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जीवनी 9 Mins Read

भारत कोकिला Sarojini Naidu का जीवन परिचय

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Oct 3, 2021No Comments9 Mins Read
Sarojini Naidu was a distinguished poet
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कलम में वह ताकत है जो मनुष्य के विचारों को न सिर्फ बेहतर तरीके से व्यक्त करने में मदद करती है बल्कि दुनिया तक आपके ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने में मदद करती है, अक्सर किताबों में कवियत्री सरोजिनी नायडू का वर्णन देखने को मिलता है।

इस महान कवियत्री ने अपनी कविताओं के माध्यम से देशवासियों में देशप्रेम/आजादी की भावना जगाई, जिनकी वजह से उन्हें भारत की कोकिला के नाम से भी सम्मानित किया गया। आज हम इस लेख में इस महान कवियत्री की जीवनी साझा कर रहे हैं, जिसने देश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

Sarojini Naidu biography in Hindi

सरोजिनी नायडू को केसर ए हिंद कहा जाता था। सरोजिनी नायडू को लिखने का बहुत शौक था, क्योंकि वह एक अच्छी लेखिका थी। इसलिए इन्होंने अपने जीवित रहते हुए विभिन्न प्रकार की कविता लिखने का काम किया था। इनकी कविता को जवाहरलाल नेहरू और रविंद्र नाथ टैगोर भी काफी पसंद करते थे।

सरोजिनी नायडू का व्यक्तिगत परिचय

पूरा नामसरोजनी चटोपाध्य
जन्म13 फरवरी 1879
जन्म स्थानहैदराबाद
माता-पितावारद सुन्दरी देवी, डॉ अघोरनाथ चटोपाध्या
विवाहडॉ गोविन्द राजुलू नायडू (1897)
बेटे-बेटीपद्मजा, रणधीर, लिलामानी, निलावर, जयसूर्या नायडू
मृत्यु2 मार्च 1949
मृत्यु स्थानलखनऊ उत्तर प्रदेश
पुरस्कारकेसर-ए-हिन्द
रचनाएँद गोल्डन थ्रेशहोल्ड, बर्ड आफ टाइम, ब्रोकन विंग

सरोजिनी नायडू का प्रारंभिक जीवन

एक बंगाली फैमिली में वर्ष 1879 में 13 फरवरी को देश के आंध्र प्रदेश राज्य के हैदराबाद शहर में सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। सरोजनी नायडू के पिताजी डॉक्टर थे। इसके साथ-साथ वह एक साइंटिस्ट भी थे।

उनके पिता हैदराबाद कॉलेज के एडमिन के पद पर भी मौजूद थे। उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस टीम के फर्स्ट मेंबर भी कहा जाता है। गुलामी के समय सरोजनी नायडू के पिताजी ने अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया और वह अंग्रेजों के काले कानून एवं उनके विरोध के लिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे।

सरोजिनी नायडू का परिवार

सरोजिनी नायडू के पिताजी का नाम डॉक्टर अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, वही सरोजिनी नायडू की माता जी का नाम सुंदरी देवी था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरोजिनी नायडू की माता जी बहुत ही अच्छी लेखिका थी, जो अक्सर खाली समय मिलने पर बंगाली भाषा में विभिन्न प्रकार के लेख लिखने का काम करती थी।

सरोजिनी नायडू के माता-पिता की कुल 8 संताने थी। जिनमें से वह अपने 8 भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। सरोजनी नायडू के एक भाई का नाम वीरेंद्र नाथ था। साल 1937 के आसपास सरोजिनी नायडू के भाई वीरेंद्र नाथ की अंग्रेजी गवर्नमेंट के सैनिकों ने हत्या कर दी थी।

वीरेंद्र नाथ के अलावा इनके भाई हरेंद्र नाथ भी उस टाइम में काफी फेमस एक्टर और प्रख्यात कवि थे, जो कविता लिखने और गाने का काम करते थे।

सरोजिनी नायडू की शिक्षा

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सरोजिनी नायडू को सिर्फ एक ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार की भाषाओं का ज्ञान था। वह बंगाली, अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी और तेलुगु लैंग्वेज की काफी अच्छी जानकारी रखती थी।

