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श्रीमदभागवत गीता अंश 15 Mins Read

हमें भागवदगीता क्यों पढ़नी चाहिए?

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Jan 24, 2023No Comments15 Mins Read
गीता पढ़ने से क्या लाभ है?
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वास्तव में श्रीमद्भागवत गीता सर्वशक्तिमान हैं, भागवत गीता सभी संदेहों को दूर करके सभी प्रश्नों का स्पष्ट उतर प्रदान करती हैं और हमारा सही मार्गदर्शन करता हैं, यह हमारें जीवन को वांछित प्रसन्नता एवं शांति प्रदान करने वाला ग्रन्थ हैं।

मनुष्यों के पास विवेक हैं, जिससे वह यह जान सकता हैं कि वह दुःख क्यों पा रहा हैं? ऐसा विवेक केवल मनुष्य में ही हैं। क्या मनुष्य को अपने विवेक का उपयोग करना आवश्यक हैं? या वह जैसे अब तक जीता आया हैं, वैसे (बिना इस और ध्यान दिए) ही जीते चला जाए?

यदि हम नहीं पूछेगे, कि हम दुःख क्यों पा रहे हैं, तो निश्चित हैं कि मृत्युपर्यंत दुःख ही पाते रहेंगे। जीवन में कभी न कभी व्यक्ति यह सोचता हैं मैं इस दुनियां में किस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए आया हूँ और इस जन्म से पहले मैं क्या था और कहाँ था और मृत्यु के पश्चात कहाँ जाऊँगा, क्या यह जीवन और प्रकर्ति किसी के द्वारा चालित हैं? जीवन में परम शांति और संतोष प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए?

ऐसे प्रश्नों और जिज्ञासाओं का जवाब भागवदगीता में उपलब्ध है इसके अलावा रोज़मर्रा की मानसिक व भावनात्मक समस्याओं का समाधान भी गीता में उपलब्ध है। यहाँ पर कुछ ऐसे ही प्रश्न हैं जिनसे जबाब भगवदगीता में से दिए गए हैं साथ ही Reference कौनसे श्लोक से हैं यह भी बताया गया हैं जैसे भागवत-गीता 2.22 का अर्थ हैं की अध्याय 2 का 22वा श्लोक

दोस्तों, यहाँ सारे उत्तर संक्षिप्त में दिए हैं, आप अपनी जिज्ञाशा के लिए श्लोक का पूरा भावार्थ भागवदगीता यथारूप (Bhagavad Gita – As It Is) पुस्तक से पढ़े।

प्रश्न 1: हम सभी चिन्ताओ से मुक्ति कैसे पा सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 2.22) जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता हैं, उसी प्रकार आत्मा पुराने और व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता हैं।

प्रश्न 2: शांति पाने के लिए हम स्थिर मन और आध्यात्मिक बुद्धि किस तरह से प्राप्त करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 2.66) जो कृष्णभावनामर्त में परमेश्वर से सम्बंधित नहीं हैं उसकी न तो बुद्धि दिव्य होती हैं और न ही मन स्थिर होता हैं जिसके बिना शान्ति की कोई सम्भावना नहीं हैं, शांति के बिना सुख हो भी कैसे सकता हैं।

प्रश्न 3: भगवान का भोग लगाया हुआ भोजन ही क्यों ग्रहण करना चाहिए?
उत्तर: (भागवत-गीता 3.13) भगवान के भक्त सभी प्रकार के पापो से मुक्त हो जाते हैं, क्योकि वे यज्ञ में अर्पित भोजन (प्रसाद) को ही खाते हैं, अन्य लोग, जो अपने इन्द्रियसुख के लिए भोजन बनाते हैं, वे निश्चित रूप से पाप खाते हैं।

प्रश्न 4: अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करते हुए, क्या मन का नियंत्रण संभव हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 3.43) इस प्रकार, हे महाबाहु अर्जुन! अपने आप को भौतिक इन्द्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जानकार और मन को सावधान आध्यात्मिक बुद्धि (कृष्णभावनामृत) से स्थिर करके आध्यत्मिक शक्ति द्वारा इस काम रूपी दुर्जय शत्रु को जीतो।

