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राजनीति के गलियारों और जिम्मेदार पदों पर क्यों जरुरी है सहनशीलता?

सहनशीलता Tolerance की आवश्यकता

हमारे संविधान के मूल सिद्धान्तों, कल्याणकारी आदेशों और आदर्शों के तहत किसी सत्ताधारी दल को शासन चलाने की ताकत सिर्फ इसलिए प्रदान की जाती है कि वह अपने राजनैतिक विवेक, अनुकूल दृष्टिकोण और दूरदर्शिता को काम में लाकर शासनिक या प्रशासनिक व्यवस्थाओं को चुस्त दुरुस्त रखना बेहद ज़रूरी समझे, न ये कि इसकी विपरीत दिशा में बहकर वह कमजोरों के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन और जुल्मो सितम की राह अपनाने लगे और अपना ही उल्लू सीधा करने की फिराक में रहने लगे।

कोई राजनेता हो या फिर कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों न हो, उसे संविधान और सरकारी आदेशों के अधीन रहते हुए ही अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का परायणता, निष्ठा और ईमानदारी के साथ निर्वाह करना होता है।

यह भी सर्वमान्य है कि जिम्मेदारी जितनी बड़ी होती है, धैर्य और सहनशीलता की ज़रूरत भी उतनी ही महसूस की जाती है।

मतलब ये कि ताकत भी बड़े संवैधानिक पदों पर केवल इसलिए सौंपी जाती है कि कोई जिम्मेदार शख्स विपरीत परिस्थितियों में अपने धैर्य, संयम और सहनशीलता को बरकरार रखने में पूरी तरह से सक्षम हो सके।

सहनशीलता (Tolerance) के अभाव में विपरीत परिस्थितियों के धारे का रुख मोड़ पाना सम्भव नहीं है। धैर्य और संयम के अभाव में कोई भी शख्स गुस्से में आकर गलत फैसले ले सकता है। सहनशीलता का अभाव सबसे पहले किसी इन्सान के मन में क्रोध के बीज बोता है। इंसानी फितरत के ऐतबार से कहा जाता है कि जब मन में क्रोध की भावना जागृत होती है तो ढेरों गलतफहमियां जन्म लेती हैं।

फिर उसके बाद लिए गए किसी गलत निर्णय के चलते आगे चलकर कोई ऐसा बुरा नतीजा सामने आता है जो उसके पूरे व्यक्तित्व को पश्चाताप के गहरे सागर में विलीन कर देता है।

ताकत से सहनशीलता का गहरा है रिश्ता

यही वजह है कि प्रजातंत्र में बड़े संवैधानिक पदों के लिए जो शक्ति और प्रभाव दिए गए हैं, वह अपनी जनता और मातहतों(आश्रय में रहने वाला) के हितों और अपने अधिकार क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी के लिए ही प्रदान किए गए हैं।

ये ताकत इसलिए भी दी गई है कि जटिल से जटिल हालात में भी हमारे सत्ताधारियों और प्रशासनिक अधिकारियों का धैर्य और उनकी सहनशीलता कहीं जवाब न दे जाए।

ताकि संगीन हालात में भी वे अपने मातहत लोगों को पारस्परिक सौहार्द, न्याय, परोपकार, सदाचार और नैतिकता का पाठ पढ़ाना कहीं भूल न जाएं। यदि गौर किया जाए तो ताकत से सहनशीलता का गहरा और अटूट रिश्ता है।

जिम्मेदार पदों पर रहने वाले लोगों के लिए संवैधानिक शक्ति किसी एंटी ऑक्सीडेंट से कम नहीं है जो बीमारी के आलम में बाहर से इंसानी जिस्म को भरपूर क्षमता देकर बीमारियों से लड़ने में उसकी मदद करती है।

शान्ति-व्यवस्था की बहाली में सहनशीलता का प्रमुख है किरदार

यदि देश के किसी इलाके में कुछ ऐसे हालात जन्म ले लें जिनके बाद जानो-माल की भारी क्षति और नुकसान का अंदेशा हो, तो ऐसी स्थिति में किसी बड़े संवैधानिक पद पर आसीन शख्स की जिम्मेदारी भी यही होती है कि वह सहनशीलता और निष्पक्षता के साथ कठिन हालात का डट कर सामना करे।

