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जीवनी 8 Mins Read

पेन्सिलिन के आविष्कारक अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का जीवन परिचय

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Jan 6, 2023No Comments8 Mins Read
Biography of Alexander Fleming, Discovery of Penicillin
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पेनिसिलिन का आविष्कार करने वाले महान वैज्ञानिक एलेग्जेंडर फ्लेमिंग स्कॉटलैण्ड के जीव वैज्ञानिक एवं औषधिनिर्माता थे। अलेक्जेंडर ने जीवाणुविज्ञान, रोग-प्रतिरक्षा-विज्ञान एवं रसचिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सन 1923 ईस्वी में एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने लिसोजाइम नामक एंजाइम का आविष्कार किया था। चिकित्सा के क्षेत्र में एलेग्जेंडर फ्लेमिंग को 1945 ईस्वी में नोबेल सम्मान दिया गया था।

नोबेल पुरस्कार के साथ एलेग्जेंडर फ्लेमिंग को अमेरिका की फार्मा कंपनियों ने उनके कार्यों के लिए एक लाख डॉलर की राशि सम्मान के तौर पर भेंट की थी। इतना ही नहीं अलेक्जेंडर ने “दाएं हाथ का नियम” नामक जिसे दक्षिण हस्त नियम भी कहते हैं उसकी खोज की थी! एलेग्जेंडर फ्लेमिंग के बारे में जानने के लिए इस बायोग्राफी को जरूर पढ़िए।

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग जीवनी

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने मानव के लिए एक बहुत ही उपयोगी दवाई की खोज की थी, जिसे पेंसिलन कहा जाता है। इसके अलावा एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने स्ट्रेप्टो माइसिन, टैरामाइसिन आदि अनेक एण्टीबॉयोटिक औषधियों की भी खोज की थी। मेडिकल के क्षेत्र में अच्छा काम करने के लिए साल 1945 में मेडिकल फील्ड को नोबेल प्राइज भी दिया गया।

अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का व्यक्तिगत परिचय

पूरा नामअलेक्जेंडर फ्लैमिंग
जन्म6 अगस्त
जन्म स्थानदक्षिणी पश्चिमी स्कॉटलैंड
जन्म साल1881
पिता का नामहफ फ्लेमिंग
धर्मक्रिस्चियन
खोज कीपेंसिलीन की
नोबेल प्राइज मिलासाल 1945
नोबेल प्राइज का फील्डमेडिकल

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का प्रारंभिक जीवन

पेंसिलिन के आविष्कारक के तहत पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का जन्म साल 1881 में दक्षिणी पश्चिमी स्कॉटलैंड में 6 अगस्त को हुआ था। अलेक्जेंडर फ्लैमिंग अपने सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। एलेग्जेंडर फ्लेमिंग के पिताजी का नाम हफ फ्लेमिंग था।

जब एलेग्जेंडर फ्लेमिंग पैदा हुए थे, तब उनकी फैमिली में बहुत ही खुशियां मनाई गई थी और इनके जन्मदिन को काफी धूमधाम के साथ सेलिब्रेट किया गया था, परंतु 8 साल की उम्र को पार करते करते ही फ्लेमिंग के पिताजी की मृत्यु हो गई, परंतु इनकी माता जी बहुत ही जिंदा दिल इंसान थी।

जब एलेग्जेंडर फ्लेमिंग के पिता की मृत्यु हो गई, तो एक बार तो ऐसा लगा कि इनकी फैमिली पूरी तरह से बिखर गई परंतु इनकी माताजी ने अलेक्जेंडर फ्लैमिंग की मृत्यु होने के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली और उन्होंने जिम्मेदारी के साथ अपनी फैमिली का पालन पोषण किया।

इनकी माताजी खेती बाड़ी करने का काम करके उनका जीवन यापन करती था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, अलेक्जेंडर फ्लैमिंग की माताजी की तीन और सौतेली संताने भी थी परंतु वह अपनी सगी संतान से जितना ज्यादा प्यार करती थी, उतना ही प्यार वह अपनी सौतेली संतानों से भी करती थी।

