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धार्मिक परंपरा व आस्था 8 Mins Read

मानव मन और ब्रह्माण्ड की सीमा

Mahesh YadavBy Mahesh YadavNo Comments8 Mins Read
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मानव मन ही ऐसी चीज है जो कभी भी शांत नहीं रहता, हम हमेशा अपने मन के कारण इस ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं भले ही हमारा शरीर व पैर एक जगह पर स्थित क्यों ना हो परंतु हमारा मन कभी भी स्थित दशा में नहीं रहता।

इसीलिए हम ब्रह्मांड का कुछ हिस्सा अपने मन के बलबूते ही महसूस कर लेते हैं, क्योंकि हम एक चीज को देखने बाद उससे जुड़ी अन्य चीजों की कल्पना अपने मन में करने लगते हैं।

एक वस्तु को देखने के बाद, दूसरी अन्य चीज के बारे में हम अपने मन के विचारों के कारण उसे अपने आंतरिक आंखों से देख लेते हैं।

बहुत सारे लोगों को मानव मन से सारे ब्रह्मांड की कल्पना करने में बहुत आसानी रहती हैं परंतु इस कल्पना और वास्तविक ब्रह्मांड में अत्यधिक अंतर है।

इस कारण हर कोई ब्रह्मांड की कल्पना सही नहीं कर पाता अर्थात लोगों को अपनी आंखों से जैसा नजर आता है वे वैसे ही ब्रह्मांड की कल्पना कर लेते हैं,ना ही हमारे मन से कभी इस ब्रह्मांड की सीमा हमें नजर आती है और ना ही वास्तविक रूप से कोई इस ब्रह्मांड की सीमाओं का ज्ञान हासिल कर पाया है।

इसका मुख्य कारण यही है कि किसी भी किताब में ब्रह्मांड के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलती ना ही इस ब्रह्मांड में रहने वाले प्राणियों का वर्णन एक ही किताब में कर पाना संभव है।

प्रत्येक व्यक्ति का इस ब्रह्मांड को देखने का अलग-अलग दृष्टिकोण रहा है। हम आपको इस लेख में ऐसी ही मानव मन से संबंधित कुछ सीमाएं बताने जा रहें हैं जो वास्तव में ही मानव मन को संतुष्टि देने लायक हैं।

मानव मन के अनुसार यह ब्रह्मांड कैसा है?

क्या आपने कभी अपने मन से इस ब्रह्मांड की कल्पना की है प्रत्येक व्यक्ति जिस नजरिए से इस ब्रह्मांड को देखता है वह उसी प्रकार उसकी कल्पना अपने मन में करने लगता है।

इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति शब्दों में ब्रह्मांड की व्याख्या अलग अलग है। क्योंकि ब्रह्मांड का कभी अंत मिलता ही नहीं।

दरअसल ब्रह्मांड की सीमा ना होने के कारण यहां लोगों के अनेकों विचार अलग-अलग कल्पनाएं प्रदर्शित करते हैं।

भले ही वैज्ञानिक तौर तरीकों से ब्रह्मांड की वास्तविकता भी हासिल कर ली गई है लेकिन वास्तविकता में कोई भी साधारण मनुष्य यकीन नहीं करना चाहता।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति कब और किसने की इस बात का अभी तक भी कोई सही सबूत नहीं मिल पाया कहे तो वैज्ञानिकों द्वारा भी कुछ अधूरी सच्चाईयों के बलबूते ही अनुमान लगाया जाता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति आखिर कब और कैसे हुई।

परंतु मानव मन के हिसाब से भगवान ने इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति की और मानव ने खुद की आवश्यकताओं के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार किया तथा इस बात पर जोर रखा गया कि संपूर्ण ब्रह्मांड का मुख्य कारण मनुष्य ही रहा है।

भले ही इसके साथ ब्रह्मांड में अन्य जीव-जंतुओं ने भी उसके विस्तार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो परंतु आखिरी महत्व सिर्फ मानव जाति को ही मिलता है।

मानव मन से ब्रह्मांड की सीमाएं कहां हैं?

