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लोक व्यवहार हिंदी कहानियाँ 8 Mins Read

ऑफिस का टशन ~ हिन्दी कहानी

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Oct 3, 2021No Comments8 Mins Read
एक ऑफिस की नई कहानी | Office story in Hindi
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Short Office story in Hindi, आज भूमिका बहुत नर्वस है क्योंकि आज उसका ऑफिस का उसका पहला दिन है। जैसे ही वह जल्दी जल्दी घर से निकलती है, तो अचानक उसे अपनी मां की याद आ जाती है। जब छोटी थी तब उसकी मां किसी नए काम की शुरुआत दही चीनी खिलाकर किया करती थी, लेकिन आज उसकी मां को गुजरे लगभग 2 साल हो चुके हैं।

बस स्टैंड में खड़े होकर वह अपनी मां के बारे में सोच रही थी कि अचानक सामने से आती हुई बस की आवाज सुनकर उसका ध्यान भंग हो गया और वह जल्दी से बस में चढ़ जाती है।

बगल वाली सीट पर एक मां अपनी बच्ची को प्यार कर रही होती है और उन्हें देख कर भूमिका की आंखों में पानी आ जाता है। अगले ही स्टॉपेज में भूमिका उतर जाती है और ऑफिस का पहले दिन मैं जैसे ही वह ऑफिस की ओर पहला कदम बढ़ाती है, तो अचानक उसके सैंडल की हील टूट जाती है जिससे वह लड़खड़ाने लगती है।

जिसे देखकर पीछे से आती हुई एक खूबसूरत सी लड़की हंसने लगती है और भूमिका उसे घूरते हुए अंदर की ओर चली जाती है।

अपनी कैबिन मैं बैठी भूमिका को चपरासी आवाज देकर कहता है- मैडम आपको चित्रांगदा मैम बुला रही हैं।

भूमिका – हां उन्हें कह दो, मैं आ रही हूँ।

जैसे ही भूमिका चित्रांगदा के केबिन में जाती है, तो अचानक ही उसे वही लड़की दिखाई देती है, जो उसकी सैंडल टूटने पर हंस रही थी। उस समय उसे यह नहीं मालूम था कि वह लड़की कोई और नहीं बल्कि उसकी सीनियर है और इस तरह से भूमिका का घूरना सीनियर को पसंद नहीं आएगा।

भूमिका – मैम आपने मुझे बुलाया?

चित्रांगदा- पहली बात तो यह कि जब भी तुम केबिन के अंदर आओ, तो नॉक करके ही आया करो। लगता है इतने बड़े मल्टीनेशनल में पहली बार काम कर रही हो इसीलिए तुम्हें काम करने का तरीका सिखाना ही पड़ेगा। [ डांटते हुए]

भूमिका- [ सिर नीचे करते हुए] मैम इससे पहले ही मैंने साउथ प्राइवेट कंपनी में मैनेजर के रूप में काम किया है।

चित्रांगदा [घूरते हुए] – मुझे अपनी अकड़ मत दिखाओ। जाओ यहां से कोई भी काम होगा तो मैं बुला लूंगी।

भूमिका अपनी केबिन में वापस चली जाती है और चित्रांगदा के द्वारा किया गया व्यवहार उसे बिल्कुल पसंद नहीं आता। फिर से उसे अपनी मां की याद आने लगती है और वह अपनी मां की तस्वीर निकाल कर अपनी केबिन की टेबल में रख देती है।

उसे याद आता है कि उसकी मां ने कभी उसे नहीं डांटा था और ना ही उस पर हाथ उठाया था। बस उसी वक्त चित्रांगदा वहां पर पहुंच जाती है।

चित्रांगदा- ओ हेलो यहां पर इमोशन की कोई कदर नहीं होती। तुम अपने टेबल को साफ करके रखो। किसी भी पुरानी फोटो को यहां मत रखो वरना बॉस बहुत गुस्सा करेंगे।

भूमिका – लेकिन मैं, यह फोटो मेरे लिए बहुत कीमती है। यह मेरी मां की फोटो है जिसे मैं हमेशा अपने साथ ही रखती हूं।

