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चाणक्य नीति 9 Mins Read

चाणक्य नीति Chapter 13 In Hindi

Mahesh YadavBy Mahesh YadavUpdated:Jun 7, 2021No Comments9 Mins Read
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Chanakya Niti in Hindi  Chapter 13, Chanakya Success Tips 

महान मौर्य वंश की स्थापना का श्रेय महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य (कौटिल्य) को ही जाता है। चाणक्य विद्वान, दूरदर्शी तथा दृढसंकल्पी व्यक्ति थे और अर्थशास्त्र, राजनीति और कूटनीति के आचार्य थे।

Chanakya Niti : Thirteen Chapter

दुःख के लम्बे जीवन की अपेक्षा सुख का अल्प जीवन ही सबको अच्छा लगता हैं।

A life of one moment, doing good deeds is better than a long life of an age engaged in misdeeds.

—

भूत और भविष्य पर विचार करने की अपेक्षा वर्तमान का चिन्तन करने में ही बुद्धिमता हैं, क्योंकि वर्तमान ही अपना हैं।

Do not repent for the past. Do not worry about the future. Concentrate on making maximum good use of the present.

—

देवजन, सज्जन और पिता तो अपने भक्त, आश्रित और पुत्र पर स्वभाव से ही प्रसन्न रहते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी प्रयास अथवा आयोजन की आवश्कता नहीं रहती। जाति-बन्धु खिलाने–पिलाने से और ब्राह्मण सम्मानपूर्ण संभाषण से प्रसन्न होते हैं अथार्त सज्जन व्यक्ति तो प्रेमपूर्ण व्यव्हार से ही प्रसन्न हो जाता हैं, उसे किसी अन्य दिखावटी कार्य की आवश्कता नहीं होती।
जाति-बिरादरी के लोगो को खिला-पिला कर प्रसन्न रखना चाहिए और ब्राह्मणों को आदर-सम्मानपूर्वक से प्रसन्न किया जा सकता हैं।

Good nature pleased deity, nobles and father. Good food pleases friends and brother. And a good talk pleases the scholars and the learned ones

—

महात्मा लोग बहुत विचित्र होते हैं वे एक ओर तो लक्ष्मी को तिनके के समान तुच्छ समझते हैं, उन्हें धन की चिंता नहीं होती और दूसरी और यदि उनके पास लक्ष्मी आ जाती हैं तो वे अत्यधिक नम्र हो जाते हैं।
समृद्धि की चाहत न करना और समृद्धि आने पर उदण्ड न होना महापुरुषों का लक्षण हैं, वे सदा नम्र बने रहते हैं।

The great ones have a strange nature. The money does not make them vane. In fact, the weight of its makes them more gentle and kind.

—

मनुष्य को जिस व्यक्ति से स्नेह होता हैं वह उसके सम्बन्ध में ही चिंता करता हैं और जिस व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का लगाव नहीं होता, उसके दुखी और सुखी होने से उसे क्या लेना-देना। अतः दुःख का मूल कारण स्नेह हैं। इसलिए ज्ञानवान व्यक्ति को चाहिए कि वह अधिक लगाव का परित्याग कर दे ।जिससे की वह अपना जीवन सुखपूर्वक बिता सके  यहाँ स्नेह का अर्थ मोह हैं और सब जानते हैं की मोह दुःख की जड़ हैं।

One who is infatuated, he is afraid. Infatuation is the cause of all miseries, the very root cause. Quit getting infatuated and be happy.

—

सुख-दुःख व मान-सम्मान जीवन के दो पहलू हैं, जो उनमे लिप्त नहीं होता वह प्रसन्न रहता हैं।
भाग्य के सहारे न रहकर आने वाले संकट से बचने का पहले से उपाय सोच लेना अथवा संकट आने के समय सोचना ही अच्छा हैं। मनुष्य को पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए पुरुषार्थी व्यक्ति संकट को पार कर लेता हैं जो यह सोचता हैं कि जो कुछ होगा देखा जायेगा, वह नष्ट हो जायेगा। व्यक्ति को उधम करना चाहिए भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहना चाहिए।

One who takes precautions against probable problems without delay is always secure and happy. Those who procrastinate or think whatever will be, will be, will be or we shall see. They perish.