प्रश्न 5: भगवद्गीता का ज्ञान मनुष्यों के लिए कब से उपलब्ध हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 4.1) भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- मैंने से अमर योगविद्या को उपदेश सूर्यदेव विवस्वान को दिया और विवस्वान ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इच्छ्वाकु को दिया।

प्रश्न 6: हम जीवन में परिपूर्णता कैसे प्राप्त करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 4.9) हे अर्जुन, जो मेरे आविभार्व तथा कर्मो को दिव्य प्रकर्ति को जानता हैं, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुन: जन्म नहीं लेता।

प्रश्न 7: हम इच्छित धर्म, अर्थ, काम ,मोक्ष आदि की प्राप्ति कैसे करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 4.11) जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ, हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता हैं।

प्रश्न 8: प्रामाणिक आध्यत्मिक गुरु की शरण कैसे प्राप्त करें
उत्तर: (भागवत-गीता 4.34) तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो, उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करों और उनकी सेवा करों, स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हे ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया हैं।

प्रश्न 9: क्या कोई पापी भी दुःख सागर को पार कर सकता हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 4.36) यदि तुम्हे पापियों में भी सर्वाधिक पापी समझा जाए, तो भी तुम दिव्यज्ञान रूपी नाव में सवार होकर दुःखसागर को पार करने में समर्थ होंगे।

प्रश्न 10: क्यों मनुष्य दुःख और विपतियो में जकड़ा हुआ हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 5.22) बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं, हे कुन्तीपुत्र! ऐसे भोगो का आदि अंत होता हैं, अत: चतुर व्यक्ति उनमें आनन्द नहीं लेता।

प्रश्न 11: शांति प्राप्त करने का सरलतम सूत्र क्या हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 5.29) मुझे समस्त यज्ञो का परम भोक्ता, सस्मत लोको तथा देवताओं का परमेश्वर एवम् समस्त जीवो का उपकारी एवं हितेषी जानकार मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखो से शान्ति लाभ करता हैं।

प्रश्न 12: किस व्यक्ति के लिए मन उसका मित्र हैं और किसके लिए शत्रु?
उत्तर: (भागवत-गीता 6.6) जिसने मन को जीत लिया हैं उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र हैं किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु हैं।

प्रश्न 13: क्या मन के नियंत्रण द्वारा शांति संभव हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 6.7) जिसने मन को जीत लिया हैं, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया हैं क्योकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली हैं ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं।

प्रश्न 14: क्या हम भगवान को देख सकते हैं? भक्त और भगवान के बीच प्रेममय सम्बन्ध कैसे स्थापित करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 6.30) जो मुझे सर्वत्र देखता हैं और सब कुछ मुझमें देखता हैं उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए कभी अदृश्य होता हैं।

प्रश्न 15: हम अपने चंचल मन को कैसे वश में करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 6.35) भगवान श्री कृष्ण ने कहा- हे महाबाहु, कुंतीपुत्र! निसंदेह चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन हैं, किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा संभव हैं।

प्रश्न 16: भक्ति मार्ग से विचलित भक्तो का भाग्य क्या होता हैं, धनवान और सदाचारी परिवार में कौन जन्म लेता हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 6.41) असफल योगी पवित्रत्माओं के लोको में अनेकानेक वर्षों तक भोग करने के बाद या तो सदाचारी पुरुषों के परिवार में या कि धनवानों के कुल में जन्म लेता हैं।

प्रश्न 17: पूर्ण ज्ञान क्या हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.2) अब मैं तुमसे पूर्णरूप से व्यवहारिक तथा दिव्यज्ञान कहूँगा, इस जान लेने पर तुम्हे जानने के लिए और कुछ भी शेष नहीं रहेगा।

प्रश्न 18: हम जन्म और मृत्यु के बंधन से कैसे मुक्ति पायें?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.7) हे धंनजय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं हैं, जिस प्रकार मोती धागे में गुथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित हैं।

प्रश्न 19: माया से मुक्ति पाने का सरतम सूत्र क्या हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.14) प्रकर्ति के तीन गुणों वाली इस मेरी देवीय शक्ति को पार कर पाना कठिन हैं, किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं।

