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जीवनी 9 Mins Read

महामना मदनमोहन मालवीय का जीवन परिचय

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Jan 6, 2023No Comments9 Mins Read
Indian educator Madan Mohan Malaviya biography
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पंडित मदन मोहन मालवीय का असली नाम महामना मदन मोहन मालवीय था। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महान प्रणेता और आदर्श पुरुष थे। मदन मोहन मालवीय को महामना नामक महान उपाधि से सम्मानित किया गया था।

इस महान व्यक्ति ने देश के बच्चों को शिक्षित और देश की सेवा योग्य बनाने के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। मालवीय जी देशभक्ति, ब्रह्मचर्य, व्यायाम तथा आत्मत्याग जैसे क्षेत्रों में आद्वितीय स्थान रखते हैं।

मदन मोहन मालवीय जी कर्म को ही अपना जीवन मानते थे। भारत सरकार ने 24 दिसंबर 2014 को मदन मोहन मालवीय जी को भारत रत्न से सम्मानित किया था। इस महान पुरुष के बारे में जाने के लिए उनकी जीवनी को पूरा पढ़ें।

पंडित मदन मोहन मालवीय जीवनी

पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने एनी बेसेंट के साथ मिलकर हिंदुस्तान की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। इसके अलावा इन्होंने साइमन कमीशन का विरोध करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा हाल ही में साल 2015 में पंडित मदन मोहन मालवीय जी को इंडिया के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। साल 2016 में 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा पंडित मदन मोहन मालवीय जी के नाम पर महा मना एक्सप्रेस की भी शुरुआत की गई है।

पंडित मदन मोहन मालवीय व्यक्तिगत परिचय

नाममदनमोहन मालवीय
जन्म दिन25 दिसम्बर 1861
जन्मस्थानइलाहबाद,उत्तर प्रदेश
मातामून देवी
पिताबृजनाथ
पुत्ररमाकांत, मुकुंद, राधाकांत, गोविन्द
पुत्रियाँरमा और मालती
जातिचतुर्वेदी (ब्राह्मिण)
धर्महिन्दू
पेशाजर्नलिस्ट, लॉयर, शिक्षाविद,राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी
विवाह1878 में
पत्नीमिर्जापुर की कुंदन देवी

पंडित मदन मोहन मालवीय का प्रारंभिक जीवन

एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में साल 1861 में 25 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में श्री पंडित बैजनाथ और श्रीमती मीना देवी के परिवार में जन्मे पंडित मदन मोहन मालवीय के माता-पिता की कुल 8 संताने थी।

पंडित मदन मोहन मालवीय जी की शिक्षा

5 साल की उम्र मालवीय जी की शिक्षा प्रारम्भ हुई और पढ़ाई करने के लिए उनके पिताजी ने पंडित मदन मोहन मालवीय जी का दाखिला महाजनी स्कूल में करवाया‌ यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय धार्मिक विद्यालय चले गए।

जहां पर उन्हें शिक्षा देने का काम हरदेव जी ने किया। हरदेव जी के द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के दौरान पंडित मदन मोहन मालवीय जी के मन में हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का गहन प्रभाव पड़ा।

इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के एक स्कूल में एडमिशन लिया, जो कि अंग्रेजी माध्यम का स्कूल था। आगे चलकर उन्होंने कई कविताएं भी लिखी। आगे चलकर इनके द्वारा लिखी गई यह कविताएं विभिन्न प्रकार की पत्रिकाओं में पब्लिश हुई‌।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1879 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अपनी मैट्रीकुलेट की एग्जाम को पास किया और इसके बाद वह कोलकाता चले गए, जहां पर जाकर उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री को कोलकाता यूनिवर्सिटी से हासिल किया।

उनकी आर्थिक स्तिथि अधिक मजबूत नहीं थी, जिसके कारण कॉलेज के प्रोफेसर ने पंडित मदन मोहन मालवीय को मंथली स्कॉलरशिप देने में सहायता प्रदान की।

पंडित मदन मोहन मालवीय का समाज में योगदान

पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने हिन्दू बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। इस विश्वविद्याय को स्थापित करने के लिए एक बार जब पंडित मदन मोहन मालवीय जी निजाम के दरबार में गए थे, तो वहां पर उनका काफी अपमान किया गया था और उनके ऊपर जूता फेंका गया था, जिसके बाद पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने उस जूते को ले जाकर बाहर नीलाम कर दिया, जिसके कारण निजाम को बहुत ही ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हुई और उन्होंने पंडित मदन मोहन मालवीय जी को वापस बुलाकर उन्हें उचित राशि प्रदान की।

महात्मा गांधी को भी पंडित जी ने यह सलाह दी थी कि वह देश के बंटवारे को स्वीकार ना करें परंतु उन्होंने पंडित मदन मोहन मालवीय जी की बात को अनसुना कर दिया।

पंडित मदन मोहन मालवीय जी एजुकेशन के प्रचार-प्रसार पर बहुत ही ज्यादा जोर देते थे। इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट के पद को संभालते हुए साल 1918 में सत्यमेव जयते का नारा पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने दिया था।

पंडित मदन मोहन मालवीय जी का संपादकीय जीवन

पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने साल 1886ं मे दिसंबर के महीने में पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में आयोजित हुए इंडियन नेशनल कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में काफी जोरदार भाषण दिया था।

अपने भाषण से उन्होंने दादा भाई नौरोजी को काफी ज्यादा प्रभावित किया था। उस टाइम दादा भाई नौरोजी इंडियन नेशनल कांग्रेस के चेयरमैन थे।