यदि किसी काम में निष्पक्षता का अभाव हो तो वहां इंसाफ का पलड़ा हल्का पड़ सकता है जिसके परिणाम स्वरूप घोर अनिश्चितता, अन्याय और जबरदस्त बेचैनी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।

ऐसी ऊहापोह की स्थिति में व्यवस्था किसी के हाथ से भी फिसल सकती है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो इस कड़ी परीक्षा के दौर से सकुशल गुजर जाते हैं जिसमें सहनशीलता की ज़बरदस्त दरकार होती है।

ताकत से किसी को मिलती नहीं खुदाई

जो शख्स जितनी बड़ी ताकत का मालिक होता है, उसके कन्धों पर जिम्मेदारियों का बोझ भी उतना ही बड़ा होता है और उसे उतनी ही कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना होता है। कभी कभी हमारे प्रशासनिक अधिकारियों पर राजनैतिक दबाव कुछ इस कदर बढ़ जाता है कि उससे उबरने की राह बहुत मुश्किल नजर आती है।

ताकत मिल जाने का आशय ये कत्तई नहीं होता कि आदमी खुदा बन गया है बल्कि विधि द्वारा प्रदत्त इस ताकत का असल उद्देश्य केवल पदों पर आसीन रहते हुए अपनी सम्बद्ध जिम्मेदारियों को सही ढंग, कुशलता और न्यायपूर्ण तरीके से अंजाम तक पहुंचाना होती है।

इसलिये अपने फर्ज़ के प्रति संतुलन बरकरार रखते हुये सब कुछ नियंत्रण में लिए रखना ज़रूरी है। लेकिन किन्हीं हालात में कुछ दबाव ऐसे हो जाते हैं कि व्यक्ति अपनी सहन शक्ति को खोकर हालात के सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है।

ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है

हमारे देश के अफसरों पर भी वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का पालन करने का दबाव रहता है। कभी कभी अनावश्यक दबाव भी कुछ कर्मठ अफसरों के लिये समाज एवं जनहित के मामलों में मुश्किल हालात पैदा कर देता है।

अब सवाल ये है कि ऐसी स्थिति में अपनी स्वच्छ और ईमानदाराना छवि को दागदार और धूमिल किए बिना कब तक अपने उसूलों पर कायम रहा जा सकता है? यह भी सोचने वाली बात है।

लेकिन ईमानदारी को सबसे अच्छी नीति मानने वाले लोग कभी अपने हालात से समझौता नहीं करते। उनके दिमाग पर वह कसमें और वादे हमेशा के लिये नक्श हो जाते हैं।

जीवन में अंधेरों को छांटने की कोशिश रखिए जारी

इंसान चाहे जितने भी बेहतर और सुख चैन से भरे माहौल में जिंदगी गुजारने का आदी हो, लेकिन जीवन के किसी न किसी मोड़ पर उसका सामना कुछ चुनौतीपूर्ण हालात से हो ही जाता है। वह चाह कर भी कठोर हालात के भंवर से खुद को बाहर नहीं निकाल पाता।

आदमी समझता है कि किसी बड़े पद को हासिल कर लेने के बाद उसकी समस्याओं का खात्मा हो जाएगा और उसकी ज़िन्दगी खुशगवार हो जाएगी लेकिन ज्यादातर मामलो में यह मानसिकता एक गलतफहमी साबित होती है।

किसी जिम्मेदार पद को पाने के बाद उसके कन्धों पर जिम्मेदारियों का ऐसा बोझ आ गिरता है जो उसकी कमर को टेढ़ी करके उसके रातों की नींद और दिन का चैन छीन सकता है।

ऊर्जा और आत्मविश्वास सहेजना नहीं है कोई मजाक

ऐसे हालात में किसी शख्स का खुद की ऊर्जा और आत्मविश्वास को सहेजकर रखना कोई मजाक नहीं है। एक बार अपने आस पास के माहौल पर निगाह फेरिए।

आपको नज़र आएगा कि यहां हर शख्स सम्मान और प्रतिष्ठा की चाहत में उम्मीद लगाए बैठा है कि काश! कोई ऐसा मौका उसे भी मिल जाता तो वह भी ऊंची और नर्म कुर्सी पर विराजमान होता, अपने मातहतों को आदेश निर्देश जारी करता और राष्ट्र एवं समाज के हित में कोई ऐसा कारनामा सरअंजाम दे देता जिसके बाद वह लोगों की प्रशंसा और दाद वसूल कर लेता।

