Site icon AchhiBaatein.com

जो हासिल नहीं होता, बस वही याद रह जाता है बाकी देती तो बहुत कुछ है ज़िंदगी

Hindi Kahani on Luck and Zindagi par kahani

Hindi Kahani on Luck, Zindgi par kahani, जो हासिल नहीं होता, बस वही याद रह जाता है बाकी देती तो बहुत कुछ है ज़िंदगी

लेखक के शब्द

हमारी जिंदगी में हम बहुत सी चीजें देखते है। दुख-सुख, सफलता-असफलता सभी जिंदगी के एक अहम पहलू है और यह सभी चीजे एक के बाद एक इंसान की जिंदगी में आते रहते हैं। हम इंसान इस कुदरत के सबसे अजीब लेकिन अनोखी रचनाओं में से एक हैं। क्योंकि हम इंसानों में चिंतन शक्ति होती हैं।

इसीलिए हम हर चीज को काफी गहराई में सोचते समझते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हमें अपनी जिंदगी की हर चीज याद रहती है।
लेकिन कुछ पल ऐसे होते हैं जो हमारी जिंदगी में गहरी छाप छोड़ देते हैं। ऐसे पलों को हम कभी भूल नहीं पाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि हम यह क्या कह रहे हैं? आपका सोचना भी सही है लेकिन इसका जवाब आपको हम नहीं बल्कि हमारी ये कहानी देगी इसीलिए इसे पूरा पढ़ें। तभी आप हमारी बात को समझ पाएंगे।

पंजाब की गलियों में दौड़ता नन्हा सा लड़का जो हर किसी के होठों पर मुस्कान लाता था, सिर्फ एक पंजाबी मुंडा ही नहीं बल्कि रब की इबादत भी था। पता नहीं उस में ऐसा क्या जादू था। जिसे देखते ही हर कोई उसका दीवाना हो जाता था और उसे लाड लगाने लगता था। वह गांव के‌ हर चाची, चाचा, बाऊजी, बिजी से प्यार पाता रहता था। वह इतनी तेज दौड़ता था कि चीते को भी फेल कर दें। ऐसा मैं नहीं बल्कि उसके गांव वाले कहते थे।

गांव वाले अपने नन्हें शैतान को हरप्रीत कहकर पुकारते थे। हरप्रीत गांव के मुखिया जी का बेटा था। हरप्रीत वैसे तो सिर्फ 10 साल का था लेकिन बातों में अच्छे-अच्छे को पछाड़ देता था। सबसे लाड व प्यार पाने की वजह से हरप्रीत काफ़ी बदमाश हो गया था। जितना प्यारा वह खुद था! उससे ज्यादा प्यारी उसकी शरारतें हुआ करती थी। लेकिन कभी-कभी हरप्रीत गांव वालों को काफी परेशान कर देता था।

पढ़ाई की तो पूछो ही मत! पढ़ाई में तो हरप्रीत पीछे से first आता था मतलब कि वो पढ़ाई में बहुत ही ज्यादा खराब था। पढ़ाई में खराब होने के बाद भी हरप्रीत के टीचर उससे ज्यादा नाराज नहीं होते थे। क्योंकि एक तो हरप्रीत बहुत प्यारा था और साथ ही साथ वो स्पोर्ट्स में भी काफ़ी अच्छा था।

दौड़ में तो हरप्रीत अपने से बड़े उम्र के लड़कों को भी हरा देता था। इसीलिए हरप्रीत अपने स्कूल के annual sports में होने वाले 100 meter दौड़ को जीत लेता था। ऐसा एक बार नहीं बल्कि हर साल होता था।

1 दिन सवेरे जब हरप्रीत अपने स्कूल गया था और सभी बच्चों के साथ पढ़ाई कर रहा था। तभी अचानक क्लास में स्कूल के हेड मास्टर आए और कहने लगे कि सरकार एक 100 मीटर रेस की प्रतियोगिता आयोजित कर रही हैं। इस प्रतियोगिता में जो जीतेगा उसे 1000 रूपये और इंटर स्कूल प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिलेगा।

