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Manage Criticism Effectively in Hindi (आलोचना प्रबंधन)

Effectively Criticism Management in Hindi – आलोचना प्रबंधन

दोस्तों, आलोचना एक ऐसी चीज हैं जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता हैं, ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं हैं जिसे इसका सामना न करना पड़ा हो। घर हो या बाहर, घर के व्यक्ति हो या बाहर/ कार्यस्थल या व्यवसाय में सहयोग करने वाले, कहीं से भी आलोचना होती ही हैं और ऐसा भी नहीं हैं कि आप गलत कार्य करोगे तो ही आलोचना होगी यह तो सही कार्य करने पर भी हो जाती हैं।

हर किसी मनुष्य के सोचने और वस्तु-स्थिति को समझने का नजरिया अलग-अलग होता हैं। अतः हमारा सोचना उनकी सोच से सैदव नहीं मिलता और आलोचना होती हैं, आलोचना का अर्थ सीधे-सीधे आपके विचारो से असहमत होना हैं अत: ये कभी न सोचें की मेरी या मेरे इस फैसले की आलोचना न होगी और अब जब आलोचना होनी ही हैं तो उससे अपने आप को किस तरह से बचाना हैं या फिर कह सकते हैं किस तरीके से अपने आपको आलोचना से व्यथित होने से बचाना हैं ये मुख्य विषय हैं।

दोस्तों एक बात हमेशा अपने दिमाग में रखें।

“कोई आप को तब तक नीचा नहीं दिखा सकता, जब तक कि स्वयं आपकी उसकें लिए सहमति न हों।”

एक बार भगवान बुद्ध के पास एक व्यक्ति पंहुचा। वह उनके प्रति इर्ष्या और गुस्से से भरा हुआ था। पहुचंते ही वह उन पर अपशब्दों और झूठे आरोपें की बौछारें करने लगा, लेकिन भगवान पर इसका कोई असर न हुआ।

वे तो पहले के समान ही शांत बने रहें, यह सब देखकर व्यक्ति को बड़ा गुस्सा आया। उसने पूछा, “तुम ऐसे शांत कैसे बने रह सकते हो जबकि मैं तो तुमको अपशब्द कह रहा हूँ।“ इस पर भगवान ने शांत स्वभाव से उत्तर दिया, अगर आपके घर कोई अतिथि आएं और आपने बड़े आदर से उनको भोजन परोसा किन्तु किसी कारणों से अगर उन्होंने भोजन ग्रहण नहीं किया, तो भोजन किसका हुआ, इस स्थिति में भोजन पर अधिकार किसका हुआ। व्यक्ति गुस्से से बोला, “मेरा हुआ और किसका हुआ।“

इसी प्रकार मैं आपके ये सब अपशब्द स्वीकार नहीं कर रहा हूँ और इस स्थिति में ये सब अपशब्द आपके हुए और मैं आपकी किसी वस्तु/शब्द के लिए क्यों व्यथित होंउं? आप ही बताएं

अत: मित्रो आलोचना से परेशान नहीं होना हैं बल्कि इनको सही ढंग से manage करना हैं।

कुछ लोग अपनी आलोचना को व्यक्तित्व का साधन मान लेते हैं और कुछ इसके शिकार बन जातें हैं कुछ को ऐसा लगता हैं कि यह जो आलोचना हो रही हैं, सहीं हैं तो वो खुद को सुधारने लग जातें हैं और कुछ लोग हताश हो जाते हैं। कुछ लोग कान बंद कर लेते हैं और कुछ लोग एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल देतें हैं।

और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो काम की बात होती हैं तो सुन लेते हैं, नहीं तो हसंकर बात को टाल देते हैं और आगें बढ़ जातें हैं।

आलोचनों को ढंग से manage किया जाएँ तो आप इसका पूरा लाभ उठा सकते हैं, और न केवल अपने व्यक्तित्व बल्कि अपने व्यवसाय के विकास की महत्वपूर्ण पूंजी बना सकते हैं।

