस्तों, एक बहुत ही साधारण और महत्वपूर्ण बात पूछता हूँ?
सामने वाले व्यक्ति के विषय में आप कैसा सोचते हैं यह काफी कुछ इस बात पर depend करता हैं कि आपके साथ उसका relation कैसा हैं?
आप उसको कितना महत्व देते हैं?

यदि आपके दिमाग में हैं कि सामने वाला अच्छा नहीं हैं, उसका concept जटिल हैं या फिर वह उलझा हुआ इन्सान हैं, तो फिर वह भला इन्सान चाहे, कितनी ही कोशिश क्यों न कर ले, आपको कितनी भी अच्छी बातें और भले की बात ही क्यों न बताएं, आपको अच्छा नहीं लगेगा, उसकी बातें आपके दिमाग में से Bounce हो जाएगी, और आप एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल देंगे, हैं ना?

ऐसा ही होता हैं
यानी कि अगर मैं सीधे-सीधे कहूं कि किसी भी चीज को जानने के लिए और समझने के लिए सामने वाले के प्रति निष्ठा रखना बहुत ज्यादा जरुरी है।

बिना निष्ठा रखे, आप किसी भी concept को नहीं समझ सकते।

महाभारत में भी इस बात को कहा गया है। महाभारत का एक बहुत ही सुन्दर प्रसंग है जिसमें भी इस बात का उल्लेख मिलता है।

प्रसंग कुछ इस प्रकार से हैं..
जब महाभारत युध्द समाप्त हो गया था तब धर्मराज युधिष्ठिर का मन भी विचलित हो रहने लगा। वह सोचने लगे कि अपने परिजनों को खोकर आखिर हमें क्या हासिल हो गया, क्यों नहीं मैं उनके साथ ही बिना युद्ध किये रह लेता, क्यों चाहिए था आखिर मुझे राजपाठ, अपने परिजनों को अग्नि के हवाले करके आखिर कौनसा सुख प्राप्त हो गया मुझे?

भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर की इस बात को जान गए थे कि जिस प्रकार युद्ध के शुरुआत में मोह-माया ने अर्जुन को अपने वश में किया था ठीक उसी प्रकार उसने अब बड़े भैया को भी अपने अधीन कर लिया हैं, यह काफी विषम परिस्थति हैं।

तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाने की लाख कोशिश करी, लेकिन उनको श्रीकृष्ण का उपदेश उनको समझ में नहीं आया।
तब श्रीकृष्ण उनको भीष्म पितामह के समक्ष ले गए और अपने संशय बताने के लिए कहा, आखिर में वही बात और ज्ञान जो श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को काफी बार बताई, वही बात युधिष्ठिर के भीष्म पितामह के मुख से सुनने से उनका संशय दूर हो गया।

अब अगर बात को समझे तो वही निष्ठा और विश्वास वाली बात हैं।

युधिष्ठिर के मन में श्रीकृष्ण से ज्यादा भीष्म पितामह में निष्ठा थी, इसलिए वही बात युधिष्ठिर को भीष्म पितामह के द्वारा समझ में आई।

ऐसा ही एक और Example और वाकया मैं आपको बताता हूँ, जो कि मेरे साथ घटित हुआ हैं, एक दिन की बात हैं मेरे Class का एक लड़का रमज़ान मेरे पास आया और मुझसे गणित का एक सवाल पूछा, मैंने उसको बड़ी ही बारीकी से समझाने का प्रयास किया।
उस सवाल का answer भी लाकर दिखा दिया, तब भी वह कह रहा था कि मुझे समझ में नहीं आया तभी अमित आया और उसी सवाल को same to same मेरे तरीके से ही बताया, तब रमजान के कहा कि

राज़ दिमाग को सटका कर रख देता हैं“, ऐसा अकसर होता था कोई भी सवाल जब मैं उसको समझाता और बताता था तो उसको समझ में नहीं आता था और रमजान कहता था कि “अमित एक ही बार में मुझे समझा देता हैं।

मैंने इस चीज को काफी गंभीरता से लिया और सोचा की आखिर क्या बात हैं कि आखिर रमजान को मेरा समझाया हुआ समझ में नहीं आता हैं। तब मैंने इसी चीज को पाया कि मैं और मेरे जैसे हजारो शख्श रमजान को तब तक नहीं समझा सकते हैं जब तक उसको यह feel न हो जाएँ, कि इनका समझाना भी उसके समझ में आ सकता हैं।

यह चीज भी शायद रमजान के दिमाग में थी कि अमित का समझाया दिमाग में आ सकता हैं लेकिन राज के द्वारा समझाया समझ में नहीं आ सकता और न ही आएगा।

इसलिए रमजान को मैंने कहा कि
“निष्ठा रखकर समझो रमजान समझ जाओगे”
अत: किसी भी चीज को समझने के लिए सामने वाले के प्रति निष्ठा और विश्वास रखना बहुत ज्यादा जरुरी हैं।

– राज यादव ( Raj Yadav )

हम आभारी हैं “राजकुमार यादव” जी के जिन्होंने इतनी सुन्दर कहानी और महाभारत का एक बहुत ही सुन्दर प्रसंग हमें भेजा हैं AchhiBaatein.Com में PUBLISH करवाने के लिए, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, AchhBaatein.Com टीम आशा करती हैं की आप भविष्य में प्रगति के पथ पर अग्रसर हो और खूब सफलता प्राप्त करों।

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