दादा भाई नौरोजी के अलावा वहां पर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के राजा रामपाल सिंह भी मौजूद थे, वह भी पंडित मदन मोहन मालवीय जी के भाषण से काफी ज्यादा प्रभावित हुए थे।

राजा राम पाल सिंह उसी टाइम हिंदुस्तान नाम की साप्ताहिक पत्रिका के लिए एक संपादक की खोजबीन कर रहे थे, ऐसे में पंडित मदन मोहन मालवीय जी को उन्होंने अपनी पत्रिका में संपादक का काम करने के लिए कहा, जिसे पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने स्वीकार कर लिया।

इस प्रकार स्कूल टीचर की नौकरी से रिजाइन करके पंडित मदन मोहन मालवीय जी साल 1887 मे हिंदुस्तान पत्रिका के संपादक के तौर पर काम करने लगे।

उन्होंने इस पत्रिका के संपादक के तौर पर तकरीबन ढाई साल तक काम किया। जिसके पश्चात् वह उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर वापस आ गए और वापस आने के बाद वह कानून की डिग्री का अध्ययन करने लगे।

कानून की डिग्री की पढ़ाई करते हुए साल 1889 में उन्होंने English Daily के लिए काम करना स्टार्ट कर दिया। इसके अलावा भी पंडित मदन मोहन मालवीय ने कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं को प्रकाशित करने का काम किया, जिनमें साल 1907 में प्रिंट होने वाला अभ्युदय से लेकर कई अंग्रेजी भाषा के महत्वपूर्ण न्यूज़पेपर शामिल थे।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने इंग्लिश न्यूज़ नाम के न्यूज़ पेपर की शुरुवात वर्ष 1909 मे की थी, उन्होंने तकरीबन वर्ष 1911 तक बतौर संपादक काम किया।

इसके बाद पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1911 से लेकर सन 1919 तक हिंदी न्यूज़ पेपर भी स्टार्ट किया। इस दौरान वह कांग्रेस के प्रेसिडेंट के पद पर भी रहे थे। पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने हिंदुस्तान न्यूज़पेपर का हिंदी भाषा में प्रकाशित होने वाले अखबार को निकाला जिसका नाम हिंदुस्तान था। यह कार्य उन्होंने साल 1936 में किया था।

पंडित मदन मोहन मालवीय जी का राजनीतिक और वकालत कैरियर

पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने वर्ष 1891 में इलाहाबाद के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एलएलबी का कोर्स पूरा करने के बाद अपना वकालत का पेशा शुरू किया।

पंडित मदन मोहन मालवीय जी अपने जीवन में तकरीबन चार बार इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट के पद पर रहे। उन्होंने साल 1909,1918, 1930 और 1932 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट के पद को संभाला।

स्वयं को शिक्षा के प्रति समर्पित करने के लिए साल 1911 में पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने Law की प्रैक्टिस छोड़ दी और सन्यासी जीवन जीने के साथ साल 1922 में जब चौरी चौरा कांड को भारतीय क्रांतिकारियों के द्वारा अंजाम दिया गया तो वह इलाहाबाद हाईकोर्ट 1924 मे चले गए और हाईकोर्ट में केस लड़ के उन्होंने तकरीबन 177 भारतीय क्रांतिकारियों को सजा मिलने से बचाया।

इसके बाद कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए इनमें से तकरीबन 156 लोगों को पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने अदालत के सामने निर्दोष साबित करने का महत्वपूर्ण काम भी किया।

साल 1898 में पंडित मदन मोहन मालवीय जी की मुलाकात सेंट्रल हिंदू कॉलेज को स्थापित करने वाली एनी बेसेंट से हुई और उसी साल इन दोनों ने मिलकर वाराणसी सिटी में एक हिंदू यूनिवर्सिटी को स्थापित करने के बारे में विचार किया।

बाद में वर्ष 1939 तक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के पद को पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने संभाला।

बता दें साल 1912 से लेकर सन 1926 तक पंडित मदन मोहन मालवीय जी इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के मेंबर रहे थे। भारत के अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर साल 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तब पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने साइमन कमीशन गो बैक के नारे लगाए और साइमन कमीशन के प्रति अपना विरोध दर्ज करवाया।

साल 1932 में पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 23 मई को एक घोषणा पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने देश के निवासियों से यह अपील की कि वह स्वदेशी वस्तु ज्यादा मात्रा में खरीदे और अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करें ताकि भारत देश आत्मनिर्भर बन सकें।

डॉ भीमराव अंबेडकर और पंडित मदन मोहन मालवीय जी के बीच साल 1932 में 25 सितंबर को पूना पैक्ट के एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए थे। इस एग्रीमेंट के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय जी के खिलाफ कांग्रेस के अंदर काफी ज्यादा मतभेद पैदा हो गया था, जिसके कारण पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने कांग्रेस को छोड़ दिया।

इसके बाद पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने माधव श्री हरि के साथ मिलकर साल 1934 में कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी को बनाया और चुनाव लड़ा और उस चुनाव में उनकी पार्टी ने टोटल 12 सीटें हासिल की इसके बाद पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने अपने पोलिटिकल कैरियर से साल 1937 में संन्यास की घोषणा कर दी।

पंडित मदन मोहन मालवीय जी की मृत्यु

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में वर्ष 1946 में 12 नवंबर के दिन पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने इस दुनिया में अपनी आखिरी सांसे ली।

जब इनका देहांत हुआ, तब हमारा भारत देश आजाद तो नहीं हुआ था, परंतु देश की आजादी तय हो चुकी थी।

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