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क्या आपके पास भी समय नही है?

kya aapke paas time hai in Hindi

इसमें कोई दो राय नहीं कि समय सबसे बलवान है, क्योंकि अगर यही समय मनुष्य के खिलाफ हो तो वह चाह कर भी अपनी बर्बादी को रोक नहीं पाता।

Hindi Kahani on Samay, Time and Life पर Story in Hindi

इसलिए अक्सर हम सुनते हैं कि समय की इज्जत करें, समय पर काम करें। परिणामस्वरूप आज इंसान कामकाजी जीवन में इस तरह डूब चुका है कि वह जीवन जीने के अपने अंतिम लक्ष्य को भी भूल चुका है।

आज की हमारी यह कहानी रमेश की है जो इंजीनियर के पद पर बैठ कर अच्छी सैलरी लेकर समाज में सम्मानीय जीवन जीने वाला व्यक्ति है, पर आज उसे जीवन में सब कुछ बिखरा बिखरा लगा रहा है

अंदर से पूरी तरह टूट चुके रमेश के साथ आखिर ऐसा क्या हुआ कि समय की इज्जत करने वाला, दूसरों को समय का संदेश देने वाला इंसान आज खुद समय की मार के आगे बेबस है।

रमेश बचपन से ही एक शांत और सरल स्वभाव का व्यक्ति था पढ़ाई में अच्छा होने के साथ-साथ वह समय का पाबंद था।

खाली समय में रमेश घर के सदस्यों के विभिन्न कार्यों में हाथ बंटाता और बाकी समय उसका किताबों के संग बीतता

उसके इसी स्वभाव की वजह से पड़ोस के गुप्ता जी भी अक्सर अपने बेटों से कहते बेटा समय की कदर करना है तो रमेश को देखो।

खेलकूद, मजाक मस्ती और अन्य लड़कों की तरह आवारागर्दी करने से उसका कोई संबंध न था।

अपना खाली समय वह खुद के साथ बिताता, खुद से बातें करता, कुछ पढ़ता कुछ नया सीखता।

यही कारण था कि समय पर अपने होमवर्क और अपनी दिनचर्या का पालन करने की वजह से वह 12वीं में काफी अच्छे अंक प्राप्त करता है।

जिससे घर वालों का तो नाम रोशन होता ही है। वही क्लास में कम नंबर लाकर फेल होने वाले बच्चे या जैसे-तैसे पास हुए छात्रों का रिजल्ट देख कर रमेश उन बच्चों के घूमने फिरने और समय पर पढ़ाई न करने के नतीजे से सबक लेता है।

इस तरह समय की कद्र करने को लेकर उसकी इच्छा शक्ति और बढ़ जाती है।

अब रमेश स्नातक करने के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले चुका था वह साइंस का स्टूडेंट था और एक अच्छे कॉलेज से पढ़ाई कर रहा था। बचपन से ही एक इंजीनियर बनने का सपना देखने वाले रमेश की शुरुआत कॉलेज से हो चुकी थी।

कॉलेज के अधिकतर लड़के जहां अपना अधिकतर समय बंक मारने, बातचीत करने और मजे करने के लिए करते। वहीं रमेश उन चंद लोगों में से एक था जो फ्री पीरियड में भी किताबों को पलट कर रोजाना कुछ नया सीखने की कोशिश करता।

क्योंकि इस दौर में पढ़ाई के प्रति उत्सुकता रखने वाले छात्रों की संख्या कम ही होती है, अतः कॉलेज में रमेश के ना के बराबर दोस्त थे। अतः कॉलेज से घर आना, पढ़ाई करना इस प्रक्रिया में न जाने कब 5 साल बीत गए पता ही ना चला।

अपनी होशियारी और पढ़ाई के प्रति लगन की वजह से उसने अच्छे अंको से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। और अब बारी आई नौकरी की तो उसके माता पिता की तरह ही आस पड़ोस में हर किसी को अंदेशा था कि एक अच्छी कंपनी में रमेश कार्यरत हो जाएगा।

और ऐसा हुआ भी, सफलतापूर्वक इंटरव्यू में पास होने के बाद रमेश एक एमएनसी कंपनी में बतौर इंजीनियर काम करने लगा।