प्रश्न 20: परम पुरुषोतम भगवान श्री कृष्ण साकार हैं या निराकार?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.24) बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं कि मैं (भगवान कृष्ण) पहले निराकार था और अब मैंने इस स्वरुप को धारण किया हैं वे अपने अल्पज्ञान के कारण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच्च प्रकृति को नहीं जान पाते।

प्रश्न 21: क्या हम भूत वर्तमान और भविष्य को जान सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.26) हे अर्जुन, श्रीभगवान होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका हैं और जो वर्तमान में घटित हो रहा हैं और जो आगे होने वाला हैं, वह सब कुछ जानता हूँ, मैं समस्त जीवों को भी जानता हूँ, किन्तु मुझे कोई नहीं जानता।

प्रश्न 22: कृष्ण भक्त विश्व भ्रमण क्यों करते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.28) जिन मनुष्यों ने पुर्वजन्मो में तथा इस जन्म में पुण्यकर्म किये हैं और जिनके पापकर्मो का पूर्णतया उच्छेदन हो चूका हैं, वे मोह के द्वंदों से मुक्त हो जाते हैं और वे संकल्पपूर्वक मेरी सेवा में तत्पर रहते हैं।

प्रश्न 23: हमारी बुढ़ापे और मृत्यु से मुक्ति कैसे संभव हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 7.29) जो जरा तथा मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए यत्नशील रहते हैं, वे बुद्धिमान व्यक्ति मेरी भक्ति की शरण ग्रहण करते हैं वे वास्तव में ब्रह्म हैं क्योकि वे दिव्य कर्मो के विषय में पूरी तरह से जानते हैं।

प्रश्न 24: क्या केवल भक्ति मार्ग का पालन करके सभी फलो को प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 8.28) जो व्यक्ति भक्तिमार्ग स्वीकार करता हैं, वह वेदाध्ययन, तपस्या, दान, दार्शनिक तथा सकाम कर्म करने से प्राप्त होने वाले फलो से वंचित नहीं होता, वह मात्र भक्ति संपन्न करके इन समस्त फलो की प्राप्ति करता हैं और अंत में परम नित्यधाम को प्राप्त होता हैं

प्रश्न 25: पाप कितने प्रकार के होते हैं और हम पापो को किस प्रकार नष्ट कर सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.2) यह ज्ञान समस्त विधायो का राजा हैं, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय हैं यह परम शुद्ध हैं और चूँकि यह आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने वाला हैं, अत: यह धर्म का सिद्दान्त हैं यह अविनाशी हैं और अत्यंत सुखपूर्वक संपन्न किया जाता हैं।

प्रश्न 26: वास्तविकता में हमारा परम लक्ष्य क्या होना चाहिए?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.18) मैं ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अंत्यंत प्रिय मित्र हूँ, मैं स्रष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज भी हूँ।

प्रश्न 27: क्या भौतिक शरीर त्यागने के पश्चात मनोवांछित लोक प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.25) जो देवताओं को पूजते हैं, वो देवताओं के बीच जन्म लेंगे, और जो पितरो को पूजते हैं वे पितरो के पास जाते हैं जो भूतप्रेतो की उपासना करते हैं, वे उन्ही के बीच जन्म लेंगे और जो मेरी पूजा करते हैं वो मेरे साथ निवास करते हैं।

प्रश्न 28: क्या हमारें द्वारा अर्पित भोग को भगवान् ग्रहण करते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.26) यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता हैं, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ।

प्रश्न 29: वास्तव में हमारा परम मित्र और हितेषी कौन हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.29) मैं न तो किसी से द्वेष करता हूँ, और न ही किसी के साथ पक्षपात करता हूँ मैं सबों के लिए समभाव हूँ किन्तु जो भी भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता हैं वह मेरा मित्र हैं और मुझमें स्थित रहता हैं और मैं भी उसका मित्र हूँ।

प्रश्न 30: क्या भक्ति मार्ग में प्रयासरत भक्तो की पतन से रक्षा होती हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.30) यदि कोई जघन्य से जघन्य कर्म करता हैं, किन्तु वह भक्ति में रत रहता हैं तो उसे साधु मानना चाहिए, क्योकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता हैं।