इस प्रतियोगिता में केवल 10 से 15 साल के बच्चे ही भाग ले सकते हैं। यह सुनकर सभी बच्चे बहुत खुश हो गए और हरप्रीत के तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था।

कहीं ना कहीं उसे यह भी लग रहा था कि हर बार की तरह इस बार भी वो ही जीतेगा। लेकिन उसके क्लास में और भी कई बच्चे थे जो दौड़ने में काफी अच्छे थे। इसलिए हरप्रीत इस प्रतियोगिता में पूरी जान लगा देता है। और इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए दिन रात मेहनत करता है। उसकी मेहनत को देखकर उसके परिवार वाले और गांव वाले भी काफी खुश होते हैं। उन्हें भी लगता है कि इतनी मेहनत करने के बाद हरप्रीत जरूर रेस में अपनी पूरी जान लगा देगा।

ऐसा नहीं था कि हरप्रीत सिर्फ लोगों की प्रशंसा पाने के लिए या फिर प्रतियोगिता की रकम जीतने के लिए इस रेस के लिए इतनी मेहनत कर रहा था। बल्कि हरप्रीत को दौड़ लगाना बहुत ही ज्यादा पसंद था। जितना हरप्रीत अपने मां-बाप को और अपने पिंड को प्यार करता था! हरप्रीत उतना ही प्यार दौड़ से भी करता था।

दौड़ की प्रैक्टिस करते करते दिन बीतता गया और देखते ही देखते वह दिन आ गया। जिसका सभी का इंतजार था यानी की रेस का दिन! चूंकि हरप्रीत प्रतियोगिता में भाग लेने वाला था तो एक घंटा पहले ही स्कूल पहुंच गया। उस दिन पूरे स्कूल में अलग ही माहौल था। सभी लोग बहुत ही ज्यादा उत्सुक थे और उनके चेहरे पर उत्सुकता व खुशी साफ झलक रही थी।

हरप्रीत भी आज काफी खुश और उत्सुक था। दूसरों की तरह वह भी रेस के शुरू होने का इंतजार कर रहा था। अब वह समय आ गया था जिसका सभी को इंतजार था। सभी प्रतियोगी रेस करने के लिए मैदान में जमा हो गए थे। जैसे ही referee द्वारा दौड़ को शुरू करने के लिए सीटी बजाई गई वैसे ही सभी बच्चे दौड़ने लगे। रेस में हरप्रीत सबके साथ दौड़ रहा था और वह दूसरे बच्चों से काफी आगे भी था।

हरप्रीत बहुत तेज दौड़ रहा था! उसके साथ उसका एक दोस्त बलविंदर भी उसे बराबर की टक्कर दे रहा था। कभी हरप्रीत आगे तो बलविंदर पीछे कभी बलविंदर आगे तो हरप्रीत पीछे! ऐसा ही सिलसिला चल रहा था। दोनों Ending line के काफी नजदीक पहुंच रहे थे। उस दौरान दोनों ने अपनी पूरी जान लगा कर दौड़ लगाई। दोनों ने एक ही साथ winning line को पार किया। खुली आंखों से देख कर यह कह पाना काफी मुश्किल था कि आखिर इस प्रतियोगिता को किसने जीता था!