अलेक्जेंडर फ्लैमिंग की शिक्षा

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने अपनी प्राथमिक शिक्षा जिस स्कूल से पूरी की थी, उसका नाम लूइन मूर स्कूल थाय था। पढ़ाई पूरी करने के बाद अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने डार्विन स्कूल में एडमिशन लिया। यहीं से अलेक्जेंडर फ्लेमिंग के बड़े भाई ने भी स्टडी की थी।

अलेक्जेंडर की जिंदगी के शुरुआती दिन बहुत ही चैलेंजिंग रहे थे क्योंकि स्कूल जाने के लिए उन्हें तकरीबन अपने घर से 4 मील का सफर तय करना पड़ता था और उनके पास स्कूल जाने के लिए कोई साइकिल नहीं थी।

इसीलिए वह 4 मील पैदल पहाड़ी पर चढ़कर के अपने स्कूल तक पहुंचे थे परंतु रोजाना की इस आदत के कारण वह पैदल ही पहाड़ों पर चढ़ने और उतरने के आदी हो गए थे।

इसके साथ ही रोज की इस दैनिक क्रिया के कारण अलेक्जेंडर फ्लैमिंग को प्रकृति को बहुत ही करीब से देखने का और उसे समझने का भी मौका प्राप्त हुआ।

अलेक्जेंडर फ्लैमिंग बचपन से ही काफी तेज बुद्धि के थे। जब वह 12 साल की उम्र तक पहुंचे थे, तब उन्होंने किलमरनॉक अकैडमी को ज्वाइन कर लिया, जिसके बाद धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरने लगी।

इनके दोनों बड़े भाई जोन और हावर्ड सबसे बड़े भाई टॉमस के साथ आई क्लीनिक में काम कर रहे थे। इसके साथ ही उन्होंने गॉगल्स का एक कारखाना भी ओपन कर लिया था।

अलेक्जेंडर ने भी खुद मेडिकल शास्त्र की स्टडी करने का डिसीजन लिया था। जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि अलेक्जेंडर फ्लैमिंग पढ़ने में काफी तेज थे। इसीलिए यह हमेशा अपनी क्लास में फर्स्ट रैंक लाते थे। एलेग्जेंडर फ्लेमिंग को स्टडी करने के अलावा अन्य किसी भी कार्य में रुचि नहीं थी।

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग के शौक

फ्लेमिंग राइफल टीम के मेंबर थे। इसके अलावा उन्हें स्विमिंग करना और वाटर पोलो खेलना भी काफी अच्छा लगा था। इसके अलावा वह शौकिया तौर पर विभिन्न प्रकार की नौटंकीयों में भी पार्टिसिपेट करके अपना टाइम पास करते थे।

अलेक्जेंडर फ्लैमिंग द्वारा पेंसिलिन का आविष्कार

साल 1928 में एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का नाम अचानक से ही पूरी दुनिया में चर्चा में आने लगा। इसका मुख्य कारण एलेग्जेंडर फ्लेमिंग के द्वारा साल 1928 में पेंसिलिन की खोज करना था।

पेंसिलिन का इस्तेमाल इंसानों की बॉडी में इंफेक्शन फैलाने वाले रोगों से लड़ने और उन पर काबू पाने के लिए किया जाता है।

साल 1906 मे एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने स्कॉटलैंड के सेंट मैरी हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल से अपनी डिग्री प्राप्त की और इसके बाद इन्होंने एंटीबैक्टीरियल पदार्थों पर कार्य करना स्टार्ट कर दिया।

इसके बाद अलेक्जेंडर फ्लेमिंग रॉयल आर्मी मेडिकल कॉर्प्स में चले गए और जब पहला विश्वयुद्ध साल 1918 में खत्म हो गया, तो उसके बाद अलेक्जेंडर फ्लैमिंग फिर से सेंट मैरी मेडिकल स्कूल में वापस लौट आए।

इसके बाद वह विभिन्न पदार्थों पर अपनी रिसर्च कर रहे थे और रिसर्च करते करते अचानक से ही जब एलेग्जेंडर फ्लेमिंग साल 1928 में कुछ जीवाणु पर रिसर्च कर रहे थे, तो उन्होंने पेंसिलीन की खोज कर डाली।

