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हिंदी कहानियाँ 8 Mins Read

Hindi Story : माता पिता के बुढ़ापे का सहारा

Raj Kumar YadavBy Raj Kumar YadavUpdated:Dec 19, 2021No Comments8 Mins Read
Story in Hindi ~ Budhape ka sahara
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आज सुमन आसमान को निहार रही है क्योंकि उसे आसमान में हवाई जहाज नजर आ रहा है, जो शायद उसके बेटे को उससे कहीं दूर, उसके गांव से दूर ले कर जा रहा है। आंखों में आंसू बहे जा रहे हैं लेकिन वह अपने दिल की बात किसी को बता नहीं पा रही है। होठ कांपते कांपते रुक जाते हैं क्योंकि उसे डर है कि कहीं उसके आंसुओं को उसके पति दीनानाथ ना देख ले।

तभी उसे पीछे से आवाज आती है

दीनानाथ- अरे सुनती हो, मैं थोड़ा खेत की तरफ जा रहा हूं। रामू काका ने मुझे कुछ सलाह के लिए बुलाया है मैं जानता हूं तुम्हारा मन बिल्कुल नहीं है कि तुम कोई काम करो लेकिन मैं चाहता हूं तुम खाना खा लो ताकि दवाई खा सको और सेहत का ध्यान रख सको। ( प्यार से)

ऐसा बोलकर दीनानाथ चले जाते हैं और सुमन चुपचाप वहां रखे हुए पलंग पर बैठ जाती है। उसे याद आता है कि यह पलंग उसने रवि के लिए ही खरीदा था, जब वह स्कूल में था और उसे सोने में दिक्कत होती थी और आज वह दिन है जब रवि अपने परिवार के साथ कहीं दूर घर बसाने, नौकरी ढूंढने जा चुका है।

सुमन उठकर किचन की तरफ जा रही है कि उसी समय उसकी पड़ोसन सुनैना आ जाती है और पास आकर कहती है- क्या अब तक तुम रो ही रही हो? अरे उसे गए तो 2 दिन हो गए।

अब वह अपने पत्नी और बच्चों के साथ खुशी-खुशी अपने घर में रह रहा होगा और तुम यहां आंसू बहा रही हो।

सुमन- बचपन से लेकर आज तक मैंने उसका ध्यान रखा उम्मीद नहीं की थी कि वह अपने मां-बाप और गांव को छोड़कर हमेशा के लिए चला जाएगा। माँ हूँ उसकी, याद तो आएगी ही। ( रोते हुए)

सुनैना- अब तुम अपने बेटे को भूलने की कोशिश करो चला गया वह पंछी अपने पिंजरे को छोड़कर। अब भला वह वापस हमारे गांव में क्यों आएगा और आएगा भी तो सिर्फ 2 या 4 दिनों के लिए।

अरे वह पीछे गली वाली प्रमिला का भी यही हाल हुआ, उसने तो अपने बेटे को शहर इसलिए भेजा था कि वह वहां जाकर प्रमिला की मदद कर पाए लेकिन देखो ना बेटा तो वापस आया ही नहीं। ( मुंह बनाते हुए)

सुमन- नहीं नहीं मेरा रवि ऐसा नहीं है। पहले तो वह मेरा बहुत ख्याल रखा करता था यह बात अलग है कि तब वह बहुत छोटा भी था।

सुनैना- तुम जानो और तुम्हारा काम। मैं तो थोड़ी शक्कर लेने आई थी मेरे घर मेहमान आ रहे हैं ना और दुकान खुली नहीं है, हो सके तो एक कटोरी शक्कर ही दे दो।

सुनैना तो वहां से चली गई लेकिन उसकी बातें सुमन के दिल पर जहर सी लग रही थी। उसे मन ही मन यह डर होने लगा कि कहीं सच में ऐसा ना हो जाए कि रवि वापिस ही ना आए।

धीरे-धीरे 2 महीने बीत गए जब भी रवि का फोन आता सुमन दौड़कर पोस्ट ऑफिस पहुंच जाती है, जहां वह जी भर रवि से बात कर पाती। आज भी रवि का फोन आया।

रवि- कैसी हो मां? तुम्हारी तबीयत कैसी है?

सुमन- हां हां बेटा मैं बिल्कुल ठीक हूं बस तेरी आवाज सुन लेती हूं ना दिल को सुकून मिल जाता है। यह बता बहू और बच्चे कैसे हैं?

