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लोक व्यवहार 8 Mins Read

मेरी बेटी, मेरा अभिमान

Jyoti YadavBy Jyoti YadavNo Comments8 Mins Read
Save the girl child in Hindi
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Meri Beti Mera Abhiman with effects & our society, आज भी हमारे समाज में बेटियों की तुलना में बेटों को अधिक महत्व दिया जाता है, हालांकि 21वीं सदी में कुछ माता पिता अपनी बेटी और बेटे को एक समान दर्जा दे रहे हैं इसका कारण इनका पढ़ा लिखा होना है।

आज भी कुछ मां बाप जो कम पढ़े लिखे हैं बेटी की तुलना में अपने बेटों को ज्यादा दर्जा दिया करते हैं। वे समझते ही नहीं कि बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं होता, अगर बेटियों को कुछ करने का मौका दिया जाए तो शायद वे भी अपने बूढ़े मां बाप की जिम्मेदारियां अपने सर पर ले सकती हैं परंतु जब उन्हें यह मौका दिया जाए तब ना…।

आज भी पिछड़े इलाकों में लड़कियों के साथ भेदभाव की घटनाएँ देखने को मिलती है, ना ही उन्हें स्कूल भेजा जाता हैं और ना ही उन्हें घर से ज्यादा बाहर निकलने दिया जाता। वे लोग आज भी रुढ़िवादी सोच को मानते हैं। शायद अगर वे यह तथ्य समझ पाते कि लड़कियां भी होनहार होती हैं।

पारम्परिक सोच के लोग मानते हैं बेटियों का काम सिर्फ चूल्हा संभालना और घर की देखभाल करना होता है, वे यह नहीं समझ पाते कि बेटियां भी समाज में कोई अच्छी नौकरियां करके अपने माता पिता का नाम रोशन कर सकती हैं, उनके मन में सिर्फ यही ख्याल आते हैं, कि बेटियां इस काम के लिए बनी ही नहीं हैं।

हालांकि आज 21 वीं सदी में लड़कियों के साथ भेदभाव के मामले कुछ जरुर कम हुए हैं, लेकिन देश की स्तिथि बदलने के लिए बड़े पैमाने पर परिवर्तन की जरुरत है, बेटियों को कम आंकने का अंदाजा हम छोटी छोटी बातों से लगा सकते हैं, जैसे आज भी अनेक मौकों पर लड़कियों से पहले लड़कों को खाना खिलाया जाता है।

अक्सर टीवी, समाचार पत्रों में बेटियों के साथ अपराधों और भेदभाव की ख़बरें आती है जिनसे साबित होता है कि एक शिक्षित समाज में रहने वाले लोग अभी भी अंधविश्वास की बातों में यकीन करते हैं।

ऐसे लोगों के मन में यह धारणा रहती है कि बेटी बड़ी होगी तो बेटी की शादी कर दी जाएगी और वह अपने ससुराल वालों के साथ रहेगी उसका हमसे कुछ भी लेना देना नहीं होगा और हमारे साथ तो सिर्फ उम्र भर साथ देने वाला हमारा बेटा ही होगा।

पर बेटी के मन में हमेशा अपने मां-बाप के प्रति प्रेम और स्नेह रहता है चाहे उसके ससुराल वालें उसे कितना ही प्रेम क्यों न देते हो फिर भी उसके मन में ज्यादा प्रेम अपने माता-पिता के लिए ही रहता है परंतु यह विडंबना है की आज भी कई मां बाप पता नहीं क्यों अपनी बेटी को अपने बेटों से कम समझ बैठते हैं।

मां-बाप स्वयं अपनी बेटियों के साथ भेदभाव करते हैं, जिनसे बेटियों को कई बार अपने बेटी होने पर नकारात्मक ख्याल आते हैं, जिससे वे अपने आप को इस समाज में अछूत से महसूस करते हैं।

लोग क्यों नहीं समझ पाते कि हमारी बेटी हमारी परी है, वह बेटी जो घर को रोशन कर देती हैं और शादी के बाद दो दो कुलों की जिम्मेदारियां संभालती है, हमें उसको पालने में किस बात की शर्म आती है।

प्रश्न है आखिर क्यों एक बेटी घर में होने के बाद भी क्यों गैरों की तरह होती है?

