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श्रीमदभागवत गीता अंश सफलता के रहस्य 8 Mins Read

सबसे बड़ा दुश्मन “मन”

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Feb 1, 20231 Comment8 Mins Read
the mind can be the friend and also the enemy of the self
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दुश्मन शब्द आते ही हमारे दिमाग में युद्ध में लड़ी जाने वाली जंग का ख्याल आता है या फिर वे लोग जो हमसे द्वेष रखते हैं उनका चेहरा आता है पर वास्तव में इंसान ही खुद का दुश्मन मन (Mind) जाता है जब मन उसके काबू में नहीं रहता।

जी हां “मन” जिस पर यदि मनुष्य नियंत्रण प्राप्त कर लें तो वह एक श्रेष्ठ और आनंदमई जीवन की तरफ बढ़ सकता है।

स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है मन सबसे बलवान है जो इन्द्रियों को वश में कर लेता हैं, अगर मनुष्य अपने मन का दास बन जाए तो वह खुद का ही विनाश कर बैठता है।

हमारी दैनिक क्रियाओं में मन की विशेष भूमिका होती है। अधिकतर लोग अपने मन के मुताबिक ही कर्म करते है।

और मन इस तरह का मायाजाल बिछाता है कि इंसान ना चाहते हुए भी माया जाल में फंस ही जाता है।

मन के वशीभूत होकर इंसान अज्ञानी हो जाता है, जिन चीजों का उसे भली-भांति ज्ञान होता है। वह उसे भुलाकर गलत रास्ते पर चलने के लिए तैयार हो जाता है

उदाहरण स्वरूप एक विद्यार्थी जो शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय जाता है, वह भली-भांति शिक्षा का महत्व और जीवन में शिक्षा के प्रभाव को जानने के बावजूद भी अपना अधिकतर समय व्यर्थ के कार्यों में, खेलकूद में बिता देता है सिर्फ क्षण भर के आंनद के लिए अपने मन की इच्छाओं की पूर्ति के खातिर

परिणाम स्वरूप परीक्षा में उसे पास होने में कठिनाई होती है और वह अच्छे अंक नहीं ला पाता।

भली-भांति यह जानने के बावजूद भी की यह शिक्षा मेरे काम आएगी मन एक दुश्मन की भांति मनुष्य को शिक्षा से दूर ले जाने का प्रयास करता है।

सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्की यदि ज्ञानी पुरुष में भी यदि मन को नियंत्रित करने की शक्ति ना हो तो वह गलत कार्यों को करने के लिए विवश हो जाता है।

हालांकि इस संसार में जन्म लेने वाले मनुष्य के लिए मन के मायाजाल में खुद को फसाने से रोकना इतना आसान नहीं है क्योंकि मन इतना चंचल है कि यह पल भर में मनुष्य को अपने लक्ष्य/राह से भटका कर उसे उन कार्यों की ओर अग्रषित करता है जिससे उसे सिर्फ हानि होती है।

इसीलिए हजारों वर्षों पूर्व अर्जुन ने महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण से इस मन की चंचलता को रोकने के लिए प्रश्न किए।

Bhagwat Gita : Chapter 6, Verse 5 (Ref : https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/6/verse/5)

Bhagwad Gita in HIndi

भगवान और अर्जुन के बीच हुआ वह संवाद निम्नलिखित है।

श्री कृष्ण कहते हैं हे पार्थ, मनुष्य के सभी सुख: दुख का कारण यह मन ही है, जो उसे इस सांसारिक मोह में फंसाता है।

अर्जुन:- केशव, मन

कृष्णा:- हां पार्थ, सभी मनुष्य के भीतर मौजूद एक अदृश्य अंग (मन) जिसे मनुष्य छू तो नहीं सकता पर यह बेहद शक्तिशाली होता है।

ध्यान रखना मन आत्मा से बिल्कुल अलग है, यदि आत्मा रथ में सवार है तो उस रथ की कमान मन के हाथों में है वह जहां जाए इसे ले जा सकता है।