विचारों में अंतर के कारण ब्रह्मांड की सीमाएं भी सभी के लिए अलग अलग ही रही हैं।

भले ही ब्रह्मांड की सीमाएं निश्चित हो, परंतु इस निश्चितता को कोई भी नहीं पहचान सका और प्रत्येक व्यक्ति के विचारों के अनुसार ब्रह्मांड की सीमाएं अनंत हैंl

लेकिन इन अनंत सीमाओं का ज्ञान आज तक किसी को भी वास्तविक तौर पर समझ नहीं आया प्रत्येक मनुष्य का मन सिर्फ उतनी ही कल्पना कर सकता है जितना एक मनुष्य अपनी आंखों से देख पाता हैl

अतः मनुष्य के लिए उसका ब्रह्मांड सिर्फ वही रहता है जितना उसे नजर आता है या वह जितने दूर तक कभी अपने कार्य क्षेत्र में गया हो ।

चूंकि अपने जीवन में जिम्मेदारियों की वजह से मनुष्य के लिए इस संपूर्ण ब्रह्मांड को भौतिक तौर पर देख पाना संभव नहीं।

इसी कारण एक मनुष्य इस ब्रह्मांड की कल्पना सिर्फ अपनी कल्पना या कुछ अन्य चीजों द्वारा कर सकता है। इसलिए संक्षेप में कहें तो ज्यादातर लोगों के लिए इस ब्रह्मांड की सीमाएं अनंत हैं।

ब्रह्मांड में उपस्थित जीव जंतु

ब्रह्मांड में वैसे तो बहुत सारे जीव जंतु उपस्थित हैं और अलग-अलग प्रजातियों के जीव जंतु का भोजन और जीवनशैली में भी विभिन्नता पाई जाती है।

प्रत्येक जीव जंतु कैसे अपना जीवन यापन करते हैं यह भले ही वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया हो परंतु प्रत्येक व्यक्ति को जीव जंतु के बारे में आज भी पता नहीं होगा!

क्योंकि ब्रह्मांड है ही इतना बड़ा यहां प्रत्येक व्यक्ति को समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण वह हमेशा अपने कार्यों में ही उलझे रहते हैं उन्हें कभी वक्त नहीं मिलता कि वे जीव जंतुओं के बारे में विस्तार से जान सके।

इसलिए ब्रह्मांड में जीव जंतु अपने तरीकों से अपना जीवन यापन करते हैं।

इसलिए ब्रह्मांड में निवास करने वाले विभिन्न जीव जंतुओं को इस ब्रह्मांड में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसीलिए यहां प्रत्येक जीव जंतु एक दूसरे के साथ दुश्मन के समान व्यवहार करते हैं।

इस तरह देखा जाए तो जीव जंतुओं को नहीं ब्रह्मांड वहीं तक नजर आता है जहां तक कि वे अपने कार्यों के लिए घूमते हैं। उससे बड़ा ब्रह्मांड किसी भी जीव जंतुओं को ना ही नजर आता है और ना ही ये उसकी कल्पना कर पाते हैं ।

जैसे एक मेंढक सिर्फ कुएं में रहता है,तो उस बैठक के लिए संपूर्ण ब्रह्मांड ही वह कुआं है परंतु जब वह मेंढक कुएं से बाहर आकर बाहर की दुनिया देखता है तो उसे एहसास हो पाता है कि यह ब्रह्मांड बहुत बड़ा है जिसकी कल्पना वह धीरे-धीरे अपने नजरों में करने लगता है।

इस कारण किसी भी जीव जंतु के लिए ब्रह्मांड की कल्पना करना वास्तविक तौर पर निश्चित नहीं है ।

पुराणों के अनुसार ब्रह्मांड की सबसे बड़ी ताकतें

पुराणों को पढ़ने के बाद ऋषि-मुनियों ने संपूर्ण ब्रह्मांड की कल्पना की और उन्होंने वही ज्ञान अपने शिष्यों को बांटा परंतु फिर भी उन ऋषि-मुनियों का मानना है कि इस पृथ्वी में सबसे शक्तिशाली पंचतत्व हैं।

पंचतत्व से ही हमें सब कुछ प्राप्त होता है तो ऐसे ही कुछ ताकतों का उन्होंने वर्णन किया जिसके बिना हमारा जीवन इस ब्रह्मांड में संभव नहीं है ।

1. अन्न देव

अन्न में इतनी ताकत है, जिसके कारण हम अपने जीवन भर स्वस्थ रह सकते हैं। यदि हम अन्न का उपभोग नहीं करते तो हमारा जीवन भी तनिक क्षण में समाप्त हो जाता है।