चित्रांगदा – व्हाट एवर, कीप इट अवे।

बात बात में भूमिका को चित्रांगदा नीचा दिखाने लगती है, लेकिन भूमिका ने यह ठान रखा था कि अब वह किसी से भी नहीं डरेगी और अपने काम को मन लगाकर करेगी क्योंकि उसकी मां की भी इच्छा थी।

चित्रांगदा पूरी कोशिश करती की भूमिका अपने काम को सफलतापूर्वक ना कर पाए और वह कोई ना कोई रोड़ा जरूर डालती थी।

लगभग 1 महीने के बाद कंपनी के बड़े अधिकारी बेहतरीन प्रोजेक्ट को लेकर सबके सामने आते हैं और यह अनाउंसमेंट की जाती है कि जिसका भी प्लान अधिकारियों को पसंद आएगा उन्हें प्रमोशन दिया जाएगा।

ऐसे में ऑफिस के लोग अपनी अपनी मेहनत करने में जुट जाते हैं जिसमें भूमिका भी पीछे नहीं होती। उसने पिछले एक हफ्ते से लगातार ऑफिस में मेहनत की है रात को वह घर भी देर से जाती थी क्योंकि घर में वह काम नहीं कर पाती और इसलिए ऑफिस में बैठकर ही काम करना उससे अच्छा लगता था।

चपरासी – मैम ऑफिस बंद करने का समय हो रहा है और आप अभी तक काम कर रही हैं? मुझे भी घर जाना है।

भूमिका- बस आधे घंटे की बात है। कल ही मुझे अपने प्लान का प्रेजेंटेशन देना है इसीलिए लेट हो गया।

चपरासी- पूरे दिल से मेहनत कर रही हैं मुझे पूरी उम्मीद है कि आप की मेहनत जरुर सफल होगी।

भूमिका अपना सारा काम निपटा कर लैपटॉप को ऑफिस मैं ही छोड़ कर चली जाती है और सोचती है कि कल जल्दी आ जाऊंगी जिससे बचा हुआ काम पूरा हो जाएगा। दोपहर को भूमिका का प्रजेंटेशन होता है और वह निश्चिंत रहती है कि उसने अपना काम पूरा कर लिया है।

चित्रांगदा- मुझे पूरा भरोसा है मेरा प्रजेंटेशन का प्लान सभी को पसंद आएगा और वैसे भी मैं इन सब में सीनियर हूं, तो प्रमोशन मुझे ही मिलना चाहिए।

चित्रांगदा की बात सुनकर भूमिका को भी शक होने लगा क्योंकि भूमिका तो ऑफिस में नई है और चित्रांगदा सीनियर। देखते ही देखते भूमिका का प्रजेंटेशन का टाइम आ गया और वह सारे अधिकारियों के सामने जाकर खड़ी हो गई साथ में अपना लैपटॉप ले गई जिसमें उसने प्रेजेंटेशन बनाया था।

जैसे ही उसने अपना लैपटॉप खोला तो उसके मुंह से आवाज तक नहीं निकली। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर भूमिका को हो क्या गया है?

भूमिका वहां पर खड़े होकर रोने लगी जिसमें भूमिका की ही सहकर्मी उसके पास आकर कहती है- व्हाट हैपन, टेल मी। आई वांट टू हेल्प फॉर यू।

जैसे ही भूमिका लैपटॉप को ऑन करती है, तो उसकी सारी मेहनत पानी में नजर आती है क्योंकि उसका बनाया हुआ प्रेजेंटेशन तो कहीं गायब हो चुका है और उसे समझ में नहीं आया कि आखिर उसका यह प्रेजेंटेशन गायब कैसे हो गया?