—

राजा धर्मात्मा होता हैं तो प्रजा भी धार्मिक होती हैं। राजा के पापी होने पर प्रजा में पापाचार फ़ैल जाता हैं और राजा के धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप से उदासीन अथार्त धर्मविमुख हो जाती हैं, यह नियम घर में भी लागु होता हैं घर में भी माँ-बाप जैसे काम करेंगे संतान भी वही करेगी।

As the king is, so is the subject. The subjects of a noble king are noble; of wicked king wicked and subjects of mediocre are mediocre.

—

आचार्य कहते हैं कि धर्म से विमुख लोगो को में मृतवत समझता हूँ। धार्मिक व्यक्ति मरने के बाद अपनी कीर्ति के कारण जीवित रहता हैं, इसमें कोई संशय नहीं।

A non-religious person is living dead. A truly religious has a long life. No doubt about it.

—

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो में से, दो धर्म और मोक्ष का सम्बन्ध परलोक से हैं, और दो अर्थ और काम का सम्बन्ध इस लोक से हैं। जो जीव मानव शरीर पाकर भी इन चारो में से किसी एक को भी पाने का प्रयास नहीं करता, उसका जन्म बकरे के गले में लटकते स्तन के समान सर्वथा निरर्थक हैं, मनुष्य की सार्थकता चार पुरुषार्थ में ही हैं।

Religion, riches, love, and nirvana, a person not attaining any one of these four lives is a useless life.

—

दुष्ट आदमी दूसरों की कीर्ति को देखकर जलता हैं जब स्वयं वह उन्नति नहीं कर पाता, तो वह दूसरों की निंदा करने लगता हैं।
दुष्टो में प्रबल ईर्ष्या होती हैं। वे पहले तो यह दिखाना चाहते हैं कि जिन कर्मो के कारण सज्जनों की प्रशंसा हो रही हैं वे सभी कर्म वे भी कर सकते हैं, परन्तु जब अपने इस प्रयास में वे सफल नहीं हो पाते तो उत्कृष्ट कर्मो को ही निकृष्ट बता कर सज्जनों की निंदा करने लग जाते हैं।

Mean people burn in the fire of jealousy of the fame and fortune of the achievers. They criticize the achievers because they themselves could not achieve it.

—

मनुष्य का लक्ष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त करना होता हैं, यदि वह विषयों –काम, क्रोध, लोभ मोह आदि में पड़ जाता हैं तो वह आवागमन के बन्धनों में पड़ जाता हैं। विषयों में आशक्ति को हटाने से मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर लेता हैं।

One can attain Moksha only after expelling all worldly desires from heart and mind. The carnal desires weave a web in which one remains trapped.

—

आत्मा और शरीर दो भिन्न चीज हैं। जब व्यक्ति को यह ज्ञान होता हैं तो वह इस संसार से अपने को पृथक् समझने लगता हैं परमतत्व ज्ञान प्राप्त कर लेने पर जब मनुष्य का देहाभिमान नष्ट हो जाता हैं अथार्त वह अपने को शरीर न मानकर उससे भिन्न मानने लगता हैं तब वह उस स्थति में उसका मन जहाँ कहीं भी जाता हैं, वही उसे समाधि की अनुभूति होती हैं। अथार्त वह जाग्रत अवस्था में ही समाधि की स्थति में आ जाता हैं।

The knowledge of the ultimate truth liberates one from the vanity of physical existence. Wherever such a person’s mind goes he feels his bodily existence there.

—

इस संसार में मनुष्य की सभी इच्छाए पूरी नहीं होती। किसी को भी मनचाहा सुख नहीं मिलता वस्तुतः सुख-दुःख की प्राप्ति मनुष्य के अपने हाथ में न होकर ईश्वर के अधीन हैं। यह सोचकर मनुष्य को जितना भी मिलता हैं उतने से ही सन्तोष करना चाहिए।

Who gets fulfillment of al desires? Only god can who is all-powerful. So, be content with what you have.