आप कुछ भी करें लोग आपकी आलोचना का अवसर निकाल ही लेंगे अब यह सब आपके ऊपर हैं कि आप इस आलोचना से अपने आप को विश्लेषित करें या फिर घबरा कर आप मार्ग ही change कर दे या फिर चलना ही बंद कर दें।

उचित तो यह हैं कि आलोचनाओं का विश्लेषण करके आप उनसे अपने जीवन और लक्ष्य तक पहुचने के प्रयासों में सुधार कर लें, इसी को “आलोचना प्रबंधन” कहते हैं।

जब भी आपकी आलोचना हो तो सबसे पहले यह देखे की क्या वास्तव में यह बात सच हैं, इसके लिए सबसे ज्यादा जरुरी यह हैं कि आप अपने आप में विश्वस्त हों। आप अपने-आप को सबसे अच्छे तरीकें से जानते हो। आप क्या हो? क्या सोचते हो? क्या कर सकते हो? और कहाँ तक कर सकते हो? आपको आप से अच्छी तरह से कोई नहीं जान सकता, अत: इसका आलोचना का विश्लेषण करने के लिए किसी पर निर्भर न रहें।

गलती करना तो मनुष्य का स्वभाव हैं और आप भी इसी श्रेणी में हैं अतः हो सकता हैं कि आलोचना आपके गलत फैसले या कार्यप्रणाली के कारण हो रही हो।

अत: सबसे पहले किसी भी पक्ष से कुछ सुनने को मिलें तो पूरी बात सुने, फिर आत्मनिरीक्षण करें अगर आप गलत हैं तो तुरंत अपने आप को सुधारने की शुरुआत कर दें और अगर इसके विपरीत हैं को आपको आलोचना के बारें में कुछ भी सोचने क्या करने की जरुरत नहीं हैं।

निरीक्षण करें

आलोचना करने वाले का तौर-तरीका और लहजा देखिएं, कुछ लोग आपकी आलोचना केवल इर्ष्या के कारण करते हैं जबकि कुछ लोग शुभचिंतक होने के कारण।

शुभचिंतक काम बिगड़ जाने के बाद भी कुछ नहीं कहेगा बल्कि यह कहेगा की ऐसा करके देखना चाहिए था और आपके उस स्थिति से उभरने में आपकी मदद करेगा।

ईर्ष्यालु व्यक्ति काम बिगड़ जाने पर, मौका मिलते ही जले पर नमक छिड़कने आ जायेगा और आपकी टांग खीचने का कोई भी मौका नहीं चूकेगा।

सन्दर्भ को समझियें

स्वस्थ मन से आलोचना बहुत कम लोग ही करते हैं, निंदक आमतौर पर नाखुश और असंतुलित लोग ही होते हैं ऐसे लोग जो आपके मुकाबले अपने आप को कमतर समझते हैं और बेवजह इर्ष्या से भरते चले जाते हैं। कुछ लोग हितैषी भी होते हैं और उन लोगो की आलोचना में भी सलाह छिपी होती हैं, ऐसे लोग यह भी बताते हैं की आप इन कमियों को कैसे दूर कर सकते हैं।

आत्म-विश्लेषण करें

स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा हैं कि जब आप किसी क्षेत्र में बेहतर कार्य करोगे, आलोचना के शिकार हो जाओगे। जब भी आप अपने समय से आगे की बात सोचेंगे या कोई नया प्रयोग करेंगे तो आप पर प्रहार किये जायेंगे।

वह कहते हैं कि जब आप कोई नया विचार देंगे तो उसे तीन दौर से गुजरना होगा, सबसे पहले अस्वीकार, फिर उपहास और अंत में स्वीकार।

अगर आप इसे समझ लें तो अपनी आलोचना से निबटना आपके लिए आसान हो जायेगा।

जब भी कोई आपसे कुछ कहें तो सबसे पहले उसे सुने, आत्म-निरीक्षण करें और अगर पाएं कि सही हैं तो उन गलतियों को ठीक कर लें अन्यथा जाने दें।

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