पर जब उसकी शादी कर दी जाती है, तो उसके बाद ऐसा क्यों लगता है जैसे खत्म हो गया सारा मेला, उड़ गई हमारे आंगन की एक चिड़िया और घर हो गया अकेला।

जब वह ससुराल से वापस आती है तो समझ आती है मां बाप को उसकी कीमत और वे लोग तब समझते हैं कि बेटा तो सिर्फ भाग्य से होता है और बेटियां होती हैं सौभाग्य से।

शायद हर किसी मां बाप को यही बात अपनी बिटिया की बचपन में ही समझ आ जाती तो वे लोग जब तक भी उसे अपने साथ रखते, वे ऐसे भेदभाव नहीं किया करते और अपनी परी को एक शहजादी की तरह पालते।

क्योंकि बेटी हमेशा एक परिवार में नहीं रहती, यह उसकी मजबूरी ही होती है, शादी के बाद उसे दूसरे परिवार में जाना पड़ता है, और उस परिवार में उसके इस परिवार की स्थिति व संस्कारों के बारे में पता चलता है।

इस कारण हमेशा से ही एक बेटी को ही उसके परिवार का अभिमान माना जाता है। क्योंकि बेटी अगर चाहे तो परिवार को बना सकती हैं अगर वही चाहती है तो अच्छे खासे परिवार को बर्बाद कर सकते हैं इसीलिए हमेशा से ही अपनी बेटियों को बड़े ही प्यार से पालना चाहिए और उसे ऐसे संस्कार देने चाहिए कि वह हमेशा ही दो परिवारों के बीच अच्छा खासा तालमेल बनाए रखें

एक बेटी सिर्फ एक परिवार का अभिमान नहीं होती वह दो परिवारों के बीच का अभिमान होती है।

मेरी बेटी, मेरा अभिमान यह शब्द तभी मायने रख सकता है जब हम लड़कियों के साथ भेदभाव ना करें और लड़कियों कि उन जरूरतों को पूरा करें जो लड़कियों के लिए आवश्यक माने जाते हैं

1. लड़कियों को उनकी जरूरत के हिसाब से हमें उचित शिक्षा देनी चाहिए।

11 Betiyan who made India proud

सबसे पहली जरूरत लड़कियों को एक उचित शिक्षा देना है जिससे वे अपने आप को कभी भी लड़कों से कम महसूस ना करें,उन्हें हर वह जानकारी देनी चाहिए जिससे वह अपना करियर और जीवन दोनों बेहतर बना सके।

जब लड़कियों को शिक्षा दी जाएगी तभी वह समाज में जाने से निडर बनेगी। वह असल मायनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समझते हुए समाज में कुप्रथा, भेदभाव तथा अन्य नारियों के प्रति होने वाले अत्याचार का विरोध करने का साहस रख पायेगी ।

अकसर लड़कियों को उचित जानकारी न होने के कारण उन्हे तरह-तरह के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण वे निर्दोष ही उस अत्याचार के शिकार हो जाते हैं और अपने अच्छे खासे जीवन को बर्बाद कर डालते हैं ऐसे ही न जाने कितने लोग अपने एक अच्छे खासे जीवन को बहुत ही खराब परिस्थितियों में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं

यह जिम्मेदारी सबसे पहले लड़कियों की मां बाप की होती है कि वह अपनी बेटियों को एक उचित शिक्षा का प्रावधान दे, क्योंकि शिक्षा ही मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा ज्ञान है जो सब के पास होना अनिवार्य ही माना जाता है।

प्रत्येक लड़की को उसके जीवन में होने वाले संघर्षों का ज्ञान पहले ही दिया जाना चाहिए जिसके लिए वह पहले से ही अपने शरीर को उन सिथतियो के लिए ढाल सकें।