वह रोते हुए केबिन के बाहर आ जाती है और उसी वक्त वह देखती है कि चित्रांगदा वही प्रेजेंटेशन अधिकारियों को दिखा रही है जिसे उसने बनाया था। इस बात से भूमिका को बहुत दुख होता है और वह चुपचाप चित्रांगदा को बाहर से ही देखते रहती है।

क्योंकि प्रेजेंटेशन भूमिका ने बनाया था तो उसे उसकी पूरी नॉलेज होती है। ऐसे में एक जगह जब चित्रांगदा प्रेजेंटेशन करते हुए अटक जाती है उसी समय दौड़कर वहां पर भूमिका पहुंचती है और आगे के सारी प्रेजेंटेशन को दिखाने लगती है।

भूमिका के ऐसा करने पर अधिकारियों को समझ में आ जाता है कि जरूर दाल में कुछ काला है और उसी वक्त चित्रांगदा को भी अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह समझ जाती है कि नकल में भी अकल की जरूरत होती है।

अधिकारी – चित्रांगदा यह तुमने गलत किया। मेहनत किसी और की और तुम अपना श्रेय लेना चाहती थी। हम तुम्हें अभी इस कंपनी से निकालते हैं, तुमने हमें बहुत निराश किया क्योंकि तुम इस कंपनी की मोस्ट सीनियर एम्पलाई हो।

चित्रांगदा- नहीं सर ऐसा मत करिए मुझे अपनी गलती का पछतावा है। आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा।

अधिकारी- अगर हम तुम्हें फिर से कंपनी में रखते हैं, तो यह भूमिका के लिए नाइंसाफी हो जाएगी। अब हम तुम्हारी पोस्ट भूमिका को दे रहे हैं क्योंकि वह इस पोस्ट के काबिल है।

लेकिन अधिकारियों की यह बात भूमिका को सही नहीं लगती और वह कहती है- सॉरी सर मैं आपको बीच में ही रोक रही हूं लेकिन मैं चाहती हूं कि आप चित्रांगदा को कंपनी से बाहर ना निकालें।

मैं मानती हूं कि इसने गलत काम किया है, जो चुराकर प्रेजेंटेशन आप लोग को दिखा रही है लेकिन आज तक इसने कंपनी के लिए बहुत अच्छा काम किया है ऐसे में से निकालना सही नहीं होगा।

भूमिका की बात को मानकर अधिकारी उसे रख लेते हैं लेकिन अब उसे वह पोस्ट नहीं दी जाती जो पहले दी गई थी। अपनी इस सफलता से भूमिका मां की फोटो को हाथ में लेकर मां का आशीर्वाद लेती है और तभी वहां चित्रांगदा पहुंच जाती है।

चित्रांगदा- थैंक्यू भूमिका। मैंने हमेशा तुम्हारा बुरा चाहा लेकिन तुमने आज मेरा साथ दिया। तुम्हारा एहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी।

भूमिका – इसमें ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन एक बात हमेशा याद रखना कि तुम्हें तभी सच्चा फल मिलेगा, जब मेहनत तुम करोगी। इसलिए हमेशा ध्यान रखो की मेहनत पर ज्यादा फोकस करो ना कि दूसरे को नीचा दिखाओ।

दोस्तों, कई बार हम किसी को नीचा दिखाने के लिए खुद से भी आंखें मिलाने के काबिल नहीं रह पाते। ऐसे में हमें भी ऐसे कार्य करने से बचना चाहिए जिससे हमें खुद को भी शर्मिंदगी महसूस ना हो।

हर व्यक्ति अपने काम में परफेक्ट होता है, सबकी किसी कि अपनी अपनी काबिलियत होती है। लेकिन कोई इंसान ऐसा होता है कि अपने को बड़ा दिखाने के चक्कर में दूसरे लोगों को नीचा दिखाना शुरू कर देते है। दूसरे लोगों को अपने कम समझने लगते है, ऐसा क्यों होता है?

इसके पीछे कई सारे साइकोलॉजिकल Reason भी हो सकता है। कई तरह के सामाजिक कारण भी हो सकते है, व्यक्तिगत अनुभव भी इसमें हो सकते है, किसी दूसरे Article में Human Psychology के बारे में बात करेंगे।

Human Psychology को Decode करते हुए हम एक अलग तरह की आयामों को आपके साथ साझा करने का प्रयास करेंगे।
धन्यवाद

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Mahesh Yadav
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Mahesh Yadav is a software developer by profession and likes to posts motivational and inspirational Hindi Posts, before that he had completed BE and MBA in Operations Research. He has vast experience in software programming & development.

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