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जीवनी 8 Mins Read

रेबीज के टीके के आविष्कारक लुइस पाश्चर की जीवनी

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Dec 19, 2021No Comments8 Mins Read
किण्वन की खोज फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने की
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रेबीज के टीके का आविष्कार करने वाले लुइस पाश्चर महान फ्रेंच वैज्ञानिक है। लुइस पाश्चर के आविष्कार ने विज्ञान के क्षेत्र में नई क्रांति लाई थी। रेबीज एक बहुत ही खतरनाक जानलेवा बीमारी थी जिसका इलाज किसी ने नहीं ढूंढा था जिसके कारण बहुत से लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा था।

इतना ही नहीं लुइस पाश्चर ने अपने ज्ञान से और भी कई आविष्कार किए थे जिससे मानव जगत को बहुत ही बड़ा लाभ प्राप्त हुआ था लुइस पाश्चर ने रेबीज के टीके के साथ-साथ हैजा का टीका का भी आविष्कार किया था। इस महान वैज्ञानिक के बारे में जानने के लिए उनकी इस जीवनी को पूरा पढ़ें।

लुई पाश्चर जीवनी

फ्रांस देश में जन्मे लुइ पाश्चर एक ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मानव सेवा में समर्पित कर दी। इन्होंने रेबीज वैक्सीन, एंथ्रेक्स इंजेक्शन और मिल्क पाश्चराइजेशन की खोज की थी, जिसके कारण पूरी दुनिया इनकी सदा आभारी रहेगी।

एक गरीब परिवार में पैदा होने के बावजूद लुई पाश्चर अपनी जिंदगी में कुछ विशेष करना चाहते थे और इनकी इसी जिद ने इन्हें दुनिया के महान साइंटिस्ट की लिस्ट में शामिल कर दिया।

पूरा नामलुइ पाश्चर
जन्मदिन27 दिसंबर
देशफ्रांस
जन्म साल1822
मृत्यु साल1895
खोजरेबीज वैक्सीन, एंथ्रेक्स वैक्सीन, पाश्चराइजेशन
पेशारिसर्चर और साइंटिस्ट

लुई पाश्चर का प्रारंभिक जीवन

वर्ष 1822 में 27 दिसंबर को फ्रांस देश के डोल नाम के स्थान में एक गरीब मजदूर परिवार में दुनिया के महान साइंटिस्ट की सूची में शामिल लुइ पाश्चर का जन्म हुआ था। लुई पाश्चर के पिताजी एक नॉर्मल चमड़े के कारोबारी थे।

जब लुइ पाश्चर पैदा हुए, तब इनके पिताजी की इच्छा थी कि इनका बेटा आगे चलकर के अच्छी पढ़ाई लिखाई करें और अपनी जिंदगी में एक महान और अच्छा इंसान बने इसीलिए लुइ पाश्चर के पिता अपने बेटे की पढ़ाई के लिए कर्जा भी लेने के लिए तैयार थे।

लुई पाश्चर की शिक्षा

जब लुइ पाश्चर थोड़े बड़े हुए तब इन्होंने अपने पिता के काम में उनकी सहायता करने के लिए एक स्कूल में एडमिशन लिया, जो कि अरबॉय में स्थित था, परंतु वहां पर जो भी शिक्षा करवाई जाती थी, वह लुइ पाश्चर को समझ में ही नहीं आती थी।

जिसके कारण स्कूल के दूसरे विद्यार्थी लुइ पाश्चर को बुद्धू और मंदबुद्धि कहकर परेशान करते थे। स्कूल के विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपेक्षा से परेशान होकर के लुई पाश्चर ने विद्यालय छोड़ दिया, परंतु विद्यालय छोड़ने के बाद उन्होंने कुछ ऐसा करने के बारे में सोचा, जिससे उनके स्कूल के विद्यार्थी और अध्यापक ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उनकी प्रतिभा का लोहा माने और उन्हें टैलेंटेड व्यक्ति मानकर उनका सम्मान करें।