इसीलिए जीतने वाले प्रतियोगी का पता लगाने के लिए कैमरा में रेस की वीडियो को फिर से प्ले किया गया। इसे देखने के बाद सभी इस नतीजे पर पहुंचे कि बलविंदर मात्र 3 सेकेंड से हरप्रीत से आगे निकल गया था और इस प्रतियोगिता को जीत चुका है।

प्रतियोगिता के इस नतीजे को देखकर पहले तो हरप्रीत थोड़ा दुखी हो गया था लेकिन फिर वह खुश हो गया। क्योंकि उसे पता था कि उसने इस प्रतियोगिता के लिए कितनी मेहनत की और उसे यह भी मालूम था कि उसने दौड़ के अंत तक अपनी जान लगा दी थी।

हारने के बाद कई बार लोग अक्सर टूट जाते हैं। लेकिन हरप्रीत ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया। उसने अपने‌ हार को स्वीकार किया और मन ही मन एक बहुत अच्छा rumner बनने का निश्चय किया। इतना ही नहीं उसने यह निश्चय कर लिया कि वह अब अपने देश और पिंड के लिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीत कर ही मानेगा।

इस दौड़ ने जैसे मानो हरप्रीत के अंदर अलग ही आग भर दी थी। अब वह काफी सीरियस रहने लगा था। और अपनी दौड़ की तैयारी बहुत ही जोर व खुशी से करता था। जब भी वह किसी दौड़ की तैयारी करता तो उसे अपने स्कूल के उसी प्रतियोगिता की बात याद आती थी। जिसमें वह हार गया था। लेकिन उस प्रतियोगिता को याद करके हरप्रीत पूरा चार्ज हो जाता था और पूरे जोश के साथ रेस की तैयारी करने लगता था।

हरप्रीत ने एक के बाद एक कई रेस जीते। वो न सिर्फ स्कूल में होने वाली दौड़ जीतता था। बल्कि उसके पिंड में जितने भी दौड की प्रतियोगिताएं होती थी। वो सभी प्रतियोगिताओं को जीतता था। जब वो 18 साल का हुआ। तब उसने Olympic Race में गोल्ड मेडल जीतने के लिए अपना नाम रजिस्टर किया।

ओलंपिक में रजिस्टर करने के बाद उसने अपने दौड़ की प्रैक्टिस और exercise के समय को दुगना कर दिया। हरप्रीत बहुत जोश में था! कई महीने तक हरप्रीत ने बहुत मेहनत की।

कई महीने के लगातार प्रैक्टिस के बाद हरप्रीत ने ओलंपिक में भाग लिया और दर्शकों को ऐसा परफॉर्मेंस दिखाया जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। हरप्रीत ने अपनी पूरी जान लगा दी और ‌फिर दौड़ जीतकर उसने इतिहास रच दिया। हरप्रीत अपने पिंड से ओलंपिक गोल्ड जीतने वाला पहला विजेता बन गया।

ओलंपिक्स जीतने के बाद हर कोई हरप्रीत को जानने लगा। ओलंपिक्स जीतने के बाद भी हरप्रीत रुका नहीं बल्कि अलग-अलग दौड़ में भाग लेने लगा और सभी दौड़ को अपने नाम कर दिया। देखते ही देखते हरप्रीत एक बहुत बड़ा sports person बन‌ गया। दुनिया में हर कोई उसे जानने लगा!

एक अच्छा runner होने की वजह से हरप्रीत ने बहुत कम समय में काफी तरक्की हासिल कर ली थी। इतना ही नहीं उसका नाम दुनिया के अमीर आदमियों की सूची में आने लगा। और यह सब सिर्फ उस प्रतियोगिता से मुमकिन हो सका! जो वो हार गया था।

यही वजह है कि लोग कहते हैं – हार जीत की सीढ़ी है। बिना इस सीने को चढ़े! तुम कामयाबी हासिल नहीं कर सकते।

Moral – इस कहानी में जिस तरह हरप्रीत ने एक हार को अपने जीवन का आधार बनाकर अपनी जिंदगी की हर लड़ाई जीती! वैसे ही हर किसी को अपनी जिंदगी में हरप्रीत की तरह हार से सीखना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह बात बिल्कुल सच है कि जो हासिल नहीं होता, बस वही याद रह जाता है बाकी देती तो बहुत कुछ है ज़िंदगी! इसीलिए हमें जिंदगी हमें जो चीजें देती हैं उसके लिए हमें शुक्र गुजार होना चाहिए!

Exit mobile version