रवि- सब कुछ अच्छा है मां और पता है तुम्हारी बहू ने बिल्कुल तुम्हारी तरह आलू के पराठे बनाए, जैसे तुम मुझे बना कर खिलाया करती थी। बिल्कुल वही स्वाद मुझे तो ऐसा लगा कि अब तो मैं इतना टेस्टी पराठा यही खा पाऊंगा।

सुमन (उदास होते हुए)- चलो अच्छा है, अब तुझे मेरी याद नहीं आएगी। अब तुम सब यहां कब आओगे?

रवि- मां बार-बार हमें आने के लिए मत बोला करो क्योंकि अब हमारे पास टाइम नहीं है कि दिन भर दौड़ कर आपके पास आ जाएंगे और आप की सेवा करते रहें। यहां अपने बच्चों का एडमिशन भी करवाना है और मुझे अपनी नौकरी की वजह से समय भी नहीं मिलता। अब मैं फोन रखता हूं, जब समय मिलेगा तब करूंगा।

रात होने पर सुमन दीनानाथ से पूछती है- बहू ने अगर मेरी जगह ले ली हो, तो भला मेरे बेटे को मेरी याद क्यों आएगी अब लगता है बुढ़ापा ऐसे ही बिताना होगा। ( उदास होते हुए)

दीनानाथ- सहीं कहती हो अब तो रवि का ज्यादा फोन भी नहीं आता और वह अपने काम और परिवार में ही व्यस्त रहने लगा है।

इधर रवि को अपनी मां और बाबू जी की बहुत याद आती है लेकिन अगर वह अपनी पत्नी को बोलता तो उसे बुरा लग जाता। एक दिन अचानक रवि और उसकी पत्नी का झगड़ा होने लगा।

रवि- तुमसे मैं नाश्ता बनाने के लिए कहता हूं, तो वह भी तुमसे नहीं होता। मेरी जो नौकरी थी वह भी छूट गई है अब मैं नई नौकरी के बारे में सोच रहा हूं। मैंने मां से झूठ भी कह दिया कि तुमने बहुत अच्छा आलू का पराठा बनाया है उसे कितना बुरा लगा होगा।

रवि की पत्नी रश्मि- अगर तुमने ऐसा कहा है, तो मैंने तो नहीं कहा था ना मैंने अपने जीवन में आज तक आलू का पराठा नहीं बनाया है। मेरे पापा के यहां तो मैं बड़े ऐशो आराम से रहा करती थी। मुझे तो वहां किचन में जाने की जरूरत ही नहीं थी लेकिन फिर भी मैंने तुमसे शादी की क्योंकि मुझे लगा कि तुम मेरे लिए परफेक्ट हो। ( ताने मारते हुए)

रवि- अरे मैं तो अपने मां बाप के बुढ़ापे का सहारा था पर तुम्हारी वजह से मैंने अपना गांव छोड़ा और शहर में आकर नौकरी ढूंढने लगा।

रश्मि- तुम बात बात पर मुझे ताने मत मारा करो। तुम खुद चाहते थे अपने मां बाप को छोड़कर यहां आकर बस जाओ।

अब तो रवि और रश्मि के झगड़े बढ़ते ही जा रहे थे रवि घर में भी फोन नहीं करता और अगर घर से मां बाबू जी फोन लगाते तो रवि काम का बहाना करके टाल देता अब उसे भी अपने मां बाप बोझ लगने लगे और वह सोचने लगा कि जल्द से जल्द वह अपने लिए शहर में ही नया घर ले ले ताकि किसी प्रकार की दिक्कत ना हो।

अब सुमन और दीनानाथ दुखी रहने लगे क्योंकि वह समझ गए थे उनका बेटा वापस नहीं आएगा और बुढ़ापे का सहारा नहीं बन पाएगा। एक दिन अचानक दीनानाथ जी को एक उपाय सूझा और उन्होंने खुश होकर सुमन को बुलाया

सुमन- क्या बात है जो आज इतना खुश हुए जा रहे हो?( आश्चर्य से)

दीनानाथ- तुम्हें याद है हमारे घर के बगल में 4 कमरे हैं। ऐसे भी वहां पर कोई नहीं रहता और हमने उसे इसलिए बनवाया था कि हमारा बेटा अपने परिवार के साथ वहां आराम से रह सके लेकिन अब वह यहाँ नहीं आएगा और इसलिए मैंने सोचा है कि क्यों ना हम उन कमरों को स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को किराए से दे दे ताकि हमारे लिए वह बुढ़ापे का सहारा बन सके और उनकी बदौलत ही हम आगे खुश रह सके।