लेकिन दुर्भाग्य से यह मौका हर किसी के नसीब में नहीं लिखा होता।

यह एक बेहतर अलामत है कि आपके मन में राष्ट्र एवं समाज के प्रति समर्पण और सेवा का भाव पनप रहा है। लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति के दौरान आपको किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, यह सोचते हुए बहुत से लोग हतोत्साहित होकर कदम पीछे खींच लेते हैं।

ऐसे लोग कभी अपनी मंज़िल को पाने की दिशा का सही निर्धारण नहीं कर पाते। यह भी याद रहे कि जीवन में चिंता और संकट के बादल को कभी पूरी तरह तरह छांटा नहीं जा सकता है। उतार चढ़ाव जिंदगी का हिस्सा हैं। कुछ न कुछ हमेशा हर किसी के साथ लगा ही रहता है।

बहुत से लोग समझते हैं कि बस एक बार फलां जिम्मेदार ओहदे पर पहुंचने के बाद उनके सारे दुख दर्द, चिंताएं और समस्याएं हवा हो जाएंगी। लेकिन इस गलतफहमी को जितनी जल्द हो सके यदि दिलो दिमाग से निकाल दिया जाए तो बहुत से कठिन काम अपने आप आसान हो जाएंगे।

इस मानसिकता के साथ आप जीवन में आने वाली चुनौतियों के लिए हर मोड़ पर बिल्कुल मुस्तैद और तैयार रहेंगे। कोई शख्स समझता है कि एक बार अगर वह आईएस अधिकारी बन गया तो उसका वर्षों पुराना सपना साकार हो जाएगा। बेशक यह सही है। उसका सपना साकार हो जाएगा।

लेकिन जो चुनौतियां उसे आईएएस बनने के बाद सामने आएंगी उसने इससे पहले कभी अनुमान भी नहीं किया होगा इसलिए कुछ भी जिम्मेदारी स्वीकार करने से पहले हमें इस बात को दृष्टिगत रखना चाहिए जीवन में चुनौतियां कभी समाप्त नहीं होती।

इस सिलसिले में देश के मशहूर बुद्धिजीवी और आईएएस ट्रेनर डॉक्टर विकास दिव्य कृति की मान्यता है कि जिंदगी में सबसे ज्यादा सफल लोग वही हो पाते हैं जिनके भीतर धैर्य एवं संयम का माद्दा सबसे ज्यादा पाया जाता हो।

उनका कथन हकीकत का एक रूप है। धैर्य से आदमी के दुख हल्के होते हैं और वह पूर्व के हालात के मुकाबले के लिए पहले से अधिक बलशाली हो जाता है। एक बार जब वह किसी बड़ी मुसीबत में गिरफ्तार होता है तो उससे निकलने की राहें तलाश करता है। उसके भीतर यदि सहनशीलता का तत्व मौजूद है तो वह विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को सकारात्मक रखते हुए उम्मीदों के साए में रहना पसंद करता है।

उसे घबराहट नहीं होती। वह सही मौकों की खोज में रह कर पसीने बहाने की अपनी आदत भी कभी नहीं छोड़ता। एक दिन उसकी यही कोशिश रंग ले आती है और उसका शुमार समाज के सफल व्यक्तियों में होने लगता है।

हर क्षेत्र में है सहनशीलता की आवश्यकता

ऐसा नहीं है कि सहनशीलता केवल बड़े और जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों के हक में बेहतर साबित होती है। इसकी ज़रूरत समाज के हरेक व्यक्ति को हर रोज महसूस हो सकती है।

आप दोस्तों की महफिल में हों, किसी रिश्तेदार के घर हों या अपने परिजनों के करीब ही क्यों न हों; सब्र, संयम और सहनशीलता की आवश्यकता आपको जीवन के हरेक मोड़ पर महसूस हो सकती है।

आप दोस्तों की मण्डली में बैठे हैं। उसी दौरान आपके किसी दोस्त या परिचित ने आप पर कटाक्ष कर दिया। बिल्कुल उसी समय आपने धैर्य और संयम का प्रदर्शन करते हुए शान्ति और सौहार्द को वरीयता दे दी तो मतलब साफ है…

आपने सहनशीलता की दिशा में कदम बढ़ा दिया है और बहुत जल्द आपके व्यवहार से प्रभावित होकर लोग आपके दीवाने बनने वाले हैं।

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