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मुस्कराइए.. कि तनाव हार रहा हैं

ऐसा कौन हैं जिसे तनाव(stress) नहीं होता? शायद कोई नहीं तनाव तो दस्तक देगा ही, लेकिन उसके लिए दरवाजा खोल लेना और उसे पाल लेना समझदारी नहीं हैं

तनाव कई रूपों में सामने आता रहा है – पारिवारिक तनाव, आर्थिक तनाव, रोजगार का तनाव, सामाजिक तनाव, बच्चों की पढ़ाई व परीक्षा के परिणाम का तनाव। जब व्यक्ति तनावग्रस्त होता है तो उसके साथ उसका परिवार भी प्रभावित होता है। तनाव शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों का मूल स्रोत है।

प्रवृत्ति में ही आशावाद या निराशावाद के बीज छिपे होते हैं। यह सही है कि हर समय हर कोई खुश नहीं रह सकता है। लेकिन कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी खुशियां निचोड़ लेने की क्षमता आप में होनी ही चाहिए। तनाव पालना यानी कुछ नहीं करना, सिर्फ चिंतित रहना, दुःख मानना और घुटते रहना।

दरअसल तनाव तो मुखौटा हैं, उसके पीछे हमारी ही नकारात्मक भावनाएं होती हैं। तनाव से निबटना हैं तो सबसे पहले यह जानना होगा कि उसके पीछे कौनसा भाव हैं- असुरक्षा, निराशा, खिन्नता, डर, घबराहट, शर्मिंदगी, असहायता, दुःख, अमान्यता या अवहेलना, क्रोध चिंता सन्देह अपराधबोध या फिर संकोच? तनाव की जड़ यानि अपनी भावना को पकड़ लेने के बाद उसे उखाड़ना सरल हो जायेगा।

क्या यह किसी को खो देने या कुछ नष्ट हो जाने का दुःख हैं?

परिवार में किसी प्रिय की मृत्यु या कोई बड़ी दुर्घटना हो जाने पर ऐसा लगता है कि मानो दुखो का पहाड़ टूट गया हो किंतु समय गुजरने के साथ-साथ इसका प्रभाव कम होता जाता है। धीरे-धीरे हम इस बात को स्वीकार करने लगते हैं कि इस तरह की घटनाओं को टाला नहीं जा सकता और यह तो जीवन का सत्य हैं जो भी सभी को देखना पड़ता हैं और सभी के साथ होता हैं।

मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ या चीजे इस ढ़ंग से ही क्यों हुई, यह सोचना छोड़ दे जीवन में अनुमति की कला सीखे, यानी घटनाओं को जीवन का अंग मानें कम से कम उन घटनाओं को जिससे दुसरे भी न बच पायें हो।

 क्या आपको आने वाले समय की चिंता सताएं जा रही हैं।

आपकी सबसे बुरी कल्पना भी आपके काम आएँगी, बशर्तें आप उससे निबटने की तैयारी करें। बेशक हमारी चिंताए वास्तविकता में बदल सकती हैं, लेकिन मत भूलिए कि 80 फीसदी मामलो में हम बुरे नतीजो का सामना अपनी पूर्व सोच से कहीं बेहतर तरीके से करते हैं।

 क्या यह किसी घटना से उपजी खीज, निराशा, दुःख या अपमान के कारण हैं?

Lauren E Miller कहती हैं कि आप जीवन में घटनाएं तय नहीं कर सकते, लेकिन उन पर कैसी प्रतिक्रियाएं की जानी चाहिएं यह तो आपके हाथ में ही हैं बीमार पड़कर या तो आप निराश हो जाते हैं या फिर नियमित जीवनशैली अपनाने और रोग को बढ़ने न देने का संकल्प लेते हैं। हम दूसरा विकल्प चुनते हैं तो बुरी घटना भी हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती हैं और संभावित ‘बड़े बुरे’ से बचाती हैं।

 क्या यह किसी के व्यवहार या कार्य से उपजा दुःख, अपमान या अन्याय का भाव हैं?

जाहिर हैं आप सामने वाले को नहीं बदल सकते और जिन्हें नहीं बदल सकते उनको लेकर अपने मन में नकारात्मकता पालने में कोई तुक नहीं हैं अपमान अनदेखी या अवहेलना को चुनौती के रूप में ले स्वयं को बेहतर बनाने की कोशिश करें।

 क्या यह जारी प्रसंग से उत्पन्न चिंता कष्ट या हताशा हैं?

यानी आपकी मुश्किल समाप्त नहीं हुई हैं, चिंता बनी हुई हैं ऐसे में यह याद रखे कि ‘यह भी गुजर जायेगा’ कोई भी दुर्भाग्य स्थाई नहीं होता, वक्त अवश्य ही बदलता हैं।

 क्या आपको किसी काम से डर लग रहा हैं?

तो डर से भागे नहीं, उसे पकड़ ले तनाव तब होता हैं जब हम भागना चाहते हैं, इससे अपराध बोध घेरता हैं जो तनाव को विजयी बनाता हैं। ध्यान दे, जब आप किसी काम को करने का हौंसला बना लेते हैं तो तनाव नहीं होता बल्कि दिमाग चलने लगता हैं बहरहाल आप भाग भी सकते हैं यानी काम से इंकार भी कर सकते हैं बशर्ते आपको अपराध-बोध या उस इनकार से जुड़े अन्य डर न सताएं।

Miller कहती हैं कि अपना सम्पूर्ण नजरिया बदलें। जीवन को अवसरों के विधालय के रूप में देखे, न कि निर्णयों के न्यायालय के रूप में। हर परिस्थीती व्यक्ति घटना को सीखने के दृष्टिकोण से देखें। इससे न केवल तनाव कम होगा, बल्कि संतुष्टि और खुशहाली का अहसास भी बढेगा।

 क्या किसी भविष्यवक्ता के आपके भविष्य के बारें में कुछ शंका प्रकट की हैं

कभी-कभी हम अपने राशिफल में की गई विपरीत भविष्यवाणी को पढ़कर निराश हो जाते हैं। इन बातों पर विश्वास करने की जगह खुद पर और अपने सपनों पर यकीन करें। आपके अन्दर अपने भाग्य का निर्माण करने की क्षमता होती है। “गिलास में आधे भरे पानी को देखें न कि आधे खाली गिलास को” मैं कर सकता हूं बस इसे याद रखें।  आपको सफलता प्राप्त करने में कोई नहीं रोक सकता है।

…..और कुछ न सही ये तो कर ही सकते हैं।

जो कुछ हमारे साथ हुआ है वह कोई नयी बात नहीं। जब से सृष्टि की रचना हुई है तब से ऐसी या इससे भी बुरी बातें लोगों के साथ होती रही हैं। तो फिर विपरीत परिस्थिति आने पर जीवन से हारना क्यों? परमात्मा ने दुख-सुख, लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, यश-अपयश अपने हाथ में ही रखे हैं, जिसमे मनुष्य चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता।

दुःख पर केन्द्रित नज़र का फोकस बदलियें अथार्थ मन को मजबूत करना जरूरी है, क्योंकि “मन के जीते जीत है, मन के हारे हार” फिर देखिये तनाव की क्या बिसात कि फिर टिक पाएं।

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अपरोक्त POST एक पत्रिका में प्रकाशित एक लेख से ली गई हैं जिसका उद्देश्य केवल आपकों तनावमुक्त करना हैं 🙂

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