—

मनुष्य को कर्मो के अनुरूप ही फल मिलता हैं, कर्म और फल का अटूट सम्बन्ध हैं जिस प्रकार बछड़ा सहस्त्रो गायो के बीच में खड़ी अपनी माता को ढूंड लेता हैं उसी प्रकार मनुष्य का कर्म भी फल के लिए करता को ढूंढ लेता हैं।

In hers of thousands of cows, calf seeks out its mother. Similarly, deeds seek out the doer.

—

मनुष्य का ध्येय निश्चित होना चाहिए कर्तव्य-पथ का निश्चय न कर सकने वाले व्यक्ति को न घर में सुख मिलता हैं और न ही वन में सुख मिलता हैं। घर उसे आसक्ति-परिवार के सदस्यों तथा धन-सम्पति में मोह के कारण काटता हैं और वन अपने परिवार को छोड़ने के दुःख और अकेलेपन की पीड़ा से व्यथित करता हैं।

A disorganized person is happy neither in society nor in wild. In society, he is ridiculed by others and in the wild he is alone.

—

जिस प्रकार फावड़े से खुदाई करने वाला पृथ्वी के नीचे के जल को निकाल लेता हैं, उसी प्रकार गुरु की सेवा करने वाला भी गुरु के हृदय में स्थति विद्या को प्राप्त कर लेता हैं।

It requires digging to get water out of the ground. Similarly, service to guru gets disciple knowledge out of him.

—

मनुष्य जैसे कार्य करता हैं, उसके विचार उसकी बुद्धि, उसकी भावनाए वैसी ही बन जाती हैं यह निश्चित हैं कि मनुष्यों को उसके पूर्वजन्मो के अच्छे-बुरे कर्मो के अनुरूप ही सुख-दुःख मिलता हैं इसी प्रकार फल-प्राप्ति कर्मो के अधीन हैं और जैसे कर्म होते हैं वैसा ही फल मिलता हैं उस समय बुद्धि भी वैसी ही बन जाती हैं, तथापि बुद्दिमान पुरुष अपनी ओर से सोच-विचार कर काम करता हैं।

Deeds determine the outcome. Knowledge is shaped by deeds. Still the wise and prudent ones give due thought to before executing it.

—

“ओउम् इतेकक्षर ब्रह्म” अथार्त ब्रह्म का नाम ओउम हैं अथवा “तत्वमसि” अथार्त तू ही ब्रह्म हैं। इस प्रकार एक मंत्र के रूप में सच्चे तत्त्व ज्ञान का उपदेश देने वाले गुरु की जो व्यक्ति वंदना नहीं करता, वह सौ बार कुत्ते की योनी में जन्म लेने के उपरान्त चाण्डाल योनि में उत्पन्न होता हैं।

A teacher who has imparted knowledge, be it ever a single word, he should be duly respected and paid obeisance to by the disciple. A disciple who does not do so shall take hundred births of dog and lastly that of scavenger.

—

युग के अंत में सुमेरु पर्वत का चलायमान होना संभव हैं, कल्प के अन्त में सातों समुन्द्रो का अपनी मर्यादा का त्याग संभव हैं, परन्तु सज्जन महात्मा युग-युगान्तर में भी अपनी संकल्प एवम अपनी प्रतिज्ञा से कभी विचलित नहीं होते वे अपने निश्चय पर सैदव अडिग रहते हैं अत: उनका कथन सैदव विश्वसनीय होता हैं।

At the end of age, the great mount Sumeru moves, at the end of an eon seven seas move, but noble souls do not move away from their target.

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—————–

Friends, चाणक्य नीति के उसी क्रम में “Chanakya quotes in Hindi and English : thirteen chapter” share कर रहा हूं। आशा है आपको बहुत सी बातें सीखने को मिलेगी।

Note: Friends, सावधानी बरतने के बावजूद यदि ऊपर दिए गए किसी भी Quote (Hindi or English) में आपको कोई त्रुटि मिले तो कृपया क्षमा करें और comments के माध्यम से अवगत कराएं।

निवेदन: कृपया comments के माध्यम से यह बताएं कि Chanakya Niti : Triyodas Adhayaya आपको कैसा लगा अगर आपको यह पसंद आए तो दोस्तों के साथ (Facebook, twitter, Google+) share जरुर करें।

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