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग के द्वारा पेंसिलीन की खोज करना अपने आप में ही एक बहुत ही तगड़ा आविष्कार था क्योंकि उन्होंने एक ऐसे द्रव्य की खोज कर ली थी, जो इंसानों की बॉडी में जीवाणु और रोगाणुओं को पैदा होने से रोकने का काम करता था।

अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पेंसिलिन की खोज पेनिसिलियम फफूंद से की थी। इसीलिए इसे Penciline नाम दिया गया। पेनिसिलिन की खोज करने के बाद अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने इसके घोल के साथ कई प्रयोग किए।

घोल के साथ प्रयोग करने के दौरान एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने यह पाया कि अगर घोल को हल्का कर दिया जाए, तब भी इसका इफेक्ट जीवाणुओं पर पड़ता ही है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी एक्सपेरिमेंट के दरमियां यह भी देखा कि पेंसिलिन एक ऐसा विचित्र पदार्थ है,जो एक्सपेरिमेंट करते समय दूसरे पदार्थ में कन्वर्ट हो कर के खुद प्रभावहीन बन जाता है और इसके इसी गुण के कारण इसके ऊपर काफी सालों तक रिसर्च किया गया।

अंत में साल 1938 में इस प्रॉब्लम का समाधान ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर रहने वाले प्रोफेसर हॉवार्ड फ्लोरे और अर्नस्ट चेन ने किया। उन दोनों ने एक कठिन एक्सपेरिमेंट को करके इस औषधि को स्थिर कर दिया, दोनों प्रोफेसर ने जिसे प्रोसेस को करके इस औषधि को स्थिर किया था, उसे फ्रीज ड्राइंग नाम दिया गया।

साल 1941 के अंतिम दिनों में एलेग्जेंडर फ्लेमिंग अमेरिका चले गए और वहां पर जाने के बाद उन्होंने कई साइंटिस्ट के साथ मिलकर के पेंसिलिन को अलग करने की मेथड के सब्जेक्ट पर चर्चा की और एलेग्जेंडर को अमेरिका के साइंटिस्ट ने भी इसमें भरपूर सहयोग दिया।

कई महीनों के एक्सपेरिमेंट और प्रयासों के बाद अलेक्जेंडर को पेंसिलिन को काफी बड़ी मात्रा में अलग करने का मेथड प्राप्त हो गया, जिसके बाद इस औषधि का निर्माण भारी मात्रा में होने लगा और फिर भारी मात्रा में इस औषधि का निर्माण होने के कारण इसका लोगों ने भी इस्तेमाल करना चालू कर दिया।

पेंसिलिन को आदमी के खून में इंजेक्ट तब किया जाता है, जब उसे डिप्थीरिया, निमोनिया, ब्लड इंफेक्शन, गले का दर्द या फिर फोड़ा होता है। इसके अलावा सर्जरी करने वाले डॉक्टर भी ऑपरेशन करने के टाइम इसे रोगी को देते हैं।

यौन से संबंधित बीमारियों पर कंट्रोल पाने के लिए पेंसिलिन एक बहुत ही इफेक्टिव दवाई मानी जाती है। इसके अलावा पेंसिलिन का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं को पैदा होने से और उन्हें फैलने से रोकता है।

अलैक्जेंडर फ्लेमिंग की मृत्यु

पेनिसिलिन की खोज करने वाले महान साइंटिस्ट अलेक्जेंडर फ्लैमिंग की मौत साल 1955 में यूरोप के लंदन शहर में 11 मार्च को हुई। अलेक्जेंडर फ्लैमिंग के द्वारा खोजी गई पेंसिलिन दवाई का इस्तेमाल आज दुनिया भर में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

पेंसिलिन की खोज करने के बाद भी अलेक्जेंडर ने कुछ अन्य दवाइयों की खोज की थी, जिनका इस्तेमाल भी आज लोग कर रहे हैं। दुनिया को अलेक्जेंडर फ्लैमिंग का एहसानमंद होना चाहिए जो उन्होंने इंसानों के लिए महत्वपूर्ण पेंसिलिन दवाई की खोज की।

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Mahesh Yadav is a software developer by profession and likes to posts motivational and inspirational Hindi Posts, before that he had completed BE and MBA in Operations Research. He has vast experience in software programming & development.

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