समय बीतता गया पर काम के प्रति अपनी लगन और मेहनत से कुछ ही सालों में रमेश कंपनी में एक टॉप का लीडर बन चुका था।

क्योंकि तरक्की करना रमेश के जीवन का लक्ष्य बन चुका था तो वह अपनी फील्ड में खुद को बेहतर बनाने के लिए, शाम को ऑफिस से आने के बाद या छुट्टी के दिन भी किताबें पढ़ता और कुछ नया सीखता।

अपने busy schedule के कारण महीने में कभी कभी ही वह अपने मां-बाप के साथ वक्त बिताता, उनसे खुल कर बात कर पाता।

धीरे-धीरे मां बाप की उम्र बढ़ने लगी थी, एक दिन रमेश की मां ने उसके पिता से कह दिया कि मै खाली बैठे बोर हो जाती हूं, मुझे भी अब अपने नाती पोतों संग खेलना है।

पिता को भले इसमें क्या आपत्ति थी? उन्होंने जल्दी से रमेश को बुलाया इस पर बातचीत हुई। तो रमेश ने अपने माता-पिता को नाराज करना उचित न समझा और इस तरह 28 की उम्र में रमेश की शादी कर दी गई

सामाजिक प्राणी होते हुए भी चूंकि रमेश समाज में लोगों से अधिक घुला- मिला नहीं था, वह अपने काम से मतलब रखता।

यहां तक कि शादीशुदा जीवन और घर गृहस्थी से अधिक लगाव न होने की वजह से वह अक्सर पत्नी को उतनी ही तवज्जो देता था जैसे कोई व्यक्ति जरूरत पड़ने पर किसी से कहता हो।

हालांकि उसकी पत्नी जानती थी कि रमेश दिल से बुरा नहीं है, वह सिर्फ अपने काम में उलझा रहता है अतः पति को खुश करने के लिए हर संभव उसकी पत्नी कोशिश करती है।

रमेश भी अपनी पत्नी का पूरा मान सम्मान करता था और शादी के तकरीबन 3 साल बाद उसे एक बेटा होता है

तो मानो रमेश के परिवार में खुशियों की लहर दौड़ गई। क्योंकि पोते के साथ खेलने के सपने देखने वाली रमेश की माता का सपना अब हकीकत में बदल चुका था।

घर के सदस्यों के लाड प्यार से पला बच्चा कब एक साल का हुआ पता ही नहीं चला इसी तरह तकरीबन 5 साल बीत चुके थे अब रमेश का भी कंपनी में प्रमोशन हो चुका था और वह और उसका परिवार पहले से अधिक सुविधाओं का भोग कर रहे थे।

पर समय बीतने के बावजूद रमेश की जिंदगी में एक चीज की कमी थी वह था समय, कामकाजी तनाव, सिरदर्द से जैसे तैसे वह घर आता तो भोजन करने के बाद सीधा लैपटॉप खोलकर देर रात काम करता और सुबह जल्दी उठकर ऑफिस चला जाता।

इस तरह वह न तो अपनी पत्नी, बच्चे और ना ही घर वालों को टाइम दे पा रहा था। और इसी स्थिति से घरवाले भी बेहद नाखुश थे।

एक दिन पिताजी भी यह कहते पाए गए की भले ही रमेश कंपनी में एक छोटा कर्मचारी होता, पर कम से कम अपने बीवी बच्चों और हमारे साथ वक्त बिताता, हमारी भी भावनाएं है वह क्यों नहीं ऐसा सोचता होगा

परंतु इन सब बातों से अनजान रमेश खोया रहता था सिर्फ अपने कार्यों में, अक्सर जब उसका बेटा कहता पापा आज कहीं घूमने चलें तो उसका यही बहाना होता था कि बेटा जी, अगले संडे पक्का।

उसके इस व्यवहार से ऐसा प्रतीत होता था मानो वह कंपनी को ही अपना सर्वोपरि समझता है।

अब समय बीतता गया और एक दिन अचानक पिताजी का स्वास्थ्य ढीला होने की वजह से उनकी सांस रुक गई।