इसके बाद जब लुइ पाश्चर के पिताजी ने उन्हें पढ़ाई करने के लिए दबाव डाला, तो लुइ पाश्चर अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पेरिस चले गए जहां जाने के बाद उन्होंने वैशाको के एक कॉलेज में एडमिशन लिया। इनका इंटरेस्ट केमिस्ट्री में बहुत ही ज्यादा था और यह केमिस्ट्री के प्रोफेसर डॉक्टर ड्यूमा से विशेष तौर पर प्रभावित थे।

कॉलेज में अपनी पढ़ाई को मेहनत के साथ पूरा करने के कारण लुई पाश्चर साइंस विभाग के प्रेसिडेंट बन गए और उसके बाद उन्होंने रिसर्च करना चालू कर दिया। लुई पाश्चर जब छोटे थे तभी उन्होंने अपने ही गांव के 8 व्यक्तियों को पागल भेड़िए के द्वारा काटने से मरते हुए देखा था और बड़े होने पर भी वह इस घटना को भूल नहीं पाए थे।

इसीलिए उन्होंने सबसे पहले जहरीले जानवरों के द्वारा काटने पर उनके जहर से मानव की मृत्यु होने से कैसे रोका जाए, इस विषय पर अध्ययन चालू किया।

जिसके लिए लुइ पाश्चर ने अपने कॉलेज की पढ़ाई को पूरा करने के बाद एक केमिस्ट्री लैब में काम करना शुरू कर दिया। उस समय सूक्ष्म वायरस की स्टडी करने वाले एकमात्र वैज्ञानिक लुइ पाश्चर थे।

पाश्चराइजेशन की खोज

शराब की टेस्टिंग करने के लिए अक्सर लुइ पाश्चर अपनी लैब में घंटों समय व्यतीत करते थे। वह शराब की टेस्टिंग करने के लिए माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करते थे। शराब की टेस्टिंग करने के लिए लुई पाश्चर ने बहुत सारी रिसर्च और टेस्ट भी किए थे।

टेस्ट करने के दरमियान लुइ पाश्चर ने इस बात पर गौर किया कि, ऐसे कई छोटे-छोटे जीवाणु होते हैं,जो शराब को खट्टा कर देते हैं। इसके साथ ही लुइ पाश्चर ने इस बात की भी इंफॉर्मेशन हासिल की कि अगर शराब को 20 मिनट से लेकर 30 मिनट तक 35 सेंटीग्रेड तक गर्म करते हैं तो जो भी जीवाणु अथवा बैक्टीरिया शराब के अंदर मौजूद होते हैं, वह नष्ट हो जाते हैं।

वही जब शराब के अंदर मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते हैं तो इससे शराब के टेस्ट पर किसी भी प्रकार का कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। लुई पाश्चर ने इस टेस्ट से प्रभावित होकर आगे चलकर के दूध को मीठा और दूध को शुद्ध बनाने के लिए भी इसी टेस्टिंग पद्धति का यूज किया़ जिसे पाश्चराइजेशन का नाम दिया गया।

लुई पाश्चर के मन में इस टेस्ट को करने के बाद एक विचार यह भी आया कि, अगर यह बैक्टीरिया इंसानों की खाने पीने की चीजों में होते हैं, तो यह बैक्टीरिया जिंदा जानवरों के खून में भी हो सकते हैं और शायद यही बैक्टीरिया इंसान या फिर जानवर को बीमार बनाने का काम करते हैं।

एंथ्रेक्स वैक्सीन की खोज

एक दिन लुइ पाश्चर जब किसी चीज पर रिसर्च कर रहे थे, तब उनके कुछ दोस्त उनसे मिलने आए और बातचीत के दरमियान ही लुई पास्चर के दोस्तों ने लुइ पाश्चर को यह बताया कि फ्रांस में हैजा नाम की बीमारी काफी ज्यादा कहर मचा रही है।

जिसके कारण वहां पर मुर्गियों के चूजे काफी बड़ी मात्रा में मरते जा रहे हैं, जिसके बाद लुइ पाश्चर ने मुर्गियों के सभी बीमार चुजों के ऊपर टेस्ट करने के बारे में सोचा और उन्होंने टेस्ट किया, जिसमें यह बात निकलकर सामने आई कि कुछ ऐसे विषाणु और जीवाणु भी होते हैं, जिनसे हमारी बॉडी के अंदर मौजूद इम्यून सिस्टम काफी मजबूती के साथ लड़ सकता है।