यह मन ही है जो मनुष्य को लालच, लोग कामुकता के जाल में फंसाता है और वे सभी कार्यों को करने के लिए प्रेरित करता है जिससे मनुष्य की हानि होती है।

यह मन जीवन की सच्चाई से अनजान है, जो अपनी जवानी में अपने बुढ़ापे को भूल जाता है। जब मनुष्य का अंत समय निकट आता है तो मैं बीमार हो चुका हूंl मुझे बचाओ यह नाटक भी मन द्वारा ही रचा जाता है।

हे अर्जुन, जो मनुष्य इस मन को अपना हितकारी समझते हुए इसे सर्वोच्च समझ बैठता है वह माया के वशीभूत हो जाता है।

दुख के समय यह मन दु:ख भरे गीत गाता है और सुकून के समय दूसरों को अपनी खुशियों में शामिल करता है। इंसान को मन इस कदर माया के जाल में मंत्रमुग्ध कर लेता है कि उसे क्षण भर के लिए भी अपने बारे में सोचने का समय नहीं देता।

जिससे मनुष्य के अंदर अंतरात्मा में आत्मा के अंदर विराजमान परमात्मा से कभी उसका मिलन नहीं हो पाता।

हे अर्जुन, इस मन से बड़ा कोई बहरूपी नहीं, पल पल यह नए ढोंग करता है।

हे, मनुष्य इसका दास ना बनो बल्कि इसे अपना दास बनाओ।

इस प्रकार कृष्ण भगवान और अर्जुन का यह संवाद मन की वास्तविक स्थिति का वर्णन कराता है।

अब प्रश्न आता है कि हमारे भीतर के इस दुश्मन को कैसे हम नियंत्रित करें? ताकि एक बार मिले इस मनुष्य जीवन का हम बेहतर उपयोग कर न सिर्फ अपने जीवन को बल्कि इस खूबसूरत दुनिया को और भी बेहतर बना सके।

Bhagwat Gita : Chapter 6, Verse 34 (Ref : https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/6/verse/34)

Bhagvad Gita in HIndi

इसमें कोई दो राय नहीं कि मन को नियंत्रित करना बेहद कठिन है मानो पहाड़ चढ़ने जैसा, लेकिन फिर भी कुछ ऐसी छोटी-छोटी और उपयोगी बातें हैं जिन को ध्यान में रखकर काफी हद तक मन को नियंत्रित किया जा सकता है

अब हम मन को नियंत्रित करने के कुछ ऐसे प्रैक्टिकल टिप्स आपके साथ साझा कर रहे हैं जो आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने में आपकी मदद करेंगे।

1. ख़ाली न रहें।

मनुष्य जब खाली बैठता है तो निश्चित ही उसके दिमाग में अनेकों विचार आते हैं, और उनमें से अधिकतर विचार मनुष्य को उन यादों की तरफ ले जाते है, जिससे वह दुखी होता है और इससे उसके अंदर हीन भावना प्रकट होती है

वहीं दूसरी तरफ जब आप किसी जरूरी कार्य में व्यस्त होते हैं तो आपको समय का पता ही नहीं चलता अतः मन को नियंत्रित करना है तो अपने खाली समय का सदुपयोग करना शुरू करें।

खाली रहने की बजाय आप अच्छी पुस्तकें पढ़ सकते हैं अपनी हॉबीज पूरा कर सकते हैं।

2. एकाग्रता से करें कार्य

किसी भी कार्य को सफल बनाने हेतु फोकस होना बेहद जरूरी है फिर चाहे बात शिक्षा की हो या किसी अन्य कार्य की जब तक आप उसे संपूर्ण फोकस के साथ नहीं करेंगे तो आप उस काम में अपना शत-प्रतिशत नहीं दे सकते।

जब आप किसी काम को फुल फोकस के साथ करते हैं तो आपका ध्यान किसी अन्य चीज की तरफ नहीं भटकता और आप उस काम को कम समय में बेहतर तरीके से कर पाते हैं, अतः जीवन में सफल होना है तो एकाग्र होना सीखें।

खुद को ऐसी चीजों से दूर रखें जिनसे आपके महत्वपूर्ण कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है।