जब सरोजिनी नायडू सिर्फ 12 साल की थी, तभी उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से मैट्रिक की परीक्षा को पास किया था। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा को सिर्फ पास ही नहीं किया बल्कि उन्होंने टॉप भी किया था।

सरोजिनी नायडू के पिता डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय की इच्छा यह थी कि उनकी बेटी भविष्य में साइंटिस्ट बने या फिर मैथ के सब्जेक्ट की पढ़ाई करें, परंतु सरोजनी नायडू को ना तो साइंटिस्ट बनना था ना ही उन्हें गणित की पढ़ाई करनी थी, उनका इंटरेस्ट कुछ और ही था। सरोजनी नायडू को कविता लिखने में काफी ज्यादा मजा आता था।

सरोजिनी नायडू का पढ़ाई के लिए विदेश जाना

एक बार अपने गणित की कॉपी में सरोजिनी नायडू ने तकरीबन 1300 लाइन की एक कविता लिखी थी, जिसे देखकर इनके पिताजी को काफी आश्चर्य हुआ था। इनके पिताजी ने कई बार सरोजिनी नायडू के द्वारा लिखी गई कविता को छपवा कर अलग-अलग जगह पर बांटने का काम भी किया था।

इसी प्रकार एक दिन सरोजनी नायडू के पिताजी ने सरोजिनी नायडू की कविता को उस टाइम के हैदराबाद के नवाब को दिखाया, जिसे देखकर हैदराबाद के नवाब बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को विदेश में जाकर पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप देने की पेशकश की, जिसे सरोजिनी नायडू के पिताजी ने स्वीकार कर लिया।

जब उन्होंने यह बातें सरोजनी नायडू को बताई तो उन्होंने भी इस बात को स्वीकार कर लिया, जिसके बाद वह अपनी आगे की स्टडी करने के लिए किंग कॉलेज, जो कि लंदन में स्थित है वहां पर चली गई। किंग कॉलेज से अपने स्टडी को कंप्लीट करने के बाद सरोजिनी नायडू ने लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन प्राप्त किया।

सरोजिनी नायडू का दूसरी जाति में विवाह

जब लंदन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से सरोजनी नायडू अपनी एजुकेशन ग्रहण कर रही थी, तो कॉलेज की पढ़ाई के दरमिया ही सरोजिनी नायडू की मुलाकात डॉक्टर गोविंद राजुलू नायडू से हुई और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही दोनों ने एक दूसरे को काफी अच्छे से जाना समझा और कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते होते वह एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जानने लगे थे।

इस प्रकार जब सरोजनी नायडू 19 साल की हो गई, तो पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद उन्होंने दूसरी कास्ट में साल 1897 में अपनी पसंद से शादी कर ली। प्राचीन भारत में दूसरी कास्ट में शादी करना काफी गंभीर अपराध माना जाता था, परंतु यहां पर कुछ उल्टा ही हुआ।

सरोजनी नायडू के दूसरी कास्ट में शादी करने पर उनके पिता नाराज नहीं हुए बल्कि उन्होंने अपनी बेटी और अपने बेटी के पति को बिल्कुल सरल भाव से स्वीकार कर लिया और उन्हें खुशहाल जीवन जीने का आशीर्वाद दिया।

शादी के बाद सरोजिनी नायडू और उनके पति की कुल चार संतान उत्पन्न हुई, जिनमें से उनकी बेटी पद्मजा सरोजिनी कविता गाने वाली बनी और साल 1961 में यह पश्चिम बंगाल के गवर्नर पद के लिए भी चयनित हुई।

सरोजिनी नायडू का राजनीतिक कैरियर

दूसरी कास्ट में शादी करने के बाद भी सरोजनी नायडू ने अपने काम को रोका नहीं और लगातार वह अच्छी अच्छी कविता लिखने का प्रयास शादी के बाद भी करती रही।

सरोजिनी नायडू के द्वारा लिखी गई बुलबुले हिंद को साल 1905 में पब्लिश किया गया था और यह इतना ज्यादा प्रसिद्ध हुई कि लोग इसके बाद सरोजिनी नायडू को जानने लगे।

यहां तक कि आप सरोजनी नायडू की प्रसिद्धि का अंदाजा बुलबुले हिंदी के प्रकाशित होने के बाद इस बात से लगा सकते हैं कि खुद रविंद्र नाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू जैसे लोगों ने भी सरोजिनी नायडू की तारीफ बुलबुले हिंद को लिखने के लिए की थी।