प्रश्न 31: भक्ति मार्ग पर चलने की क्या योग्यता होती हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.32) हे पार्थ, जो लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, वे भले ही निम्नजनमा स्त्री, वैश्य (व्यापारी) तथा शुद्र (श्रमिक) क्यों न हो, वे परमधाम को प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 32: इस भौतिक जगत में सुख की प्राप्ति कैसे हो?
उत्तर: (भागवत-गीता 9.34) अपने मन को मेरे नित्य चिंतन में लगाओ, मेरे भक्त बनो, मुझे नमस्कार करो और मेरी ही पूजा करो, इस प्रकार मुझमें पूर्णतया तल्लीन होने पर तुम निश्चित रूप से मुझको प्राप्त होंगे।

प्रश्न 33: हम मोह और पापो से किस प्रकार मुक्त हो सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 10.3) जो मुझे अजन्मा, अनादि, समस्त लोको के स्वामी के रूप में जानता हैं, मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापो से मुक्त होता हैं।

प्रश्न 34: असंख्य ब्रह्मांडो में कौन जीवात्मा सर्वाधिक भाग्यशाली हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 10.9) मेरे शुद्धभक्तो के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दुसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम संतोष तथा आनंद का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 35: मनुष्य जीवन की सर्वोच्च प्राप्ति क्या हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 10.10) मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए कि कृष्ण ही लक्ष्य हैं और जब लक्ष्य निर्दिष्ट हैं, तो पथ पर मंदगति से प्रगति करने पर भी अंतिम लक्ष्य प्राप्त हो जाता हैं।

प्रश्न 36: लाखो जन्मो से ह्रदय पर जमें हुए मैलो को कैसे हटाया जाए?
उत्तर: (भागवत-गीता 10.10) जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं।

प्रश्न 37: परम पुरुषोतम भगवान कौन हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 10.12-10.13) अर्जुन ने कहा – आप परम भगवान हैं, परमधाम, परमपवित्र, परमसत्य हैं आप नित्य, दिव्य, आदिपुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं।

प्रश्न 38: भगवान श्री कृषण ने अर्जुन को विराट रूप का दर्शन क्यों कराया?
उत्तर: (भागवत-गीता 11.1) अर्जुन ने कहा – आपने जिन अत्यंत गुय्ह आध्यत्मिक विषयों का मुझे उपदेश दिया हैं, उसे सुनकर अब मेरा मोह दूर हो गया हैं।

प्रश्न 39: क्या कृषणभावना अमृत आन्दोलन मानवता के लिए अनुपम भेंट हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 11.54) हे अर्जुन, केवल अनन्य भक्ति द्वारा मुझे उस रूप में समझा जा सकता हैं जिस रूप में मैं तुम्हारे समक्ष खड़ा हूँ और इसी प्रकार मेरा साक्षात् दर्शन भी किया जा सकता हैं केवल इसी विधि से तुम मेरे ज्ञान के रहस्य को पा सकते हो।

प्रश्न 40: भागवत गीता का सार क्या हैं? शुद्ध भक्ति क्या हैं? हमारें सभी दुखो का कारण क्या हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 11.55) हे अर्जुन, जो व्यक्ति सकाम कर्मो तथा मनोधर्म के कल्मष से मुक्त होकर, मेरी शुद्ध भक्ति में तत्पर रहता हैं, जो मेरे लिए ही कर्म करता हैं, जो मुझे ही जीवन-लक्ष्य समझता हैं और जो प्रत्येक जीव से मैत्रीभाव रखता हैं, वह निश्चय ही मुझे प्राप्त करता हैं।

प्रश्न 41: भौतिक प्रकर्ति के अजयी सभी तीन गुणों(सत, रज, तम) पर विजय कैसे प्राप्त की जाए?
उत्तर: (भागवत-गीता 14.26) पुण्यकर्म का फल शुद्ध होता हैं और सात्विक कहलाता हैं लेकिन रजोगुण में संपन्न कर्म का फल दुःख होता हैं और तमोगुण में किये गए कर्म मुर्खता में प्रतिफलित होते हैं।

प्रश्न 42: क्या हम भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकते हैं? क्या हम भगवान से बात कर सकते हैं? क्या हम भगवान को सुन सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 15.7) इस बद्ध जगत में सारे जीव मेरे शाश्वत अंश हैं बद्ध जीव के कारण वे छहों इन्द्रियों से घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित हैं।