3. ईश्वर पर विश्वास रखें

ईश्वर के नाम में बड़ी शक्ति होती है अतः इस मन को शांत एवं प्रसन्न रखना चाहते हैं तो ईश्वर पर विश्वास रखे! आप चाहे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हो पर ईश्वर का ध्यान करें।

ईश्वर को याद करने से सकारात्मक ऊर्जा आती हैं और जो विचार मनुष्य को उसके लक्ष्य से बाधित करते हैं वह भी मन से दूर हो जाते हैं तो जब भी मन परेशान हो ईश्वर को याद करें।

परमात्मा आपके कष्टों का जरूर समाधान करेंगे।

4. दृढ़ संकल्प लें और मन को चुनौती दे

आपको यदि किसी गलत चीज की आदत लग चुकी है, लेकिन मन है कि उस गलत आदत से बाहर आने का मौका ही नहीं देता तो आपका दृढ़ संकल्प आपको अपने मन से जीत दिला सकता है।

आपको नशा करने, किसी चीज का सेवन करने या कोई भी गलत चीज की आदत लग चुकी है तो आप अपने मन को चुनौती दे सकते हैं। और एक दृढ़ संकल्प लेकर खुद को मन से मजबूत बना सकते हैं, चलिए इस बिंदु को एक उदाहरण के जरिए समझते हैं।

बात उस समय की है जब स्वामी रामतीर्थ कॉलेज में पढ़ाई करते थे। अक्सर कॉलेज में जाने के दौरान उन्हें बीच में एक जलेबी की दुकान दिखाई देती थी जलेबी को देखकर उनका मन बेहद आकर्षित होता था।

परंतु जेब में पैसे की कमी को देखते हुए वे कई दिनों से जलेबी खरीद नहीं पा रहे थे। लेकिन वह मन की इस कमजोरी से वाकिफ हो चुके थे और मन की इस हरकत से कदापि खुश नहीं थे।

अतः जब एक दिन कॉलेज से आते हुए उनका मन जलेबी को देखते हुए काफी लालायित हो उठा तो वह जलेबी को लेकर घर आ गए, घर आने के बाद उन्होंने जलेबी को सुई धागे की मदद से एक धागे में पिरो दिया और जलेबी के टुकड़ों को रस्सी से ऊपर कील में टांग दिया।

पर उन्होंने जलेबी का एक भी टुकड़ा खाया नहीं, शाम तक टंगी हुई यह जलेबी सिर्फ कीड़े मकोड़ों के खाने लायक ही रह गई थी अतः उन्होंने उस जलेबी को उतारकर कीड़े मकोड़ों के सामने डाल दिया।

इस दिन के बाद कभी भी जलेबी को देखकर उनका मन लालायित नहीं उठा, तो इस प्रकार स्वामी रामतीर्थ ने अपने लालच की प्यास को बुझा कर अपने मन को शांत किया और मन पर विजय हासिल की।

संक्षेप में कहा जाए तो हम दृढ़ संकल्प लेकर मन को चुनौती देकर मन को ठीक कर सकते हैं। मन को जीतना मुश्किल जरूर है परंतु यदि हम मन के वशीभूत होकर इसकी प्रत्येक बात सुनते रहेंगे तो यह हमारा दुश्मन बन जाएगा।

सीख

लेख का शीर्षक हमें बताता है कि यदि हम अधिकांश लोगों की तरह ही मन को अपनी मनमानी करने दें तो यह हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन सकता है। अतः मन को नियंत्रण कर हम इस पर काबू पा सकते हैं। आपको यह लेख पसंद आया है, तो इसे आप अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरूर कर दें।

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Mahesh Yadav
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Mahesh Yadav is a software developer by profession and likes to posts motivational and inspirational Hindi Posts, before that he had completed BE and MBA in Operations Research. He has vast experience in software programming & development.

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1 Comment

  1. Nishant on Jun 26, 2022 10:30 pm

    Great job… I’m also a blogger of saphalzindagi.com and I read your articles some times… keep continue.

    Reply

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