इसीलिए एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए हमें सबसे पहले इस ब्रह्मांड में अन्न की जरूरत होती है। जिसे हम अन्नदाता या अन्य देवता के नाम से भी जानते हैं अन्न से ही हमारा शरीर बनता है तथा अन्र से ही हमारा शरीर बिगड़ता है।

2. धरती मां

धरती मां अन्न देव से भी बड़ी होती है क्योंकि हम अपनी माता के गर्भ से जन्म लेकर धरती मां के गर्भ में आते हैं। हमारी मां हमारा लालन पालन करती है, वहीं धरती मां हमारे पोषण हेतु उपयुक्त आहार प्रदान कर हमारे शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

धरती मां सिर्फ हमारी ही नहीं बल्कि ब्रह्मांड में उपस्थित प्रत्येक जीव जंतुओं की मां होती है और अपने गोद में उपस्थित सभी जीव जंतुओं का पोषण भी धरती मां के द्वारा ही किया जाता है।

3. जल

पृथ्वी में उपस्थित जल लगभग वह प्रत्येक वस्तु से शक्तिशाली है इसका उपयोग ब्रह्मांड में जीव जंतु अपने जीवन में करते हैं ।

अर्थात पृथ्वी में उपस्थित जल की मात्रा इतनी है कि इसका कोई भी सामना नहीं कर सकता और ना ही इसके बिना हमारा जीवन संभव है।

यदि पृथ्वी में जल नहीं होता तो यहां उपस्थित अरबों लोगों का जीवन भी संभव होता। इसीलिए जल सबसे शक्तिशाली व महत्वपूर्ण चीज है जिसके कारण संपूर्ण ब्रह्मांड अपनी भौतिक अवस्था में रह सकता है।

4. अग्नि

अग्नि भी पृथ्वी में उपस्थित ऐसी शक्तिशाली चीज है जिसके कारण लाखों लोगों का जीवन पल भर में समाप्त हो सकता है। परंतु लोगों को इस बात की समझ होने के कारण वे लोग अग्नि का सही इस्तेमाल करते हैं।

इसे कभी भी अपने प्राणों के लिए हावी नहीं होने देते।

इस कारण आज तक अग्नि का भयानक रूप कम ही देखा जाता है। परंतु कभी-कभी मनुष्य की चंद गलतियों के कारण भी अग्नि भयानक रूप धारण करते ही जिससे बड़ी मात्रा में जन, धन की हानि होती है।

5. वायु

कल्पना कीजिए यदि महज 1 मिनट के लिए भी इस पृथ्वी से वायु समाप्त हो जाए तो क्या होगा?

जी हां, हम वायु की अनुपस्थिति में अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।

वायु इतनी महत्वपूर्ण व शक्तिशाली है कि ब्रह्मांड में वायु के बिना किसी भी जीव जंतुओं अर्थात प्राणी का जीवन संभव नहीं है।

और इसी श्रेणी में शामिल है आकाश जिसकी वजह से सर्दी गर्मी जैसी विभिन्न जलवायु में हम सभी प्राणी सुखद पूर्वक अपने जीवन की बातें हैं।

तो यह थे पंचतत्व (जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी) अतः हमें इन उपयोगी चीजों का अत्यधिक सोच समझकर ही उपयोग करना चाहिए क्योंकि इन चीजों की कमी होने पर भी हमें नुकसान उठाना पड़ता है।

इसलिए हमें अपने जीवन में उन प्रत्येक चीजों का अच्छा उपयोग करना चाहिए जो हमें प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते हैं तथा उनका महत्व समझते हुए उनकी मात्रा को बढ़ाने की प्रत्येक संभव कोशिश करनी चाहिए।

हमारे मन में ऐसे ही बहुत सारे विचार दिन प्रतिदिन आते रहते हैं इसी कारण हमारी सोच से इस ब्रह्मांड की सीमाएं अनंत हैं l लेकिन वास्तव में मानव मन की अवधारणा व वास्तविक ब्रह्मांड के बीच अत्यधिक अंतर हैं।

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Mahesh Yadav
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Mahesh Yadav is a software developer by profession and likes to posts motivational and inspirational Hindi Posts, before that he had completed BE and MBA in Operations Research. He has vast experience in software programming & development.

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