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एक यादगार सफर Hindi Story

Hindi Inspirational Story यादगार सफर

यादगार सफर : एक कहानी

आज नेहा बहुत डरी हुई थी न जाने क्यों उसे अकेले सफर करने में डर लग रहा था? आज तक वह पापा मम्मी और भाई के साथ सफर करते आई थी लेकिन उसे क्या पता था कि 1 दिन ऐसा भी आएगा जब पूरे 1 दिन का सफर उसे अकेले ही करना पड़ेगा। जल्दी-जल्दी उसने सामान पैक किया और रेलवे स्टेशन की ओर निकल पड़ी।

नेहा मन में – हर बार जब मां मेरे साथ होती थी तो मुझे कोई भी डर नहीं लगता था। आज पहली बार अकेले सफर करने पर न जाने मुझे अजीब क्यों लग रहा है? आखिर मैं ट्रेन में अकेली तो नहीं।

नेहा मन में विचार कर ही रही थी कि उसके बगल में आकर एक बुजुर्ग दंपत्ति बैठ जाते हैं और वह महिला नेहा से पूछती है – कहां जा रही हो बेटा? वह भी अकेले अकेले तुम्हारे मम्मी पापा नजर नहीं आ रहे।

नेहा को वह बात याद आ जाती है, जो मम्मी ने बचपन में उसे बताई थी कि कभी भी अकेले में किसी अजनबी से बातें नहीं करना क्योंकि कभी-कभी किसी अजनबी से बात करना खतरनाक हो सकता है।

बुजुर्ग आंटी नेहा को देखकर सवाल करती रही, लेकिन नेहा खिड़की की तरफ चेहरा करके बैठ गई।

अंकल- अरे रहने भी दो क्यों पूछ रही हो? आजकल के बच्चे हम बुजुर्गों को नहीं समझ सकते, अरे वह जमाना तो और था जब हमारी इज्जत हुआ करती थी।

कुछ ही देर में ट्रेन में झाड़ू लगाने वाला बच्चा आता है, जो नेहा को देखकर पैसे मांगने लगता है लेकिन नेहा उसे पैसे नहीं देती और डांटते हुए कहती है- तुम मेरी चप्पल चुराना नहीं। मैंने सुना है ट्रेन में चोरी बहुत होती है।

बच्चा- नहीं दीदी हम तो अपना काम ईमानदारी से ही करते हैं, चोरी नहीं करते।

नेहा- अरे सब पता है मुझे। [ डांटते हुए ]

नेहा का ऐसा रुखा व्यवहार देखकर आसपास के लोग भी आश्चर्यचकित हो रहे थे बेवजह उसने बच्चे को क्यों चिल्ला दिया? वह बच्चा भी चुपचाप वहां से चला गया क्योंकि वह समझ गया था कि नेहा उसे पैसे नहीं देगी।

धीरे-धीरे समय बढ़ता जा रहा था और नेहा की घबराहट बढ़ रही थी क्योंकि 2 घंटे में ही रात होने वाली थी और सोच सोच कर डर रही थी कि रात का सफर अकेले कैसे तय करेगी? नेहा का ऐसा सोचना ही था कि तभी बगल वाली बर्थ पर 25 से 30 वर्षीय लड़का आकर बैठ गया।

नेहा उस लड़के को देखकर डरने लगी क्योंकि भाई ने साफ-साफ कहा था कि किसी भी लड़के से बात नहीं करना। ऐसा लग रहा था वह लड़का कुछ जल्दबाजी में घर से निकला है क्योंकि ना ही उसने पानी रखा था और ना टिफिन।

लड़का [नेहा से]- माफ करिएगा क्या आप मुझे पानी दे सकती हैं? दरअसल मैं जल्दबाजी में पानी की बोतल रखना भूल ही गया।

नेहा- सॉरी मैं नहीं दे सकती। तुम्हें अपनी बोतल साथ में लाना था। थोड़ी ही देर में पानी की बोतल बेचने वाला कोई आए तो तुम ले लेना।

नेहा की इस बात से लड़का उसे घूर घूर कर देखने लगा कि आखिर कोई पानी को कैसे मना कर सकता है? यह सब कुछ वह बुजुर्ग दंपत्ति भी देख रहे थे।

आंटी – बेटा वह बेचारा प्यासा है, तुम उसको पानी क्यों नहीं दे रही हो? [ सवालिया नजरों से]

नेहा – क्योंकि वह मेरे लिए अजनबी है और आप लोग भी मुझसे ज्यादा बातें मत करिए मेरी मम्मी ने मना किया है।

लड़का – कोई बात नहीं आंटी।

आंटी को उस लड़के पर दया आ जाती है क्योंकि उसे बार-बार खासी आ रही थी और आंटी ही अपना थोड़ा सा पानी उस लड़के को दे देती हैं। लड़का समझदार था और वह देख रहा था कि उनके पास भी पानी नहीं है और इसलिए वह पानी नहीं लिया लेकिन आंटी ने जबरदस्ती उसे पिला दिया ताकि उसका गला ठीक रहे।

लड़का – थैंक यू आपने मेरी मदद की।

पूरे रास्ते नेहा किसी से बात ही नहीं करती वह चुपचाप बैठी रहती और किताबें पढ़ती रहती। लेकिन वह लड़का अपने अच्छे व्यवहार से बुजुर्ग दंपति का दिल जीतने लगा क्योंकि वह पढ़ा लिखा और समझदार लड़का था लेकिन उन लोगों के हंसने की आवाज नेहा को खटकने लगी और वह उन्हें घूर घूर कर देखने लगी।