सुमन- अरे वाह यह तो बहुत अच्छी बात कही आपने। ऐसे में उन बच्चों को सहारा मिल जाएगा और उन बच्चों के कारण हमें बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा। लेकिन कल को अगर रवि यहां जाए तो हम उसे क्या जवाब देंगे? ( सोचते हुए)

दीनानाथ- जो रवि ने स्वार्थ के लिए हम बूढ़े मां बाप को छोड़कर दूसरे शहर में जाकर बस गया और अब तो हमें वह पूछता भी नहीं, ना ही फोन करता है ना यहां आना चाहता है हम उसके लिए कब तक राह देखते रहेंगे? उन मासूम बच्चों के कारण ही हम खुश रह सकेंगे और हमारा घर भी खुशहाल रहेगा।

कुछ ही दिनों में उन चार कमरों में कई सारे बच्चे आ गए जो किराए से रहने लगे और साथ ही साथ खाली समय में सुमन और दीनानाथ जी के साथ आकर बातें करने लगे जिससे सुमन और दीनानाथ जी को बहुत अच्छा लगने लगा और दिन भर की थकान और दुख, दर्द खत्म होने लगा।

किसी तरह जब यह बात रवि को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा कि उसके ही माता-पिता ने ऐसा किया लेकिन वह समझ चुका था कि उसने भी अपने मां-बाप को छोड़ कर अच्छा नहीं किया।

तभी वहां पर किराए पर रहने वाला एक बच्चा आकर कहता है- ताऊ जी क्या हमें कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए?

दीनानाथ- नहीं बेटा हमें किसी का भी दिल नहीं दुखाना चाहिए क्योंकि जब भी हम किसी का दिल दुखाते हैं ना, तो कहीं ना कहीं हम गलत कर रहे होते हैं, जो हमें उस समय समझ नहीं आता। ऐसे में अच्छा होगा अगर हम सबको खुश रखे, तो हम हमेशा खुश रह सकते हैं। और हमेशा उम्मीद उन्हीं से रखो,जो तुम्हारे उम्मीद पर खरे उतर सकें।

बच्चा तो वहां से चला गया लेकिन सुमन और दीनानाथ समझ चुके थे कि उनकी खुशी उनके हाथ में ही हैं और अब उन्हें किसी की जरूरत नहीं है बुढ़ापे के सहारे के लिए क्योंकि उनका सहारा अब वे खुद ही हैं।

FINAL WORDS

आज के वैश्विक समाज में घर से दूर जाना मजबूरी है। मजबूरी हो कर ही कोई इतना बड़ा फैसला ले पाता हैं, परन्तु घर परिवार को संभालने की जिममेदारी से दूर कभी नहीं भागना चाहिए।

अपने आर्थिक लाभ के लिए घर से दूर जाने में बच्चे की कोई गलती नहीं होती है। हर कोई चाहता है कि वह अपने घर वाले के पास रहे, लेकिन भविष्य की चिंता और ज़िन्दगी के उतराव चढ़ाव ही हमें अपनो से दूर करते है, इसमें माहौल में दोनों को Adjust करना चाहिए, थोड़ा बच्चो को तो थोड़ा parents को भी, लेकिन कभी नहीं वाला अवसर कभी नहीं आए।

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Raj Kumar Yadav
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मैं बुद्ध की धरती, गांधी की कर्म भूमि, चाणक्य का मगध, अशोक की जन्मभूमि, बिहार का रहने वाला हूं। कहा जाता है ना, हर कोई कोई ना कोई स्पेशल गुण के साथ पैदा होता है। Motivational speaker भी कहते है, पहचानो अंदर, तुम किसके के लिए बनें। तुम्हारा पैशन क्या है? और ये जो पैशन है, यह मुझे बचपन में ही पता चल गया था कि मैं लिखने के लिए बना हूं। मैं ड्रामा, कहानी सब शौक के लिए लिखता हूँ। एक बात और है, मैं जो भी लिखता हूं, वह सब one take में लिख देता हूं। फिलहाल मैं Freelancing, Content writer, YouTube script, Stage artist, Content creator, Story writer इतना सब करता हूं।

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