आनन-फानन में रमेश की पत्नी ने जैसे ही यह देखा तो तुरंत उसने एंबुलेंस को फोन कर बुलाया।

फोन पर अपने पति को भी बात बताई, लेकिन रमेश ने कह दिया मां मैं शाम को आता हूं। मै एक जरूरी मीटिंग में फंसा हुआ हूं… और पत्नी को भी बाबूजी को देखने के किए हॉस्पिटल भेज दिया।

हॉस्पिटल के बेड पर लेटे उसके बाबूजी अचानक हाथों से इशारा करते हैं, उनकी बहू और पत्नी उनके पास आती है

पर उनके आखिरी शब्द थे एक बार रमेश को बुला दो, बस अब और नहीं।

इन शब्दों को सुनते ही एक बार फिर से बाबू जी ने आंखें बंद कर ली। और तुरंत बहू ने रमेश को फोन लगाया तो मीटिंग की वजह से फोन के फ्लाइट मोड में होने की वजह से रमेश से संपर्क न हो पाया।

जैसे ही शाम 6:00 बजे ऑफिस की छुट्टी हुई, रमेश तुरंत हॉस्पिटल पहुंचता है लेकिन तब तक बाबूजी शरीर त्याग चुके थे और उन्हें बाहर लाने की तैयारी हो रही थी।

गेट से ही यह देखता रमेश बेहद दुखी मन से बापूजी क्या हुआ? क्या हुआ कहकर पास आता है..!

पर इस प्रकार बाबूजी के दुनिया को छोड़कर जाने के बाद भी रमेश की दिनचर्या में कोई बदलाव ना आया अपने बीवी बच्चे और संपूर्ण परिवार को एक अच्छा जीवन देने के लिए वह आंखों में सपने लिए अभी भी कार्य कर रहा था।

परंतु इस बात से बेखबर की उसकी यही तरक्की उसके जीवन में अब कितना कितना बड़ा तूफान लेकर आने वाली है उसे मालूम ना था।

एक शाम रमेश जब ऑफिस से घर आता है, तो उसका बच्चा उसे उसके दोस्त के बर्थडे के मौके पर उसके घर जाने को कहता है।

यह सुनकर रमेश करता है बेटा आज कहीं नहीं जा सकते, आज बहुत सारा काम है।

बच्चे, बीवी की कई बार जिद के बाद भी रमेश उनकी यह इच्छा पूरी नहीं कर पाया।

परंतु बच्चे जिद्दी होते हैं और छोड़ते नहीं, बच्चा पापा चलो, पापा चलो जोर-जोर से चीखता है और रोते रोते लोटपोट हो जाता है और अचानक सीढ़ी से उसका पैर फिसल जाता है।

और सीधा सिर फर्श पर पटकता है, खून के तेज बहाव के कारण वहीं उसकी आंखें बंद हो जाती है।

अपने मृत बच्चे के गम में जोर से चिल्लाती रमेश की बीवी छत की सीढ़ियों की तरह दौड़ती है, और तुरंत छत से नीचे रोड पर छलांग मार देती है।

अपने सामने घटी इन दो घटनाओं को देखकर रमेश का दिमाग सुन्न हो जाता है, उसे खुद की आंखों पर यकीन नहीं होता और वहीं खड़ा खड़ा गिर पड़ता है।

इस तरह अपने भरे पूरे परिवार में पहले अपने बापू जी, फिर बच्चा और बीवी को खोने वाला रमेश पूरी तरह टूट जाता है।

सीख

अरे दोस्त! अगर आप भी जीवन में जरूरत से ज्यादा अपने सपनों को पाने की खातिर या किसी अन्य कार्य में व्यस्त होने की वजह से अपने घर वाले जो हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हैं, उन्हें समय नहीं दे रहे है तो इसका आपके जीवन में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

अतः समय न होने के चलते आपसे एक हंसता खेलता परिवार या कोई प्रिय आप से बिछड़ ना जाए। इसलिए समय रहते उनकी कद्र करें, उन्हें जरूरी समय दें क्योंकि अगर कोई व्यक्ति एक बार दूर चला गया तो वह लौट के नहीं आ पाएगा।

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