उन्हें खत्म भी कर सकता है। टेस्ट के दरमियान लुइ पाश्चर ने इस बात पर भी गौर किया कि जो मुर्गियों के छोटे बच्चे मर गए थे उनके खून के ऊपर छोटे-छोटे जीवाणु घूम रहे थे।

इसके बाद लुइ पाश्चर ने बड़ी ही सावधानी के साथ मुर्गियों की बॉडी के ऊपर घूम रहे बैक्टीरिया को निकाला और उन्हें अलग किया और इसके बाद उन्होंने बैक्टीरिया को एक विशेष प्रकार के लिक्विड में डाला, जिसके बाद सभी बैक्टीरिया नष्ट हो गए।

इसके बाद उन्होंने एक इंजेक्शन क्रिएट किया और उस इंजेक्शन को उन बीमार मुर्गियों के बच्चों को लगाया।इस प्रकार इस इंजेक्शन को एंथ्रेक्स इंजेक्शन का नाम दिया गया। यह इंजेक्शन लगाने के कुछ ही घंटों के बाद धीरे-धीरे मुर्गियों के बच्चे स्वस्थ होने लगे।

अपने इस टेस्ट के सफल होने के बाद लुइ पाश्चर काफी खुश हुए और खुशी के दरमियान ही उन्हें फिर से एक नया आईडिया जाए, जिसके अंतर्गत उन्होंने यह सोचा कि जब यह इंजेक्शन मुर्गियों के छोटे बच्चों को स्वस्थ कर सकता है तो क्या यह इंजेक्शन गाय या फिर बीमार भेड़ को स्वस्थ नहीं कर सकता।

इसके बाद लुइ पाश्चर ने यही इंजेक्शन कुछ गाय और भेड़ों पर लगाया, परंतु यह इंजेक्शन उनके ऊपर काम नहीं किया, परंतु इस इंजेक्शन के कारण गाय और भेड़ बीमार कम पड़ती थी।

रेबीज वैक्सीन की खोज

एंथ्रेक्स वैक्सीन की खोज करने के बाद भी लुइ पाश्चर शांति से नहीं बैठे, क्योंकि उनके मन में अब और नए एक्सपेरिमेंट करने की इच्छा जागने लगी। इसी प्रकार उन्होंने फिर से कुछ नए एक्सपेरिमेंट करने स्टार्ट कर दिए और एक्सपेरिमेंट करते करते ही उन्होंने रेबीज नाम की वैक्सीन की खोज कर दी।

रेबीज वैक्सीन का इस्तेमाल कुत्तों के काटने के बाद उसके इन्फेक्शन को बॉडी में फैलने से रोकने के लिए किया जाता है और वर्तमान के समय में भी जब किसी व्यक्ति को कोई पागल कुत्ता काट लेता है, तो वह व्यक्ति सबसे पहले अस्पताल जाकर या फिर किसी भी प्राइवेट क्लीनिक जाकर रेबीज वैक्सीन ही लगाता है। ऐसा करने से उसकी बॉडी में कुत्ते के द्वारा काटे गए जहरीले तत्व नहीं फैलते हैं।

लुइस पाश्चर की मौत

रेबीज वैक्सीन की खोज करने के बाद भी लुई पाश्चर के मन में नए एक्सपेरिमेंट करने की इच्छा समाप्त नहीं हुई थी और इसीलिए उन्होंने रेशम के कीड़ों के रोग के उपचार के लिए रिसर्च करना स्टार्ट कर दिया और उन्होंने लगातार इसके ऊपर 6 साल तक रिसर्च की, जिसके कारण वह धीरे-धीरे बीमार रहने लगे।

इसके बाद लुई पाश्चर को लकवा हो गया, परंतु फिर भी उन्होंने अपना काम करना नहीं छोड़ा। अंत में उनकी बॉडी ने काम करना बंद कर दिया, जिसके कारण साल 1895 में लुई पाश्चर की मौत 73 साल की उम्र में हो गई और उन्होंने इस दुनिया को छोड़ दिया ।

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Mahesh Yadav
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Mahesh Yadav is a software developer by profession and likes to posts motivational and inspirational Hindi Posts, before that he had completed BE and MBA in Operations Research. He has vast experience in software programming & development.

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