2. लड़कियों को जीवन जीने के लिए और प्रत्येक जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाने के लिए अच्छे संस्कार देने चाहिए

अपनी बेटी को अच्छी बहू बनने के संस्कार दें

अच्छे संस्कार सिर्फ परिवार में ही दिये जाते हैं न कि विद्यालयों में, इसीलिए प्रत्येक मां-बाप की सबसे पहली जिम्मेदारी यही बनती है कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार के साथ आगे बढ़ाएं।

लड़कियों को अच्छे संस्कार देने का मतलब यह है कि उन्हें इस काबिल बनाना ताकि वे अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं का समाधान निकाल कर, कठिन समय में भी विपत्तियों से धैर्यता, कुशलता के साथ निपटकर जीवन जी सके ।

क्योकि माना जाता है अच्छे संस्कार एक आदर्श जीवन का आधार होते हैं, संस्कार अच्छे होने पर एक अच्छे परिवार से जुड़ा होने की कल्पना की जाती है इसीलिए संस्कार हमेशा अच्छे ही होने चाहिए इससे लड़कियां कहीं भी रहे समाज अवम लोगों को उनके एक अच्छे परिवार से होने की अनुभूति मिलती है।

लड़कियां जैसे संस्कार अपने माता-पिता से सीखते हैं वैसे ही संस्कारों को अपने ससुराल में प्रदर्शित करते हैं जिससे उसके ससुराल वाले उसके माता पिता द्वारा दिए संस्कारों का अनुमान लगा लेते हैं और लड़की के साथ वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं।

3. अवसर

International Day of the Girl Child

बेटों के समान ही बेटियों को भी जीवन में आगे बढ़ने के समान अवसर मिलने चाहिए। शिक्षा खेलकूद इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में जिस तरह लड़के को आगे बढ़ने के मौके मिलते हैं उसकी तुलना में लड़कियों को कमजोर समझ कर समाज उनपर अपनी मनमर्जी थोपता है।

इस वजह से कई बेटियां एक सार्थक जीवन जीने में नाकामयाब रहती हैं, और खुद के & परिवार के लिए या इस समाज के लिए कुछ अच्छा करने की उनकी काबिलियत दबी रह जाती है

अतः हमें लड़कियों को हमेशा अपना अभिमान मानकर अच्छी उन्हें भी आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए जब नारी होती है तभी नर का जीवन संभव है प्रत्येक नर को नारी का सम्मान करना चाहिए।

सीख-

हमें इस लेख से यह सीख लेनी चाहिए कि बेटियां खुद के और अपने परिवार का अभिमान रही हैं। इसलिए हमें हमेशा लड़कियों का सम्मान करना चाहिए एक लड़की अपने बचपन खत्म होते ही बहुत सारी जिम्मेदारियों के साथ अपना जीवन शुरु करती है इसलिए उसे हर एक छोटे से छोटे और बड़े से बड़े दुखों का अनुभव रहता है ।

इसलिए लड़कियां अपने प्रत्येक दुखों को झेलने की सामर्थ्य रखती है और उन्हें दुखों के बीच भी जीवन जीना आता हैI ऐसे ही बहुत सारे कारण होते हैं जिसके कारण प्रत्येक नारी बड़े ही दुख में भी अपना जीवन खुशी खुशी गुजार देती है ।

अक्सर एक बेटी अपने घर और अपने ससुराल की अभिमान कहलाती है क्योंकि वह वास्तव में अपने परिवार की सबसे शक्तिशाली सदस्य होती हैं। जो प्रत्येक चुनौती का सामना बेझिझक करने के लिए तैयार रहती है और अपने परिवार की पक्के खुशी के लिए अपनी छोटी बड़ी सारी खुशियों को त्याग देती है तभी एक बेटी अपने घर की अभिमान कहलाती हैl

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Jyoti Yadav
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