धीरे-धीरे रात बढ़ने लगी और ट्रेन की रफ्तार भी। नेहा की आंखों से नींद कोसों दूर थी बार-बार वह मोबाइल को देख रही थी लेकिन मोबाइल में टावर ही नहीं था कि वह अपने मम्मी पापा से बात कर सके।

कभी वह सामान को देखती, तो कभी खिड़की के बाहर देखने लगती। उसी वक्त वहां पर टीटी आ जाता है और वह सभी की टिकट देखने लगता है। जैसे ही वह नेहा के पास आता है तो वह जल्दबाजी में ही उठ बैठती है।

टीटी- अरे मैडम जल्दी जल्दी टिकट दिखाइए हमें और भी टिकट चेक करना है।

नेहा – 2 मिनट

नेहा अपने पूरे बैग को छान मारती है लेकिन उसको कहीं भी टिकट नजर नहीं आती और ऐसे में वह डर जाती है, डर की वजह से वह रोने लगती है। तभी उस लड़के को नेहा की टिकट नीचे पड़ी हुई मिलती है जिसे उठाकर वह नेहा को देता है जिससे नेहा को थोड़ी राहत मिलती है।

टीटी के जाने के बाद नेहा फिर से ही लेट जाती है और अब उसे नींद आ जाती है। सुबह करीब 4:00 बजे उसकी नींद खुलती है और उसी समय उसे एहसास होता है कि उसके पास रखा हुआ बैग गायब है। अब तो उसे कुछ भी समझ में नहीं आता कि वह क्या करें? उसे परेशान देखकर बुजुर्ग आंटी पूछती हैं

आंटी – क्या बात है बेटा बहुत परेशान लग रही हो सब ठीक तो है?

अब नेहा क्या करती वह रोते हुए आंटी को अपने बैग खो जाने की बात बताती है और वह लड़का भी उठ जाता है। नेहा पूरे डिब्बे में अपने सामान को खोजते रहती है और लोगों से सामान के बारे में पूछती है। नेहा की मदद बुजुर्ग आंटी अंकल ही करते हैं जो अपने डिब्बे के अलावा दूसरे डिब्बे में भी जाकर उसके सामान की खोजबीन करने लगते हैं लेकिन किसी को भी उसके सामान के बारे में नहीं पता होता।

लड़का समझदार रहता है और इसीलिए वह फटाफट सामान गुम होने की कंप्लेन करता है और अगले स्टेशन पर नेहा को उसका सामान मिल जाता है।

नेहा मन में – मैं बहुत बुरी हूं इन लोगों ने मेरी कितनी मदद की और मैंने तो इन से ठीक से बात भी नहीं की।

आंटी – अब तो खुश हो ना तुम्हारा सामान मिल गया। एक बात याद रखना कि जब भी अकेले सफर करो तब सामान को जंजीर से बांधकर रखो।

नेहा – मुझे माफ कर दीजिए आंटी अंकल मैंने आप लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। भैया आप भी मुझे माफ करिए, रात को मैंने आपको पानी नहीं दिया इस बात का एहसास मुझे अब हो रहा है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए खासतौर से जब हम सफर कर रहे होते हैं।

लड़का – अरे वह बात तो मैं कब का भूल गया? [हंसते हुए]

अंकल – देखो बेटा यह बात तो सही है जब भी हम सफर करें तो कभी भी किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ज्यादातर चोरी ट्रेन में ही होती है, लेकिन हर इंसान बुरा नहीं होता। अब यह तुम्हारी समझदारी पर निर्भर करता है कि तुम किसी इंसान के बारे में कितनी जल्दी फैसला करती हो?

नेहा- जी हां अंकल मुझसे गलती हो गई। आप लोग तो बहुत ही अच्छे हैं आपकी मदद से ही मेरा सामान मुझे मिला वरना मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।

आंटी- अब बहुत हो गया रोना-धोना इसे खा कर तो देखो इसे मैं खुद बना कर लायी हूँ। मैंने सफर के लिए थोड़ा नमकीन बना ली थी अब तुम बच्चे मिल गए हो तो तुम भी इसे टेस्ट करके बताओ कैसा बना है?

इसके बाद नेहा और वह लड़का आंटी अंकल के साथ अच्छे से बातें करने लगते हैं नेहा को समझ आ जाता है कि अच्छे इंसान की पहचान करना हमें आना चाहिए ताकि जीवन में हम सच्चे इंसानों की कदर कर सके और उन्हें अपना सके। इसी प्रकार की गलती हम अपने जीवन में हर रोज करते रहते है।

दोस्तों, यह एक ऐसी कहानी है जो हम सभी के साथ घटित होती है। जीवन में कई ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें कई सारे अजनबी लोगों के साथ उठना बैठना पड़ता है।

ऐसे में हमें सतर्क रहने की जरूरत है लेकिन भले और सच्चे इंसानों को पहचानना भी एक कला है। ऐसे में कोशिश करनी चाहिए कि कभी किसी का दिल ना दुखाए और हमेशा हंसते मुस्कुराते रहें। जिस प्रकार दुनिया में सभी लोग अच्छे नहीं है, उसी प्रकार दुनिया में सभी लोग बुरे नहीं है।

कई बार हम यह गलती करते है कि माइंड में पहले से बुरा सोच कर रख लेते है,जिसकी वजह से अच्छे इंसान के साथ भी बुरे से पेश आते है। जिसके वजह से हम से एक अच्छा इंसान को पहचानने में गलती हो जाती है। हमेशा अपने आप को सहज, सजग और जागरूक इंसान के रूप में रखें और अपनी सोच को सकारात्मक बना के रखें।

 

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