प्रश्न 43: भौतिक शरीर त्यागने के बाद जीव अपने साथ क्या लेकर जाता हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 15.8) इस संसार में जीव अपनी देहात्मबुद्धि को एक शरीर से दुसरे में उसी तरह ले जाता हैं, जिस तरह वायु सुगन्धि को ले जाता हैं इस प्रकार वह एक शरीर धारण करता हैं और फिर इसे त्याग कर दूसरा शरीर धारण करता हैं।

प्रश्न 44: किससे हमें स्मृति, ज्ञान और विस्मृति मिलती हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 15.15) मैं प्रत्येक जीव के हर्दय में आसीन हूँ और मुझे ही स्मृति, ज्ञान और विस्मृति होती हैं मैं ही वेदों द्वारा जानने योग्य हूँ निसंदेह मैं वेदांत का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ।

प्रश्न 45: कैसे हम मोह और उसके कारणों से प्रभावित होते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 16.13-16.15) आसुरी व्यक्ति सोचता हैं, आज मेरे पास इतना धन हैं और अपनी योजनाओं से मैं और अधिक धन बनाऊंगा। इस समय मेरे पास इतना धन हैं किन्तु भविष्य में यह बढ़कर और अधिक हो जाएगा। वह मेरा शत्रु हैं और मैंने उसे मार दिया हैं और मेरे अन्य शत्रु भी मार दिए जायंगे। मैं सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ मैं भोगता हूँ मैं सिद्ध शक्तिमान और सुखी हूँ मैं सबसे धनी व्यक्ति हूँ और मेरे आस पास मेरे कुलीन सम्बन्धी हैं कोई अन्य मेरे सामान शक्तिमान तथा सुखी नहीं हैं। मैं यज्ञ करूँगा, दान दूंगा और इस तरह आनंद मनाऊंगा, इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अज्ञान वश मोहग्रस्त होते रहते हैं।

इस प्रकार अनेक चिंताओं से उद्गिन्न होकर तथा मोहजाल में बंधकर वे इन्द्रियभोग में अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं और नरक में गिरते हैं।

प्रश्न 46: कौनसे पांच कारको द्वारा हम अपने कर्म में पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 18.14) कर्म का स्थान (शरीर), कर्ता, विभिन्न इन्द्रियां, अनेक प्रकार की चेष्टाएं तथा परमात्मा – ये पांच कर्म के कारण हैं

प्रश्न 47: भक्ति और मुक्ति में श्रेष्ठ क्या हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 18.54) इस प्रकार जो दिव्य पद पर स्थित हैं, वह तुरंत परब्रह्म का अनुभव करता हैं और पूर्णतया प्रसन्न हो जाता हैं, वह न तो कभी शोक करता हैं, और न किसी वस्तु की कामना करता हैं वह प्रत्येक जीव पर समभाव रखता हैं उस अवस्था में वह मेरी शुद्ध भक्ति को प्राप्त करता हैं

प्रश्न 48: हम अपने जीवन में शांति कैसे प्राप्त करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 18.65) सैदव मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो, इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे मैं तुम्हे वचन देता हूँ, क्योकि तुम मेरे परम मित्र हो।

प्रश्न 49: हम भगवान को कैसे प्राप्त करें?
उत्तर: (भागवत-गीता 18.66) समस्त प्रकार के धर्मो का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ, मैं समस्त पापो से तुम्हारा उद्धार का दूंगा, डरो मत।

प्रश्न 50: ऐश्वर्य, विजय नीति तथा अलौकिक शक्तिया निश्चित रूप से किसके साथ रहती हैं?
उत्तर: (भागवत-गीता 18.78) जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं और जहाँ परम धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीँ ऐश्वर्य, विजय, अलौकिक शक्ति तथा नीति भी निश्चित रूप से रहती हैं, ऐसा मेरा मत हैं।

ऐतिहासिक महाकाव्य ग्रन्थ महाभारत में शांति पर्व में श्रीभगवान द्वारा युद्धस्थल में अर्जुन को दिए गए उपदेश ही भगवद्गीता हैं जोकि संसार में जीने की कला एवं आध्यात्मिक रहस्य को जानने का विज्ञान हैं जिसमें भगवान ने मुख्यतः समय, कर्म, ईश्वर, प्रकर्ति और जीव के बारें में बताया हैं

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