सरोजिनी नायडू अन्य भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अपनी कविता लिखने का काम करते थी। हालांकि उनकी हर कविता में भारतीयपन पूर्ण रूप से होता था।

सरोजिनी नायडू की कविता से खुश होकर एक दिन उस टाइम के महान क्रांतिकारी गोपाल कृष्ण गोखले सरोजनी नायडू से मिलने आए और उन्होंने अपनी कविता में वीर रस लाने के लिए और क्रांतिकारी पन लाने के लिए सरोजिनी नायडू से कहा, ताकि उनकी कविता भारत के लोगों में देश प्रेम की भावना को और भी प्रबल बना सके और लोग एकजुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर सकें।

सरोजिनी नायडू महात्मा गांधी से भी बहुत ही ज्यादा प्रभावित थी इसलिए उनकी इच्छा महात्मा गांधी से मुलाकात करने की होती थी और उनकी यह इच्छा साल 1916 में तब पूरी हुई, जब उन्होंने महात्मा गांधी से मुलाकात की।

Sarojini Naidu, political activist, feminist, poet, and the first Indian woman

महात्मा गांधी से मिलने के बाद सरोजिनी नायडू के विचारों में काफी ज्यादा परिवर्तन आया, जिसके बाद उन्होंने मन ही मन अंग्रेजों का पूर्ण तरीके से विरोध करने और देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने का संकल्प लिया।

उसके बाद वह पूरे भारत भर में भ्रमण करने लगी और लोगों को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए प्रेरित करने लगी। सरोजिनी नायडू खुद एक औरत थी इसीलिए उन्होंने मुख्य तौर पर औरतों के बीच आजादी की अलख जगाने का काम किया।

यह सरोजिनी नायडू का ही प्रभाव था कि उनकी बातों से प्रेरित होकर कई औरतें आजादी के संग्राम में कूद पड़ी और अपने अपने स्तर पर अंग्रेजों का विरोध करने लगी।

इस दौरान सरोजिनी नायडू को यह महसूस हुआ कि उन्हें राजनीति में भी इंट्री करनी चाहिए और इसीलिए अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिए सरोजनी नायडू ने साल 1925 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर कानपुर से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई और वह इंडियन नेशनल कांग्रेस के कानपुर मंडल की महिला अध्यक्ष बनी।

साल 1928 में सरोजिनी नायडू अमेरिका चली गई और वहां पर जाकर उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा वादी क्रियाओं को फैलाने का काम किया है। इसके बाद साल 1930 में सरोजिनी नायडू वापस देश के गुजरात राज्य में आई, जहां पर उन्होंने गांधी जी के द्वारा चलाए जा रहे नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और इसमें काफी महत्वपूर्ण रोल अदा किया।

नमक सत्याग्रह आंदोलन के दरमियां जब साल 1930 में गांधीजी को अंग्रेजी गवर्नमेंट के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था, तो गांधीजी की अनुपस्थिति में उनका सारा कार्यभार और सारी जिम्मेदारी निभाने का काम सरोजिनी नायडू ने ही किया था।

नमक सत्याग्रह के अलावा गांधी जी के साथ साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सरोजिनी नायडू ने काफी बढ़ चढ़कर भाग लिया था, जिसके बाद महात्मा गांधी जी और अन्य लोगों तथा सरोजिनी नायडू को गिरफ्तार कर लिया गया था। इस प्रकार कुल 21 महीने की जेल सरोजनी नायडू ने गांधी जी के साथ काटी थी।

सरोजिनी नायडू की मृत्यु

जब अंग्रेजों की गुलामी से हमारा देश साल 1947 में स्वतंत्र हुआ, तो उसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य का गवर्नर सरोजनी नायडू को बनाया गया। वह उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर बनी थी।

इसके बाद साल 1949 में 2 मार्च को जब सरोजनी नायडू अपने ऑफिस में बैठकर अपने ऑफिस का काम कर रही थी, तभी उन्हें हार्ट अटैक आया और हार्ट अटैक आने के कारण सरोजिनी नायडू की मृत्यु हो गई।

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